अनुक्रम (Contents)
द्वितीयक सामग्री के गुण
(क) निष्पक्षता- द्वैतीयक तथ्यों से प्राप्त तथ्य व सूचनाएँ सामान्यतया निष्पक्ष व वैषयिक होती हैं, उनमें व्यक्तिगत विचारों के समावेश की संभावना कम होती हैं। अनुसन्धानकर्ता भी तथ्यों को जैसा हैं वैसा ही उन्हें उल्लेखित करता हैं।
(ख) ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन- प्रायः द्वैतीयक तथ्यों में घटना के न केवल समकालीन स्वरूप का ही अध्ययन किया जाता है बल्कि उस घटना विशेष के अतीत से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों का अध्ययन किया जाता हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक दशाओं को समझने का कार्य प्रशस्त होता हैं।
(ग) दुर्लभ व सरकारी तथ्यों की प्राप्ति- द्वैतीयक सामग्री सरकारी व गैरसरकारी। संस्थाओं के द्वारा संकलित किये जाते हैं। प्रायः सरकारी तथ्यों या गैरसरकारी तथ्यों को छिपाकर रखा जाता है। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत व्यवहार भी उसमें स्पष्ट नहीं होते हैं कि साधारण प्रविधियों में उनको समझा जा सके। द्वितीयक सामग्री के माध्यम से ऐसे तथ्य आ जाते हैं जो इन संस्थाओं या व्यक्तियों पर से रहस्य का आवरण हटाते हैं।
(घ) समय व धन की बचत- द्वितीयक सामग्री पूर्व संकलित सामग्री होती हैं। कार्यालय तथा संस्थानों में एक स्थान विशेष पर सुलभ होती हैं। इनके संकलन हेतु भ्रमण की आवश्यकता नहीं होती हैं। स्पष्ट है कि द्वितीयक सामग्री के संकलन में प्राथमिक सामग्री के संकलन की तुलना में कम समय व व्यय लगता है।
द्वैतीयक सामग्री के दोष
(क) आंकड़ों की विश्वसनीयता – द्वैतीयक सामग्री का एक प्रमुख दोष यह होता है कि इनका संकलन किसी अनुसन्धान के लिए न करके सरकारी कामकाज व प्रशासन के लिए किया जाता हैं। इसके अतिरिक्त इन आंकड़ों के संकलन में भी लापरवाही बरती जाती हैं। इसके अतिरिक्त पत्र, लेख, संस्मरण आदि स्रोतों में अभिमति, व्यक्तिनिष्ठता की संभावनाएँ होती हैं। अस्तु उपलब्ध सूचना को पूर्णरूपेण विश्वसनीय नहीं माना जा सकता हैं।
(ख) उपलब्धता तथा पुनः परीक्षा की समस्या- द्वैतीयक सामग्री को प्राप्त करना कोई आसान कार्य नहीं होता हैं। प्राय: अनुसन्धानकर्ता के अनुसार उचित समय पर आंकड़े नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। डायरी, पत्र, आसानी से हमेशा नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। प्राय: लोग डायरी व पत्र को गोपनीय ढंग से रखते हैं।
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