राजनीति विज्ञान (Political Science)

व्यवस्था विश्लेषण उपागम की त्रुटियों एवं दोष (सीमाएं) का उल्लेख कीजिए।

व्यवस्था विश्लेषण उपागम की त्रुटियों एवं दोष
व्यवस्था विश्लेषण उपागम की त्रुटियों एवं दोष

व्यवस्था विश्लेषण उपागम की त्रुटियों एवं दोष (सीमाएं) 

व्यवस्था विश्लेषण उपागम की प्रमुख त्रुटियों एवं दोष (सीमाएं) निम्नलिखित है-

1. अलोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं की उपेक्षा- इस दृष्टिकोण में केवल लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किया गया है। अलोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं की उपेक्षा की गयी है। इसका प्रमुख कारण इसका पश्चिमी प्रभाव से ओत-प्रोत होना है।

2. अराजनीतिक तत्त्वों की उपेक्षा- परम्परावादी दृष्टिकोण ने राजनीतिक व्यवहार के अराजनीतिक तत्त्वों की उपेक्षा की है। इस दृष्टिकोण ने प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं को तो मान्यता दी है, लेकिन अप्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं को नहीं माना।

3. सीमित – यह दृष्टिकोण विश्लेषणात्मक, व्याख्यात्मक अथवा समस्या समाधानात्मक नहीं था। इस दृष्टिकोण ने सिद्धान्तों के विकास और अपरिकल्पनाओं के परीक्षण तथा महत्त्वपूर्ण आँकड़ों के संग्रहीकरण के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

4. अन्तः अनुशासनात्मक नहीं– परम्परावादी दृष्टिकोण में अध्ययन की  अन्तर अनुशासनात्मक प्रवृत्तियों की उपेक्षा की गई है जबकि वास्तव में राजनीतिक प्रक्रियाओं का आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक क्रियाओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है अतएव इनके सन्दर्भ में ही राजनीतिक व्यवस्थाओं का समुचित और गहन विश्लेषण किया जाना चाहिए।

5. गैर पाश्चात्य राजव्यवस्थाओं की उपेक्षा- परम्परावादी दृष्टिकोण में लेखकों ने अपने अध्ययन का केन्द्र पाश्चात्य राजनीतिक व्यवस्थाओं को ही बनाया। इस प्रकार औपनिवेशिक एवं अन्य गैर पाश्चात्य राजनीतिक व्यवस्थाओं के अध्ययन की उपेक्षा की गयी है।

6. अपरिवर्तित– परम्परावादी दृष्टिकोण वर्तमान में पुराना पड़ चुका है। यह राजनीति में हो रहे आधुनिकतम परिवर्तनों का वर्णन करने में सक्षम नहीं है। इसका कारण यह है कि राज्य की प्रकृति कार्य और महत्त्व में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए है। आधुनिक राज्य केवल लोकराज्य ही नहीं बल्कि लोककल्याणकारी राज्य भी है। राज्य के कार्य अधिकाधिक सकारात्मक बन गए है परम्परागत उपागम इन बदलते हुए प्रभावों के अध्ययन के लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि यह रूढ़िवादी है।

7. व्यावहारिक की उपेक्षा- परम्परागत पद्धति में राजनीतिक संस्थाओं के सैद्धान्तिक वर्णन पर ही जोर दिया गया है। तथा व्यावहारिक पक्ष की उपेक्षा की गयी है।

8. अक्षमता- लोकतंत्र के उदय के कारण जनता में जागृति आई जिससे राजनीतिक प्रक्रियाओं में जनता की सहभागिता में वृद्धि हुई और राजनीतिक प्रक्रियाओं में जटिलता आ गई। परम्परावादी दृष्टिकोण से इन जटिल प्रक्रियाओं को समझना सम्भव नहीं।

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shubham yadav

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