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अवलोकन किसे कहते हैं?
अवलोकन निरीक्षण को सामाजिक अनुसन्धान की शास्त्रीय पद्धति कहा जाता है। किसी भी विज्ञान को यथार्थ निष्कर्ष तक पहुँचाने के लिए निरीक्षण एक अनिवार्य आवश्यकता है। अवलोकन किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विधि है। यह भौतिक प्राकृतिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार के विज्ञानों में प्रयुक्त एक प्राचीन और सबसे अधिक प्रचलित विधि है। निरीक्षण या अवलोकन का सामान्य तात्पर्य है देखना। किन्तु वास्तव में अवलोकन और देखना एक ही नहीं, क्योंकि देखना आँखों का एक सहज कार्य है। देखना उद्देश्यपूर्ण हो सकता है और नहीं भी। खुले नेत्रों के सामने जो कुछ भी आ जाये उसे हम देख लेते हैं, किन्तु जब हम अवलोकन करते हैं, तो यह निरुद्देश्य नहीं होता है। अवलोकन किसी न किसी उद्देश्य से प्रेरित होकर ही किया जाता है। उदाहरणार्थ- जब हम सड़क से जा रहे होते हैं तो हमारी दृष्टि विभिन्न व्यक्तियों पर स्वभावतः पड़ती है तथा हम उन्हें देखते हैं। किन्तु इस भीड़ में यदि हमें हमारा भाई, माता या पिता अथवा कोई मित्र दिखाई देता है तो उस पर हमारे नेत्र ठहर जाते हैं। हमारे मन में प्रश्न उत्पन्न होता है कि वह यहां क्यों आया है। इस प्रकार मार्ग / रास्ते से गुजर रहे अनेक लोगों को देखना और उस भीड़ में से भाई, माता-पिता या मित्र को देखना एक समान नहीं है। प्रथम को देखना सर्वथा निरुद्देश्य है, जबकि दूसरे को देखना उद्देश्यपूर्ण है। स्पष्ट है कि उद्देश्यपूर्ण देखना ही अवलोकन है।
अवलोकन की परिभाषा
गुडे व हाट ने भी लिखा है, “विज्ञान का आरम्भ अवलोकन से होता हैं और वास्तविकता की पुष्टि के लिए इस अवलोकन में ही लौटना चाहिए।”
श्रीमती पी० वी० यंग के अनुसार, “निरीक्षण को नेत्रों द्वारा सामूहिक व्यवहार एवं जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ-ही-साथ सम्पूर्णता की रचना करने वाली पृथक इकाइयों के विचारपूर्ण पद्धति के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता हैं।”
सी० ए० मोजर के अनुसार, “ठोस अर्थ में निरीक्षण में काम तथा वाणी की अपेक्षा आँखों के प्रयोग की स्वतन्त्रता हैं।”
आक्सफोर्ड कान्साइज डिक्शनरी के अनुसार, “घटनाएँ कार्य-कारण अथवा पारस्परिक सम्बन्धों के सम्बन्ध, जिस रूप में वे उपस्थित होती हैं, का यथार्थ निरीक्षण एवं वर्णन हैं।”
कुर्ट लेविन के अनुसार, “सभी प्रकार के अवलोकन अन्ततः घटनाओं के विशेष समूहों में वर्गीकरण होते हैं। वैज्ञानिक विश्वसनीयता सही प्रत्यक्षीकरण और वर्गीकरण पर आधारित होता हैं।”
अवलोकन के प्रकार
अवलोकन के प्रमुख प्रकार इस प्रकार से हैं-
1. सरल अथवा अनियन्त्रित अवलोकन- यह अवलोकन की वह विधि है जिस पर नियन्त्रण नहीं रखा जा सकता है-
(क) सहभागिक अवलोकन- इसमें अवलोकनकर्ता अध्ययन करने वाले समूह का सदस्य बन जाता हैं।
(ख) असहभागिक अवलोकन- इसमें अवलोकनकर्ता समूह में प्रवेश करने के बजाय दूर से ही निरीक्षण करता है।
(ग) अर्द्ध सहभागिक अवलोकन- इस विधि में अवलोकनकर्ता समय-समय पर समूह समूह की क्रियाओं में भाग भी लेता है।
2. व्यवस्थित अथवा नियन्त्रित अवलोकन- इसमें अवलोकनकर्ता और घटना दोनों ही पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है।
3. सामूहिक अवलोकन- साधारणतया इस प्रणाली में उक्त लिखित दोनों प्रणालियों का मिश्रण पाया जाता है।
अवलोकन की विशेषताएँ
अवलोकन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
1. प्राथमिक सामग्री का संकलन- अवलोकन विधि के अर्न्तगत अवलोकनकर्ता स्वयं घटना स्थल पर जाकर प्राथमिक सामग्री का संकलन करता हैं, जिसके कारण ये अधिक विश्वसनीय हैं।
2. मानव-इन्द्रियों का प्रयोग- इस विधि के अन्तर्गत मानव-इन्द्रियों का पूर्ण प्रयोग किया जाता हैं। वह अपने कान व वाणी का प्रयोग करते हुए नेत्रों का प्रयोग भी विशेष रूप से करता हैं और नेत्रों के द्वारा घटनाओं का निरीक्षण करके उन्हें संकलित करने के उद्देश्य से नोट करता हैं।
3. प्रत्यक्ष अध्ययन- इसके अन्तर्गत अवलोकनकर्ता घटनाओं का अध्ययन प्रत्यक्ष रूप से करता हैं और तथ्यों के संकलन करने के उद्देश्य द्वारा सम्बन्धित लोगों से प्रत्यक्ष सम्पर्क करता है।
4. सूक्ष्म, गहन एवं उद्देश्यपूर्ण अध्ययन- इस विधि में अवलोकनकर्ता स्वयं घटना स्थल में अध्ययन उपस्थित करता हैं, अतः यह सूक्ष्म, गहन एवं उद्देश्य पूर्ण अध्ययन कर सकता हैं और केवल उन्हीं तथ्यों का संकलन करता हैं जिनका गहन अध्ययन किया जा चुका हैं।
5. निष्पक्षता- इस विधि में अवलोकनकर्ता घटनाओं को स्वयं देखता है और उनका निरीक्षण भली-भाँति करता है एवं उन्हें वैज्ञानिक कसौटी पर कसता है, अतः इसका निष्कर्ष निष्पक्ष एवं वैज्ञानिक होता हैं।
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