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विस्मृति या विस्मरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण, सिद्धान्त, कम करने के उपाय

विस्मृति या विस्मरण का अर्थ
विस्मृति या विस्मरण का अर्थ

विस्मृति या विस्मरण का अर्थ (vismaran kya hai)

स्मृति की भाँति विस्मृति भी एक मानसिक क्रिया है। अन्तर केवल इतना है उत्तर कि विस्मृति एक निष्क्रिय तथा नकारात्मक क्रिया है। स्मृति के साथ-साथ विस्मृति का अध्ययन भी महत्त्वपूर्ण है। यदि विस्मृति अधिक होने लगती है तो यह व्यक्ति में असामान्य व्यवहार पैदा करती हैं।

जब हम कोई नई बात सीखते हैं या नया अनुभव प्राप्त करते हैं, तब हमारे मस्तिष्क में उसका चित्र अंकित हो जाता है । हम अपनी स्मृति की सहायता से उस अनुभव को अपनी चेतना में फिर लाकर उसका स्मरण कर सकते हैं। पर कभी-कभी, हम ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं। हमारी यही असफल क्रिया ‘विस्मृति’ कहलाती है। दूसरे शब्दों में, “भूतकाल के किसी अनुभव को वर्तमान चेतना में लाने की असफलता को विस्मृति कहते हैं।”

विस्मरण या विस्मृति की परिभाषा (vismaran ki paribhasha)

हम ‘विस्मृति’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं,

यथा—

1. मन—“ सीखी हुई बात को स्मरण रखने या पुनःस्मरण करने की असफलता को विस्मृति कहते हैं । “

“Forgetting is failing to retain or to be able to recall what has been acquired.” -Mann

2. ड्रेवर “विस्मृति का अर्थ है-किसी समय प्रयास करने पर भी किसी पूर्व अनुभव का स्मरण करने या पहले सीखे हुए किसी कार्य को करने में।”

“Forgetting means failure at any time to recall an experience, when attempting to do so, or to perform an action previously learned.” -Drever: A Dictionary of Psychology

3. फ्रायड—“विस्मरण वह प्रवृत्ति है जिसके द्वारा दुःखद अनुभवों को स्मृति से: अलग कर दिया जाता है। “

“Forgetting is a tendency toward off from memory that which is unpleasant.”-Freud

विस्मरण या विस्मृति के प्रकार (Kinds of Forgetting)

विस्मृति दो प्रकार की होती है-

1. सक्रिय विस्मृति (Active Forgetting) 

इस विस्मृति का कारण व्यक्ति है। वह स्वयं किसी बात को भूलने का प्रयत्न करके उसे भूला देता है। फ्रायड (Freud) का कथन है— हम विस्मृति की क्रिया द्वारा अपने दुःखद अनुभव को स्मृति से निकाल देते हैं।”

2. निष्क्रिय विस्मृति (Passive Forgetting)

इस विस्मृति का कारण व्यक्ति नहीं है। वह प्रयास न करने पर भी किसी बात को स्वयं भूल जाता है।

विस्मरण या विस्मृति के कारण (Causes of Forgetting)

‘विस्मृति’ या ‘विस्मरण’ के कारणों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं, यथा-.

(i) सैद्धान्तिक कारण (Theoretical Causes) — बाधा, दमन और अभ्यास का सिद्धान्त ।

(ii) सामान्य कारण (General Causes) – समय का प्रभाव, रुचि का प्रभाव, विषय की मात्रा इत्यादि ।

हम इन कारणों का क्रमबद्ध वर्णन नीचे की पंक्तियों में प्रस्तुत कर रहे हैं-

1. बाधा का सिद्धान्त (Theory of interference) — इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि हम एक पाठ को याद करने के बाद दूसरा पाठ याद करने लगते हैं तो हमारे मस्तिष्क में पहले पाठ के स्मृति-चिन्हों (Memory Traces) में बाधा पड़ती है। फलस्वरूप वे निर्बल होते हैं और हम पहले पाठ को भूल जाते हैं।

2. दमन का सिद्धान्त (Theory of repression) – इस सिद्धान्त के अनुसार, हम दुःख और अपमानजनक घटनाओं को याद रखना नहीं चाहते हैं। अतः हम उनका दमन करते हैं। परिणामतः वे हमारे अचेतन मन में चली जाती हैं और हम उनको भूल जाते हैं ।

3. अनभ्यास का सिद्धान्त (Theory of disuse) — थार्नडाइक एवं एबिंगहॉस (Thorndike and Ebbinghaus) ने विस्मृति का कारण अभ्यास का अभाव बताया है। यदि हम सीखी हुई बात का बार-बार अभ्यास करते हैं, तो हम उसको भूल जाते हैं

4. समय का प्रभाव (Effect of time) – हैरिस ( Harris ) के अनुसार – सीखी हुई बात का समय पर प्रभाव पड़ता है। अधिक समय पहले सीखी हुई बात अधिक और कम समय पहले सीखी हुई बात कम भूलती है ।

5. रुचि, ध्यान व इच्छा का अभाव (Lack of Interest, attention and will)— जिस कार्य को हम जितनी कम रुचि, ध्यान और इच्छा से सीखते हैं, उतनी ही जल्दी हम उसको भूलते हैं। स्टाउट के अनुसार, “जिन बातों के प्रति हमारा ध्यान रहता है, उन्हें हम स्मरण रखते हैं।”

“We remember the things that we attend to.” -Stout

6. विषय का स्वरूप (Nature of material) – हमें सरल, सार्थक और लाभप्रद बातें बहुत समय तक स्मरण रहती हैं। इसके विपरित, कठिन, निरर्थक और हानिप्रद बातों को शीघ्र ही हम भूल जाते हैं। मर्सेल (Mursell) के अनुसार, “निरर्थक विषय की तुलना में सार्थक विषय का विस्मरण बहुत धीरे-धीरे होता है।”

7. विषय की मात्रा (Amount of materian) – विस्मरण विषय की मात्रा के कारण भी होता है। हम छोटे विषय को देर से और लम्बे विषय को जल्दी भूलते हैं ।

8. सीखने की कमी (Under-learning)- हम कम सीखी हुई बात को जल्दी और भली प्रकार सीखी हुई बात को विलम्ब से भूलते हैं ।

9. सीखने की दोषपूर्ण विधि (Defective method of learning)- यदि शिक्षक बालकों को सीखाने के लिए उचित विधि का प्रयोग न करके दोषपूर्ण विधि का प्रयोग करता है, तो वे उसको थोड़े ही समय में भूल जाते हैं।

10. मानसिक आघात (Mental injury)- सिर में चोट लगने से स्नायु कोष्ठ छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। अतः उनके ऊपर बने स्मृति-चिन्ह अस्त-व्यस्त हो जाते हैं । फलस्वरूप व्यक्ति स्मरण की हुई बातों को भूल जाता है। वह कम चोट लगने से कम और अधिक चोट लगने से अधिक भूलता है।

11. मानसिक द्वन्द्व (Mental conflict) – मानसिक द्वन्द्व के कारण मस्तिष्क में किसी-न-किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न हो जाती है। यह परेशानी विस्मृति का कारण बनती है।

12. मानसिक रोग (Mental disease)- कुछ मानसिक रोग ऐसे हैं, जो स्मरण शक्ति को निर्बल बना देते हैं। जिसके फलस्वरूप विस्मृति की मात्रा में वृद्धि हो जाती है । इस प्रकार का मानसिक रोग—दुःसाध्य उन्माद (Psychosis) है।

13. मादक वस्तुओं का प्रयोग (Use of intoxicant) – मादक वस्तुओं का प्रयोग मानसिक शक्ति को क्षीण कर देता है। अतः विस्मरण एक स्वाभाविक बात हो जाती है।

14. स्मरण न करने की इच्छा (Lack of desire to remember)- यदि हम किसी बात को याद नहीं रखना चाहते हैं, तो हम उसे अवश्य भूल जाते हैं। स्टुर्ट व ओकडन का कथन है-“हम बहुत-सी बातों को स्मरण न रखने की इच्छा के कारण भूल जाते हैं। “

“We forget much that we do not want to remember.”-Sturt and Oakden

15. संवेगात्मक असन्तुलन (Emotional disturbance) — किसी संवेग के उत्तेजित होने पर व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक दशा में असाधारण परिवर्तन जाता है। इस दशा में उसे पिछली बातों का स्मरण कठिन हो जाता है। बालक भय के कारण अच्छी तरह से याद पाठ को भी भूल जाता है। भाटिया का विचार है-“संवेगात्मक असन्तुलन विस्मृति ‘के सामान्य कारण हैं।”

