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जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के स्वरूप में बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधि में बाँट कर किया जाता है। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप भी। जलवायु परिवर्तन के रूप में हरित गृह प्रभाव और वैश्विक तापमान वृद्धि को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रान्ति के बाद उद्योगों से निकली कार्बन-डाइ ऑक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक बढ़ जाने से होता है।
कुछ तापीय विकरण हरित गृह गैसो द्वारा, मुख्यतया जलवाष्प, कार्बन डाइ ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स, ओजोन और कुछ अत्यल्प गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। अवशोषित ऊर्जा सभी दिशाओं में नीचे और ऊपर इस प्रकार पुनर्विकरित होती है कि अन्तरिक्ष में जो विकिरण अन्ततः विलीन होता है। वह वायुमण्डल के ऊँचे, अपेक्षाकृत ठण्डे स्तरों से होता है । फलस्वरूप सतह से अन्तरिक्ष में कम ऊष्मा जाती है जो हरित गृह गैसों की अनुपस्थिति में जाती है, फलत: वह गरभ बनी रहती है। यह पृथ्वी के चारों ओर आवरण का काम करती है। इसे हरित गृह प्रभाव कहते हैं। शीशा सूर्य की रोशनी को अन्दर आने देता है किन्तु अवरक्त विकिरण को यह पलायन से रोक लेता है। इससे हवा गरम बनी रहती है। हरित गृह गैसों के अभाव में पृथ्वी का तापक्रम औसतन 30 प्रतिशत तक कम हो जायेगा। ऐसी दशा में पृथ्वी गृह पर कोई प्राणी नहीं रह सकेगा किन्तु हरित गृह गैसों की सान्द्रता में वृद्धि हरित गृह प्रभाव को तीव्र कर देगी और पृथ्वी का तापक्रम बढ़ जायेगा।