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नागरिकता का अर्थ एवं परिभाषा
नागरिकता मनुष्य की उस स्थिति का नाम है जिसमें मनुष्यों को नागरिक का स्तर प्राप्त होता है। साधारण बोलचाल के अन्तर्गत एक राज्य में रहने वाले सभी व्यक्तियों को नागरिक कहा जाता है, किन्तु ऐसा कहना उचित नहीं है। एक राज्य में कुछ ऐसे विदेशी लोग भी होते हैं जो व्यापार या भ्रमण, आदि के लिए एक विशेष देश में आये हुए होते हैं, इन विदेशियों को नागरिक नहीं कहा जा सकता है। नागरिक केवल ऐसे ही व्यक्तियों को कहा जा सकता है जिन्हें राज्य की ओर से सभी नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रदान किये गए हों और जो उस राज्य के प्रति विशेष भक्ति रखते हों। नागरिक की कुछ परिभाषाएं निम्न प्रकार से की गयी हैं :
अरस्तू के अनुसार “एक नागरिक वह है जिसे राज्य के शासन में कुछ भाग प्राप्त हो और जो राज्य द्वारा प्रदान किये गए सम्मान का उपभोग करता हो।”
इस प्रकार वटल ने नागरिक की परिभाषा करते हुए लिखा है कि “नागरिक समाज के वे सदस्य होते हैं जो कुछ विशेष कर्तव्यों द्वारा समाज से बंधे हों, जो समाज के नियन्त्रण में रहते हों और जो समाज द्वारा प्रस्तुत सुविधाओं का निरन्तर रूपसे उपभोग करते हों।”
श्री श्रीनिवास शास्त्री द्वारा की गयी नागरिक की परिभाषा भी उल्लेखनीय है, उन्होंने कहा है कि “नागरिक वह व्यक्ति है जो एक राज्य का सदस्य हो और जो समस्त समाज के उच्चतम नैतिक हित की वृद्धि के साधनों को बुद्धिमानी से समझ कर राज्य की सीमा में ही अपने कर्तव्यपालन और अपने उच्चतम विकास के लिए प्रयत्नशील रहे। “उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि नागरिकशास्त्र में नागरिक का तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों से होता है जिन्हें समाज के द्वारा नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रदान किये गए हों, लेकिन सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में अधिकार और कर्तव्य एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं और अधिकारों को कर्तव्य से अलग नहीं किया जा सकता है। अतः कर्तव्य भी नागरिकता की सीमा में आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब राज्य नागरिकों को अधिकार प्रदान करता है, उन्हें व्यक्तित्व के विकास हेतु विविध सुविधाएं प्रदान करता है तो इन सबके बदले में व्यक्ति का भी कर्तव्य हो जाता है कि वह राज्य के प्रति कर्तव्यों का पालन करे और उसके प्रति विशेष भक्ति रखे। इस प्रकार नागरिकता व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों को दृढ़ बनाने वाली उस स्थिति का नाम है, जिसके अन्तर्गत राज्य के द्वारा व्यक्ति को नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं और व्यक्ति राज्य के प्रति विशेष भक्ति रखता है। अतः नागरिक बनने के लिए निम्न तीन शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है :
1. राज्य की सदस्यता – नागरिक बनने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति राज्य का सदस्य हो। राज्य की सदस्यता नागरिकता की प्रथम शर्त है और इसके बिना नागरिकता कोई अर्थ “नहीं रखती।
2. राज्य द्वारा सामाजिक और राजनीतिक अधिकर प्रदान करना – जीवन का अधिकार जैसे कुछ सामान्य अधिकार तो राज्य में निवास करने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार भी होते हैं, जो राज्य के द्वारा केवल अपने नागरिकों को ही प्रदान किये जाते हैं। विचार और भाषण की स्वतन्त्रता, सम्मेलन और संगठन का अधिकार, सम्पत्ति का अधिकार, मताधिकार, आदि इस प्रकार के विशेष अधिकारों के ही उदाहरण हैं।
3. राज्य के प्रति भक्ति- नागरिक के द्वारा राज्य के कानूनों का पालन करने के अतिरिक्त राज्य के प्रति विशेष भक्ति रखी जानी चाहिए। विशेष भक्ति का आशय यही है कि व्यक्ति राज्य के अस्तित्व की रक्षा और उसकी प्रगति के लिए सदैव ही सहर्ष प्रत्येक प्रकार का त्याग करने को तत्पर रहे।
नागरिकता की प्राप्ति
नागरिकता की प्राप्ति – प्रमुख रूप से निम्न आधारों पर एक देश की नागरिकता प्राप्त की जा सकती है :
1. विवाह– यदि किसी देश की स्त्री दूसरे देश के पुरूष से विवाह कर ले, तो स्त्री को अपने पति के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। अधिकांश देशों में तो यही नियम प्रचलित है, किन्तु जापान में ऐसा नियम प्रचलित है कि यदि किसी अन्य देश का पुरूष जापान की नारी से विवाह कर ले, तो पुरुष को भी जापान की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।.
