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फासीवाद क्या हैं?
फाँसीवाद अंग्रेजी के ‘फासिज्म तथा इटालियन भाषा के ‘फेसियो’ शब्द से निकला है जिसका अर्थ इटालियन भाषा में लकड़ियों का बँधा हुआ बोझा या कुल्हाड़ी से होता है। मुसोलिनी ने फासी दल का चिह्न भी यही प्रयोग किया, यह इस बात का प्रतीक था कि फासी दल का लक्ष्य वर्ग संघर्ष पर आधारित समाजवादी समाज व्यवस्था के स्थान पर राजकीय नियन्त्रण के अन्तर्गत और राष्ट्रीय एकता पर आधारित समाज व्यवस्था है। फाँसीवाद इटली के युवकों को एकता की प्रेरणा देने वाला मुसोलिनी का विशेष सन्देश व कार्यक्रम था। फाँसीवाद को सर्वाधिकारवाद का इटालियन रूपान्तर कहा जा सकता है। विलियम ऐबेस्टीन के अनुसार पश्चिमी उदारवादी जीवन के विरुद्ध बीसवीं सदी में साम्यवाद पहला महत्त्वपूर्ण सर्वाधिकारवादी विद्रोह था और फाँसीवाद दूसरा।
मूलतः फाँसीवाद एकदलीय अधिनायकत्व वाले शासन व समाज का वह सर्वाधिकारवादी संगठन है जो कुछ उग्र राष्ट्रवादी, नक्सलवादी, युद्ध प्रिय और साम्राज्यवादी होता है।
फाँसीवाद का स्रोत
फाँसीवाद दर्शन में अनेक विचारों का मिश्रण है। मैकियावली, हॉब्स, फिक्टे, ट्रीटस्के, नीत्शे, मार्क्स, सोरेल, मोस्का, सोपेनहॉवर आदि कि विचारों के अलावा इस पर अन्य विचारधाराओं का प्रभाव भी दिखाई देता है। फाँसीवाद सामाजिक डार्विनवाद, अबौद्धिकवाद, परम्परावाद और आदर्शवाद से प्रभावित है। फाँसीवादी विचारधारा सर्वाधिक रूप में आदर्शवाद से प्रभावित है। काण्ट, फिक्टे व हीगल की आदर्शवादी विचारधारा ने फाँसीवाद को अत्यन्त प्रभावित किया है।
फाँसीवाद का विकास
फाँसीवाद का विकास प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इटली में हुआ। वसार्यय की सन्धि में इटली की आशा पूरी न होने तथा मित्र राष्ट्रों में उसे उचित सम्मान न मिलने से इटली की जनता तत्कालीन जनतन्त्रीय शासन से असन्तुष्ट हुई और नेतृत्व परिवर्तन की माँग करने लगी। इस समय इटली में मुसोलिनी का राजनीतिक जीवन में पदार्पण हुआ। मुसोलिनी प्रारम्भ में समाजवादी विचारधारा के सम्पर्क में आया तथा उसने फासिस्को डि कोम्बे डाइमेण्टो नामक संस्था की स्थापना की। लेकिन साम्यवाद के भय से उसके विचारों में परिवर्तन हुआ तथा उसने उद्योगपतियों व जमींदारों का पक्ष लेकर खुले रूप से उग्र राष्ट्रवाद व हिंसा का प्रचार शुरू किया। 1922 में वह सत्ता में आया तथा वह संसदात्मक शासन व्यवस्था भंग करके तानाशाह बना। उसने फाँसी दल के अलावा अन्य दलों को अवैध करार दिया। इटली में फाँसी दल की सत्ता 1943 तक रही।
फाँसीवाद दल के प्रमुख सिद्धान्त
हैं फाँसीवाद दल के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. फाँसीवाद एक क्रमबद्ध दर्शन नहीं – फाँसीवाद व्यक्तिवाद, आदर्शवाद तथा साम्यवाद की भाँति एक क्रमबद्ध दर्शन नहीं है। इसके न तो कोई निश्चित सिद्धान्त हैं और न कोई निश्चित कार्यक्रम। इसका आधार तो व्यवहार है। मुसोलिनी के शब्दों में “हमारा कार्यक्रम सरल है— मेरा कार्यक्रम बात नहीं काम है।’ “
2. सर्वाधिकारवादी धारणा- फाँसीवाद एक सर्वाधिकारवादी धारणा है जो व्यक्ति की तुलना में राज्य को महत्त्वपूर्ण मानती हैं यह राज्य को एक सर्वशक्तिमान संस्था के रूप देखना चाहता है। फाँसीवाद की प्रमुख माँग व्यवस्था अनुशासन व सत्ता है। इन तीनों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति की स्वतन्त्रता को राज्य द्वारा समाप्त किया जा सकता है। सर्वाधिकारवादी राज्य की अवधारणा मुसोलिनी के शब्दों में इस प्रकार है ‘सब कुछ राज्य के अन्तर्गत है, राज्य के बाहर कुछ नहीं और राज्य के विरुद्ध कुछ नहीं है।’
