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सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया का अर्थ
सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया के सिद्धान्त के सम्बन्ध में एम. एल. बिगी के अनुसार –
“सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया, अधिगम की एक प्रक्रिया है जिसमें सतत् अथवा सम्भाव्य अनुक्रिया होती है। ऐसे समय में सक्रिय अनुकूलित अनुक्रिया की शक्ति बढ़ जाती है।”
प्रयोगों के परिणामों के आधार स्किनर ने लिखा है कि- “व्यवहार प्राणी अथवा उसके अंश भी किसी सन्दर्भ में गति है, यह गति या तो प्राणी में स्वयं निहित होती है या किसी बाह्य उद्देश्य अथवा शक्ति के क्षेत्र से आती है।’
अनुक्रिया के प्रकार
अनुक्रियायें दो प्रकार की होती हैं जो निम्नवत् हैं-
सम्बन्धित होती है। इस अनुक्रिया के अन्तर्गत पुनर्बलन हेतु एक ज्ञातः उद्दीपक को वांछित
(1) अनुक्रियात्मक अनुक्रिया – इस प्रकार की अनुक्रिया एस (S) प्रकार के अधिगम से अनुक्रिया के साथ सम्बद्ध कर दिया जाता है।
(2) निर्गमित अनुक्रिया – निर्गमित अनुक्रिया आर (R) प्रकार के अधिगम से सम्बन्धित होती है। इस अनुक्रिया में प्राणी स्वयं अनुक्रिया करता है। इस अनुक्रिया के पीछे अनेक उद्दीपक हो सकते हैं। इस प्रकार की अनुक्रिया में उद्दीपक अज्ञात अवस्था में ही रहता है।
स्किनर के सक्रिय अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
स्किनर का सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त
सक्रिय अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन बी. एफ. स्किनर द्वारा किया गया। स्किनर महोदय ने व्यावहारिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न महत्वपूर्ण प्रयोग किये। इनके द्वारा प्रतिपादित सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त वर्णनात्मक व्यवहारवाद पर आधारित है। इस सिद्धान्त के माध्यम से स्किनर महोदय ने सीखने के लिये सुनियन्त्रित परिस्थितियों के सृजन पर बल दिया ।
स्किनर का प्रयोग –
अपने सिद्धान्त की पुष्टि हेतु स्किनर ने सफेद चूहों पर प्रयोग किया स्किनर ने एक बक्से में लीवर लगाकर, उस लीवर का प्रयोग एक प्याली से कर दिया। इस लीवर को दबाने से खट्ट की ध्वनि के साथ ही प्याली में भोज्य पदार्थ का टुकड़ा आ गिरता था। लीवर के स्थान पर ही बाक्स में प्रवेश का मार्ग भी रखा गया था। स्किनर ने लीवर के पास बने मार्ग में एक चूहे को उस बक्से में छोड़ दिया । प्रवेश करते समय चूहे का पैर स्वाभाविक रूप से उस लीवर पर पड़ा तथा खट्ट की ध्वनि हुई। इसके साथ ही चूहा बक्से में प्रवेश कर गया और उसने वहाँ खाद्य पदार्थ को खा लिया। स्किनर के द्वारा इस प्रयोग की कई बार पुनरावृत्ति की गई तथा उन्होंने देखा कि भूख लगने पर चूहा उस लीवर को बार-बार दबाना सीख गया।
(i) यह क्रिया चूहे के लिए अत्यन्त सहज है।
(ii) इस क्रिया में अन्य व्यवहार समाविष्ट नहीं होता।
(iii) चूहे द्वारा एक घण्टे में अनेक बार लीवर को दबाने से उसके व्यवहार का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।
इस प्रयोग के आधार पर स्किनर ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि प्राणी को किसी क्रिया के उपरान्त कोई उद्दीपन प्राप्त हो जाता है तो वह उस कार्य को तत्परता से करने लगता है। इस सिद्धान्त के माध्यम से बालकों के वांछित व्यवहार को पुनरावृत्त कराया जा सकता है। बालकों की वांछित अनुक्रिया के उपरान्त विभिन्न प्रकार के उद्दीपन दिये जाने पर उनके व्यवहार को नियन्त्रित किया जा सकता है। स्किनर के इस सिद्धान्त के आधार पर ही शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पुनर्बलन को महत्व दिया गया।
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