गृहविज्ञान

साक्षात्कार किसे कहते हैं? परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ, उद्देश्य, गुण, दोष / सीमाएँ

साक्षात्कार किसे कहते हैं
साक्षात्कार किसे कहते हैं

साक्षात्कार किसे कहते हैं?

साक्षात्कार किसे कहते हैं?- साक्षात्कार अंग्रेजी शब्द ‘Interview’ का हिन्दी रूपान्तर है। ‘Interview दो शब्दों Inter + View के योग से बना है। ‘Inter’ का अर्थ है ‘आन्तरिक’ तथा ‘View’ का अर्थ है ‘अवलोकन करना’। इस प्रकार साक्षात्कार अथवा ‘Interview’ का सम्मिलित शाब्दिक अर्थ हुआ ‘आन्तरिक अवलोकन करना’। साक्षात्कार की अनेक प्रकार से परिभाषाएँ की गई हैं।

साक्षात्कार की मुख्य परिभाषाएँ

कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

1. जॉन डब्ल्यू. बेस्ट के अनुसार, “साक्षात्कार एक प्रकार से मौखिक प्रकार की प्रश्नावली है। इसके अन्तर्गत उत्तर लिखने के बजाय आमने-सामने की स्थिति में विषयी या साक्षात्कारदाता मौखिक उत्तर देता है।”

2. पी. वी. यंग के अनुसार, “साक्षात्कार को एक ऐसी व्यवस्थित पद्धति के रूप में माना जा सकता है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के आन्तरिक जीवन में थोड़ा बहुत कल्पनात्मक रूप में प्रवेश करता है। “

3. वी. एम. पामर के अनुसार, “साक्षात्कार दो व्यक्तियों के मध्य एक सामाजिक स्थिति की रचना करता है, इसमें प्रयुक्त मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत दोनों व्यक्तियों को परस्पर प्रति उत्तर देने पड़ते हैं।”

साक्षात्कार के प्रमुख प्रकार

साक्षात्कार के मुख्यतः चार प्रकार या वर्गीकरण हैं-

a. कार्यों पर आधारित वर्गीकरण

1. विश्लेषण साक्षात्कार 2. उपचारात्मक साक्षात्कार 3. अनुसंधान सम्बन्धी साक्षात्कार

b. औपचारिकता पर आधारित वर्गीकरण

1. औपचारिक/नियंत्रित साक्षात्कार 2. अनौपचारिक / अनियंत्रित साक्षात्कार

औपचारिक साक्षात्कार

इस प्रकार के साक्षात्कार में अनेक औपचारिकताओं यथा साक्षात्कार गाइड, साक्षात्कारकर्ता पर नियन्त्रण, अन्य पूर्ण नियोजनायें का पालन करना पड़ता हैं। इसे संरचित साक्षात्कार भी कहा जा सकता है। प्रश्न तथा प्रश्नों की संख्या पूर्वनिर्धारित होते हैं। इसे नियोजित साक्षात्कार की संज्ञा दी जा सकती हैं।

अनौपचारिक साक्षात्कार

इस प्रकार की साक्षात्कार प्रविधि को अनियन्त्रित या  स्वतन्त्र साक्षात्कार प्रविधि भी कहा जा सकता है। इसमें प्रश्नों की प्रकृति व संख्या के सम्बन्ध में साक्षात्कार पर कोई विशेष नियन्त्रण नहीं होता है। प्रश्नों के पूछने के बारे में साक्षात्कारकर्ता पूर्णरूपेण स्वतन्त्र होता हैं। इसमें किसी अनुसूची की मदद नहीं की जाती है। साक्षात्कारदाता अपने विचारों को स्वतन्त्र रूप से कहानी या दर्शन के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करता है। इसी वर्णन या विवेचन के आधार पर निष्कर्ष निकालता हैं। इस प्रकार के साक्षात्कार का प्रयोग मनोवैज्ञानिक अध्ययन के लिए विशेष उपयुक्त होता हैं।

c. सूचनादाताओं की संख्या पर आधारित वर्गीकरण

1. व्यक्तिगत साक्षात्कार 2. सामूहिक साक्षात्कार

व्यक्तिगत साक्षात्कार

इसके अन्तर्गत साक्षात्कार के समय साक्षात्कारदाता अकेला – होता हैं। अन्य शब्दों में साक्षात्कारकर्ता समय विशेष पर केवल एक ही साक्षात्कारदाता से प्रश्नोत्तर करता है। सिन पाओ यांग के अनुसार, “व्यक्तिगत साक्षात्कार एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्तित के साथ मिलाता हैं।” इस प्रविधि द्वारा सत्य, सूक्ष्म तथा पूर्ण जानकारी प्राप्त होती हैं। व्यक्तिगत पक्षपात, धन के खर्च के सिवाय यह उत्तम कोटि की प्रविधि हैं।

