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भारत का संवैधानिक विकास (1858 से 1935 तक)
भारत का संवैधानिक विकास (1858 से 1935 तक)– हेलो दोस्तों आप सब छात्रों के समक्ष “भारत का संवैधानिक विकास (1858 से 1935 तक)” के बारे में बतायेंगे. जो छात्र SSC, PCS, IAS, UPSC, UPPPCS, Civil Services या अन्य Competitive Exams की तैयारी कर रहे है है उनके लिए ये ‘ भारत का संवैधानिक विकास (1858 से 1935 तक) पढना काफी लाभदायक साबित होगा.
भारत का संवैधानिक विकास
- अंग्रेजों द्वारा प्लासी तथा बक्सर के युद्ध के बाद भारत में शासन के लिए समय-समय पर शासन सुधार हेतु अधिनियमों का प्रावधान किया गया था। संवैधानिक विकास का विवरण निम्नवत है।
भारत का संवैधानिक विकास :
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंतर्गत भारत (1773-1853)
- रेग्युलेटिंग एक्ट-1773
- पिट्स इंडिया एक्ट-1784
- चार्टर एक्ट-1793
- चार्टर एक्ट-1813
- चार्टर एक्ट-1833
- चार्टर एक्ट-1853
ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत भारत (1858-1947)
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1858
- इंडियन काउंसिल एक्ट-1861
- इंडियन काउंसिल एक्ट-1892
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया (मार्ले-मिंटो सुधार) -1909
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया (मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) -1919
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1935
- अगस्त प्रस्ताव-1940
- क्रिप्स प्रस्ताव – 1942
- कैबिनेट मिशन – 1946
- माउंटबेटन योजना-1947
रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773
- तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ द्वारा गोपनीय समिति की रिपोर्ट पर 1773 में ब्रिटिश संसद द्वारा यह एक्ट पारित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुशासन को दूर करना था।
- रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत निदेशकों की पदावधि 1 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष तक कर दी गई।
- बंगाल के गवर्नर को अब अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर-जनरल कहा गया और उसके परामर्श के लिए 4 सदस्यों की एक कार्यकारिणी समिति बनाई गई जिसके निर्णय बहुमत के अनुसार होंगे। इनका कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया। इन सदस्यों को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (CoD) की संस्तुति पर केवल ब्रिटिश सम्राट द्वारा हटाया जा सकता था।
- बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बनाया गया। उसकी कार्यकारिणी के 4 अन्य सदस्य (1. फिलिप फ्रांसिस, 2. क्लेवरिंग, 3. मानसन 4. वारवेल) थे। इसमें केवल वारवेल ही हेस्टिंग्स का समर्थक था, जबकि फ्रांसिस उसका विरोधी था। वारवेल की नियुक्ति भारत में हुई थी, शेष 3 इंग्लैंड से आए थे।
- रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत 1774 ईस्वी में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसमें 1 मुख्य एवं 3 अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई।
मुख्य न्यायाधीश के पद पर सर एलिजा इम्पे की नियुक्ति की गई। - अन्य 3 न्यायाधीश (1.चैम्बर्स, 2. लिमैस्टर, 3. हाइड) थे। न्यायाधीशों की नियुक्ति ब्रिटिश सम्राट करता था यह एक अभिलेख न्यायालय था।
- कोर्ट ऑफ प्रोप्राइटर्स में वोट देने का अधिकार उन लोगों को दिया गया जो चुनाव से कम से कम 1 वर्ष पूर्व 1000 पौण्ड के शेयर के स्वामी रहे हों। इसके पूर्व यह राशि 500 पौण्ड की थी।
संशोधन अधिनियम, 1781 (एक्ट ऑफ सेटलमेन्ट)
- ब्रिटिश संसद ने 1781 ईस्वी में दो समितियां (प्रवर समिति और गुप्त समिति) नियुक्त की थी। एडमंड बर्क की अध्यक्षता में प्रवर समिति को भारत में न्याय व्यवस्था, उच्चतम न्यायालय तथा सर्वोच्च परिषद् के संबंधों की जांच करने का कार्य सौंपा गया।
- समिति ने उसी वर्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया जिसके फलस्वरूप 1781 ईस्वी का संशोधन अधिनियम पारित किया गया इस अधिनियम को एक्ट ऑफ सेटलमेंट, 1781 और बंगाल जूडिकेचर एक्ट, 1781 के नाम से भी जाना जाता है।