“Emotional disturbances are the common causes of forgetting.”-Bhatia

विस्मरण या विस्मृति के सिद्धान्त (Theories of Forgetting)

स्मृति तथा विस्मृति दोनों का सम्बन्ध अधिगम से है। अधिगम, धारणा, प्रत्यास्मरण तथा प्रत्याभिज्ञान द्वारा स्मृति की प्रक्रिया सम्पूर्ण होती है। विद्वानों ने विस्मृति को शास्त्रीय स्वरूप देने के लिये इन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है—

1. चिन्हहास सिद्धान्त (Theory of Trace Decay) – यह सिद्धान्त सामान्य अनुभवों पर आधारित है । इसका आधार समय है। समय के अन्तराल के साथ-साथ हम बहुत-सी चीजों को भूल जाते हैं इस सिद्धान्त में अनुपयोग (Disuse) का नियम लागू होता है।

2. व्यतिकरण (Interference) का सिद्धान्त – गुलर, वुडवर्थ तथा मिल्जेकर आदि मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि अधिगम के समय उत्पन्न ये बाधायें धारण को प्रभावित करती हैं। भूत, वर्तमान तथा भविष्य काल का प्रभावात्मक सम्बन्ध होता है । यह व्यतिकरण अग्रोन्मुख (Proactive) तथा पृष्ठोन्मुख (Retroactive) होता है। अग्रोन्मुख व्यतिकरण में भूतकाल की सामग्री वर्तमान को प्रभावित करती है। पृष्ठोन्मुखी व्यतिकरण में अधिगम से पूर्व ही बाधा आती है। अतः हमारे जीवन में विस्मरण प्रायः अग्रोन्मुख तथा पृष्ठोन्मुख दोनों कारणों से होता है ।

3. पुनअह्वान की विफलता (Retrieval Failure)- विस्मरण का कोई स्थायी रूप नहीं होता है। प्रत्यास्मरण (Recall) के समय स्मृति कोष से स्मरण की गई सामग्री को खोजा जाता है। इस कार्य में विफलता से विस्मरण होता है

4. अभिप्रेरणा का सिद्धान्त (Motivational Theory)- इसे दमन का सिद्धान्त भी कहते हैं। जिगारनिक (Zeigarnik) के अनुसार, “अपूर्ण कार्यों के प्रत्यास्मरण में सफलता का कारण वे अभिप्रेरणायें होती हैं जिनकी उपलब्धि पूर्ण नहीं हाती और उद्देश्य की प्राप्ति का आकर्षण बना रहता है किन्तु पूर्ण कार्यों में उपलब्धि के कारण अभिप्रेरणा संतुष्ट हो चुकी होती है। “

“The explanation of recalling incompleted task is that in case of completed task, their motivation was satisfied and in case of incompleted task, the attraction of those task they were unable to finish main.”-Zeigarnik

5. अनुबद्धता (Consolidation) का सिद्धान्त – जब स्मृति परिपक्व तथा संगठित नहीं होती तो प्रत्यास्मरण ठीक प्रकार नहीं होता। एक धारणा पर दूसरी धारणा हावी हो जाती है तो विस्मरण होने लगता है ।

विस्मरण या विस्मृति कम करने के उपाय (Ways of Minimising Forgetfullness)

किसी बात की कम विस्मृति का अर्थ है— उसे अधिक समय तक स्मरण रखने या स्मृति में धारण रखने (Retention) की क्षमता न होना । अतः विस्मृति को कम करने या धारण-शक्ति में उन्नति करने के लिए निम्नांकित उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है—

1. पाठ की विषय-वस्तु (Content Matter)— कोलसेनिक का मत है-पाठ की विषय-वस्तु अर्थपूर्ण, क्रमबद्ध और बालक की मानसिक योग्यता के अनुरूप होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की विषय-वस्तु की विस्मृति की गति और मात्रा बहुत कम होती है। इसके अतिरिक्त पाठ में आवश्यकता से अधिक तथ्य, तिथियाँ और विस्तृत सूचनाएँ नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इनकी विस्मृति की गति और मात्रा बहुत तीव्र होती है।

2. पूरे पाठ का स्मरण (Memorising the Whole Lesson) — बालक को पूरा पाठ सोच-समझकर याद करना चाहिए। जब तक उसे पूरा पाठ याद न हो जाय, तब तक उसे स्मरण करने का कार्य स्थगित नहीं करना चाहिए। साथ ही, उसे पाठ को आंशिक रूप से स्मरण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाठ का भूल जाना आवश्यक है।

3. पाठ का अधिक स्मरण ( More Learning of the Lesson) — पाठ स्मरण हो जाने के बाद भी बालक को उसे कुछ समय तक और स्मरण करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए नन ने लिखा है-” पाठ स्मरण हो जाने के बाद जितना अधिक स्मरण किया जाता है, उतना ही अधिक वह स्मृति में धारण रहता है।”

4. बालक का स्मरण करने में ध्यान (Attention in Memorising)— पाठ को स्मरण करते समय बालक को अपना पूर्ण ध्यान उस पर केन्द्रित रखना चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण यह है- ” सीखने वाला जितना अधिक ध्यान देता है, उतनी ही जल्दी वह सीखता है और बाद में उतनी ही अधिक देर में वह भूलता है।”

5. अधिक समय तक स्मरण रखने का विचार ( Decision for Long Retention)- बालक को पाठ यह विचार करके स्मरण करना चाहिए कि उसे उसको बहुत समय तक याद रखना है। तभी वह उसे शीघ्र भूलने की सम्भावना का अन्त कर सकता है । बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड ने लिखा है-” अधिक समय तक स्मरण रखने के विचार से याद किया हुआ पाठ अधिक समय तक स्मरण रहता है। “

6. विचार-साहचर्य के नियमों का पालन (Use of Association Laws)- पाठ याद करते समय बालक को विचार-साहचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। उसे नवीन तथ्यों और घटनाओं का उन तथ्यों और घटनाओं से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए, जिनको वह जानता है। ऐसा करने से वह सम्भवतः पाठ का कभी विस्मरण नहीं करेगा।

7. पूर्ण व अन्तरयुक्त विधियों का प्रयोग (Use of Spaced and Non-spaced Methods)- बालक को पाठ याद करने के लिए पूर्ण (Whole) और अन्तरयुक्त (Spaced) विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इसका कारण यह है कि खण्ड ( Part) और अन्तरहीन (Unspaced) विधियों की अपेक्षा इन विधियों से याद किए गए पाठ का विस्मरण कम होता है।

8. सस्वर वाचन (Loud Reading) — बालक को पाठ बोल-बोलकर स्मरण करना चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण यह है- “सक्रिय सस्वर वाचन के पश्चात् विस्मरण की गति धीमी होती है। “

9. स्मरण के बाद विश्राम (Rest After Memorizing)— बालक को पाठ स्मरण करने के उपरान्त कुछ समय तक विश्राम अवश्य करना चाहिए, ताकि पाठ के स्मृति चिह्न उसके मस्तिष्क में स्पष्ट रूप से अंकित हो जायें वुडवर्थ के शब्दों में, “सीखने के बाद कुछ समय तक विश्राम का महत्व अनेक परीक्षणों द्वारा सिद्ध किया गया है।”

10. पाठ की पुनरावृत्ति (Repetition)- पाठ को स्मरण करने के बाद बालक को उसे थोड़े-थोड़े समय के उपरान्त दोहराते रहना चाहिए। पाठ की जितनी ही अधिक पुनरावृत्ति की जाती है, उतनी ही अधिक देर से वह भूलता है। वुडवर्थ ने लिखा है-” पुनः अधिगम स्मृति-चिह्नों को सजीव बनाता है और विस्मरण को कम करता है। “

“Relearning improves the memory traces and reduces forgetting.”-Woodworth

11. स्मरण करने के नियमों का प्रयोग (Use of Laws of Memory)—बालक को विस्मरण कम करने के लिए स्मरण करने की मितव्ययी विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इसकी पुष्टि करते हुए वुडवर्थ ने लिखा है- ” स्मरण के लिए मितव्ययिता के नियम धारण-शक्ति के लिए भी लागू होते हैं। “

“The rules for economy of memorizing hold good also for retention.” -Woodworth

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shubham yadav

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