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दत्त विश्लेषण के विभिन्न सोपान
दत्त विश्लेषण की विश्लेषक से एक आवश्यक अपेक्षा यह भी है कि वह दत्तों का विश्लेषण करते समय अनुसंधान के अन्तर्गत समस्या की वैषयिक रूप से तथ्यों के प्रस्तुत अनुसार करे। वैज्ञानिक रूप में विश्लेषक को सदैव यह प्रयत्न करना चाहिए कि दत्त विश्लेषण समय उसमें अभिनति प्रवेश ने करने पाये। दत्त विश्लेषण में वैषयिकता को लाने के लिए प्रत्येक स्तर पर विश्लेषण को अत्यन्त सावधान एवं सर्तक रहना चाहिए दत्त संकलन में पूर्व धारणा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
दत्त विश्लेषण के सोपान
दत्त विश्लेषण के अन्तर्गत निम्नलिखित सोपान सम्मिलित हो सकते हैं-
1. एकत्रित दत्तों की परीक्षा- दत्तों के विश्लेषण में प्रथम एकत्रित दत्तों का आलोचनात्मक परीक्षण करना है। दत्तों की सूक्ष्म परीक्षा से यह देखना चाहिए कि उनमें यथार्थता व वैषयिकता विद्यमान है या नहीं। यदि वैषयिकता का गुण विद्यमान नहीं है। तो पुनर्परीक्षण करके पता लगाना चाहिए कि ऐसी कौन-सी परिस्थितियाँ थीं जिनके कारण वैषयिकता का अभाव रहा। इसी तरह यह भी देखना चाहिए कि दत्तों में पर्याप्त सुव्यवस्था अथवा क्रमबद्धता है अथवा नहीं। यदि नहीं हो तो उसे सुव्यवस्थित कर लेना चाहिए। वास्तव में कोई यदि एक घटना का अध्ययन करने की इच्छा प्रकट करता है तो तार्किक बात जो उसे करनी है वह यह है कि उसे अपने चक्षु के सामने उस घटना का एक नमूना रखना चाहिए और उसे तब तक देखते रहना चाहिए जब तक कि समस्त आवश्यक विशेषताएँ उसके मस्तिष्क में स्थायी रूप से समाहित नहीं हो जाती है। एकत्रित दत्तोस के पड़ने, पुनः पढ़ने, परीक्षण तथा पुर्नरीक्षण से दत्तों में जो अर्न्तनिहित दोष छिपे रहते है, उनका निष्कासन किया जा सकता है। ऐसा करने से वैषयिक दत्तों के सौन्दर्य में अभिवृद्धि हो जाती है, जो विज्ञान का अन्तिम लक्ष्य है।
2. दत्त-विश्लेषण की योजना- अनुसंधान अभिकल्प की रचना करते समय ही भावी दत्त विश्लेषण की प्रक्रिया की एक पूर्व योजना बना ली जाती है और यह आवश्यक भी है। जैसे-जैसे अनुसंधान कार्य की गति बढ़ती है प्रारंभिक अपूर्ण योजना विश्लेषण प्रक्रिया, एक तथा अन्तिम विश्लेषण के रूप में विकसित होती है। आवश्यकतानुसार उसे बढ़ाया अथवा पुनः कार्यान्वित भी किया जा सकता है। इस क्रिया के लिए सचेत, लचीले तथा सुलझे हुए मस्तिष्क की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत यदि विश्लेषण की योजना पहले से तैयार नहीं की गई है तो ऐसी स्थिति में संकलित दत्तों का विश्लेषण प्रारम्भ करने से पूर्व उसकी आवश्यक रूपरेखा बना लेनी चाहिए। ऐसा न करने से आगे दत्त-विश्लेषण में कठिनाइयाँ उपस्थि हो जाती है।
3. सांख्यिकीय वर्णन- अनुसंधान दत्तों के विश्लेषण की सामान्य प्रक्रिया में सांख्यिकीय विधियों का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सामान्यतः लघु अथवा वृहत् दोनों प्रकार के सर्वेक्षणों तथा अनुसंधानों के अन्तर्गत सांख्यिकीय गणनाएँ प्रस्तुत की जाती है।
4. कारण कार्य सम्बन्धों का विश्लेषण- दत्त विश्लेषण के सन्दर्भ में विशेषकर सामाजिक तथा वैयक्तिक समस्याओं के सम्बन्ध में अत्यन्त कठिन कार्य कारण-कार्य सम्बन्धों का निर्धारण करना है।
विज्ञान की सुप्रसिद्ध परिभाषा कारणों के माध्यम से निश्चितता के साथ ज्ञान होना थी। वैज्ञानिक अन्वेषण का समस्त इतिहास कारणता की महत्ता को कम करता है क्योंकि सम्पूर्ण विज्ञान सर्वदा स्पष्टीकरण को खोज रहा है। बगैर कारणता सम्बन्धी स्पष्टीकरण के ज्ञान में उस श्रेष्ठ गुण का अभाव होता है जो उसे विज्ञान बनाता है।
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