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लॉर्ड लिटन के सुधार, भीषण अकाल तथा लिटन के सुधार कार्य
लॉर्ड लिटन के सुधार, भीषण अकाल तथा लिटन के सुधार कार्य-हेलो friends मै आज मैं आप लोगो के लिए बहुत ही महत्वपुर्ण टॉपिक” लॉर्ड लिटन के सुधार, भीषण अकाल तथा लिटन के सुधार कार्य” के बारे में चर्च करूँगा जो एग्जाम की दृष्टी से महत्वपूर्ण है | इस टॉपिक से प्रतियेक एग्जाम में कोई न कोई प्रश्न अवश्य ही पूछ जाता है |
1- 1876-78 का भीषण अकाल तथा लिटन के सुधार कार्य
इस भयंकर अकाल का प्रकोप मद्रास, मुंबई ,हैदराबाद, मैसूर तथा आदि प्रांतों पर पड़ा| परंतु इससे मध्य भारत तथा पंजाब के कुछ भाग भी नहीं बच सके | उस समय राजकीय सहायता अपर्याप्त तथा असंतोषजनक थी | अतः लिटन ने रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में 1878 में एक अकाल आयोग का गठन किया | इस आयोग ने कालांतर में अकाल को रोकने तथा उसका सामना करने के लिए अनेक सुझाव दिए | एक ‘अकाल सहायता कोष’ स्थापित किया गया | सिंचाई के लिए नहरो , तालाबों तथा कुओ का भी निर्माण किया गया | अनेक सड़के तथा रेल मार्ग तैयार किए गए |
2- दिल्ली दरबार (1877)
1876 में इंग्लैंड की महारानी ‘विक्टोरिया’ ने ”भारत की महारानी’‘ या “कैसर ए हिंद” की उपाधि ग्रहण की | लिटन का सुझाव था कि भारत में एक विशाल दरबार में इस उपाधि की घोषणा की भारतीय नरेशों की या भारतीय राजाओं की इंग्लैंड के प्रति भक्ति को प्रोत्साहित किया जाए| 1 जनवरी 1877 को होने वाली एक शाही दरबार की घोषणा अगस्त 1876 में की गई थी | इस दरबार के आयोजन में पैसा पानी की तरह बहाया गया जिसका भारतीय समाचार पत्रों में विरोध आरंभ हुआ |
3- वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878)
लार्ड लिटन की प्रतिक्रियावादी नीति का भारतीय समाचारपत्र तीखी आलोचना करते थे | भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र अंग्रेज समर्थक राजाओं एवं जमींदारों की भी तीखी आलोचना करते थे | अतः लिटन ने 14 मार्च 1878 को वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट विधान परिषद में प्रस्तुत किया और उसी दिन इसको पास कर दिया गया | इस अधिनियम के अनुसार भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया | अब सरकार के विरुद्ध कोई भी समाचार नहीं छप सकता था | इस अधिनियम का विरोध हुआ और 1882 में से समाप्त कर दिया गया |
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भारतीयों को शस्त्र रखने की सुविधा बहुत पहले से उपलब्ध थी | इन शस्त्रों की आवश्यकता निजी संपत्ति तथा कृषि की सुरक्षा के लिए अनिवार्य थी | 14 मार्च 1878 को लेजिस्लेटिव कॉउंसिल (विधान परिषद) ने शस्त्र अधिनियम पास कर दिया | इसके अनुसार लाइसेंस के बिना और शस्त्र रखना अवैध कर दिया गया | अब शस्त्रों के आयात पर भारी ड्यूटी(कर) लगा दी गई | इस अधिनियम में समस्त भारतीय जनता को निहत्था कर दिया | अतः इस का भी विरोध होना स्वाभाविक था
5- स्वतंत्र व्यापार की नीति
लॉर्ड लिटन स्वतंत्र व्यापार की नीति का समर्थक था | औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटेन उस समय उद्योग एवं व्यापार की दृष्टि से संपूर्ण संसार का नेतृत्व कर रहा था और स्वतंत्र व्यापार की नीति उसके हित में थी | भारत को ब्रिटेन को कच्चे माल की आवश्यकता होती थी और ब्रिटेन के बने हुए सामान के लिए भारत एक अच्छा बाजार था | 1878 में वस्तुओं से आयात निर्यात कर समाप्त कर दिया गया | 1879 में घटिया प्रकार के सूती वस्त्रों से और बाद में सभी प्रकार के वस्तुओ से आयात कर समाप्त कर दिया गया | इस प्रकार ब्रिटेन के हितों के लिए भारत के हित का बलिदान किया गया|
6-आर्थिक सुधार
अपने कार्य काल में लार्ड लिटन अनेक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार भी किए | उसके इस कार्य में उसके परिषद के अर्थमंत्री सर जॉन स्ट्रेची ने उसकी बहुत सहायता की | नमक कर में अनेक दोष होने के कारण भारतीय रियासतों को नमक बनाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया और ये अधिकार केंद्रीय सरकार को दे दिया गया | परंतु इसके लिए रियासतों को क्षतिपूर्ण के रूप में कुछ धन दिया गया | इस प्रकार एक और तो सरकार की आय में वृद्धि हुई तथा एक राज्य से दूसरे राज्य में चोरी छिपे नमक लाने की रोकथाम के लिए जो निगरानी करती करनी पड़ती थी वह खर्च बच गया | 1877 में प्रांतों को एक निश्चित धनराशि के स्थान पर उन्हें आय का एक निश्चित भाग दिया जाना स्वीकार किया गया | परिणामस्वरुप अब प्रत्येक प्रान्त अपनी आय में वृद्धि करने का हर संभव प्रयास किया करना आरंभ कर दिया.
7- सरकारी सेवाओं के संबंध में नियम
1833 के कंपनी के चार्टर एक्ट द्वारा भारतीयों को बिना किसी भेदभाव के और केवल योग्यता के आधार पर बड़ी से बड़ी नौकरी प्राप्त करने की सुविधा दी गई थी | 1833 के चार्टर के द्वारा सरकारी सेवा के उच्च पदों के लिए लंदन में एक परीक्षा की व्यवस्था की गई थी| इस प्रकार सिद्धांतः भारतीयों को उच्च सरकारी सेवा में स्थान प्राप्त करने का अधिकार था | यद्यपि व्यावहारिक दृष्टि से यह संभव नहीं हो पाया था और न अंग्रेज शासक इस बात को पसंद करते थे | लॉर्ड लिटन ने भारतीयों की इस सुविधा को समाप्त करने का प्रयत्न किया | उन्होंने भारतीयों के लिए एक सार्वजनिक परीक्षा की व्यवस्था की | यज्ञ लिटन की यह योजना 8 वर्ष के पश्चात समाप्त कर दी गई | इसी अवसर पर लंदन में होने वाली परीक्षा में बैठने वालों की अधिकतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी गई | सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने लिटन कि इस कार्य की कड़ी आलोचना की |
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