2. निश्चित निवास – सामान्यता सभी देशों में ऐसा नियम है कि राज्य के अन्तर्गत निश्चित अवधि तक निवास करने पर विदेशी अपने पहले देश की नागरिकता छोड़कर वहां की नागरिकता ग्रहण करने के लिए आवेदन-पत्र दे तो उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। यह अवधि विभिन्न देशों में 2 वर्ष से 10 वर्ष तक है। अमरीका, नीदरलैण्ड, जापान और हंगरी में यह अवधि 5 वर्ष मैक्सिको, स्विट्जरलैण्ड और अर्जेण्टाइना में 2 वर्ष और स्वीडन में 3 वर्ष है।
3. सरकारी सेवा – अनेक राज्यों में एक निश्चित अवधि तक राज्य की सेवा में रहने की दशा में व्यक्ति को उस देश की नागरिकता प्रदान कर दी जाती है।
4. सम्पत्ति खरीदना – दक्षिणी अमरीका के कुछ देशों, जैसे पेरू और मैक्सिको में, यह कानून है कि यदि कोई व्यक्ति वहां कुछ सम्पत्ति खरीद ले, तो उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
5. विजय – यदि किसी राज्य का कोई भाग किसी अन्य राज्य के द्वारा जीत लिया जाए अथवा एक राज्य अपनी इच्छा से अपना कुछ भाग अन्य किसी राज्य को दे दे, तो दोनों ही स्थितियों में उस भाग के नागरिकों को उस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है जिसमें वह भाग मिलाया गया है।
6. दुबारा नागरिकता की प्राप्ति- यदि किसी देश का कोई नागरिक अपनी नागरिकता छोड़कर किसी दूसरे देश की नागरिकता अपना लेता है, तो उसे दूसरे देश का नागरिक समझा जायेगा, परन्तु यदि वह अपने पहले देश की नागरिकता फिर से प्राप्त करना चाहे तो कुछ शर्तें पूरी करने पर उसे नागरिकता प्राप्त हो सकती है।
7. गोद लेने से- यदि कोई व्यक्ति किसी विदेशी बच्चे को गोद ले ले, तो उस विदेशी बच्चे को अपने धर्म-पिता या धर्म-माता के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। ऐसी प्रथा प्रायः सभी देशों में है।
8. विद्वानों को – कुछ देशों में विदेशी विद्वानों को नागरिकता प्राप्ति के लिए कुछ विशेष सुविधाएं दी जाती है, फ्रांस में ऐसी ही व्यवस्था है।
नागरिकता का अपहरण या समाप्ति
नागरिकता की प्राप्ति के समान ही उसका अपहरण भी सम्भव है। नागरिकता के अपहरण के सम्बन्ध में सामान्यतया विभिन्न देशों में निम्नलिखित विधियां प्रचलित हैं :
1. नागरिकता का त्याग— अनेक राज्य अपने नागरिकों को अधिकार देते हैं कि यदि वे स्वेच्छा से वहां की नागरिकता छोड़ना और दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करना चाहे तो वे सरकार की आज्ञा से ऐसा कर सकते इसके लिए नागरिक को सरकार के पास प्रार्थना-पत्र देना होता है। जर्मनी में ऐसा ही नियम है।
2. विवाह – विवाह भी नागरिकता अपहरण का एक साधन है। जब एक देश की स्त्री किसी दूसरे देश के पुरुष से विवाह कर लेती है तो वह स्त्री अपने पहले वाले देश की नागरिकता खो देती है।
3. विदेशों से सम्मान प्राप्ति- अनेक राज्यों में ऐसा नियम प्रचलित है कि वहां का नागरिक अनुमति प्राप्त किये बिना किसी अन्य देश में सरकारी नौकरी नहीं कर सकता और न ही कोई उपाधि या सम्मान प्राप्त कर सकता है। जब नागरिक अन्य देश में शासकीय सेवा या सम्मान प्राप्त कर लेता है तो यह बात उसकी नागरिकता के अन्त का कारण बन जाती है।
4. लम्बे समय तक अनुपस्थिति — अपने देश की सरकार की अनुमति बिना लम्बे समय तक देश से अनुपस्थिति रहने पर भी नागरिकता का अन्त हो जाता है।
5. देशद्रोह या सेना से भागना- यदि किसी व्यक्ति द्वारा देशद्रोह, सेना से भागना या अन्य कोई गम्भीर अपराध किया जाए, तो यह अपराध भी नागरिकता के अपहरण का कारण बन जाता है।
इन सबके अतिरिक्त जब एक व्यक्ति दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, तो पहले राज्य की नागरिकता का स्वतः ही अन्त हो जाता है।
- नागरिकता के प्रकार एवं नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ
- आदर्श नागरिकता | आदर्श नागरिकता के तत्व | आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधाएं
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