अनुक्रम (Contents)
प्रयोजनवाद का अर्थ
(A) प्रयोजनवाद का व्युत्पत्तिपरक अर्थ (Derivative Meaning of Pragmatism)
प्रयोजनवाद शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दों से हुई मानी जाती है- ‘Pragma’ तथा ‘Pragmatikos’ |
प्रेग्मा का अर्थ है क्रिया अथवा किया गया कार्य। प्रेग्मेटिकोज का अर्थ है, व्यावहारिकता अथवा उपयोगिता । अतः प्रयोजनवाद के अन्तर्गत ‘क्रियाशीलता’ तथा ‘व्यावहारिकता’ को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
प्रयोजनवाद को प्रयोगवाद भी कहा जाता है, क्योंकि प्रयोजनवाद प्रयोग को ही एकमात्र सत्य की कसौटी मानता है।
(B) प्रयोजनवाद का दार्शनिक अर्थ (Philosophical Meaning of Pragmatism)
प्रयोजनवाद के विभिन्न पक्षों को समझने के लिए प्रसिद्ध विद्वानों के विचार आगे दिए गए हैं-
जेम्स बी. प्रेट के अनुसार, “प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धान्त, सत्य का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त तथा वास्तविकता का सिद्धान्त देता है। “
जे. एस. रॉस के शब्दों में, “प्रयोजनवाद आवश्यक रूप से एक मानवतावादी दर्शन है जो यह विश्वास करता है कि मानव क्रिया करते हुए स्वयं अपने मूल्यों का निर्माण करता है, वास्तविकता अपनी निर्माण अवस्था में है तथा हमारे सत्य मानव निर्मित तत्त्व हैं।”
रीड के विचार में, “प्रयोजनवाद क्रिया, व्यस्तता, वचनबद्धता तथा प्रतिद्वन्द्विता को केन्द्रीय विषय मानता है।”
रस्क के कथन में, “प्रयोजनवाद एक प्रकार के नए आदर्शवाद के विकास की केवल अवस्था है जो वास्तविकता के प्रति पूर्ण न्याय करेगा, क्रियात्मक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का समन्वय करेगा तथा परिणामस्वरूप ऐसी संस्कृति का निर्माण करेगा जो निपुणता को पूर्ण स्थान देगी न कि इसकी अवहेलना करेगी ।”
विलियम जेम्स ने प्रयोजनवाद को इस प्रकार परिभाषित किया है, “प्रयोजनवाद मन का एक स्वभाव तथा दृष्टिकोण है। यह विचारों तथा सत्य की प्रकृति का सिद्धान्त भी है। तथा अन्त में यह वास्तविकता सम्बन्धी सिद्धान्त भी है। “
ब्राइटमैन के कथन में, ” प्रयोजनवाद सत्य का मापदण्ड है। सामान्यत रूप में यह वह सिद्धान्त है जो समस्त विचारधारा के सत्य की जाँच उक्त के व्यावहारिक परिणामों से करता है । यदि व्यावहारिक परिणाम सन्तोषजनक है तो विचार प्रक्रिया को सत्य कहा जाता है।
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि प्रयोजनवाद ऐसा दर्शन है जो विश्व की समस्त वस्तुओं, क्रियाओं तथा तत्त्वों को उपयोगिता की दृष्टि से देखता है तथा किसी चिरन्तन सत्य में विश्वास न करके सत्य को परिवर्तनशील मानता है। प्रयोगों के परिणामस्वरूप पाए गये ‘प्रमाणों को सत्य की कसौटी मानता है।
प्रयोजनवाद इस तत्त्व पर बल देता है कि वही मूल्य सत्य है जिसका परिणाम किसी स्थिति में मानव के लिए व्यावहारिक, लाभप्रद तथा फलदायक हो । प्रयोजनवाद, आदर्शवादी की भाँति पूर्व निश्चित तथा परिचित प्रचलित सिद्धान्तों के अनुसार आदर्शों तथा मूल्यों के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता।
आदर्शवादियों ने ‘विचार’ को महत्त्व दिया, प्रकृतिवादियों ने ‘पदार्थ’ को जबकि प्रयोजनवादियों ने ‘अनुभव’ को सब कुछ माना है।
प्रयोजनवाद के आधारभूत सिद्धान्त
