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आदर्शवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन | आदर्शवाद के गुण | आदर्शवाद की सीमाएँ तथा दोष

आदर्शवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन
आदर्शवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन

आदर्शवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

आदर्शवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन निम्नलिखित है-

आदर्शवाद के गुण (Merits of Idealism in Education)

1. शिक्षा में मूल्यों की प्रधानता (Supermacy of Objectives of Education)- आदर्शों एवं मूल्यों की स्थापना में आदर्शवाद का महत्त्वपूर्ण योगदान है। यह इसकी मौलिक देन है।

2. शिक्षा के उदार तथा व्यापक उद्देश्य (Liberal and Broad Objectives of Education)— शिक्षा में आदर्शवाद द्वारा प्रस्तुत शिक्षा के उद्देश्य व्यापक एवं उदार हैं।

3. व्यक्ति का सम्यक् विकास (Harmonious Development of the Individual)- आदर्शवाद ने शिक्षा का मूल उद्देश्य आत्मानुभूति को माना है । आत्मानुभूति के कारण व्यक्ति तथा समाज का वातावरण सुधरेगा और व्यक्ति तथा मानवता का सम्यक् विकास होगा।

4. शिक्षा का महत्त्व (Significance of Education)- आदर्शवाद बालकों के व्यक्तित्व का आदर करने के लिए प्रेरित है।

5. व्यक्तित्व का आदर (Respect for Personality)- आदर्शवाद बालकों के व्यक्तित्व का आदर करने के लिए प्रेरित है।

6. आत्म-अनुशासन (Self-discipline)- आदर्शवाद का अनुशासन का पक्ष बड़ा आकर्षक एवं प्रबल है। प्रभावात्मक अनुशासन स्थायी होता है। आत्म-नियन्त्रण एवं आत्मानुशासन से ही व्यक्ति एवं समाज का कल्याण सम्भव है।

7. चारित्रिक विकास शिक्षा (Character Development Education)- आदर्शवाद ने नैतिक एवं चारित्रिक शिक्षा, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक शिक्षा पर बल दिया है। आज के शीत युद्ध एवं भ्रष्टाचार के युग के लिए ऐसी शिक्षा बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी।

8. मानवीय तत्त्व की पहचान (Recognition of Human Element)-आदर्शवादियों ने मानवीय शिक्षा पर उचित बल दिया है।

9. महान् दार्शनिकों की उपज (Product of Great Philosophers)- आदर्शवाद महान् दार्शनिकों की छाया में पनपा है।

10. भिन्नता में एकता (Unity in Diversity)- आदर्शवाद विभिन्नता में एकता’ मूल्य में विश्वास करते हैं। भारत जैसे बहुधर्मी, बहुजातीय आदि विभिन्नताओं के देश के लिए आदर्शवाद बहुत उपयोगी है।

11. आदर्श अध्यापक (Ideal Teacher)- आदर्शवाद ने अध्यापक के महत्व पर जोर देकर उसका गौरव बढ़ाया है। उसके व्यक्तित्व के प्रभाव को उजागर किया है।

12. संयुक्त तथा बहुपक्षीय पाठ्यक्रम ( Integrated and Multisided Curriculum)- आदर्शवाद द्वारा प्रतिपादित पाठ्यक्रम अधिक उदार, प्रगतिशील तथा बहुआयामी है इस प्रकार का पाठ्यक्रम समाज के विकास में बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है।

13. स्कूल एक आदर्श सामाजिक संस्था के रूप में (School as an Ideal Epitome of Society)- सामाजिक संस्थाओं में स्कूल को आदर्शवादी ऊँचा तथा महत्त्वपूर्ण स्थान देते हैं।

आदर्शवाद की सीमाएँ तथा दोष (Limitations and Demerits of Idealism)

1. भौतिक जगत् की अनदेखी (Disregard of Material World)- आदर्शवाद भौतिक एवं प्रत्यक्ष जगत् की बहुत अवहेलना करता है।

2. असन्तुलित पाठ्यक्रम (Unbalanced Curriculum)- आदर्शवादी पाठ्यक्रम में दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक तत्त्व अधिक हैं।

3. अति सूक्ष्म उद्देश्य (Very Subtle Objectives)- आदर्शवाद शिक्षा पद्धति में सूक्ष्म उद्देश्यों पर अधिक बल देते हैं।

4. रटने पर जोर (Strain on Memorisation)- आदर्शवादी शिक्षा रटने पर अधिक बल देती है तथा समझने, तर्क-वितर्क करने तथा मनोवैज्ञानिक शिक्षण पद्धति की अवहेलना करती है

5. छात्र केन्द्रित न होना (Not Child Centered)- आदर्शवादी शिक्षा में बालक का स्थान गौण होता है और शिक्षक का स्थान प्रमुख। आज का शिक्षाशास्त्री बालक को प्रमुख मानता है और शिक्षक को गौण।

6. बौद्धिक पक्ष की प्रधानता (Supremacy of Intellectual Element)- आदर्शवाद शिक्षा में विचारों, भावों एवं मन पर आवश्यकता से अधिक बल दिया जाता इसलिए आदर्शवाद पाठ्यक्रम आवश्यकता से अधिक बौद्धिक हो जाता है।

7. अमनोवैज्ञानिक आधार (Unpsychological Basis)- यह शिक्षा मनोवैज्ञानिक नहीं है। इसमें बालकों को उनकी व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार नहीं पढ़ाया जाता है।

8. शारीरिक शिक्षा पर कम बल (Less Emphasis on Physical Development)– शारीरिक शिक्षा की आदर्शवादी पाठ्यक्रम में आलोचना की गई है।

9. सामाजिकता दृष्टिकोण की अपेक्षाकृत अवहेलना (Relatively Neglect of Social Aspect)- इस पद्धति में जीवन के सामाजिक पक्षों की भी अवहेलना की गई है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए शिक्षा को भी सामाजिक पक्षों पर बल देना चाहिए।

10. वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर कम बल (Less Emphasis on Scientific Aspect)- आदर्शवादी पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषयों को उचित स्थान नहीं दिया गया है, जबकि आज का युग वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा का है।

11. कमजोर शिक्षण विधियाँ (Weak Teaching Methods)- आदर्शवादी शिक्षण पद्धतियाँ प्रगतिशील नहीं हैं। कहा जाता है कि आदर्शवाद का यह पक्ष सबसे कमजोर है।

12. अध्यापक से अपेक्षाकृत अधिक आशाएँ (Higher Expectations from Teacher)- आदर्शवादी इस तथ्य को कदाचित भूल रहे हैं कि शैक्षिक तकनीकी तथा भौतिकवाद के प्रभाव के कारण अध्यापकों की समाज में स्थिति गिरती जा रही है। यह कटु सत्य है कि मध्य वर्ग के परिवार भी अपने बच्चों को अध्यापक बनाना नहीं चाहते हैं, विशेषकर पुरुष वर्ग ।

13. बहुत ऊँचे उद्देश्य – आदर्शवादी कहते हैं कि उनके शिक्षा सम्बन्धी उद्देश्य बड़े ऊँचे एवं महान् हैं, पर उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इनके पास साधनों का अभाव है।

14. सह-शिक्षा की अवहेलना – आदर्शवाद सामान्यतः सह-शिक्षा के विरोधी हैं।

15. सर्वसाधारण की शिक्षा पर कम ध्यान- आदर्शवादी दर्शन में जनसाधारण की शिक्षा के प्रति उचित दृष्टिकोण नहीं है।

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shubham yadav

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