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शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में राज्य की भूमिका
शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में राज्य की भूमिका को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. विद्यालयों की स्थापना (Establishment of schoois) – बालकों को उचित नागरिकता के प्रशिक्षण के लिये उनका शिक्षित होना आवश्यक है। अतः राज्य आवश्यक स्थानों पर विद्यालयों की स्थापना करता है, जिससे उस क्षेत्र के बालकों को उचित तथा निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा सके। राज्य की ओर से प्राथमिक, जूनियर हाईस्कूल, माध्यमिक तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाती है। बालकों के वैज्ञानिक, व्यावसायिक तथा तकनीकी ज्ञान के लिये भी विद्यालयों को स्थापित किया जाता है। अत: यह कहा जा सकता है कि बालक को शिक्षा का पूर्ण उत्तरदायित्व विद्यालय पर है।
2. निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा (Free and compulsory education)- राज्य को निश्चित स्तर तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिये, जिससे निर्धन वर्ग भी शिक्षा प्राप्त कर सके और अपने बालकों को नियमित रूप से विद्यालय में भेज सके।
3. शिक्षा के उद्देश्यों का निर्माण (Providing aims and objectives of education) – राज्य अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करता है और यह निरीक्षण करता है कि शिक्षा के उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त हो गये हैं ? उद्देश्यों के निर्धारण में बालक के सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दिया जाता है।
4. पाठ्यक्रम निर्माण (Planning of curriculum)- विकसित समाज के अनुसार ही पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाना चाहिये क्योंकि जटिल तथा स्थिर पाठ्यक्रम बालक की नवीनतम सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता। अत: उसमें लचीलापन तथा समय-समय पर परिवर्तन आवश्यक है।
5. आर्थिक सहायता (Financial assistance) – राज्य को नवीन विद्यालय की स्थापना के साथ-साथ व्यक्तिगत संस्थाओं को भी महत्त्व देना चाहिये। उनका सामंजस्य सरकारी विद्यालय के साथ करना चाहिये तथा समय-समय पर उन्हें आर्थिक सहायता भी देनी चाहिये, जिससे वे आवश्यक उपकरण, फर्नीचर इत्यादि का प्रबन्ध कर सकें।