(1) मूल्य निश्चित नहीं हैं।
(2) मूल्य उत्पन्न किए जाते हैं।
(3) मूल्य परिवर्तनशील हैं।
(4) कोई दैवी शक्ति नहीं है।
(5) अनुभव ज्ञान का आधार है।
(6) प्रयोग द्वारा ही सभी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।
(7) उपयोगिता ही वास्तविकता है।
(8) क्रिया का महत्त्व विचारों से अधिक है।
(9) व्यक्ति का विकास सामाजिक वातावरण में ही किया जा सकता
(10) वास्तविकता अभी निर्माण की अवस्था में है।
(11) वर्तमान तथा भविष्य में विश्वास है
(12) वही आदर्श अर्थपूर्ण हैं जो अभी तथा तुरन्त प्राप्त किए जा सकते हैं।
(13) व्यक्तित्व का विकास केवल वातावरण के साथ प्रतिक्रिया द्वारा सम्भव है।
कुछ विद्वानों के विचार इस सन्दर्भ में नीचे दिए जा रहे हैं-
विलियम जेम्स ने लिखा है, “सत्यता किसी प्रकार का स्थायी गुण-धर्म नहीं है। वह तो अकस्मात विचार में निर्वासित होती है।”
उपयोगिता के बारे में जेम्स का कहना है, “किसी वस्तु की सत्यता उसकी उपयोगिता के आधार पर निर्धारित की जा सकती है।”
रस्क के विचार में, “प्रयोजनवाद इस बात की आवश्यकता ही नहीं समझता कि संसार में किसी एक तत्त्व के आधार पर स्पष्टीकरण किया जाए। प्रयोजनवाद बहुत तत्त्ववादी है ।
शिक्षा में प्रयोजनवाद
सम्भवतः शिक्षा का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जिसे कि प्रयोजनवाद ने थोड़ा-बहुत प्रभावित न किया हो । यहाँ पर संक्षेप में शिक्षा पर प्रयोजनवाद के प्रभाव दिए जा रहे हैं-
(I) प्रयोजनवाद तथा शिक्षा के सिद्धान्त (Principles of Pragmatism in Education)
संक्षेप में प्रयोजनवाद के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(1) प्रयोजनवाद में शिक्षा का आधार समाज है।
(2) प्रयोजनवाद भौतिक तथा सामाजिक शिक्षा पर बल देता है।
(3) प्रयोजनवाद बालक की अभिरुचियों पर भी बल देता है।
(4) प्रयोजनवाद शिक्षा में अनुभव पर बल देता है।
(5) प्रयोजनवाद शिक्षा में प्रयोग को प्रबल मानता है।
(II) प्रयोजनवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य (Pragmatism and Aims of Education)
प्रसिद्ध प्रयोजनवादी दार्शनिक जॉन ड्यूवी का कथन है, “शिक्षा के उद्देश्य विभिन्न बालकों के विभिन्न होते हैं। निर्धारित किए गए उद्देश्य भलाई की तुलना में बुराई अधिक कर सकते की शक्तियों को मुक्त तथा निर्देशित करने के साधनों को चुनने के लिए सुझावों के रूप हैं। उनको केवल आने वाले परिणामों को जानने, स्थितियों की देख-रेख करने तथा बालकों में स्वीकार किया जा सकता है।”
रॉस के अनुसार, “प्रयोजनवादी शिक्षा का सबसे सामान्य उद्देश्य मूल्यों की रचना है। शिक्षा का मुख्य कर्त्तव्य बालक को ऐसे वातावरण में रखना है जिसमें रहते हुए वह करना नवीन मूल्यों का निर्माण करता रहे।”
प्रयोजनवाद का किसी पूर्व शैक्षिक उद्देश्य में विश्वास नहीं है।
यद्यपि प्रयोजनवाद ने शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट निर्धारित नहीं किए हैं, फिर भी निम्नलिखित उद्देश्यों के संकेत मिलते हैं-
1. सामाजिक कुशलता का उद्देश्य (Objective of Social Efficiency)- प्रयोजनवाद का उद्देश्य शिक्षा द्वारा व्यक्ति को सामाजिक दृष्टि से कुशल बनाना है।
2. प्रगतिशील सामाजिक व्यवस्था (Objective Progressive Social Order)- प्रयोगवाद ऐसी शिक्षा व्यवस्था का निर्माण करना चाहता है जिससे सामाजिक व्यवस्था प्रगतिशील बन सके।