सामूहिक साक्षात्कार

इस प्रकार के साक्षात्कार में एक ही समय अनेक साक्षात्कारदाताओं का साक्षात्कार लिया जाता है। समूहवाद विवाद इसी का एक विशिष्ट स्वरूप है। इस प्रविधि में एक ही समय में, कम खर्च में अधिक संख्या में व्यक्तियों का साक्षात्कार संभव हो जाता हैं। व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना कम हो जाती हैं।

d. अध्ययन पद्धति पर आधारित वर्गीकरण

1. गैर-निर्देशित साक्षात्कार 2. केन्द्रित साक्षात्कार 3. पुनरावृत्ति साक्षात्कार

केन्द्रित साक्षात्कार

इस प्रकार के साक्षात्कार के सम्बन्ध में प्रसिद्ध अमेरिकन समाजशास्त्री राबर्ट के० मर्टन का नाम विशेष रूप से लिया जाता हैं। इस प्रकार के साक्षात्कार मैं यह आवश्यक है कि साक्षात्कारदाता किसी निश्चित व परिस्थिति विशेष में रह चुका हो। साक्षात्कारकर्ता अपना ध्यान इस बात पर केन्द्रित करता है कि उस (बीती हुई) घटना या परिस्थिति का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ा? यह बहुत कुछ स्वतन्त्र साक्षात्कार के समान होता हैं।

केन्द्रित साक्षात्कार के प्रमुख लक्षण

केन्द्रित साक्षात्कार के निम्नलिखित चार लक्षण हैं-

1. निर्देशन का अभाव- इस प्रकार के साक्षात्कार में अनुसंधानकर्ता सूचनादाता को किसी प्रकार का निर्देशन नहीं दे सकता है, क्योंकि उससे पक्षपात की भावना सूचनादाता को किसी प्रकार का निर्देशन नहीं दे सकता है, क्योंकि उससे पक्षपात की भावना सूचनादाता में उत्पन्न हो सकती है। वह केवल विषय का संकेत ही कर सकता है, जैसे- आपने टी0वी0 पर अमुक प्रोग्राम देखा है? उसकी आप पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

2. विशिष्टता- इस प्रकार के साक्षात्कार में अनुसंधानकर्ता का ध्यान केवल अपने विषय सम्बन्धी ज्ञान को जानना ही होता है।

3. सीमा- इस प्रकार के साक्षात्कर में अनुसंधानकर्ता विषय सम्बन्धी कुछ आँकड़े पहले ही एकत्रित करके उनसे आधार पर उपकल्पना का निर्माण करता है। साक्षात्कार के समय इस उपकल्पना का अनुसंधानकर्ता सूचनादाताओं से खण्डन अथवा समर्थन सम्बन्धी बातों को जानना चाहता है। इस तरह यह एक सीमा को निर्धारित कर देती है।

4. वैयक्तिक सम्पर्क- इस साक्षात्कार में अनुसंधानकर्ता सूचनादाताओं से वैयक्तिक सम्पर्क स्थापित करके उनकी भावनाओं को जानने की चेष्टा करता है।

पुनरावृत्ति साक्षात्कार

कुछ सामाजिक घटनाओं या तथ्यों के घटित होने में पुनरावृत्ति पायी जाती हैं। सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी घटनाओं में यह विशेष बात हैं। इस प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करने के लिए पुनरावृत्ति साक्षात्कार का प्रयोग किया जाता हैं।

