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संक्रामक रोग का अर्थ | संक्रामक रोगों के कारण | Infections Diseases in Hindi

संक्रामक रोग का अर्थ
संक्रामक रोग का अर्थ

संक्रामक रोग का अर्थ (Meaning of infections diseases)

संक्रामक रोग का अर्थ (Meaning of infections diseases) – जब कोई रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप से लग जाता है तो उसे संसर्गज रोग कहते हैं। यह जब अप्रत्यक्ष रूप या किसी के माध्यम से लग जाते हैं, जैसे-कीटाणु, जल, वायु एवं भोजन आदि के द्वारा रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लग जाते हैं तो इस प्रकार के रोगों को संक्रामक रोग कहते हैं। इस कमी को दूर करने के लिये निम्नलिखित उपाय किये गये हैं- (1) प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाना (Increment of resistance power)। (2) विषाणु प्रतिरोधी रासायनिक उपचार या उपचार (Antimicrobial chemotherapy)। (3) पौष्टिकता में सुधार (Improvement in nutrition)। (4) बेहतर स्वच्छता (Better cleanliness) ।

कुछ संक्रामक रोग आज भी बचे विश्व के अनेक देशों में अपने पैर फैलाये हुए हैं, उनमें से कुछ प्रमुख रोग अग्रलिखित प्रकार हैं- (1) क्षय रोग या टी. बी. (तपेदिक) । (2) डिप्थीरिया । (3) पोलियो। (4) पेचिस (5) कुकर खाँसी, (6) अतिसार, (7) हेपेटाइटिस, (8) टाइफाइड, (9) कुष्ठ रोग, (10) हैजा, (11) फ्लू, (12) चिकन पॉक्स, (13) मलेरिया, (14) खसरा, (15) प्लेग, (16) स्मॉल पॉक्स आदि।

संक्रामक रोगों के कारण (Causes of infection disease)

जितने भी संक्रामक रोग होते हैं, उनमें प्रत्येक संक्रामक रोग का एक विशेष जीवाणु होता है क्योंकि एक विशेष प्रकार का जीवाणु केवल एक ही रोग उत्पन्न करता है। इसी कारण से अलग-अलग रोगों के लक्षणों एवं उनकी उग्रता में अन्तर होता है। संक्रामक रोग भी कभी-कभी इतना भयंकर रूप धारण कर लेते हैं कि ये पूरे समाज के लिये एक समस्या बन जाते हैं। इन रोगों से बचाव एवं रोकथाम के लिये, सरकारी और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करने पड़ते हैं। इनकी रोकथाम के लिये अपार धन और योग्य, कुशल एवं प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं की आवश्यकता होती है। संक्रामक रोगों के फैलने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

1. वायु द्वारा (Byair) – अनेक रोग वायु के द्वारा ही फैलते हैं, जैसे छोटी चेचक, खसरा, एन्फ्लूएन्जा, जर्मन खसरा, कुकर खाँसी, डिप्थीरिया एवं तपेदिक आदि।

2. भोजन एवं जल द्वारा (By food and water) – खाने पीने की खुली वस्तुओं पर मक्खियाँ बैठती हैं और उन पर अनेक प्रकार के रोगाणु छोड़ जाती हैं। खुली वस्तुओं के सेवन से हैजा, टायफाइड, पेचिस, प्रवाहिक या अतिसार रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

3. सम्पर्क द्वारा (Direct contect ) – रोगी व्यक्ति भी विभिन्न संक्रामक रोगों को फैलाते हैं। यदि रोगी व्यक्ति के सम्पर्क में स्वस्थ्य व्यक्ति आता है तो उसे भी वही रोग हो जाता है। प्रत्यक्ष सम्पर्क से होने वाले रोग निम्नलिखित हैं-जुकाम, खसरा, काली खाँसी, आँखें दुखना, खुजली, दाद एवं तपेदिक ।

4. चर्म संघर्षण द्वारा (By skin friction) – कहने के लिये त्वचा हमारे शरीर का आवरण है। ये विभिन्न रोगाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करती है परन्तु कभी-कभी त्वचा के घर्षण द्वारा जीवाणु शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं। प्रवेश करने के बाद जीवाणुओं की वृद्धि होती रहती है। एन्थ्रेस एवं टिटनेस जैसे रोगों के जीवाणु इसी प्रकार से संचरित होते हैं।

5. कीटों द्वारा (By insects) – विभिन्न प्रकार के कीड़े भी संक्रामक रोग को फैलाने में सहायक होते हैं। मच्छर, मक्खियाँ, खटमल तथा जुएँ मानव का रक्तपान करते हैं।

6. जननेन्द्रिय या योनि मार्ग से (By the way of vagina) – सुजाक और गर्मी जैसे गुप्त रोग जननेन्द्रिय एवं योनि मार्ग द्वारा फैलते हैं।

7. संवाहक द्वारा (By the carrier) – कुछ व्यक्ति रोगवाहक का कार्य करते हैं। वे अपने शरीर के द्वारा रोग के जीवाणुओं को स्वस्थ व्यक्तियों तक पहुँचा देते हैं। इस प्रकार ये रोग फैलाने का कार्य करते हैं; जैसे- मोतीझरा, डिप्थीरिया, हैजा एवं खूनी पेचिस आदि रोग इसी प्रकार फैलते हैं।

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shubham yadav

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