3. अनुकूलता का उद्देश्य (Objective of Adjustment)- प्रयोगवादी शिक्षा का उद्देश्य वर्तमान समय, परिस्थिति तथा वातावरण के साथ व्यक्ति का अनुकूलन स्थापित करना है।
4. मूल्य तथा आदर्श निर्माण का उद्देश्य (Objective of Creation of New Values and Ideals)- प्रयोगवादी शिक्षा नये मूल्यों तथा आदर्शों की स्थापना पर बल देती है।
5. व्यावसायिक क्षमता का उद्देश्य (Social Efficiency Objective)- प्रयोगवादी विचारक शिक्षा में व्यावसायिक क्षमता पर बल देता है।
6. प्रयोजनवाद के अनुसार समाज की परिस्थिति के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक को सामाजिक कार्यों के लिए तैयार करना है ।
7. लोकतान्त्रिक उद्देश्य (Democratic Objective)—प्रयोजनवाद शिक्षा के अनुसार बालकों को लोकतान्त्रिक जीवन के लिए तैयार करना है।
8. गतिशील बालक का उद्देश्य (Objective of Dynamic Child)— प्रयोजनवादी शिक्षा बालक को गतिशील बनाना चाहती है।
9. चुनौतियों सम्बन्धी सशक्त बनाने का उद्देश्य (Objective of Facing Challenges)- प्रयोजनवादी शिक्षा बालक को चुनौतियों का सशक्त सामना करने के लिए तैयार करती है।
(III) प्रयोजनवाद तथा पाठ्यक्रम (Pragmatism and Curriculum)
(1) उपयोगी विषय – प्रयोगवादी उपयोगी विषयों के शिक्षण पर बल देता है।
(2) पाठ्यक्रय निर्माण का सिद्धान्त-प्रयोगवादी पाठ्यक्रम के निर्माण के मुख्य सिद्धान्त निम्न हैं
(i) उपयोगिता का सिद्धान्त
(ii) सह-सम्बन्ध का सिद्धान्त
(iii) बाल केन्द्रित का सिद्धान्त
(iv) व्यावसायिकता का सिद्धान्त
(v) क्रियाओं एवं अनुभव का सिद्धान्त
(vi) एकीकरण का सिद्धान्त
(3) प्रमुख विषय – प्रयोगवादी शिक्षा के प्रमुख विषय हैं— स्वास्थ्य विज्ञान, शरीर विज्ञान, गणित, इतिहास, भूगोल । लड़कियों के लिए गृह विज्ञान, कृषि तथा अन्य शिल्प ।
(4) वैयक्तिक विभिन्नता — प्रयोजनवाद पाठ्यक्रम भी वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखकर उपयोगी विषयों की शिक्षा देना चाहता है ।
(IV) प्रयोजनवाद तथा शिक्षण विधियाँ (Pragmatism and Methods of Teaching)
(1) प्रयोजनवाद ‘करके सीखने’ या क्रिया द्वारा सीखने पर बल देता है।
(2) प्रयोजनवाद अनुभव के द्वारा सीखने पर बल देता है।
(3) प्रयोजनवाद प्रयोगात्मक विधि में विश्वास करता है
(4) प्रयोजनवाद प्रोजेक्ट विधि पर बल देता है।
(5) प्रयोजनवाद एकीकरण की विधि को महत्त्वपूर्ण मानता है।
(6) जीवन के साथ सम्बन्ध स्थापित करने का सिद्धान्त।
(V) प्रयोजनवाद तथा शिक्षा (Pragmatism and the Teacher)
(1) प्रयोजनवादी शिक्षाविद् शिक्षकों को मित्र, दार्शनिक एवं निर्देशक का दर्जा देते हैं।
(2) प्रयोजनवाद विचारक शिक्षक को छात्रों के बीच अगुआ या नेता के रूप में देखते हैं ।
(3) प्रयोजनवाद में शिक्षक निर्देशक के रूप में साथ-साथ कार्य करता है।
प्रयोजनवाद में अध्यापक के निम्नलिखित कार्य हैं-
(1) छात्रों में स्वयं सोचने की शक्ति का निर्माण करना ।
(2) छात्रों को करके सीखने पर बल देना न कि बताकर सिखाने पर।
(3) छात्रों की पहल शक्ति को बढ़ावा देना
(4) छात्रों में समस्या समाधान की अभिवृत्ति का विकास करना ।
(5) छात्रों को क्रियात्मक बनाना ।