3. उग्रराष्ट्रवादी धारणा- फाँसीवाद एक उग्र राष्ट्रीय धारणा है जो अन्तर्राष्ट्रीयता विरोधी है फाँसीवादी अपने राष्ट्र को ही सर्वोपरि मानते हैं। वह राज्य को ही सर्वस्व मानते हैं अन्य को नहीं । मुसोलिनी के शब्दों में ‘राज्य एक आध्यात्मिक व नैतिक संगठन है—ऐसा संगठन जिसका उद्भव और विकास परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। फाँसीवाद उग्र राष्ट्रीयता में विश्वास के कारण ही युद्ध प्रिय है तथा शान्ति विरोधी है।
4. प्रजातन्त्र का विरोध व कुलीनतन्त्र का समर्थन- फाँसीवादी प्रजातन्त्र के विरोधी तथा कुलीनतन्त्र के समर्थक हैं। फाँसीवादी प्रजातन्त्र की तुलना शव से करते हैं तथा संसद की बातें करने की दुकान मानते हैं।
5. समाजवाद विरोधी – फाँसीवाद समाजवाद विरोधी विचारधारा है। उसका विश्वास वर्ग संघर्ष व इतिहास की आर्थिक व्याख्या में नहीं है। उनका विचार है कि धर्म, देशभक्ति, पवित्रता और वीर पूजा मानव जीवन के अधिक महत्त्वपूर्ण आदर्श हैं।
6. साम्राज्यवाद में विश्वास- फाँसीवादी सर्वसत्तावादी विचारधारा है। इस कारण साम्राज्यवादी है। उनके अनुसार साम्राज्यवाद सम्पन्न राष्ट्र का जन्मसिद्ध अधिकार है।
7. फाँसीवादी स्वतन्त्रता को अधिकार न मानकर कर्त्तव्य मानते हैं- फाँसीवादी स्वतन्त्रता को मानव जीवन के लिए स्वाभाविक न मानकर राज्य द्वारा दी गयी रियायत मानता है। उनके अनुसार व्यक्ति की स्वतन्त्रता राज्य की शक्ति पर निर्भर है। राज्य जितना अधिक शक्तिशाली होगा, व्यक्ति उतना अधिक स्वतन्त्र होगा।
8. फाँसीवाद फाँसीदल को राज्य की अन्तः चेतना मानता है- सर्वसत्तावादी होने के कारण फाँसीवादी एक ही दल के आधिपत्य में विश्वास करता है। दल राज्य का मुख्य अंग माना जाता है और दल को ही राज्य की सत्ता पर एकाधिकार प्राप्त होता है। जेन्टाइल के अनुसार ‘दल राज्य की अन्तः चेतना है।’
फाँसीवाद पर आलोचना
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद, यूरोप में इटली, जर्मनी, स्पेन, चेकोस्लोवाकिया, आस्ट्रिया, रूमानिया, पोलैण्ड आदि में फाँसीवादी प्रवृत्ति का विकास हुआ तथा जर्मनी व इटली ने तो नाजीवादी व फाँसीवादी दल के द्वारा अधिक उन्नति की। लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से फाँसीवादी को श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता। इसकी निम्न आलोचना की जाती है।
(1) फाँसीवादी विचारधारा एक निश्चित दर्शन न होकर अस्पष्ट व परस्पर विरोधी विचारों से युक्त है।
(2) राज्य को साध्य मानना त्रुटिपूर्ण है क्योंकि इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्णरूपेण राज्य में विलोप हो जाता है।
(3) फाँसीवादी विचारधारा प्रगतिशील विचारों की विरोधी है। यह प्रजातन्त्र की विरोधी व कुलीन तन्त्र की समर्थक है तथा मानव समानता व समाजवादी दर्शन की विरोधी है।
(4) फाँसीवादी राज्य की शक्ति में विश्वास करते हैं लेकिन शक्ति राज्य का स्थायी आधार नहीं हो सकती।
(5) यह स्वतन्त्रता विरोधी विचारधारा है।
(6) सर्वाधिकारवादी विचारधारा है तथा विकेन्द्रीकरण की विरोधी है।
(7) यह युद्ध व साम्राज्यवाद की समर्थक विचारधारा है जो अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति वह स्वतन्त्रता के लिए घातक है।
(8) यह धर्म और राज्य का मिश्रण चाहती है जो अनुचित है।
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