गृहविज्ञान

दत्त विश्लेषण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।

दत्त विश्लेषण की प्रक्रिया
दत्त विश्लेषण की प्रक्रिया

दत्त विश्लेषण की प्रक्रिया

1. सर्वप्रथम मुख्य परिवर्त्य की खोज की जाती है। मुख्य परिवर्त्य से हमारा अभिप्राय उस परिवर्त्य से है जो स्वतन्त्र परिवर्त्य अथवा आश्रित परिवर्त्य दोनों के ही रूप में सैद्धान्तिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है।

2. इसके उपरान्त यह देखेने का प्रयास किया जाता है कि मुख्य परिवर्त्य उपयुक्त मूल्य ग्रहण करता है अथवा नहीं। यह एक सामान्य रूप से प्रयोग में लाया गया नियम है कि एक परिवर्त्य के उच्च, मध्यम तथा निम्न तीन मूल्यों का पता लगाया जाय। दो से कम ज्ञान होने पर परिवत्यों के मध्य उपयुक्त एवं तर्कसंगत सहसम्बन्ध को ज्ञात करना एक अत्यन्त कठिन कार्य है। तीन से अधिक मूल्यों का प्रयोग किये जाने पर पर्याप्त भ्रम के उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है।

3. मुख्य परिवर्त्य को अत्यधिक स्वतन्त्र परिवत्यों से लेकर अत्यधिक आश्रित परिवत्यों के प्रस्तावित सातत्य पर बायीं ओर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

4. क्षैतिजीय तथा उदग्रीय क्रम में दत्तों को अनुक्रियाशील किये जाने के उपरान्त सामान्यतः सर्वप्रथम क्षैतिजीय विश्लेषण करना अधिक उपयोगी होता है। विश्लेषण के दौरान कुछ प्रतिमानों एवं सूचकों का विकास करने के पश्चात वितरणों पर दृष्टि डालते हुए प्राचलों की गणना करना अधिक श्रेष्ठकर प्रमाणित होता है।

5. क्षैतिजीय तथा उदग्रीय दोनों प्रकार के क्रमों में प्रदर्शित दत्तों पर एक साथ ध्यान देते हुए विश्लेषण किया जाता है। एक अथवा कुछ स्वतन्त्र परिवयों द्वारा सभी आश्रित परिवत्यों पर प्रभाव डालने वाले प्रभावों को ज्ञात करने का प्रयास किया जाता है तथा एक अथवा कुछ आश्रित परिवत्यों का चयन करते हुए यह जानने का प्रयास किया जाता है कि ये सभी परिवर्त्य स्वतन्त्र परिवत्यों से किस प्रकार सम्बन्धित है। दूसरे शब्दों में हम द्वि-परिवत्यों विश्लेषण करते है ।

द्वि-परिवर्त्यो विश्लेषण के दौरान सह-विचरण का आश्रय लिया जाता है। सह-प्रसरण की संभावनाओं का प्रदर्शन सारणी की सहायता से किया जा सकता है। सह-विचरण के सम्बन्ध में दो बातें उल्लेखनीय है-

1. प्रथमतः तो यह कि सहसम्बन्ध बलात् स्थापित करने को प्रयास नहीं करना चाहिए।

2. द्वितीयतः सहसम्बन्ध की विभिन्न परिसीमाएँ हो सकती है।

3. दत्त विश्लेषण के अन्तर्गत बहुपरिवत्तर्यी विश्लेषण का भी प्रयोग किया जा सकता है।

एक समय पर कितने परिवर्त्य का उपयोग किया जा रहा है, इस बात को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण के निम्नलिखित स्तर प्रस्तुत किये जा सकते हैं।

परिवत्यों की संख्या के आधार पर विश्लेषण के विभिन्न स्तरों का विवरण 

स्तर विवरण
प्रथम स्तर मात्र सीमान्त विवरण जो उस समय अधिक लाभप्रद प्रमाणित होते हैं जबकि हम गहराईपूर्ण विश्लेषण का उद्देश्य न रखकर केवल आकलन एवं सरल विवरण प्रस्तुत करना चाहते है।
द्वितीय स्तर मात्र पारसिंहावलोकन जो विश्लेषण हेतु आवश्यक होता है। परन्तु जो प्रायः उस समय अपर्याप्त होता है जबकि हम नूतन अन्तदृष्टियों को प्राप्त करना चाहते है।”
तृतीय स्तर एक तृतीय परिवर्त्य को अन्तर्विष्ट कराते हुए इस पर परिवर्त्य की पृष्ठभूमि में दो परिवत्यों का एक समय पर अध्ययन किया जाता है अथवा एक परिवर्त्य का अध्ययन अन्य दो परिवत्यों के मध्य सम्बन्ध के फलन के रूप में किया जाता है।
चतुर्थ स्तर तृतीय स्तर पर उत्पन्न हुए सम्बन्धों का अध्ययन करने के लिए एक चौथे परिवर्त्य को सम्मिलित किया जा सकता है अथवा परिवत्यों के एक युग्म का उपयोग इस बात का अध्ययन करने के लिए किया जाता है कि अन्य युग्म में किस प्रकार का अर्न्तसम्बन्ध पाया जा रहा है।
पंचम स्तर चतुर्थ स्तर पर विकसित हुए सम्बन्धों का अध्ययन करने के लिए पाँचवें परिवर्त्य को सम्मिलित किया जा सकता है, आदि।

द्वितीय स्तर से आगे पाये जाने वाले विश्लेषण के सभी स्तरों को बहुपरिवत्यी विश्लेषण कहा जाता हैं। बहुपरिवर्त्य विश्लेषण के सम्बन्ध में दो बातें उल्लेखनीय है – (1) प्रथमतः तो यह कि जब दो परिवय के मध्य सह-सम्बन्ध पाया जाता है तो भी ऐसा सम्भव हो सकता है कि किसी तृतीय परिवर्त्य के समावेश से सह-संबंध समाप्त हो जाय तथा (2) द्वितीयतः तो यह कि जब दो परिवर्त्यो के मध्य सह-संबंध न पाया जाता हो तो भी ऐसा सम्भव हो सकता है कि किसी तृतीय परिवर्त्य का समावेश कराये जाने पर इसमें सह-सम्बन्ध दृष्टिगोचर होने लगे।

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shubham yadav

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