(6) छात्रों में सामाजिक रुचियों, आदतों तथा अभिवृत्तियों के विकास के लिए उचित मार्गदर्शन करना ।
(VI) प्रयोजनवाद तथा छात्र (Pragmatism and the Student)
(1) छात्र को महत्त्वपूर्ण स्थान देना ।
(2) जहाँ तक सम्भव हो छात्र केन्द्रित शिक्षा प्रक्रिया बनाना ।
(3) छात्रों की विभिन्न रुचियों तथा अभिरुचियों के अनुसार उनके विकास का उपयुक्त अवसर प्रदान करना ।
(4) छात्रों को सत्य तथा मूल्य निर्धारण में सहायता देना ।
(5) छात्रों को समाज का कुशल नागरिक बनाने में सहायता देना ।
(VII) प्रयोजनवाद में अनुशासन (Pragmatism and Discipline)
ड्यूवी के अनुसार, “सामाजिक जीवन ही अनुशासन का आधार है।” इसी सन्दर्भ में ड्यूवी ने कहा है, “स्कूल में शिक्षा व्यवस्था बालक की रुचि, रुझान और आवश्यकता के अनुसार की जाए, । अनुशासन की समस्या ही नहीं होगी।” संक्षेप में निम्न दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं-
(1) प्रयोजनवाद शैक्षिक व्यवस्था में सीमित मुक्त्यात्मक अनुशासन या सीमित स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है।
(2) प्रयोजनवादी विचारक सामाजिक अनुशासन के समर्थक हैं।
(VII) प्रयोजनवाद तथा स्कूल (Pragmatism and School)
ड्यूवी ने को समाज का लघु रूप माना है तथा इसे समाज का सच्चा प्रतिनिधि। संक्षेप में प्रयोजनवाद में स्कूल की निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए-
(1) स्कूल समाज के लघु रूप में।
(2) स्कूल व्यापक (Enlarged) परिवार के रूप में।
(3) स्कूल बाल केन्द्रित संस्था के रूप में।
(4) स्कूल प्रयोगशील के रूप में।
(5) स्कूल व्यावसायिक शिक्षा प्रदानकर्ता के रूप में।
(6) स्कूल सामाजिक मूल्य निर्माणकर्त्ता के रूप में।
(7) स्कूल ‘करके सीखने’ के अनुभव प्रदानकर्त्ता के रूप में।
(8) स्कूल सामाजिक अनुशासन निर्माणकर्त्ता के रूप में।
(9) स्कूल वास्तविक जीवन का अनुभव प्रदानकर्त्ता के रूप में।
(10) स्कूल मित्रवत् अध्यापकों का प्रावधानकर्त्ता के रूप
प्रयोजनवाद की सीमाएँ तथा आलोचना :
1. शिक्षा में उद्देश्यों का न होना (Absence of Objectives in Education)- प्रयोजनवाद ने शिक्षा को कोई पूर्व निर्धारित उद्देश्य नहीं माना है, अतः इसके विरोधियों का कहना है कि बिना उद्देश्य के शिक्षा सुचारु रूप में नहीं दी जा सकती।
2. किसी सिद्धान्त को सत्य न मानना (No Belief in any Principle)- प्रयोजनवाद ने किसी भी सिद्धान्त को सदैव सत्य नहीं माना है। इस प्रकार का विचार दोषपूर्ण है।
3. उपयोगिता पर अनावश्यक बल (Undue Emphasis on Utility)—प्रयोजनवार ने ‘उपयोगिता’ पर आवश्यकता से अधिक बल दिया है। इस प्रकार की विचारधारा ह भौतिकवाद का गुलाम बनाती है तथा संसार में झगड़ा, ईर्ष्या, निर्दयता इत्यादि जैसी गर्म प्रवृत्तियों को जन्म देती है।
4. सामाजिक धरोहर की अवहेलना (Disregard of Cultural Heritage)- प्रयोजनवाद ने समाज के एकत्रित अनुभवों अर्थात् विरासत को कोई महत्त्व नहीं दिया है। हर व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं कि वह स्वतः मूल्य निर्धारण करे।
5. प्रत्यक्ष अनुभव पर विश्वास (Faith only in Direct Experience)- प्रत्यक्ष अनुभव’ को ही प्रयोजनवाद ने ज्ञान प्राप्त करने का एकमात्र साधन माना है तथा अन्य साधन की अवहेलना की है।
