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बेसिक शिक्षा योजना का स्वरूप | बेसिक शिक्षा परियोजना के कार्य तथा क्रियान्वयन

बेसिक शिक्षा योजना का स्वरूप
बेसिक शिक्षा योजना का स्वरूप

बेसिक शिक्षा योजना का स्वरूप

यह परियोजना प्रदेश में बेसिक शिक्षा की सुव्यवस्था हेतु संचालित की जा रही है। इस परियोजना के अन्तर्गत बेसिक शिक्षा के सार्वजनीकरण को मुख्य रूप से महत्त्व दिया जा रहा है। इसका मुख्य लक्ष्य सार्वजनीकरण के नामांकन, शिक्षा की अवधि की पूर्णता तथा शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार लाना है। राज्य, जनपद तथा ग्राम स्तर की संस्थाओं का स्थायीकरण ही उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो सकता है। शैक्षिक नियोजन तथा प्रबन्धन का विकेन्द्रीकरण तथा उनकी प्रभावकारिता में वृद्धि करना भी इस परियोजना का महत्त्वपूर्ण अंग है। बेसिक शिक्षा परियोजना के तीन अंग हैं

(1) संस्थागत क्षमता में वृद्धि, (2) गुणवत्ता में सुधार तथा पूर्णता, (3) बेसिक शिक्षा तक पहुँच में सुधार।

1. संस्थागत क्षमता में वृद्धि – इसके अन्तर्गत राज्य, जनपद तथा स्थानीय स्तरों पर नियोजन एवं प्रबन्धन में सहयोग प्रदान करने वाली इकाइयों की स्थापना करके पूरे राज्य के 6-14 वर्ष के शत-प्रतिशत बालकों का नामांकन समुचित शिक्षा के लिये सभी विद्यालयी सुविधाओं का नियोजन एवं प्रबन्ध करना है। सक्रिय सामुदायिक सहभागिता सुनिश्चित करना प्रमुख आयाम है।

2. गुणवत्ता में सुधार तथा पूर्णता – इसके अन्तर्गत पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तकों का संशोधन करना, शिक्षकों को सुविचारित प्रशिक्षण प्रदान करना, नवाचार एवं संकल्पनाओं से परिचित कराना, अविकसित छात्रों एवं छात्राओं की शिक्षा की व्यवस्था करना तथा नियमित अनुश्रवण एवं सतत् मूल्यांकन सम्मिलित है।

3. बेसिक शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना- इसके अन्तर्गत सभी जनपदों में बेसिक शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से असेवित क्षेत्रों में प्रारम्भिक विद्यालयों की स्थापना तथा अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को संचालित करना मुख्य लक्ष्य है तथा समाज के विशिष्ट वर्ग के बालकों के लिये शिक्षा की व्यवस्था करना मुख्य उद्देश्य है।

बेसिक शिक्षा परियोजना के कार्य तथा क्रियान्वयन

परियोजना के प्रमुख प्रस्तावित ‘कार्य तथा उनके क्रियान्वयन एवं उपलब्धियों की स्थिति निम्नवत् है-

1. एस.सी.ई.आर.टी. का सुदृढ़ीकरण-इसके द्वारा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तक सामग्री निर्माण, मूल्यांकन, तकनीकी तथा दक्षताओं का विकास किया जाना प्रस्तावित है।

2. राज्य शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना- इसके अन्तर्गत शैक्षिक प्रबन्धन में पुष्टिकरण को दृष्टिगत रखते हुए एक अलग संस्थान की स्थापना की गयी है।

3. प्रत्येक जिले में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना- इसके अन्तर्गत जनपद में शिक्षा की गुणवत्ता का उन्नयन, उसकी दक्षता का विकास, उसका अनुश्रवण एवं सतत् मूल्यांकन करने के उद्देश्य से D. I. E. T की स्थापना की गयी है। इन संस्थानों पर नयी शिक्षक ‘प्रशिक्षण संस्थानों को विकसित करने का दायित्त्व है।

4. विकास खण्ड (बी.आर.सी.) तथा न्याय पंचायत सन्दर्भ केन्द्र (एन.पी. आर. सी.) – इसके अन्तर्गत सूक्ष्म योजना का सूक्ष्म स्तर तक कार्यान्वयन एवं अनुश्रवण तथा Macro से Micro स्तर पर पहुँच के क्रम में ब्लॉक एवं न्याय पंचायत स्तर पर शैक्षिक सन्दर्भ केन्द्र के रूप में संचालित है।

5. सम्प्राप्ति में सुधार – इसके अन्तर्गत पाठ्यक्रम की समीक्षा तथा पाठ्य-पुस्तकों का संशोधन, अनुपूरक अध्ययन सामग्री का निर्माण तथा शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण प्रस्तावित है, जो अधिगम सम्प्राप्ति में गुणवत्ता लाने में पर्याप्त महत्त्वपूर्ण हैं।

6. नवीन मूल्यांकन तकनीकी तथा प्रविधियों का विकास- इस योजना को कार्यान्वयन के पूर्व शैक्षिक सम्प्राप्ति की जानकारी के लिये आधार लाइन सर्वेक्षण, सतत् मूल्यांकन व्यवस्था एवं क्रमोत्तर एवं परिवर्तन (विकास) की व्यवस्था करना ।

7. बालिका शिक्षा की व्यवस्था- छात्राओं के शत-प्रतिशत नामांकन तथा क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप अधिकाधिक अनौपचारिक केन्द्रों की स्थापना, शिशु शिक्षा केन्द्रों की स्थापना, पायलट कार्यक्रम, बालिका शिक्षा के उन्नयन के क्रम में एक प्रयास है।

8. नवाचार कार्यक्रमों का संचालन- इसके अन्तर्गत विद्यालयों में कार्यानुभव एवं विशिष्ट बालकों की शिक्षा योजना प्रस्तावित है।

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shubham yadav

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