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श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण। Shringar ras in hindi

Shringar ras in hindi
Shringar ras in hindi

श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण। Shringar ras in hindi

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शृंगार अलंकार किसे कहते हैं| Shringar ras in hindi

शृंगार रस के दो भेद होते हैं-संयोग शृंगार और वियोग शृंगार। रति नामक स्थायीभाव ही शृंगार रस में परिणत हो जाता है। नायक-नायिका के मिलने के प्रसंग में संयोग शृंगार तथा उनके विरह में वियोग शृंगार होता है।

इसके अवयव निम्नवत् हैं-

आश्रय-नायक। आलम्बन-नायिका। उद्दीपन-नायिका की चेष्टाएँ- हाव-भाव, तिरछी चितवन, मुस्कान। अनुभाव-कटाक्ष, आलिंगन, चुम्बन आदि। संचारी भाव-लज्जा, हर्ष, चपलता।

श्रृंगार रस के उदाहरण

रे मन आज परीक्षा तेरी !
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी !

– मैथिलीशरण गुप्त

स्पष्टीकरण–इसमें स्थायी भाव ‘रति’ है। ‘यशोधरा’ आलम्बन है। उद्धारक गौतम के प्रति यह भाव कि वे चाहें तो आवे’ उद्दीपन विभाव है। ‘मन को समझाना और उद्बोधन’ अनुभाव है, ‘यशोधरा का प्रणय’ मान है तथा मति, वितर्क और अमर्ष संचारी भाव हैं; अतः इस छन्द में विप्रलम्भ श्रृंगार है। ‘

” पिय सौं कहेहु संदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग

सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुंआ हम लाग। “

प्रस्तुत पंक्ति मलिक मोहम्मद जायसी , बारहमासा से ली गई है। जिसमें नायिका अपने प्रिय के विरह में कौवे को अपना संदेशा प्रियतम को सुनाने के लिए कह रही है। उसे कह रही है , वह अग्नि में इस प्रकार जल रही है तथा जल चुकी है कि उस आग से उठने वाले धुएं के कारण ही मेरा रंग काला हो गया है।

” यह तन जारों छार कै कहों कि पवन उड़ाउ

मकु तेहि मारग होइ परों कंत धरै वहं पाउ। “

विरहाग्नि  में जलती हुई नायिका कहती है , या तो मेरे प्राण निकल जाए , यह हवा का झोंका मुझे अपने स्वामी के राह में ले जाए। जहां मेरे पिया का मिलन हो सके , मेरे प्रियतम मुझे मिल जाए। मैं उसी राह पर राख बनकर भी रहना चाहती हूं , इसी के कारण शायद मेरे प्रेमी से मिलन हो सके।

” के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास। 

हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास। ।”

प्रस्तुत पंक्ति विद्यापति की है इसमें राधा अपने प्रियतम कृष्ण के पास संदेशा भेजना चाह रही है। वह अपने सखी से कह रही है , हे सखी मेरा पत्र मेरे प्रियतम के पास कौन लेकर जाएगा और यह बताएगा।  अब मुझसे बिरहा नहीं सहा जा रहा है , सावन का मास भी आकर निकल जाता है किंतु यह मास भी प्रियतम के बिना मुझे नहीं सुहाता।

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाया।
सौंह करै भौंहनु हंसे देन कै नटि जाय॥
• तरनि-तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये॥

श्रृंगार रस कविता – Shringar ras kavita

” मुझे भाग्यहीन की तू संबल

युग वर्ष बाद जब हुई विकल

दुख ही जीवन की कथा रही

क्या कहूं आज , जो नहीं कही!

हो इसी कर्म पर वज्रपात

यदि धर्म , रह नत सदा माथ

इस पथ पर मेरे कार्य सकल,

हो भ्रष्ट शीत के -से शतदल !

कन्ये , गत कर्मों का अर्पण

कर , करता मैं तेरा तर्पण ! “

प्रस्तुत पंक्ति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के सरोज स्मृति से ली गई है।  यहां पुत्री के असमय निधन के उपरांत वह अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। वह अपने आपको भाग्यहीन मानते हैं। क्योंकि पत्नी के उपरांत के बाद एक सहारा बेटी ही थी जिसके माध्यम से जीवन बीत रहा था। अब वह बेटी का सहारा भी खत्म हो गया। जिसकी पीड़ा एक पिता का हृदय सहन नहीं कर पा रहा।

Shringar Ras Simple Example In Hindi

संयोग श्रृंगार रस का उदाहरण-

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,
सौंह करे भौंहन हंसे देन कहे नटि जाय!!

थके नयन रघुपति छवि देखे।
पलकन्हि हु परिहरि निमेखे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।

Shringar Ras

राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं । 
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।

वियोग श्रृंगार रस का उदाहरण

उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥

Shringar Ras


तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥

 

पुनि वियोग सिंगार हूँ दीन्हौं है समुझाइ।
ताही को इन चारि बिधि बरनत हैं कबिराइ॥

इक पूरुब अनुराग अरु दूजो मान विसेखि।
तीजो है परवास अरु चौथो करुना लेखि॥

 

इन काहू सेयो नहीं पाय सेयती नाम।
आजु भाल बनि चहत तुव कुच सिव सेयो बाम॥

 

बेलि चली बिटपन मिली चपला घन तन माँहि।
कोऊ नहि छिति गगन मैं तिया रही तजि नाँहि॥

महत्वपूर्ण प्रश्न – Important questions on Shringar ras

प्रश्न – श्रृंगार रस का स्थाई भाव क्या है ?

उत्तर – श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति अथवा दांपत्य प्रेम है।

प्रश्न – श्रृंगार रस के कितने उपभेद हैं ?

उत्तर – श्रृंगार रस के दो भेद हैं संयोग श्रृंगार तथा वियोग श्रृंगार।

प्रश्न – रसराज किस रस को कहा गया है ?

उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज माना गया है।

प्रश्न – ” मधुबन तुम कत रहत हरे , विरह वियोग श्याम सुंदर के , ठाड़े क्यों न जरे। ”  किस रस के अंतर्गत आएगा ?

उत्तर – शृंगार रस के वियोग श्रृंगार पक्ष के अंतर्गत। यहां गोपियां कृष्ण के बिरह मे मधुबन को कोस रही हैं अथवा उलाहना दे रही है।

प्रश्न – रस कितने प्रकार के हैं ?

उत्तर – रस 11 प्रकार के हैं। कुछ विद्वान नौ रस को मानते हैं वह वात्सल्य रस और भक्ति रस को नहीं मानते।

रूपक अलंकार किसे कहते हैं | रूपक अलंकार के उदाहरण

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shubham yadav

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