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शिक्षा एवं समाज में अन्त:सम्बन्ध (Inter-relation between education and society)
शिक्षा और समाज का अटूट सम्बन्ध है। समाज शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था का दायित्व लेता है। समाज के द्वारा ही सम्पूर्ण विश्व का अधुनातम् एवं अभिनव रूप आज विद्यमान है। समाज के बिना जीवन का कोई भी कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न नहीं हो सकता। एक अच्छे राष्ट्र के निर्माण में समाज की भूमिका का अंश छिपा रहता है। शिक्षा समाज को एक व्यवस्थित तथा सन्तुलित दिशा प्रदान कर उसे, सभी प्रकार से सम्पन्नता प्रदान करती है। अत: शिक्षा और समाज का यह अटूट सम्बन्ध कभी न समाप्त होने वाला सिलसिला है। इन अभिन्न सम्बन्धों के परिणामस्वरूप एक सशक्त लोकतान्त्रिक राष्ट्र का निर्माण होता है तथा राष्ट्र की छवि का सुन्दर स्वरूप सामने आता है। शिक्षा एवं समाज का सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही घनिष्ठ रूप में रहा है। शिक्षा का स्वरूप समाज की आकांक्ष के अनुरूप ही निर्धारित होता है। वैदिक कालीन समाज में शिक्षा का स्वरूप नैतिकता एवं आध्यात्मिकता से सम्पन्न था। उस काल में प्रारम्भिक शिक्षा का स्वरूप भी नैतिकता एवं आध्यात्मिकता से युक्त था। शिक्षा धर्म की सहगामिनी थी। आर्मिक मूल्यों का प्रारम्भिक शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान था। छात्रों को प्रारम्भ से ही श्रद्धा एवं विश्वास का पाठ पढ़ाया जाता था। गुरु के वचनों को सत्य मानकर पालन करना चाहिये। इस सन्दर्भ में तत्कालीन कवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है-
मात-पिता अरु गुरु की बानी, बिनु विचारि करिउ सुभ जानी।
अर्थात् शिक्षा धार्मिक, आध्यात्मिक, आदर्शवादी एवं नैतिक सिद्धान्तों पर आधारित समाज की संरचना में योग प्रदान करती थी । वैदिक कालीन समाज पूर्णत: आदर्शवादी एवं धर्मनिष्ठ समाज था। शिक्षा का मूलरूप आदर्शों के रूप में माना जाता था। वर्तमान समय में समाज का जो स्वरूप दृष्टिगोचर होता है उसके विकास एवं संरचना में भी शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान समय में वैश्वीकरण की प्रवृत्ति के कारण शिक्षा एवं समाज में परिवर्तन आये हैं।
आज एक ही विद्यालय में भेदभाव रहित शिक्षण व्यवस्था सम्पन्न होती है। किसी भी जाति का बालक विद्यालय में प्रवेश पाने का अधिकार रखता है। समाज द्वारा इस तथ्य को स्वीकार कर लिया गया है। प्रारम्भिक शिक्षा द्वारा समाज में होने वाले अनेक परिवर्तनों को दिशा प्रदान की गयी है। वर्तमान समय में समाज प्रायोगिक व्यवस्था एवं उपयोगी शिक्षा को अधिक महत्त्व प्रदान करता है। शिक्षा ने समाज की इस संरचना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्तमान में शिक्षा का पाठ्यक्रम वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने वाला है। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा एवं समाज एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं। दोनों के संयुक्त रूप में ही एक अस्तित्वपूर्ण व्यवस्था का जन्म होता है। प्रारम्भिक शिक्षा एवं समाज एक-दूसरे को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं।