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टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त | Tolman’s Sign learning theory in Hindi

टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त
टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त

टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त (Tolman’s Sign learning theory)

टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त- एडवर्ड सी० टॉलमैन द्वारा प्रतिपादित संकेत अधिगम सिद्धान्त, उद्देश्यपूर्ण व्यवहारवाद, प्रत्याशा सिद्धान्त, संकेत गेस्टाल्स सिद्धान्त आदि कई नामों से भी जाना जाता है। इससे स्पष्ट है कि टॉलमैन ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में एक लम्बे समय तक अध्यापन कार्य किया। उनके सिद्धान्त का वर्णन उनकी पुस्तकों Purposive Behaviour in Animals and Man’ (1932), ‘Drives Towards War’ (1942) तथा ‘Colleated Papers in Psychology’ (1951) में मिलता है। उसके अनुसार व्यवहार निर्धारित उद्देश्य के अनुरूप नियमित होता है इसलिये उसे प्रयोजनपूर्ण व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक कहा जाता है-

टॉलमैन का यह सिद्धान्त S-R Theory तथा Cognitive Field Theory के मध्य स्थित है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस सिद्धान्त की जड़ें व्यवहार में स्थित हैं। परन्तु यह सिद्धान्त S-R संयोजनवाद के खिलाफ है। टॉलमैन S-R सिद्धान्त तथा प्रयत्न एवं भूल सिद्धान्त दोनों की आलोचना करते हैं। वह कहते हैं कि सम्पूर्ण अधिगम प्रक्रिया “हिट एण्ड मिस एफेयर” नहीं है। साथ ही, ना तो यह उद्देश्यहीन है और न ही यादृच्छिक है । यह यान्त्रिक भी नहीं है। यह एक सोद्देश्यपूर्ण क्रिया है जो अपने उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु प्रयासरत होती है । इस सिद्धान्त के अनुसार लक्ष्य का मुख्य महत्त्व सीखने की क्रिया में है। एक कुत्ता सीटी सुनकर दौड़ना इसलिये सीख लेता है कि वह जानता है कि दौड़ने से उसे खाना शीघ्र मिल जायेगा और सीटी बजाना इस बात का संकेत है कि खाना तैयार है। अतएव यहाँ दौड़ना (मालिक की आवाज पर या घण्टी बजने पर) किसी ज्ञान पर आधारित है । यदि उद्दीपक में किसी प्रकार का अर्थ नहीं जुड़ा रहता तो किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती। अतः कुत्ते का दौड़ना यान्त्रिक नहीं है बल्कि उसके ज्ञान पर आधारित है। यदि कुत्ता भूखा नहीं होगा तो वह सीटी की आवाज सुनकर नहीं दौड़ेगा।

टॉलमैन के सिद्धान्त को चिह्न-गेस्टाल्ट सिद्धान्त भी कहते हैं। टॉलमैन का मानना है कि अधिगम में क्रियाओं-अनुक्रियाओं का अधिगम नहीं होता बल्कि चिह्नों/संकेतों का अधिगम होता है। अधिगमकर्त्ता परिस्थिति का प्रत्यक्षीकरण करता (गेस्टाल्ट दृष्टिकोण), विश्लेषण करता है तथा फिर उसकी मानसिक संरचना अथवा मानचित्र तैयार करता है जो आगे चलकर उसके मार्गदर्शन, संकेतक अथवा सार्थक उद्दीपक का रूप ले लेते हैं। इस प्रकार व्यवहार इन चिह्नों के माध्यम से सीखे जाते । उदाहरणार्थ- किसी भुल भुलैया से बाहर निकलना। अथवा किसी नये शहर में किसी अनजान जगह पर पहुँचते समय उन रास्तों, गलियों, संकेतों, महत्त्वपूर्ण स्थलों, प्रतीक चिह्नों को नोट करते चलता है अथवा ध्यान देता चलता है या अपने मस्तिष्क में यह नक्शा तैयार करता चलता है ताकि भविष्य में दोबारा इस स्थान तक पहुँचने में उसे कोई कठिनाई न हो या भटकना न पड़े तथा वह अपने गन्तव्य तक आसानी से पहुँच सके। यह चिह्न गेस्टाल्ट का सर्वोत्तम सरल उदाहरण है।

