गृहविज्ञान

ले-आउट (Lay-out) क्या है? ले-आउट की विधि

ले-आउट (Lay-out) क्या है
ले-आउट (Lay-out) क्या है

ले-आउट (Lay-out) क्या है?

ले-आउट- सिलाई के क्षेत्र में ले-आउट का अर्थ होता है-कटाई-योजना का प्रारूप तैयार करना। वस्त्र पर परिधान के विभिन्न खण्डों को बिछाकर यह कार्य सम्पन्न होता है। परिधान के विभिन्न खण्डों के पैटर्न कपड़े पर सही दिशा और मोड़ (fold) पर रख, कटाई-चिह्न एवं ‘सिलाई-चिह्न अंकित किए जाते हैं। कपड़े पर पैटर्न बिछाकर कटाई करने से अनेक लाभ होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि पूरा परिधान अर्थात् परिधान के सभी खण्ड कपड़े से निकल जाते हैं। कपड़ा कम पड़ने की स्थिति में गृहिणी अपने विचार भी बदल सकती हैं तथा कपड़े का कोई अन्य उपयोग भी कर सकती हैं।

ले-आउट की विधि

सर्वप्रथम, कपड़े को कटिंग टेबल पर पूरा फैलाकर उसकी जाँच करके सीधे और उल्टे भाग को ज्ञात कर लेना चाहिए। कटाई- सिलाई के निशान वस्त्र की उल्टी ओर दिए जाने चाहिए, जिससे वे अन्दर की ओर चले जाएँ। अब पैटर्न को परखिए। पैटर्न इकहरी या दोहरी तह का हो सकता है। ऊपर जो ले-आउट डिजाइन दिखाए गए हैं उनमें कुरते तथा हाफ कमीज के निमित्त कपड़े को पूरा फैलाकर इकहरा बिछाया गया है तथा पैटर्न भी पूरे आकार में फैलाए गए हैं। तीसरी आकृति में कपड़े को दोहरा बिछाया गया है तथा पैटर्न में परिधान-खण्ड का आधा भाग दिखाया गया है। पैटर्न वास्तविक नाप के होते हैं। कपड़े पर पैटर्न की आकृति उतारकर, थोड़ा हटकर कटाई रेखाएँ खींचिए। कटाई रेखा और सिलाई रेखा की दूरी परिधान खण्ड पर निर्भर करती है। बगलों में अधिक कपड़ा दबाव के निमित्त छोड़ा जाता है अतः कटाई रेखा और सिलाई रेखा में अधिक अन्तर होता है। कंधे पर कम कपड़ा दबाया जाता है अतः उस भाग में इन रेखाओं की दूरी अपेक्षाकृत कम होती है। रेशम, क्रेप, तथा कृत्रिम वस्त्रों के धागे सरकने और खुलने वाले होते हैं। अतः इन वस्त्रों पर दोहरी सिलाई या चोर सिलाई की जाती है। इस प्रकार की सिलाई के निमित्त अधिक कपड़ा दबाव के लिए छोड़ना पड़ता है। अतः सिलाई रेखा से कटाई रेखा की दूरी बढ़ जाती है। सिलाई रेखाओं तथा कटाई रेखाओं को स्पष्ट करने के लिए अलग-अलग रंगों के टेलर्स चॉकों का प्रयोग करना चाहिए। पैटर्न बिछाते समय केवल सिलाई के निमित्त दबाव के कपड़े ही छोड़ें, जिससे कम कपड़े में परिधान के खण्ड निकल आएँ।

डिजाइन वाले कपड़े की कटाई-योजना बनाते समय डिजाइन पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। विशेषकर फूल-पत्तियों वाली डिजाइनों पर अधिक ध्यान देना पड़ता है। कुछ डिजाइनों में फूलों की दिशा एक ही ओर जाती है, कुछ में दोनों ओर। परिधान में पत्तियाँ नौचे और फूल ऊपर रहने पर ही डिजाइन सीधा दिखाई पड़ेगा, अन्यथा उल्टा।

लेडीज कुरते, फ्रॉक या मैक्सी के निमित्त प्रायः बड़े आकार के डिजाइनों वाले कपड़े आते हैं। ऐसी डिजाइनयुक्त परिधान तभी शोभायमान हो पाते हैं, जब डिजाइन की कम से कम एक आकृति अपनी सम्पूर्णता एवं भव्यता के साथ उभर पाए। यदि डिजाइन कटकर सिलाई में चला जाता है तो उसकी सारी सुन्दरता नष्ट हो जाती है। इस प्रकार के डिजाइनयुक्त कपड़े कुछ अधिक खरीदने चाहिए, जिससे उनकी शोभा बनी रहे और आकृति अपनी पूर्णता में प्रदर्शित हो पाए।

धारियों वाले तथा चारखाने डिजाइनों वाले वस्त्र की कटाई विशेष सूझबूझ पर निर्भर करती है। इन कपड़ों की कटाई-योजना बनाते समय और योजना के आधार पर पैटर्न बिछाते समय डिजाइन के सन्तुलन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। परिधान के मध्य भाग को आधार- बिन्दु या आधार- रेखा मानते हुए दोनों ओर बराबर धारियाँ या खाके नियोजित किए जाने चाहिए। डिजाइन की रेखाएँ, परिधान में दोनों ओर समविभाजित ( equally divided) होनी चाहिए।

पैटर्न उतारते समय कार्बन कागज का प्रयोग

कुछ लोग परिधान के अगले- पिछले पल्लो के लिए एक ही पैटर्न का प्रयोग करते हैं। कपड़े को दोहरा बिछाकर, कपड़े की दोनों तहों को एक साथ काटते हैं। कपड़े की दो तहें प्रायः सरकती रहती हैं और इसका प्रभाव कटाई एवं सिलाई रेखाओं पर पड़ता है। कार्बन के प्रयोग द्वारा कपड़े की दोनों तहों पर आकृतियों को पृथक् उतारा जा सकता है। ट्रेसिंग वील चलाकर सिलाई के निमित्त निशान भी दिए जा सकते हैं। इसके निमित्त निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होगी-

पैटर्न के आकार के दो कार्बन- कागज।

पिनें तथा ट्रेसिंग वील।

विधि-कपड़े को दोहरा तह करें। कपड़े के ऊपर पैटर्न की जगह निर्धारित करके, पैटर्न को पिन द्वारा कंपड़े पर लगा दें। पिने कपड़े के एक किनारे पर लगाएँ। कार्बन- कागज में अग्र भाग तथा पृष्ठ भाग होते हैं। अग्र भाग के सम्पर्क में रहने वाले कपड़े की तह पर आकृति बनेगी, अतः कार्बन- कागज लगाते समय सावधान रहें। चित्र में कार्बन- कागज की स्थितियाँ। दिखाई गई हैं। पैटर्न के नीचे लगने वाले कार्बन कागज का अग्र भाग नीचे की ओर है और कपड़े के सम्पर्क में है। दूसरा कार्बन कागज कपड़े की तहों के बाद रखा गया है। इस कार्बन का अग्र भाग ऊपर की ओर है तथा कपड़े के सम्पर्क में है। इस प्रकार दोनों कार्बन कागजों के अग्र कपड़े के सम्पर्क में रखे गए हैं। पैटर्न के ऊपर मार्किंग वील चलाने से कपड़े की दोनों तहों पर कटाई एवं सिलाई के चिह्न एक साथ बनते हैं।

कपड़े पर कार्बन-कागज की सहायता से पैटर्न उतारना केवल साधारण कपड़ों के निमित्त ही सम्भव है। मोटे कपड़ों या ऊनी कपड़ों पर इस विधि का प्रयोग करना कठिन होता है। कपड़ा मोटा होने के कारण दूसरी तह पर निशान उभर नहीं पाते हैं। साथ ही, इस कार्य के निमित्त पेंसिल-कार्बन का ही उपयोग करना आवश्यक है। सामान्य टाइपिंग वाले कार्बन के काले धब्बे वस्त्र की सुन्दरता को नष्ट कर सकते हैं। कार्बन द्वारा लगने वाले निशानों को पहले किसी अन्य कपड़े पर लगाकर, कपड़े को धोकर, इस बात की जाँच कर लेना भी अनिवार्य है कि ये निशान धुलने पर छूट जाते हैं अथवा नहीं।

कटाई- नियोजन के समय ही डार्ट्स, प्लीट, चुन्नट, काज आदि के निमित्त चिह्न लगा लें। किसी स्थान पर यदि कच्ची सिलाई करनी हो तो अनुकूल निर्देश चिह्न दे दें। जिन खण्डों को परस्पर जोड़ना हो उन्हें साथ रखकर नॉचेज (notches) बना लें। परिधान में पट्टियाँ कई स्थानों पर लगाई जाती हैं; जैसे-गला, बटन, आस्तीन की मोहरी आदि। हर स्थान की पट्टी को उसी स्थान पर रखकर या तो नॉचेज (notches) बना लें या अलग रंगों के चॉकों द्वारा निर्धारण चिह्न अंकित कर लें। इस कार्य के अभाव में पट्टियों को बार-बार नाप कर उनकी जगह निश्चित करनी पड़ती है और कभी-कभी तो इधर की पट्टी उधर और उधर की पट्टी इधर लग जाती है।

वस्त्र की कटाई से पूर्व, कपड़े के ऊपर दिए गए सारे चिह्नों की समीक्षा करें। सभी चिह्नों की जाँच कर पूर्ण रूप से निश्चित होने के बाद ही कैंची का प्रयोग करें। वस्त्र की कटाई और सिलाई-चिह्न अंकित हो जाने के साथ ही आधी प्रक्रिया पूरी हो जाती है। आगे सम्पन्न होने वाली सिलाई क्रिया इसी नियोजन के आधार पर पूरी होती है। अतः गृहिणियों को पूरी कटाई की योजना बनाते एवं पैटर्न बिछाने और कटाई- सिलाई निर्देश चिह्न देते समय पूरी एकाग्रता का निर्वाह करना चाहिए। कटाई- नियोजन करते समय हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए, अन्यथा परिणाम के रूप में कपड़े और पैसों का व्यय ही हाथ लगेगा।

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shubham yadav

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