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शिक्षा के प्रकार | Forms of Education in Hindi

शिक्षा के प्रकार
शिक्षा के प्रकार

शिक्षा के प्रकार (Forms of Education)

शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह औपचारिक, अनौपचारिक तथा निरौपचारिक के रूप में जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। यह एक व्यापक संप्रत्यय है जिसमें विभिन्न खातों जैसे रेडियो, समाचार-पत्र, टेलीविजन, शिक्षा संस्थाओं आदि से प्राप्त ज्ञान को सम्मिलित किया जाता है। एक सामान्य व्यक्ति इसे शिक्षा संस्थाओं से प्राप्त शिक्षा के रूप में ही समझता है जो निश्चित रूप से अन्य स्रोतों से प्राप्त शिक्षा से सर्वथा भिन्न है। शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षा के निम्नलिखित प्रकारों का वर्णन किया है-

1. सामान्य शिक्षा (General Education)- शिक्षा के प्रमुख कार्य माध्यमिक स्तर तक बालक को सामान्य शिक्षा प्रदान करना है और यही हम शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य भी मानते हैं। यह शिक्षा का निम्नतम स्तर है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आवश्यक होता है। यह बालक को उचित व्यवहार करने के योग्य बनाती है। इसका उद्देश्य बालक की सामान्य योग्यताओं का विकास करना है ताकि उसके व्यक्तित्व का विकास हो सके तथा वह वातावरण में समायोजन के योग्य बन सके। भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् सर्व शिक्षा को मुक्त तथा आवश्यक बना दिया गया है।

2. विशिष्ट शिक्षा (Specific Education)- वर्तमान युग विशिष्टीकरण का युग है एक व्यक्ति सभी क्षेत्रों में विशिष्ट नहीं हो सकता। यदि बालक को उसके जन्मजात गुणों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुरूप विशिष्ट शिक्षा प्रदान की जाए तो उसे अपनी योग्यताओं के विकास के लिए उत्तम अवसर प्राप्त होंगे। इसका उद्देश्य एक व्यक्ति को किसी एक विशेष कौशल में कुशल बनाना है। यह समाज के प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्ट प्रशिक्षित व्यक्ति प्रदान करती है। इस प्रकार यह राष्ट्र के विकास के साथ-साथ उसके कल्याण में भी सहायक होती है। यह विशिष्ट संस्थाओं में जैसे मेडिकल महाविद्यालयों, इंजीनियरिंग महाविद्यालयों, तकनीकी संस्थाओं, प्रबन्धन संस्थाओं, कम्प्यूटर केन्द्रों आदि में प्रदान की जाती है।

3. प्रत्यक्ष शिक्षा (Direct Education)— इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षक तथा शिक्षार्थी में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष प्रभाव विद्यार्थी पर पड़ता है। जहाँ विद्यार्थियों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है वहाँ यह शिक्षा सम्भव नहीं होती क्योंकि ऐसी कक्षा में अध्यापक के लिए प्रत्येक विद्यार्थी के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए रखना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि आज के समय में कक्षा के आकार को छोटा रखने पर बल दिया जाता है।

4. अप्रत्यक्ष शिक्षा (Indirect Education)- वर्तमान युग में अप्रत्यक्ष शिक्षा अस्तित्व में आई क्योंकि जन संचार के विकास के कारण महान शिक्षा शास्त्रियों के विचारों को उन लोगों तक पहुँचाना सम्भव हो गया है जो इन लोगों के प्रत्यक्ष सम्बन्ध में कभी नहीं आए । इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय पूरे विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष शिक्षा प्रदान कर रहा है। बहुत से अन्य विश्वविद्यालय भी दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम चला रहे हैं। उच्च स्तर पर रेडियो, टेलीविजन आदि शिक्षण के लिए अधिक प्रसिद्ध हो रहे हैं। आज के समय में कोई भी व्यक्ति यदि इंटरनेट की सहायता से सूचना प्राप्त करना चाहता है, कर सकता है। इस प्रकार की शिक्षा पश्चिम में अधिक प्रसिद्ध होती जा रही है।

5. व्यक्तिगत शिक्षा (Individual Education)— मनोवैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते हैं, इसलिए इस बात पर बल दिया जा रहा है कि शिक्षक को व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक बालक का ध्यान रखना चाहिए। रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा शान्ति निकेतन में किया गया प्रयोग सफल सिद्ध हुआ है, परन्तु यदि इसे बड़े पैमाने पर शिक्षा विधि के रूम में अपनाया जाए तो यह पूर्ण रूप से अव्यावहारिक होगी। प्राथमिक स्तर पर किन्डरगार्डन पद्धति, मॉन्टेसरी पद्धति बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने की उच्च पद्धतियाँ है

