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सहभागी अवलोकन की परिभाषा
सहभागी अवलोकन से तात्पर्य ऐसे निरीक्षण से है जिसमें निरीक्षणकर्ता उस समूह में, जिसका कि उसे अध्ययन करना है, जाकर बस जाता है, उस समूह की सभी क्रियाओं में समूह के सदस्य के रूप में भागीदार बनता है और साथ ही साथ निरीक्षण भी करता हैं। प्रो० जानमैज ने कहा है कि जब निरीक्षणकर्ता के हृदय की धड़कनें समूह के अन्य व्यक्तियों के दिलों की धड़कनों से मिल जाती हैं और वह बाहर से आया हुआ कोई अनजाना नहीं रह जाता हैं, तो जानना चाहिए कि वह व्यक्ति सहभागी निरीक्षणकर्ता की संज्ञा पाने का अधिकारी हैं। गुडे व हाट ने भी लिखा है, “इस कार्य प्रणाली का उस समय प्रयोग किया जाता है जबकि अनुसंधानकर्ता अपने को समूह के सदस्य स्वीकृत हो जाने के योग्य बना लेता हैं।” पी० एच० मन ने लिखा है, “सहभागी निरीक्षण का तात्पर्य सामान्यतः ऐसी परिस्थिति से हैं जिसमें निरीक्षणकर्ता अपने अध्ययन समूह के उतने ही निकट होता हैं जितना कि उसका कोई अन्य सदस्य होता हैं।” यांग सिनपाओं के अनुसार, “वह एक बाहरी व्यक्ति होता है जो कि अस्थाई रूप से आन्तरिक व्यक्ति बन जाता हैं। वह अनुसन्धान परिस्थिति में गहन अन्तर्दृष्टि प्राप्त करता हैं, चूँकि वह व्यक्तिगत रूप से साझीदार नहीं होता और तटस्थ रह सकता हैं, जबकि वह समूह की क्रियाओं एवं उनकी भावनाओं एवं ईर्ष्याओं में भाग लेता है।”
सहभागी निरीक्षण के गुण
(1) सरल अध्ययन- सहभागी निरीक्षण की प्रविधि सूचनाओं को संकलित करने की एक सरल व साधारण प्रविधि हैं। इसमें निरीक्षणकर्ता को निरीक्षण किये जाने वाले व्यक्तियों से किसी तरह का कोई विरोध का सामना नहीं करना पड़ता हैं।
(2) स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन- सहभागी निरीक्षण में निरीक्षण किये जाने वाली सामाजिक घटना या व्यक्ति पर किसी तरह का नियन्त्रण न होने के कारण उनके व्यवहार में कोई कृत्रिमता नहीं आती हैं। निरीक्षणकर्ता समूह के सदस्य के रूप में स्वाभाविक जीवन व्यतीत करते हुए वास्तविक व्यवहार का निरीक्षण करने में सफलता ग्रहण करता है।
(3) प्रत्यक्ष निरीक्षण- सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता घटना स्थल पर उपस्थित होता है। निरीक्षण किये जाने वाले समुदाय या समूह के दैनिक जीवन में भाग लेता हैं, उसकी संस्कृति के नजदीक रहता है। स्पष्ट है कि घनिष्ठ व अनौपचारिक वातावरण में निरीक्षणकर्ता प्रत्यक्ष रूप से समूह का अध्ययन करता है।
(4) गहन व सूक्ष्म अध्ययन- सहभागी निरीक्षण में गहन व सूक्ष्म अध्ययन की पूर्ण संभावना होती हैं क्योंकि इसमें निरीक्षणकर्ता निरीक्षण की जाने वाली परिस्थितियों से पूर्णरूपेण परिचित हो जाता हैं। उनके जीवन के लगभग प्रत्येक आयामों से वाकिफ हो जाता हैं। सहभागी निरीक्षण कोई सतही अध्ययन न होकर गहन अध्ययन होता हैं।
(5) पुनः परीक्षा- सहभागी निरीक्षण की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें निरीक्षणकर्ता समूह से अच्छी तरह परिचित होने के कारण संकलित तथ्यों का कभी भी सत्यापन कर सकता हैं।
सहभागी अवलोकन के दोष
सहभागी निरीक्षण के उपरोक्त अनेक गुणों के अतिरिक्त इस प्रविधि के अनेक दोष एवं सीमाएँ भी हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है-
1. कुछ विद्वानों का विचार है कि सहभागी निरीक्षण में कभी-कभी पूर्ण सहभागिता केवल कठिन ही नहीं वरन् असम्भव भी हो जाती है। प्रो. रेडिन एवं श्री हरष्कोविट्स ने इसीलिए इस पद्धति को अव्यावहारिक कहा है। इतना ही नहीं कलकत्ता विश्वविद्यालय के श्री एम. एन. वसु का कथन है कि ‘एक क्षेत्रीय कार्यकर्ता कुछ व्यावहारिक कारणों से समुदाय के जीवन में कभी भी पूर्णरूपेण भाग नहीं ले सकता।
2. कभी-कभी अनुसन्धानकर्ता के कारण ही समूह के व्यक्तियों के व्यवहार में भी परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि अनुसन्धानकर्ता किसी स्कूल का अध्यापक या पंचायत का सरपंच चुन लिया जाता है तो इस रूप में उसके प्रति लोगों का व्यवहार अवश्य ही प्रभावित होगा और वह वास्तविक निरीक्षण नहीं कर पाएगा।
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