टॉलमैन ने व्यवहार के प्रति आणविक दृष्टिकोण का विकास किया जो कि लक्ष्य केन्द्रित तथा सोद्देश्यपूर्ण होता है। वह इस बात पर बल देते हैं कि ज्ञान प्राप्त करने में सामयिक समीपता होती है। उनका दृष्टिकोण होलिस्टिक है जो कि व्यक्ति की आवश्यकताओं तथा उनकी संतुष्टि पर बल देता है। अतः प्रेरणा एवं आवश्यकताओं की स्पष्ट स्वीकार्यता अधिगम का आधार मानी जाती है। सामयिक समीपता का सरल उदाहरण— जूतों के फीते बांधना है। इसी प्रकार भूल-भुलैया में भी हमारी एक क्रिया को सम्बल प्रदान करती है जो हमें लक्ष्य तक पहुँचने में हमारी मदद करती है।

टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त की विशेषताएँ 

इस सिद्धान्त की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) वाटसन की तरह टॉलमैन ने भी अर्न्तदर्शन को नकारते हुए व्यवहारवाद पर बल दिया है।

(2) यह सिद्धान्त व्यवहार के सामूहिक रूप पर बल देता है।

(3) इस सिद्धान्त के अनुसार प्राणी का व्यवहार बिना किसी उद्देश्य के नहीं हो सकता।

(4) किसी भी जीवन का व्यवहार स्थिर व निश्चित नहीं होता, बल्कि बदलता रहता है।

(5) यह सिद्धान आणविक विचारधारा पर बल नहीं देती।

(6) यह सिद्धान्त व्यवहार को सीखने में अथवा अधिगम प्रक्रिया में पर्यावरणीय संकेतों पर महत्त्व देता है।

(7) यह सिद्धान्त गुथरी के सामयिक समीपता को भी अधिगम प्रक्रिया में विशेष महत्त्व देता है।

(8) यह सिद्धान्त मध्यवर्ती चल राशियों को प्रमुखता प्रदान करता है। ये चल राशियाँ दो प्रकार की होती हैं वातावरण जनित तथा व्यक्तिगत ।

सम्बन्धित नियम- टॉलमैन ने अपने सिद्धान्त के आधार पर चार प्रमुख अधिगम नियमों की व्याख्या की है-

(1) अभिप्रेरणा नियम, (2) साहचर्य नियम, (3) क्रिया नियम, (4) शक्तिवर्द्धक नियम

1. अभिप्रेरणा नियम- टालमैन अधिगम प्रक्रिया में प्रेरणा के महत्त्व को नकारता तो नहीं है वह पुनर्बलन को आवश्यक मानता है। हाँ, उसने इसके महत्त्व को सीमित अवश्य कर दिया है।

2. साहचर्य नियम- व्यवहारवादी उद्दीपनों एवं अनुक्रियाओं के कारण learning होना मानते हैं परन्तु Tolman इसे नहीं मानता। वह उद्दीपन और अनुक्रियाओं को केवल चिह्न या Sign पर मानता है जैसे― चूहा ऐसी भूल भुलैया में भोजन पाना सीखता है जब वह मार्ग के कीड़ों को चिह्न के रूप में मस्तिष्क में बिठा लेता है।

3. क्रिया नियम — टालमैन में अनुक्रिया को परिभाषित नहीं किया वह उसे उपयुक्त व्यवहार की संज्ञा देता है। जीव किसी क्रिया को तब तक नहीं सीखता जब तक उसकी आन्तरिक माँग पूरी नहीं होती। मांग की पूर्ति से वह अनुभवों का लाभ उठाता है। इस आधार पर वह प्रत्याशा भी करता है।

4. शक्तिवर्द्धक नियम—थार्नडाइक एवं वाटसन कहते थे कि जितनी अधिक अनुक्रिया होती है उतना अधिक उद्दीपन का प्रबलन होता है। टालमैन यह बात बिल्कुल नहीं मानता । वह कहता है कि S-R सम्बन्ध learning का आधार नहीं है। Learning या सीखने का आधार तो चिन्ह की सार्थकता को समझना मात्र है। सार्थक चिन्ह प्रत्याशा की शक्ति को बढ़ा देता है वह प्रत्याशा की शक्ति बढ़ाने के लिए तात्कालिकता, बल, पुनरावृत्ति और अभिप्रेरण जैसी शक्तियों को आवश्यक मानता है।

शक्तिवर्द्धक नियम

शक्तिवर्द्धक नियम

उपरोक्त तथ्यों को सिद्ध करने के लिए भूल भुलैया का एक अन्य प्रयोग देखिए । इस भूल भुलैया में चूहा तब तक भोजन नहीं पाता जब तक वह कई मोड़ों से न गुजरे । हर मोड़ पर वह चिन्हों को देखता है और उसकी प्रत्याशा (भोजन पाने की) बढ़ती जाती है। जिन चिन्हों पर मार्ग बन्द होता है वह मस्तिष्क में बैठा लेता है और उस ओर न जाना सीख लेता है।

सम्बन्धित प्रयोग

प्रयोग 1 : टॉलमैन का प्रयोग— टॉलमैन के अनुसार पुनर्बलन कर्त्तव्य के लिए आवश्यक है सीखने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं । इस सिद्धान्त की पुष्टि निम्न प्रयोगों द्वारा की गई।

स्पेन्स तथा लिपिट ने एक विशेष प्रकार की पहेली के माध्यम से चूहों पर प्रयोग किए। इस पहेली में चूहों की भोजन या जल की ओर जाने की बराबर सुविधा थी। अनेक प्रयासों द्वारा चूहों को यह सिखाया गया कि पहेली में बाई तरफ आंगन है और दाईं तरफ नल। यह सिखने के पश्चात् चूहों को प्यासा रखा गया और पहेली में छोड़ा गया। छोड़ते ही वह जल वाले रास्ते की ओर दौड़े। दूसरी बार उन्हें भूखा रखा गया और फिर पहेली में छोड़ा गया तो वे इस बार भी जल की ओर ही भागे।

टॉलमैन का प्रयोग

टॉलमैन का प्रयोग

प्रयोग 2 : इस प्रयोग में मेकफार्लेन 1930 में कुछ चूहों को पानी से भरी एक भुल भुलैया को तैरकर लक्ष्य तक पहुँचना होता है। यह मानते हुए कि जानवर भोजन तक पहुँचना जानते हैं यह देखने का प्रयास किया गया कि क्या इसके अतिरिक्त भी वे किसी भुल भुलैया तक अपने ज्ञान का प्रयोग कर पहुँच पाते हैं या उन्हें कुछ S-R सम्बन्धों की जानकारी है। इस समस्या के हल हेतु उसने भुल भुलैया से पानी बाहर निकाल दिया। अब इन चूहों को इस भुल भुलैया में रखा गया ताकि वे तैरने के बजाय दौड़कर लक्ष्य तक पहुँच सकें । उसने देखा कि चूहे बिना कोई त्रुटि किये अपने लक्ष्य पर पहुँच गये। वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि जानवरों ने भुल भुलैया के संज्ञानात्मक चित्र के माध्यम से भुल भुलैया का एक विशिष्ट रूप सीखने में सफलता प्राप्त कर ली है।

प्रयोग 3 : एक अन्य प्रयोग जिसे ‘Place learning experiment’ के नाम से जाना जाता है, 1940 में किया गया। इस प्रयोग ने यह सिद्ध किया कि अधिगमकर्त्ता घिसे-पिटे या नियमित तरीके से ही अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचता बल्कि परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार अपने व्यवहार को बदल लेता है। इसी प्रकार के एक प्रयोग में चूहों को लक्ष्य तक पहुँचने के लिये right angled रास्ते से पहुँचने का प्रशिक्षण दिया गया। प्रयोग की स्थिति में मूल रास्ता बन्द कर दिया गया तथा दूसरे अन्य रास्ते विभिन्न दिशाओं में खोल दिये गये। देखने में आया कि अधिकांशतः चूहों ने लक्ष्य तक पहुँचने में diagonal रास्ता ही अपनाया। टालमैन ने अनुमान लगाया कि चूहों ने एक सामान्यीकृत सोच विकसित कर ली है जिसके आधार पर ही वे लक्ष्य पर पहुँचने में अन्य रास्तों को खोज सके।

टॉलमैन का चिन्ह अधिगम सिद्धान्त का शैक्षिक निहितार्थ 

टॉलमैन एक समाहारक सिद्धान्तवादी था। उसने इधर-उधर से अनेकों विचार लिये लेकिन इन्हें एक व्यवस्थित सिद्धान्त का रूप न दे सका। साथ ही, वह व्यवहार की भी एक निश्चित व्याख्या नहीं दे पाया। फिर भी, टॉलमैन व उसके साथियों ने अधिगम के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जिसे इन अग्रलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) टॉलमैन का सबसे प्रमुख योगदान यह है कि व्यवहार उद्देश्यमूलक होता है। उसने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि जो कुछ भी सीखा जाता है वह प्रत्याशा या संकेतों के महत्त्व हैं न कि S-R बन्ध।

(2) टॉलमैन ने अधिगम की व्याख्या के लिए संज्ञानात्मक प्रारूप विकसित किया । वह व्यवहारवादी मनोविज्ञान की सीमा से बाहर निकले लेकिन उसने उन मनोवैज्ञानिकों को बहुत प्रभावित किया जो व्यवहारवाद की मुख्य धारा में थे। वह वाटसन के S-R अनुबन्ध व जीवन के यान्त्रिक दर्शन के विरोधी थे।

(3) टॉलमैन के इस सिद्धान्त के लिए प्रत्यक्षीकरण व निरीक्षण दो महत्त्वपूर्ण तत्व टॉलमैन मानता है कि प्रत्येक कार्य में थोड़ी बहुत बुद्धि अवश्य कार्य करती है।

(4) टॉलमैन प्रेरणा पुनर्बलन पर अत्यधिक महत्त्व नहीं देता। वह मानता है कि अत्यधिक प्रेरणा अधिगम प्रगति में व्यवधान भी डाल सकती है।

(5) टॉलमैन का मत है कि शैक्षिक तरीके व विधियाँ कक्षा कार्य की दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व रखते हैं।

(6) इस सिद्धान्त के अनुसार संज्ञानात्मक प्रक्रिया अधिगम का दिल है। इसलिये अध्यापक को हमेशा यह ध्यान रखना चाहिये कि वह जो कुछ भी अपने छात्रों को पढ़ाये वह सार्थक तथा जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से सम्बन्धित हो।

(7) इस सिद्धान्त के अनुसार अव्यवस्थित व अनियमित शिक्षण क्रियाओं का कोई महत्त्व नहीं। अतः शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया आँख मूँदकर नहीं चलानी चाहिये।

(8) इस सिद्धान्त के अनुसार परिणाम से कहीं अधिक रास्ता महत्त्वपूर्ण है। अतः शिक्षक को उपयुक्त एवं प्रभावी शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिये।

(9) इस सिद्धान्त में लक्ष्य या उद्देश्य पर पर्याप्त बल दिया जाता है। अतः शिक्षक को अपने छात्रों को कोई भी नवीन ज्ञान प्रदान करने से पहले उसका उद्देश्य व उसके प्राप्त करने के तरीकों को प्रारम्भ में ही बता देना चाहिए।

(10) छात्रों को शिक्षा प्रदान करते समय उनकी आयु व अन्य अनुभवों को भी समुचित महत्त्व दिया जाना चाहिये।

(11) यदि कोई छात्र किसी सरल समस्या को भी हल नहीं कर पा रहा है या बहुत अधिक त्रुटियाँ कर रहा है तो यह सिद्धान्त अध्यापक को सचेत करता है कि छात्र अवश्य ही किसी समस्या से ग्रसित है या तो वह आलसी है या पिछड़ा हुआ।

उपरोक्त वर्णित बिन्दुओं के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यह सिद्धान्त बालक की प्रारम्भिक शिक्षा की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। वस्तुत: टॉलमैन ने अपने लम्बे सेवाकाल में बहुत से अधिगम नियमों की खोज की है जो अधिक प्रतिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस सिद्धान्त का अधिगम के क्षेत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है।

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shubham yadav

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