6. सामूहिक शिक्षा (Collective Education)- यह शिक्षा एक स्थान पर सामूहिक रूप से इकट्ठे हुए व्यक्तियों को दी जाने वाली शिक्षा है। एक अध्यापक जब एक ही समय पर एक बहुत बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को शिक्षा देता है तो ऐसी शिक्षा समय तथा धन के क्षेत्र में मितव्ययी बन जाती है। भारत की जनसंख्या जिस गति से बढ़ती जा रही है ऐसी परिस्थितियों में यही शिक्षा उपयुक्त मानी जाती है।

7. संकुचित शिक्षा (Narrow Education)— यह विद्यालय तथा विश्वविद्यालय शिक्षा तक सीमित है। जब बालक शिक्षा संस्था में प्रवेश लेता है, तब से यह आरम्भ होती। है तथा शिक्षा संस्था छोड़ने पर समाप्त हो जाती है। यह आकस्मिक न होकर नियोजित होती। है । इसमें अध्यापक तथा विद्यार्थी में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। इस प्रकार की शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त संकुचित होता है ।

8. व्यापक शिक्षा (Wider Education) – यह एक जीवन पर्यन्त चलने वाली शिक्षा है। यह जन्म से प्रारम्भ होकर जीवन भर चलती रहती है। इसमें शिक्षा के सभी अभिकरणों-औपचारिक, अनौपचारिक तथा निरौपचारिक से प्राप्त अनुभव सम्मिलित होते हैं। समाज का प्रत्येक सदस्य एक समय में अध्यापक के रूप में तथा दूसरे समय में विद्यार्थी के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार की शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है।

9. औपचारिक शिक्षा (Formal Education)- औपचारिक शिक्षा वह शिक्षा है जो कुछ निश्चित उद्देश्यों तथा आदर्शों के अनुरूप संगठित होती है। यह एक विशेष समय अवधि के लिए विशेष समय पर, निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार बालक को औपचारिक ढंग से प्रदान . की जाती है। शिक्षा देने का कार्य विशेष क्षेत्र में विशिष्ट व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। इस क्षेत्र में बालक को सामान्य, विशिष्ट तथा प्रत्यक्ष शिक्षा प्रदान की जाती है । इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थी औपचारिक संस्थाओं में प्राप्त करता है। शिक्षा क्रमबद्ध रूप से प्रदान की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा एक ही समय में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को वैज्ञानिक ढंग से तथा सतत् प्रदान की जा सकती है ।

10. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) – यह औपचारिक शिक्षा की पूरक है। जिसके बिना औपचारिक शिक्षा अपूर्ण है। यह प्राकृतिक तथा आकस्मिक होती है । इसके परिणामस्वरूप बिना किसी सोचे-समझे प्रयास के व्यवहार में अचानक तथा आवश्यक रूप से परिवर्तन आता है। यह एक जीवन पर्यन्त प्रक्रिया है जिसमें सभी अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हैं। इसके लिए कोई आयु निश्चित नहीं होती । इसमें स्थान तथा समय निश्चित नहीं होता। इस प्रकार की शिक्षा में कोई पूर्व निश्चित पाठ्यक्रम तथा उद्देश्य नहीं होते। बालक अनुभवों से सीखता है तथा इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा अधिक स्थायी रहता है। ऐसी शिक्षा किसी संगठित अभिकरण के द्वारा प्रदान नहीं की जाती। इसको चलाने के लिए वित्तीय साधनों की आवश्यकता नहीं होती ।

11. निरौपचारिक शिक्षा (Non-formal Education)- औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षाओं की अपनी सीमाएँ हैं । एक तरफ औपचारिक शिक्षा कठोर है, दूसरी तरफ अनौपचारिक शिक्षा लचीली तथा असंगठित है । आज के समय में यह महसूस किया जा रहा है कि जो कमियाँ औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा में पाई जाती है उन्हें निरौपचारिक या सतत् शिक्षा के द्वारा दूर किया जाना चाहिए। यह शिक्षा न तो औपचारिक शिक्षा की तरह स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय तक ही सीमित है और न ही अनौपचारिक शिक्षा की भाँति आकस्मिक तथा प्राकृतिक है। यह औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के बीच की कड़ी है। इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु विद्यालय से बाहर की दुनिया है तथा इसके कार्यों में जन शिक्षा, कौशलों, तकनीकों तथा जीवन शैली में सुधार के लिए शिक्षा सम्मिलित की जाती है।

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shubham yadav

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