साक्षात्कार के प्रमुख उद्देश्य

साक्षात्कार के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा सूचनाएँ- साक्षात्कार में दो पक्ष होते है, सूचनादाता और सूचना लेने वाला या अनुसन्धानकर्ता। जब वे आमने-सामने होते हैं तब उनमें प्राथमिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं, और इस स्थिति में अनुसन्धानकर्ता, सूचनादाता से विषय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचनाओं का संकलन करता हैं। अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता को सूचनाएँ देने के लिए प्रेरित करता हैं और सूचनादाता उसे अपनी आन्तरिक सूचनाएँ प्रदान करता है। इस प्रकार दोनों के मध्य प्रत्यक्ष सम्पर्क विद्यमान होता हैं और उसके माध्यम से अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता की आन्तरिक भावनाओं, मनोवृत्तियों, संवेगों, इच्छाओं एवं धारणाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करता हैं। ये सभी साक्षात्कार द्वारा ही सम्भव होते हैं।

2. गुणात्मक तथ्यों के लिए मानव-जीवन से सम्बन्धित कुछ ऐसे गुणात्मक तथ्य होते हैं, जिन्हें हम संख्या में नहीं प्रकट कर सकते हैं, इनका अध्ययन केवल साक्षात्कार द्वारा ही किया जा सकता हैं। ये निम्नलिखित है, विचार, भावनाएँ, इच्छाएँ, आदर्श, उद्देश्य, मूल्य, रुचियाँ, एवं लोक विश्वास आदि।

3. उपकल्पनाओं का स्रोत- साक्षात्कार का एक प्रमुख उद्देश्य उपकल्पनाओं के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री प्राप्त करना होता हैं।

4. अवलोकन का अवसर- साक्षात्कार द्वारा व्यवहार और जीवन की अधिकांश बातों का अवलोकन करने का अवसर भी प्राप्त होता हैं।

5. व्यक्तिगत तथ्यों की प्राप्ति- मानव-जीवन से सम्बन्धित व्यक्तिगत एवं आन्तरिक सूचनाएँ प्राप्त करना भी साक्षात्कार का उद्देश्य हैं।

साक्षात्कार की विशेषता

(1) एक प्रविधि- साक्षात्कार की कोई पद्धति नहीं हैं बल्कि यह तथ्यों को संकलन करने की एक प्रविधि मात्र हैं, जो उद्देश्य व परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित हो सकती हैं।

(2) अन्तः क्रिया- साक्षात्कार मौलिक रूप से अन्तःक्रियात्मक प्रक्रिया हैं जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति भाग लेते हैं।

(3) आमने-सामने का सम्बन्ध- साक्षात्कार प्रविधि में साक्षात्कर्ता तथा साक्षात्कार किये जाने वाले का आमने-सामने का सम्बन्ध होता हैं।

(4) विशिष्ट उद्देश्य एवं सामग्री संकलन- साक्षात्कार प्रविधि निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनुप्रयोग में लायी जाती हैं, मौलिक रूप से यह सामग्री संकलन की प्रविधि के रूप मैं प्रयोग की जाती हैं। आजकल इसका प्रयोग नौकरी, परीक्षा आदि में भी किया जाने लगा हैं।

साक्षात्कार विधि के गुण

साक्षात्कार विधि के गुण निम्नलिखित है-

1. भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन- भूतकालीन घटनाओं जिनकी पुनरावृत्ति न हो सकती हो, का अध्ययन साक्षात्कार विधि द्वारा किया जाता है। इसके लिए उन लोगों का साक्षात्कार लिया जाता हैं, जिन्होंने उस घटना को देखा है, उससे सम्बन्धित रहे हैं या फिर उससे प्रभावित हुए हैं।

2. अमूर्त घटनाओं का अध्ययन- साक्षात्कार के द्वार अमूर्त और अदृश्य घटनाओं का अध्ययन आसानी से किया जा सकता हैं, जैसे- व्यक्ति के विचार, मानसिक स्थिति, संवेग, धारणाएँ एवं भावनाएँ आदि।

3. लचीली पद्धति- साक्षात्कार विधि एक लचीली विधि हैं। इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के तथ्यों के संकलन के लिए किया जाता है।

4. मर्मभेदी पद्धति- इस पद्धति के द्वारा व्यक्तियों की आन्तरिक एवं गोपनीय बातों का पता लगाया जा सकता हैं।

5. मनोवैज्ञानिक महत्व- साक्षात्कार विधि द्वारा व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जा सकता हैं। इसमें व्यक्ति की इच्छाओं, भावनाओं, विचारों, उद्वेगों, धारणाओं, आकांक्षाओं एवं भावों का अध्ययन किया जा सकता है। साक्षात्कार के समय सूचनादाता पर उसके मनोवैज्ञानिक विचार एवं मानसिक स्थिति का अध्ययन किया जा सकता हैं।

एक अच्छे साक्षात्कार के गुण क्या हैं?

एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता में निम्नलिखित गुण होने चाहिये-

1. शीघ्र निर्णय लेने की योग्यता- साक्षात्कारकर्ता में विषम परिस्थितियों में शीघ्र निर्णय लेने की योग्यता भी होनी चाहिये, ताकि बिना किसी बाधा के साक्षात्कार के कार्य का सफलतापूर्वक संचालन किया जा सके।

12. बौद्धिक ईमानदारी- साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार के दौरान पूर्ण बौद्धिक ईमानदारी का परिचय देना चाहिये। इसका अभिप्राय यही है कि साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार के दौरान अपनी बुद्धि का पूरा-पूरा सत्य निष्ठा के साथ उपयोग करे। बौद्धिक ईमानदारी से ही साक्षात्कारकर्ता विभिन्न प्रकार के पक्षपातों से बचकर साक्षात्कार को अधिक सफल बना सकेगा।

3. तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का ज्ञान- एक उत्तम साक्षात्कारकर्ता के लिए यह भी आवश्यक है कि उसे संकलित किए जाने वाले तथ्यों के सम्बन्धों का पारस्परिक ज्ञान हो। ऐसा होने पर साक्षात्कार के दौरान किसी भी महत्वपूर्ण पहलू पर सूचना अपूर्ण नहीं रह सकती।

साक्षात्कार की सीमाएँ (दोष)

1. इस विधि से अध्ययन करने में समय, श्रम एवं धन अधिक लगता है।

2. इस विधि से किया गया अध्ययन सूचनादाताओं द्वारा प्रदत्त सूचनाओं पर आधारित होता है। गलत सूचनाएँ प्राप्त होने पर अध्ययन के निष्कर्ष भी गलत हो सकते हैं।

3. इसमें सूचनादाता की पक्षपातपूर्ण अभिव्यक्ति के समावेश की सम्भावना रहती है। इस प्रकार साक्षात्कार से प्राप्त तथ्यों की वैधता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।

4. साक्षात्कारकर्ता की दोषपूर्ण स्मृति के कारण कभी-कभी सभी तथ्यों का अंकन नहीं हो पाता व महत्वपूर्ण तथ्यों के छूटने की संभावना रहती है।

5. इसके अतिरिक्त साक्षात्कारकर्ता व साक्षात्कारदाता में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होने पर साक्षात्कारकर्ता के मन में साक्षात्कारदाता के प्रति उपजी सहानुभूति के कारण वह कई ऐसी घटनाओं को अंकित करना छोड़ देता है जो कष्टपूर्ण हो या साक्षात्कारदाता के लिए अप्रकटनीय हो।

6. वर्तमान युग में सभी व्यक्तियों के जीवन की गतिविधियाँ इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि सभी के पास समय की कमी रहती है। ऐसे में आधी-अधूरी सूचना देकर सूचनादाता साक्षात्कारकर्ता से शीघ्र मुक्त होना चाहता है। साक्षात्कारकर्ता भी कभी-कभी शीघ्र कार्य पूर्ण करने की दृष्टि से इन आधी-अधूरी सूचनाओं को आधार बनाकर अध्ययन कार्य करता है। इस प्रकार सही परिणाम नहीं आ पाते व विषय के सम्बन्ध में भ्रांत निष्कर्ष निकलने की संभावना रहती है।

इस प्रकार साक्षात्कार अनुसंधान की एक उपयोगी विधि तो है परंतु उसकी सीमाएँ भी हैं। इन सीमाओं का परिहार करके अनुसंधान की वैषयिकता प्राप्त की जा सकती है तथा सही एवं यथार्थ सामग्री को ग्रहण किया जा सकता है।

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment