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बाल विकास का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व

3 years ago
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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में बाल विकास का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व के बारे में , बाल विकास का चार्ट,हरलॉक के अनुसार विकास की अवस्थाएं,बाल विकास की अवस्थाएं पीडीऍफ़,बाल विकास की विशेषताएं,बाल विकास की अवस्थाएं pdf,बाल विकास की परिभाषाएं,मानव विकास की अवस्थाएं,बाल विकास के चरण, इत्यादि के बारे में विस्तार से बतायेंगे.

बाल विकास का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व

बाल विकास का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व

अनुक्रम (Contents)

  • बाल विकास का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व
  • बाल विकास
      • आधिगमकर्ता का विकास/ शारीरिक विकास/सामाजिक विकास संवेगात्मक विकास और अन्य
  • अभिवृद्धि और विकास में अन्तर :-
    • अभिवृद्धि
    • विकास
    • → अभिवृद्धि एवं विकास के सिद्धांत :
  • विकास की अवस्थाएँ
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बाल विकास का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व

बाल विकास

आधिगमकर्ता का विकास/ शारीरिक विकास/सामाजिक विकास संवेगात्मक विकास और अन्य

1. अभिवृद्धि :- अभिवृद्धि का अभिप्राय कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि/अभिवृद्धि के अन्तगर्त भार का बढना/ ऊँचाई का बढ़ना, शारीरिक अगों के आकार में परिवर्तन आना, बालों का बढ़ना, नाखूनों का बढ़ना आदि शामिल है।

फ्रक के अनुसार- “कोशिकीय गुणात्मक वृद्धि ही अभिवृद्धि कहलाती है।”

2. विकास :- व्यक्ति में समग्र परिवर्तन ही विकास है। यहाँ परिवर्तन से तात्पर्य शारीरिक मानसिक व संवेगात्मक आदि से है। वास्तव में विकास भी अभिवृद्धियों का योग है। विकास के परिणाम स्वरूप प्राणी में नई-नई योग्यताएँ, विशेषताएँ, कार्यकुशलताएँ प्रदर्शित होती है।

जैसे :- हाथ पैर का बढ़ना, धड का बढना आदि अभिवृद्धि हैं लेकिन इसके कारण जो शारीरिक व मानसिक कार्यकुशलता उत्पन्न होती है उसे विकास कहा जाता है।

हरलॉक के अनुसार :- “विकास अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है। इसकी अपेक्षा इसमें परिपक्व अवस्था के लक्ष्य और परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित होता है।”

अभिवृद्धि और विकास में अन्तर :-

अभिवृद्धि

विकास

1. अभिवृद्धि का संबंध शरीर के किसी अंग अथवा उपअंगों में परिवर्तन से है। 1. विकास समस्त अंगों के समस्यात्मक समग्र का बोधक हैं
2. अभिवृद्धि एक निश्चित समय के बाद रूक
जाती है।
2. विकास निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
3. अभिवद्धि का अर्थ सकुंचित है यह विकास की प्रक्रिया का अवयव (हिस्सा /भाग) मात्र है। 3. विकास का अर्थ व्यापक है । इसका सम्बन्ध न केवल शारीरिक पक्ष बल्कि संवेगात्मक सामाजिक , मानसिक आदि सभी पक्षों में है।
4. अभिवद्धि में व्यक्तिगत भेद पाये जाते है। 4. विकास में समानता होती है। लेकिन इसकी दर / सीमा में अन्तर होता है।
5. अभिवृद्धि मात्रात्मक, प्रत्यक्ष व बाह्य होती है। 5. विकास अप्रत्यक्ष व आन्तरिक होता है।
विकास गुणात्मक होता है।
6. अभिवृद्धि को नापा , तौला जा सकता हैं 6. विकास का अनुभव किया जा सकता है।

→ अभिवृद्धि एवं विकास के सिद्धांत :

1. निरन्तर विकास का सिद्धांत

2. विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत

3. विकास क्रम का सिद्धांत

  • जैसे :-
    भ्रूण का बनना
    बालक का जन्म लेना
    चलना – फिरना बोलना फिर पढना आदि।

4. विकास की दिशा का सिद्धांत :- सिर से पैर की ओर

  • उपनाम :-
    मस्तकोध मुखी
    शिरोपुँज विकास सिर से पैर की और
    केन्द्रीय परीधिय विकास
    निकट दूर का विकास

5. एकोकरण का सिद्धांत :-

6. परस्पर सम्बन्ध का सिंद्धात :-

  • शारीरिक विकास
  • मानसिक विकास
  • संवेगात्मक विकास
  • सामाजिक विकास
  • नैतिक विकास

7. सामान्य एवं विशेष प्रतिक्रिया का सिद्धांत :

8. समान प्रतिमान (मॉडल) का सिद्धांत

9. वंशानुक्रम एवं वातावरण की अंतःक्रिया का सिंद्धात :-

10. परिमार्जिता का सिद्धांत (लाभ के साथ)

विकास की अवस्थाएँ

शैक्षणिक दृष्टिकोण से विकास की अवस्थाओं में निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।

1. शैशवावस्था :- जन्म से लेकर 5 से 6 वर्ष तक

2. बाल्यावस्था :- 5 से 6 वर्ष से 12 वर्ष तक

  • (1) पूर्व बाल्यावस्था:- 6 से 9 वर्ष तक
  • (2) उत्तर बाल्यावस्था :- 10 से 12 वर्ष तक

3. किशोरावस्था:- 13 से 18 वर्ष तक

  • (1) पूर्व किशोरावस्था :- 13 से 16 वर्ष तक
    (2) उत्तर किशोरावस्था :- 16 से 18 वर्ष तक

4. प्रौढ अवस्था:- 18 से अधिक

शैशवावस्था का अर्थ एवं परिभाषाएं,विशेषताएं,शैशवावस्था में शिक्षा

बाल्यावस्था का अर्थ एवं परिभाषाएं,विशेषताएं,बाल्यावस्था में शिक्षा

किशोरावस्था का अर्थ एवं परिभाषाएं,विशेषताएं,समस्याएं,किशोरावस्था में शिक्षा

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  2. अर्तनोद न्यूनता का सिद्धांत
  3. सबलीकरण का सिद्धांत
  4. यथार्थ अधिगम का सिद्धांत
  5. सतत अधिगम का सिद्धांत
  6. क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत
  7. चालक न्यूनता का सिद्धांत

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2. शास्त्रीय अनुसंधन सिद्धांत
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  5. अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत
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  7. अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त
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shubham yadav

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