6. नैतिकता पर उचित बल न देना (Less Emphasis on Morality) प्रयोजनवारने पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा की अवहेलना की है।
7. शारीरिक शिक्षा पर कम ध्यान (Less Stress on Physical Development)- प्रयोजनवाद ने पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा की अवहेलना की है।
8. मनोरंजन पक्ष की अवहेलना (Neglect of Hobbies)- प्रयोजनवाद ने अवकाश के समय की आवश्यकता को कोई महत्त्व नहीं दिया है।
9. पाठ्यक्रम केवल क्रियाएँ ही (Curriculum only in term of Activities)— पाठ्क्रम को केवल क्रियाओं का समूह समझना ठीक प्रतीत नहीं होता है जैसा कि प्रयोजनवादी मानते हैं।
प्रयोजनवाद का शिक्षा पर प्रभाव अथवा शिक्षा में योगदान
प्रयोजनवाद ने शिक्षा सम्बन्धी सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक विचारधारा पर अपूर्व प्रभाव डाला है। इसी विचारधारा के आधार पर ‘एक्टीविटी स्कूल’ प्रणाली का आरम्भ हुआ।
ड्यूवी, जो कि प्रयोजनवाद के प्रबल समर्थक हैं, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में रूढ़िवादिता का घोर विरोध किया। मानव जीवन की परिवर्तित एवं परिवर्तनशील स्थितियों के लिए एक उपयुक्त शिक्षा दर्शन का प्रस्तुतीकरण किया। इनके प्रयोगात्मक एवं सैद्धान्तिक कार्यों ने शिक्षा का पुनर्मनोवैज्ञानीकरण किया है तथा इसको औद्योगिक एवं वैज्ञानिक रूप प्रदान किया है।
मुख्य तौर पर प्रयोजनवाद तथा ड्यूवी ने निम्नलिखित शैक्षिक क्षेत्रों पर अपना प्रभाव डाला-
(1) शिक्षा का नया अर्थ लिया जाने लगा है। इसे अनुभवों का नव-निर्माण और पुनर्गठन कहा जाने लगा।
(2) शिक्षा के उद्देश्यों पर नवीन दृष्टिकोण से विचार होने लगा है।
(3) विद्यालय के कार्यों में समाज के परिवर्तन के अनुकूल परिवर्तन लाना अच्छा समझा ‘जाने लगा है।
(4) विद्यालय को समाज का ‘आदर्श लघु रूप’ समझा जाने लगा है।
(5) विद्यालय में ऐसी शिक्षा पर बल दिया जाने लगा है, जो छात्रों में सामाजिक भावना का विकास करें।
(6) विद्यालय का कार्य जनतन्त्र की भावना का विकास करना समझा जाने लगा है।
(7) विद्यालय में सामूहिक कार्यक्रमों पर बल दिया जाने लगा है।
(8) पाठ्यक्रम पर नवीन दृष्टिकोण से विचार होने लगा है।
(9) पाठ्यक्रम में व्यावसायिक विषयों को प्रमुखता दी जाने लगी है।
(10) शिक्षा में बालक को अनुभव द्वारा सीखने के अवसर प्राप्त करने पर बल दिया जा रहा है।
(11) अनुशासन का आधार सामाजिक वातावरण में सहयोग है।
(12) पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों में समन्वय के सिद्धान्त को बढ़ावा दिया जाने लगा है।
(13) ज्ञान के एकीकरण के महत्त्व के कारण शिक्षण प्रणाली में प्रयोजन विधि को प्रोत्साहित किया जाने लगा है।
उपसंहार (Conclusion)— प्रयोजनवाद ने शिक्षा के समस्त पक्षों को प्रभावित किया है। प्रयोजनवाद व्यावहारिकता पर बल देता है। प्रयोजनवाद छात्रों द्वारा ‘करके सीखने’ पर बल देता है। यहाँ पर इस बात पर जोर देना भी आवश्यक जान पड़ता है कि हमें एक ही ‘वाद’ अथवा ‘दर्शन’ पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। ‘वाद’ को एक ‘साधन’ न कि ‘साध्य’ मानना चाहिए। अन्य वादों के अच्छे तथा प्रभावी सिद्धान्तों तथा विधियों का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए।