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राजनीतिक संस्कृति के दृष्टिकोण पर सिडनी वर्षा के विचार
लुसियन पाई और सिडनी वर्बा द्वारा सम्पादित ग्रन्थ ‘Political Culture and Political Development’ में सिडनी वर्षा के निबन्ध ‘Comparative Political Culture’ में राजनीतिक संस्कृति के दृष्टिकोण पर बड़ी विद्वतापूर्ण ढंग से प्रकाश डाला गया है। सिडनी वर्षा में लिखा है कि आधुनिक शताब्दी में राजनीतिक जगत् और राजनीतिक अध्ययन क्षेत्र दोनों में ही तीव्र परिवर्तन हैं, नए राष्ट्र अस्तित्व में आए हैं, पुरानों में परिवर्तन हुए हैं और ऐसी विभिन्न समस्याएँ उठी हैं जो राजनीतिज्ञों तथा विद्यमान संस्थाओं की क्षमताओं को एक चुनौती हैं। यद्यपि राजनीतिक जगत् और राजनीतिशास्त्र में परिवर्तनों की प्रक्रिया तीव्र है, तथापि अतीत से उनका नाता टूटा नहीं है। अतीत से जुड़ी एक निरन्तरता चली आ रही है। नए राज्यों की समस्याएँ कुछ अर्थों में वे समस्याएँ हैं जिनका सामना दूसरे राज्य अतीत में कर चुके हैं, जैसे एक स्थायी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण कैसे किया जाए, किसी भी ऐसी व्यवस्था को प्रभावशाली कैसे बनाया जाए ताकि वह अपने समक्ष उपस्थित माँगों की पूर्ति कर सके, बदलते हुए वातावरण से अनुकूलन कैसे किया जाए, समाज में होने वाले आन्तरिक परिवर्तनों में सामंजस्य कैसे बैठाया जाए आदि। हो सकता है कि ये समस्याएँ अपेक्षाकृत अधिक तेजी से उपस्थित हों और इनका समाधान भी अपेक्षाकृत अधिक आवश्यक और, अविलम्ब प्रतीत हो, लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि ये समस्याएँ बिल्कुल नई हैं। साथ ही, ये ऐसी समस्याएँ भी नहीं हैं जिनसे अपेक्षाकृत अधिक पुरानेराष्ट्र ग्रस्त न हो। कहने का तात्पर्य यह है कि समस्याएँ नए राज्यों का अध्ययन करने वाले नए राजनीतिक वैज्ञानिकों और राजनीति के पुराने विद्यार्थी तथा दार्शनिकों— दोनों ही के लिए बौद्धिक दंगल हैं। कुछ राष्ट्र सफल, तो कुछ असफल क्यों हो जाते हैं? राष्ट्र किस प्रकार बदलते हैं? किस प्रकार के राजतन्त्र से किस प्रकार के दूसरे राज्यतन्त्र की ओर यह परिवर्तन सम्भव है? राजनीतिज्ञों को किन विकट समस्याओं और दायित्वों का सामना करना पड़ता है और इनका मुकाबला करने के लिए उन्हें कैसे प्रशिक्षित किया जाए? प्रजातन्त्र की स्थापना कैसे होती है और वे कौन-सी शर्तें या दिशाएँ हैं जिनके बल पर वह जीवित रह सकता है। सामान्य नागरिकों की भूमिका और उनके दायित्व क्या हैं? ये सब इस प्रकार के प्रश्न हैं जिनसे नए-पुराने सभी राजनीतिशास्त्री सम्बद्ध हैं। हाँ, यह सम्भव है कि इन प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास समकालीन राजनीतिक वैज्ञानिकों के उस दृष्टिकोण से भिन्न हो जो राजनीति के पुराने विद्यार्थी ग्रहण किए हुए हैं।
इस प्रकार की और ऐसी ही अन्य समस्याओं पर विचार करने के लिए आज जिस दृष्टिकोण का प्रयोग होता है वह ‘राजनीतिक संस्कृति’ पर बल देता है। किसी भी समाज की राजनीतिक संस्कृति में उसके अनुभववादी विश्वासों की व्यवस्था, अभिव्यक्त होने वाले प्रतीक और वे मूल्य सन्निहित होते हैं जो राजनीतिक कार्यवाही की स्थिति को परिभाषित करते हैं। राजनीतिक संस्कृति राजनीति को व्यक्तिनिष्ठ अनुस्थापन (Subjective Orientation) प्रदान करती है। पर यह राजनीति का केवल एक ही पहलू है और यदि हम किसी राष्ट्र की राजनीतिक प्रक्रिया का पूर्ण परिचय पाना चाहते हैं तो वहाँ की राजनीतिक संस्कृति के साथ ही अन्य पहलुओं पर भी विचार करना होगा। सांस्कृतिक पहलू पर हम विशेष बल मुख्यतः इसलिए देते हैं कि-
(1) यद्यपि राजनीतिक व्यवस्थाएँ किसी राजनीतिक व्यवस्था के औपचारिक और अनौपचारिक पहलुओं के साथ ही राजनीतिक संस्कृति के जटिल ताने-बाने का प्रतिनिधित्व करती हैं, तथापि अध्ययनकर्ता के पास जो सीमित साधन उपलब्ध हैं उनके आधार पर राजनीतिक व्यवस्थाओं की सम्पूर्णता का एकबारगी ही अध्ययन नहीं किया जा सकता, एवं
(2) हमारा यह विश्वास है कि किसी भी समाज की राजनीतिक संस्कृति वहाँ की राजनीतिक व्यवस्था का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है।
किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के और भी अनेक पहलू होते हैं जिन्हें गहन विश्लेषण के लिए चुना जा सकता है और जिन्हें लम्बे समय तक राजनीति के विद्यार्थी औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन को अपनी विचार सामग्री बनाए हुए थे। पहले मुख्यतः प्रवृत्ति यही थी कि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के बने रहने या असफल हो जाने अथवा वह सफल या असफल क्यों हुई-इसके कारणों की व्याख्या के लिए उस व्यवस्था को संविधान का पर्यवेक्षण किया जाता था। इस प्रकार के प्रश्नों का विचार किया जाता था, जैसे कानून किस तरह पारित किए गए ? राजनीतिक व्यवस्था अध्यक्षीय थी अथवा संसदीय? क्या स्वतन्त्र न्यायपालिका भी थी ?
जिन लोगों का अध्ययन विषय लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ होता था उनकि रुचि विशेषकर निर्वाचन व्यवस्थाओं की संरचनाओं को थी। वे देखते थे कि किसी देश में एक संसदीय जिला निर्वाचन की व्यवस्था थी या किसी प्रकार की आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था ? लेकिन अब राजनीतिक वैज्ञानिकों की रुचि दूसरे प्रकार के प्रश्नों की ओर मुड़ गई है, विशेषकर ऐसे प्रश्नों की ओर जो राजनीति के बाह्य ढाँचे से सम्बंधित हों-उन संस्थाओं से सम्बन्धित हों जो यद्यपि प्रत्यक्षतः सरकारी ढाँचे में सम्मिलित नहीं होती तथापि राजनीतिक निर्णयों में जिनका महत्वपूर्ण भाग होगा है। राजनीतिक दल और दबाव समूह आज हमारे सूक्ष्म और गहन निरीक्षण का विषय बन गए हैं, किन्तु राजनीतिक संस्कृति पर इस प्रकार ध्यान केन्द्रित करने का आशय यह भी नहीं है कि राजनीतिक व्यवस्था के अन्य पहलू उस व्यवस्था के कार्य संचालन की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है। ये अन्य पहलू महत्वपूर्ण भी है और साथ ही राजनीतिक संस्कृति से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध भी। उदाहरण के लिए किसी भी राष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति अन्य बातों के अतिरिक्त उन अनुभवों से प्रकट होतो है जो व्यक्ति राजनीतिक प्रक्रियाओं के सम्बन्ध में प्राप्त करते हैं। लोगों के बहुत से राजनीतिक विश्वास होते हैं और इन राजनीतिक विश्वासों के बारे में जानने का एक प्रभावशाली उपाय यह है कि हम उन तरीकों का अध्ययन करें जिनके द्वारा राजनीतिक संरचनाएँ क्रियाशील होती हैं। ये विश्वास एक ओर तो राजनीतिक संरचनाओं को प्रभुवित करते है और दूसरी ओर उस तरीके से प्रभावित भी होते हैं जिसमें कि ये संरचनाएँ क्रियाशील होती हैं। इस प्रकार संस्कृति और संरचना में सम्बन्धों का एक घनिष्ठ चक्र होता है पर हम सांस्कृतिक पहलू का पृथक रूप से अध्ययन इसलिए करते हैं ताकि इन सम्बन्धों का विश्लेषण सुविधाजनक बन जाए।
राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन कोई नया नहीं है। जिन विचारकों ने राजनीतिक व्यवस्थाओं के संचालन के कारणों को जानने का प्रयास किया, वे राजनीतिक संस्कृति की धारणा से परिचित थे। वास्तव में राजनीतिक संस्कृति एक बहुत ही सामान्य प्रकृति की ओर संकेत करती है जिसे विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा से हम राजनीतिक जीवन के एक विशिष्ट पहलू पर अपना समुचित ध्यान दे सकते हैं और इससे लाभ ही हैं। इस अवधारणा के फलस्वरूप हमारे लिए यह अधिक सुगम हो जाता है कि हम राजनीतिक के सांस्कृतिक पहलुओं को अन्य पहलुओं से अलग कर ले और इसका अधिक विस्तृत तथा व्यवस्थित रूप से विश्लेषण करें। राजनीति के सांस्कृतिक पहलुओं को पृथक् करने की प्रक्रिया से हम इस स्थिति में आ जाते हैं कि एक राजनीतिक व्यवस्था में उसके सांस्कृतिक तत्त्वों या पहलुओं के महत्व और प्रभावों को अधिक स्पष्टता से जाँच सकें। राजनीतिक संस्कृति शब्दावली इस अर्थ का बोध कराती है कि हम राजनीतिक विश्वासों का अध्ययन संस्कृति विषयक समाजशास्त्रीय और मानवशास्त्रीय रचनाओं को ध्यान में रखते हुए करें और आधारभूत मूल्यों, मनोवैज्ञानिक संज्ञानों तथा भावात्मक वासदों पर अपना ध्यान दें। राजनीतिक संस्कृति हमारा ध्यान उस विषय पर भी आकर्षित करती हैं जो संस्कृति की अध्येताओं के लिए भारी रुचि का है और यह विषय है वह प्रक्रिया जिसके माध्यम से इस प्रकार के मूल्यों, संज्ञानों तथा भावात्मक वायदों का अध्ययन किया जा सकता है। राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन हमें अनिवार्य रूप से राजनीतिक सामाजीकरण के अध्ययन की ओर ले जाता है। इसके द्वारा हम उन अनुभवों को जानने की ओर प्रवृत्त होते हैं. जिनके द्वारा राजनीतिक संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है। साथ ही हम उन परिस्थतियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं जिनके अन्तर्गत राजनीतिक संस्कृतियाँ परिवर्तित होती हैं। राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन से हमें किसी राष्ट्र के राजनीतिक इतिहास के सम्बन्ध में एक नया दृष्टिकोण मिलता है जिसके द्वारा हम उन तरीकों पर अपना ध्यान दे पाते हैं जिनमें आधारभूत राजनीतिक विश्वास राजनीतिक घटनाओं की स्मृतियों से प्रभावित होते हैं।
राजनीतिक जीवन के एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना लाभदायक है, किन्तु यह राजनीतिक घटना के विश्लेषण और व्याख्या का केवल समारम्भ ही हैं। वास्तव में महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि हम राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन करे बल्कि यह कि हम इसका अध्ययन कैसे करते हैं तथा राजनीति के ज्ञान में अभिवृद्धि के लिए इसका कैसे प्रयोग करते हैं। केवल यह कह देने से काम नहीं चलता कि राजनीतिक संस्कृति महत्वपूर्ण है, वरन वास्तविक महत्व तो इस बात में है कि हम यह बता सकें कि राजनीतिक संस्कृति के कौन से पहलू किन घटना के निर्धारक हैं— महत्वपूर्ण और आधारभूत राजनीतिक विश्वास कौन से है तथा राजनीति के अन्य पहलुओं से वे किस प्रकार सम्बन्धित है। लुसियन डब्ल्यू पाई और सिडनी वर्बा द्वारा सम्पादित विशिष्ट ग्रन्थ Political Culture and Political Development में जापान, इंग्लैण्ड, जर्मनी, टर्की भारत, इथियोपिया, इटली सैक्सिको, मिस्र और सोवियत रूस से सम्बन्धित जो विभिन्न निबन्ध संग्रहित हैं वे मुख्यतः इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि वे राजनीतिक परिवर्तन की समस्याओं से सर्वाधिक सम्बन्धित है और यह बताते हैं कि सांस्कृतिक पहलू उन समस्याओं से किस प्रकार सम्बन्धित हैं।
आगे बढ़ने से यह पूर्व देख लेना उपयुक्त है कि आखिर इस विशिष्ट पहलू ( राजनीतिक संस्कृति) पर ध्यान देना क्यों महत्वपूर्ण है। राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक अन्तः क्रिया की औपचारिक अथवा अनौपचारिक संरचनाओं से सम्बन्धित नहीं है अर्थात् सरकारों, राजनीतिक दलों, दबाव समूहों या संगठनों आदि से। ये ही यह राजनीतिक नेताओं के मध्य अन्तः क्रिया के प्रतिरूपों से ही सम्बन्धित है, जैसे इन बातों से कि कौन किससे कहता है, कौन किसको प्रभावित करता है, कौन किसको मत देना है आदि। जब हम ‘राजनीतिक संस्कृति’ शब्दावली का प्रयोग करते है तो राजनीतिक अन्तःक्रिया और राजनीतिक संस्थाओं के प्रतिरूपों के बारे में विश्वासों की व्यवस्था की ओर संकेत करती है। राजनीतिक संस्कृति यह नहीं बतलाती है कि राजनीतिक जगत में क्या हो रहा है, बल्कि यह बतलाती है कि इन घटनाओं के बारे में लोगों का विश्वास क्या है। ये विश्वास अनेक प्रकार के हो सकते है जैसे राजनीतिक जीवन की वास्तविक स्थिति के बारे में अनुभवादी विश्वास, राजनीतिक जीवन में जिन उद्देश्यों और मूल्यों की पूर्ति के प्रयत्न होने चाहिए उनके बारे में विश्वास आदि। इस प्रकार के विश्वासों का एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्त मक अथवा भावात्मक विस्तार भी हो सकता है।
राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक घटनाओं तथा उन घटनाओं की प्रतिक्रिया में लोगों के व्यवहार के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी का निर्माण करती है, क्योंकि यद्यपि व्यक्तियों और समूहों का राजनीतिक व्यवहार सरकारी कर्मचारियों के कार्यों, युद्धों, चुनाव अभियानों और सी प्रकार की बातों से प्रभावित होता है, तथापि यह उन अर्थों से और भी अधिक प्रभावित होता है जो निरीक्षकों द्वारा उन घटनाओं के साथ जोड़े जाते हैं। राजनीतिक संस्कृति इस बात का संकेत देती है कि लोग राजनीतिक में जो कुछ देखते हैं, उनके विरुद्ध क्या मत प्रकट करते है और जो कुछ देखा है उसकी वे. क्या व्याख्या करते हैं। उदाहरण के लिए, सांस्कृतिक दृष्टि में हम राजनीतिक इतिहास पर तटस्थ घटनाओं की श्रेणी के रूप में उतना विचार नहीं करेंगे जितना उन घटनाओं की श्रेणी के रूप में जिनकी व्याख्या अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग रूप में की गई हो और भावी घटनाओं पर जिनके प्रभाव इस व्याख्या निर्भर करते हों। यहाँ हमें ध्यान रखना चाहिए कि ‘अर्थ’ तथा ‘व्याख्या’ परस्पर सम्बन्धित शब्दावलियाँ है और वे इस बात की ओर संकेत नहीं करती कि व्यक्ति के मस्तिष्क में क्या है अथवा बाहरी दुनिया में क्या घटित होता है, बल्कि वे तो इन दोनों के बीच की अन्तः क्रिया को इंगित करती है और इस अन्तःक्रिया में यह मानना गलत होता कि पूर्व-निश्चित विश्वासों या बाह्य घटनाओं में से कोई न कोई आवश्यक रूप से प्रभावित है। वास्तविकता यह है कि किसी भी घटना की व्याख्या पूर्व स्थित विश्वासों के प्रसंग में की जाएगी, किन्तु इन पूर्व अवधारणाओं की उपयोगिता वहीं तक होगी जहाँ तक वे व्याख्याओं को प्रभावित कर सकें। ये पूर्व वे अवधारणाएँ व्याख्याओं को कहाँ तक प्रभावित कर सकेंगी, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सकता।
सिडनी वर्बा ने राजनीतिक संस्कृति को व्यापक अर्थ में लेते हुए कहा है कि यह नियंत्रण की व्यावस्था बनाम राजनीतिक अन्तःक्रियाओं की व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती है। राजनीतिक संस्कृति इस बात को नियमित करती है कि किसने किससे बात की है और किसने किसको प्रभावित किय’ है। राजनीतिक सम्बन्धों में जो कुछ कहा जाता है और इन सम्बन्धों के जो प्रभाव होते हैं। उनको भी यह नियमित करती है। यह उन तरीकों को भी नियमित करती है जिनमें औपचारिक राएँ क्रियाशील होती हैं। उदाहरण के लिए किसी भी नए संविधान का मूल्यांकन राष्ट्र या समाज की राजनीतिक संस्कृति के सन्दर्भ में किया जाएगा। यदि वह संविधान भिन्न राजनीतिक संस्कृति वाले दो अलग-अलग समाजों में लागू किया जाए जो उसका मूल्यांकन भी अलग अलग ह र और समाज के लोग उस संविधान को दूसरे समाज के लोगों से भिन्न दृष्टि से देखेंगे। ठीक यह थति राजनीतिक विचारधाराओं की है। राजनीतिक विचारधाराएँ भी उस समाज के सांस्कृतिकवरण से प्रभावित होती हैं जिनमें उन्हें लागू किया जाता है। इतिहास उन संविधानों “के उदाहरण भरा पड़ा है जो समाज या राष्ट्र में उस रूप में लागू नहीं हो सके जिस रूप की कल्पना या.शा संविधान-निर्माताओं ने की थी और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन संविधानों का प्रयोग एक, विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति के माध्यम से हुआ था। इसी प्रकार इतिहास में ऐसे उदाहरणों की भी कभी नहीं है कि उपस्थित राजनीतिक विचारधाराओं को राष्ट्र की पूर्व स्थिति संस्कृति के अनुकूल बिठाया गया हो जिसमें उन्हें लागू किया गया था। आशय यह हुआ कि हम किसी भी संविधान का निर्माण करे या किसी भी राजनीतिक विचारधारा को प्रस्तुत करें, उसे अन्ततोगत्वा देश या समाज की राजनीतिक संस्कृति से समायोजित करना पड़ेगा और उस विशिष्ट संस्कृति के प्रकाश में ही उनका समुचित मूल्यांकन होगा।
सिडनी वर्बा ने अपने निबन्ध ‘तुलनात्मक राजनीतिक संस्कृति’ में यह प्रस्थापित किया है। कि राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक विश्वासों का चोलीदामन का साथ है। राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक रूप से संगत सभी अनुस्थापनों को इंगित करती है चाहे वे अनुस्थापन संज्ञानों व मूल्यांकनों की अभिव्यक्तियों के रूप में हों। यह एक राजनीतिक व्यवस्था के सभी सदस्यों के अनुपस्थानों या विश्वासों से सम्बन्धित है और राजनीतिक के सभी पहलुओं से उत्पन्न अनुस्थापनों को समाहित करती है। सिडनी वर्बा ने अपने विद्वतापूर्ण निबन्ध में राजनीतिक विश्वासों से सम्बन्धित है और राजनीतिक के सभी पहलुओं से उत्पन्न अनुस्थापनों को समाहित करती है। सिडनी वर्बा ने अपने विद्वतापूर्ण निबन्ध में राजनीतिक विश्वासों के अपेक्षाकृत ऐसे सामान्य पहलुओं का उल्लेख किया है जो राष्ट्रों के मध्य राजनीतिक तुलनाओं के क्षेत्र में बड़े उपयोगी हैं। उन्होंने राजनीतिक संस्कृति के दृष्टिकोण में राजनीतिक व्यवस्थाओं और राजनीतिक नेताओं की प्रकृति के बारे में उन आधार भूत विश्वासों की ओर संकेत किया है जो अनुभववादी विश्वासों की श्रेणी में आतें हैं। राष्ट्रीय एकरूपता, साथी नागरिकों से एकरूपता, सरकारी, ‘उत्पाद’ या लाभ आदि के बारे में राजनीतिक विश्वासों को तुलनात्मक राजनीतिक संस्कृति के सन्दर्भ में उन्होंने बड़ा उपयोगी पाया है।
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