अनुक्रम (Contents)
नागरिकता के प्रकार एवं नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ
नागरिकों के प्रकार
मोटे तौर पर राज्य के सभी नागरिकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :
1. जन्मजात नागरिक
2. देशीयकरण से नागरिकता प्राप्त नागरिक
जन्मजात नागरिक- जन्म के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से निम्नलिखित दो नियम हैं :
(1) रक्त अथवा वंश का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अन्तर्गत नागरिकता रक्त अथवा वंश के आधार पर निर्धारित होती है और बच्चे का जन्म चाहे किसी स्थान पर हो, बच्चे को उस राज्य की नागरिकता प्राप्त हो जाती है, जिस राज्य के नागरिक उसके माता-पिता हैं। उदाहरणार्थ, अमरीकन नागरिक का पुत्र अमरीका का नागरिक होगा, चाहे उसका जन्म भारत या अन्य किसी राज्य में क्यों न हो। प्राचीन काल में यूनान, रोम और एशियाई देशों में नागरिकता का निर्धारण इस सिद्धान्त के आधार पर होता था और आज भी विश्व के अधिकांश देशों में यही सिद्धान्त प्रचलित है।
(2) जन्म-स्थान का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अन्तर्गत नागरिकता जन्म-स्थान के आधार पर निर्धारित होती है और एक बालक जिस देश की भूमि पर पैदा हो वह उसी देश का नागरिक समझा जाता है, चाहे उसके माता-पिता किसी भी देश के नागरिक हों। वर्तमान समय में अर्जेण्टाइना में यही सिद्धान्त प्रचलित है।
इंग्लैण्ड, अमरीका, आदि राज्यों में नागरिकता प्रदान करने के सम्बन्ध में इन दोनों सिद्धान्तों को मान्यता प्राप्त है। इन देशों के कानूनों के अनुसार उनकी भूमि पर जो बच्चा जन्म ले, वह उस देश का नागरिक होगा। इसके अतिरिक्त इन देशों के नागरिकों की सन्तान, चाहे वह कहीं भी पैदा हो, उसे उसके माता-पिता के देश की नागरिकता प्राप्त होगी।
जन्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करने के सम्बन्ध में एकरूपता न होने के कारण व्यवहार में अनेक कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं। कभी-कभी तो एक ही बालक दो देशों की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, जैसे अमरीका के माता-पिता की सन्तान अर्जेण्टाइना में जन्म ले और कभी-कभी एक बालक को किसी भी देश की नागरिकता प्राप्त नहीं हो पाती, जैसे यदि अर्जेण्टाइना के नागरिकों की सन्तान स्वीडन में जन्म लें। इसी प्रकार की परिस्थितियों में वयस्क हो जाने पर व्यक्ति स्वयं अपनी नागरिकता का निर्णय कर लेता है।
वास्तव में, जन्मजात नागरिकता के इन दोनों सिद्धान्तों में रक्त या वंश का सिद्धान्त ही अधिक विवेकपूर्ण है। एक विशेष भूमि पर जन्म केवल संयोग का ही परिणाम होता है और इसे नागरिकता का आधार नहीं बनाया जा सकता है। एक विशेष भूमि पर जन्म लेने से ही बालक के मन में उस भूमि के प्रति किसी प्रकार की भक्ति उत्पन्न नहीं हो जाती है।
देशीयकरण- देशीयकरण एक वैधानिक प्रक्रिया होती है जिसके अन्तर्गत कुछ निश्चित शर्तें पूरी कर लेने पर व्यक्ति को उस देश विशेष की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। गार्नर के शब्दों में, “देशीयकरण का तात्पर्य विदेशी को नागरिकता प्रदान करने की किसी भी पद्धति से है।” साधारणतया तो एक राज्य में दोनों ही प्रकार के नागरिकों को समान स्थिति प्राप्त होती है, लेकिन कुछ देशों में जन्मजात नागरिकों को देशीयकरण से हुए नागरिकों की अपेक्षा विशेष स्थिति प्राप्त होती है। भारत में दोनों प्रकार के नागरिकों में कोई भेद नहीं है, लेकिन अमरीका में केवल जन्मजात नागरिक ही राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने की योग्यता रखते हैं।
देशीयकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया
देशीयकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया और शर्तें सम्बन्धित देश के विधान और कानून पर निर्भर करती है, लेकिन इस प्रक्रिया की कुछ सामान्य बातें है। सभी देशों में देशीयकरण की प्रक्रिया का प्रारंभ सम्बन्धित व्यक्ति के उस आवेदन-पत्र से होता है, जिसमें उसके द्वारा उस देश की नागरिकता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की जाती है। नागरिकता प्राप्त करने के लिए समान्यतया उसे निम्न शर्तें पूरी करनी होती है :
(i) अपनी पहले की नागरिकता का परित्याग करना।
(ii) नये राज्य में सम्बन्धित राज्य के संविधान या कानून द्वारा निर्धारित अवधि तक निवास करना।
(iii) नये राज्य के प्रति राजभक्ति और निष्ठा की शपथ लेना।
(iv) संविधान के प्रति विश्वास और निष्ठा व्यक्त करना।
(v) उस देश की राष्ट्रभाषा का ज्ञान प्राप्त करना।
(vi) व्यक्ति के पास भरण पोषण के साधनों का होना।
नागरिकता प्राप्त करने के लिए इनमें से प्रथम चार शर्तें पूरी करना सभी देशों में आवश्यक है। अन्य शर्तों के प्रसंग में विभिन्न देशों में अलग-अलग व्यवस्था है।
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