पिट्स इंडिया एक्ट, 1784
- इस अधिनियम के द्वारा 6 कमिश्नरों का बोर्ड गठित किया गया जिसे ‘बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल‘ कहा गया। इसमें एक चांसलर ऑफ एक्सचेकर, एक राज्य सचिव तथा उसके द्वारा नियुक्त किये गये 4 व्यक्ति प्रिवी कौंसिल के सदस्य होते थे। सभी सैनिक, असैनिक तथा राजस्व सम्बन्धी मामलों को इस नियंत्रण बोर्ड के अधीन कर दिया गया।
1786 का एक्ट
- कार्नवालिस गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति दोनों की शक्तियां लेना चाहता था। इस अधिनियम के अनुसार इसे स्वीकार कर लिया गया तथा विशेष अवस्था में अपनी परिषद् के निर्णयों को रद्द करने तथा अपने निर्णय को लागू करने का अधिकार भी गवर्नर जनरल को दे दिया गया।
1793 का चार्टर एक्ट
(कार्नवालिस को खुश करने वाला एक्ट)
- कम्पनी के अधिकारों को 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया। परिषद् के निर्णयों को रद्द करने का जो अधिकार कार्नवालिस को दिया गया। कार्नवालिस को खुश करने वाला एक्ट था बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के अधिकारियों का वेतन भारतीय कोष से मिलने लगा।
1813 का चार्टर एक्ट
- कम्पनी का अधिकार 20 वर्ष के लिए पुन: बढ़ा दिया गया।
- कम्पनी का भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो गया यद्यपि चाय और चीन के व्यापार पर एकाधिकार बना रहा। व्यापारिक लेन-देन तथा राजस्व खाते अब भिन्न-भिन्न रखने होंगे।
- कम्पनी को भारत में शिक्षा पर 1 लाख रुपया व्यय करने का प्रावधान था।
- ईसाई मिशनरियों को भारत में प्रवेश करने की छूट मिल गई।
1833 का चार्टर एक्ट
- इस एक्ट के द्वारा भारतीय प्रशासन का केंद्रीयकरण किया गया। बंगाल का गवर्नर अब भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के पहले गवर्नर-जनरल बने।
- 1833 के अधिनियम के मैकाले एवं जेम्स मिल का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
- इस एक्ट के द्वारा गवर्नर-जनरल की सरकार भारत सरकार और उसकी परिषद भारत परिषद कहलाने लगी।
- भारतीय कानूनों को लिपिबद्ध तथा सुधार के उद्देश्य से एक विधि आयोग का गठन किया गया।
अधिनियम मुख्य विशेषतायें
- कम्पनी का अधिकार 20 वर्ष के लिए पुन: बढ़ा दिया गया।
- कम्पनी का व्यापारिक अधिकार चाय तथा चीन से भी पूर्णत: समाप्त कर दिया गया।
- भारत के प्रशासन का केन्द्रीकरण कर दिया गया। बंगाल का गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया बम्बई, मद्रास, बंगाल तथा अन्य प्रदेश गवर्नर जनरल के नियंत्रण में आ गए।
- कानून बनाने की शक्ति का भी केन्द्रीकरण कर दिया गया। अब गवर्नर जनरल और उसकी कार्यकारिणी को भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया और मद्रास तथा बंबई की परिषदों की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गई।
- इस अधिनियम द्वारा विधान बनाने के लिए गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक अतिरिक्त कानूनी सदस्य को चौथे सदस्य के रूप में शामिल किया गया। उसे केवल परिषदों की बैठकों में भाग लेने का अधिकार था, परन्तु मत देने का अधिकार नहीं था।
- भारतीय कानून को संचित व संहिताबद्ध करने तथा सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की नियुक्ति की गई।
- इस अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण धारा 87 थी जिसके द्वारा जाति, वर्ण के आधार पर सरकारी चयन में भेदभाव समाप्त कर दिया गया।
- 1833 के एक्ट के अधीन भारत सरकार को दासों की अवस्था सुधारने और अंतत: दासता समाप्त करने की आज्ञा दी गई।
1853 का चार्टर एक्ट
- कम्पनी को भारतीय प्रदेश तथा राजस्व क्राउन की ओर से न्यास के रूप में रखना था। इस प्रकार ब्रिटिश क्राउन जब चाहे, कम्पनी से प्रशासन अपने हाथ में ले सकता था।
- इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि नियंत्रण बोर्ड और उसके अन्य पदाधिकारियों का वेतन सरकार निश्चित करेगी, परन्तु धन कंपनी देगी। डाइरेक्टरों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई; उसमें 6 क्राउन द्वारा मनोनीत किये जाने थे। नियुक्तियां अब एक प्रतियोगी परीक्षा द्वारा की जानी थी। जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा।
- 1854 ई. में इस योजना को लागू करने के लिए लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की गई। विधि सदस्य को गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी का पूर्ण सदस्य बना दिया गया और जब यह परिषद कानून बनाने के लिए बनायी तो इसमें 6 अतिरिक्त सदस्यों की व्यवस्था की गई।
- गवर्नर जनरल को इसके अतिरिक्त दो अन्य असैनिक पदाधिकारी नियुक्त करने का भी अधिकार था। इस तरह सर्वप्रथम एक विधान परिषद् के गठन की व्यवस्था की गई जिसमें अधिकतम 12 सदस्य थे।
- बंगाल के लिए एक उप-राज्यपाल की व्यवस्था की गई। इसी अधिनियम के अंतर्गत 1859 में पंजाब में एक लेफ्टिनेंट जनरल की व्यवस्था की गई थी।
1858 का भारत सरकार अधिनियम
- 1857 के विद्रोह ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यवस्था के लिए एक घातक सिद्ध हुआ।
- यह एक्ट 1858 का भारत के उत्तम प्रशासन के लिए एक्ट (द एक्ट फॉर द गुड गवर्नमेंट ऑफ इंडिया) बना।
- इस अधिनियम द्वारा भारत के शासन को कंपनी के हाथों से निकालकर ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया।
- इस अधिनियम द्वारा 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा लागू द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
- भारत के गवर्नर-जनरल को अब वायसराय की उपाधि मिली, जो क्राउन को सीधा प्रतिनिधि था। लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने।
- गवर्नर-जनरल का पद भारत सरकार के विधायी कार्य का प्रतीक था तथा सम्राट (क्राउन) का प्रतिनिधित्व करने के कारण उसे वायसराय कहा गया।
अधिनियम मुख्य विशेषतायें
- ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त कर ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया। गवर्नर जनरल अब वायसराय कहा जाने लगा।
- बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर व बोर्ड ऑफ कंट्रोल के समस्त अधिकार भारत सचिव को सौंप दिए गए। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का एक सदस्य होता था जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारतीय परिषद का गठन किया गया।
- इसमें से 7 सदस्यों की नियुक्ति कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स द्वारा तथा 8 सदस्यों की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती थी। इनका व्यय भारतीय राजस्व से वहन किया जाता था।
- भारतीय राजस्व से आकस्मिक कार्यों को छोड़कर भारत की सीमा के बाहर की गई सैन्य कार्यवाही के लिए धन बिना परिषद की आज्ञा के नहीं दिया जायेगा।
द्वैध शासन प्रणाली
भारत के प्रांतों में द्वैध शासन का प्रारंभ मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार 1919 से प्रारंभ किया गया, जिसे भारत सरकार अधिनियम, 1919 भी कहा जाता है। इस अधिनियम ने प्रथम बार उत्तरदायी शासन शब्दों का स्पष्ट प्रयोग किया था। इस अधिनियम के अंतर्गत प्रांत में 2 विषय हैं। 1. हस्तांतरित विषय: प्रशासन विधायिका के चयनित सदस्यों को सौंपा गया। 2. आरक्षित विषय: गवर्नर की कार्य कारिणी के पास ही सुरक्षित किया गया।
1861 का भारतीय परिषद अधिनियम
- वायसराय की कार्यकारिणी में 5वां सदस्य सम्मिलित किया गया जो विधिवेत्ता होगा। वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के अच्छा कार्य करने के लिए कुछ नियम बनाने की अनुमति दे दी गई। इसी आधार पर लॉर्ड कैनिंग ने विभागीय प्रणाली आरम्भ कर दी। इस प्रकार भारत सरकार की मंत्रिमंडलीय व्यवस्था की नींव रखी गई।
- कानून बनाने के लिए, वायसराय की कार्यकारी परिषद में न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति द्वारा उसका विस्तार किया गया।
- गवर्नर-जनरल को संकटकालीन अवस्था में विधान परिषद् की अनुमति के बिना ही अध्यादेश जारी करने की अनुमति दे दी गई। ये अध्यादेश अधिकाधिक 6 मास तक लागू रह सकते थे।
1892 का भारतीय परिषद अधिनियम
- इस अधिनियम द्वारा कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या कम से कम 10 तथा अधिक से अधिक 16 हो गई।
- इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण अंग निर्वाचन पद्धति का आरंभ होना था। यद्यपि उसमें निर्वाचन शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था।
- विधानमंडल के सदस्यों के अधिकार भी दो क्षेत्रों में बढ़ा दिये गये। प्रथम-बजट पर उन्हें अपने विचार प्रकट करने का अधिकार दिया गया। दूसरा-उन्हें सार्वजनिक मुद्दों के संदर्भ में 6 दिन की सूचना देकर प्रश्न पूछने का भी अधिकार दिया गया।
- प्रांतीय विधानमण्डलों को बम्बई, मद्रास तथा बंगाल में इस अधिनियम द्वारा न्यूनतम 8 और अधिकतम 20 अतिरिक्त सदस्यों द्वारा बढ़ा दिया गया।
भारतीय परिषद् एक्ट 1909 (मार्ले-मिंटो सुधार)
- इस अधिनियम में प्रथम बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की सुविधा प्रदान की गई। लॉर्ड मार्ले ने लिखा है कि ‘हम नाग के दात’ , (Drgon’s Teeth) बो रहे हैं और इसका फल भीषण होगा।
- भारत सचिव मार्ले ने 2 भारतीय (1.के.जी. गुप्ता, 2. सैय्यद हुसैन बिलग्रामी) सदस्य को इंडिया काउंसिल का सदस्य नियुक्त किया था।
- सत्येन्द्र सिन्हा को गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी का प्रथम भारतीय विधि सदस्य नियुक्त किया गया।
- इस अधिनियम द्वारा सर्वोच्च विधान परिषद् की सदस्य संख्या 69 कर दी गई। इसमें 37 शासकीय एवं 32 गैर सरकारी सदस्य थे। सदस्य वार्षिक बजट पर विचार कर सकते थे तथा प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते थे। सार्वजनिक हित के विषय में प्रस्ताव रख सकते थे। परंतु प्रश्न पूछ सकते थे। सदस्यों को पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार प्राप्त हुआ था।
- इस अधिनियम के द्वारा भारत में प्रतिनिधित्व के आधार पर विधान परिषदों में निर्वाचन प्रणाली लागू की गई। चुनाव के लिए 3 निर्वाचक मण्डलों का प्रावधान किया गया। 1. साधारण निर्वाचक मण्डल 2. वर्ग-विशेष, 3. विशेष निर्वाचक मण्डल
भारत सरकार अधिनियम 1919
- 20 अगस्त 1917 ई. को तत्कालीन भारत सचिव मांटेग्यू ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए जाने वाले प्रस्तावित सुधारों की घोषणा की।
मुख्य विशेषतायें
- ब्रिटिश शासन का लक्ष्य भारत में स्वशासन को विकसित करना था।
- स्वशासन विभिन्न चरणों में दिया जाना था।
- विभिन्न चरणों का निर्धारण भारतीयों द्वारा स्वशासन की दिशा में की गई प्रगति पर निर्भर था।
- प्रगति के विषय में निर्धारण ब्रिटिश संसद तथा भारत सरकार द्वारा किया जाना था।
- इस अधिनियम में प्रथम बार उत्तरदायी शासन शब्दों का स्पष्ट प्रयोग किया गया।
- इस विधेयक के अंतर्गत प्रांतों में द्वैध शासन प्रथा की लागू किया गया। प्रांतीय विषयों को 2 वर्गों (1. आरक्षित, 2. हस्तांतरित) विषय में बांटा गया था।
- भारत सचिव के कार्यभार को कम करने के लिए हाई कमिशनर की नियुक्ति की गई। केंद्रीय स्तर पर प्रथम बार द्वि-सदनात्मक विधानमंडल की स्थापना की गई|
भारतीय शासन अधिनियम, 1935
- इसमें 14 भाग 321 धारायें तथा 10 अनुसूचियां थीं। इसको प्रस्तावना का अभाव था। अत: 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना को इसके साथ जोड़ दिया गया।
- अखिल भारतीय संघ की व्यवस्था थी, यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतों, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों एवं देशी रिसायतों से मिलकर बनना था।
- 1935 के भारतीय अधिनियम ने द्वैध शासन को केन्द्रीय स्तर पर लागू करने और आंशिक उत्तरदायी शासन की स्थापना करने का प्रावधान किया। विषयों के
विभाजन के लिए 3 सूचियां बनाई गई।
1. संघीय सूची: इसके 59 विषय
2. प्रांतीय सूची: इसमें 54 विषय
3. समवर्ती सूची: इसमें 36 विषय - संघीय सूची को 2 भागों (1. आरक्षित व 2. हस्तांतरित विषय) में विभक्त किया गया। प्रतिरक्षा, वैदेशिक मामले, धार्मिक मामले (मात्र ईसाई धर्म से) तथा कबायली क्षेत्र आरक्षित विषय थे। मुद्रा, डाकतार, रेल, रेडियो, वायरलेस हस्तांतरित विषय थे। पंडित नेहरू ने इसे गुलामी का अधिकार कहा था। यह एक कार है, जिसमे ब्रेक तो हैं पर इंजन नहीं है?
संघीय विधानमंडल के 2 सदन
1. संघीय विधान सभा: यह निम्न सदन था। इसकी सदस्य संख्या 375 थी, इसमें 125 सदस्य देशी रियासतों के लिए थे।
2. संघीय सभा: यह उच्च सदन था। इसमें सदस्यों की संख्या 260 थी जिसमें 104 सदस्य देशी रियासतों के लिए थे।
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