अनुक्रम (Contents)
अधिगम के प्रकार (Types of learning)
अधिगम के प्रकार निम्न हैं-
1. तथ्यात्मक अधिगम (Factual Learning)
वास्तविकता, सत्य व सत्यापित । तथ्यात्मक अधिगम पहले से प्रमाणित ज्ञान व तथ्यों को सीखना है, जो छात्रों के अधिगम की निरन्तरता को बनाये रखने के लिये आवश्यक होते हैं तथा उसे एक पृष्ठभूमि प्रदान करते हैं।
तथ्यात्मक अधिगम हेतु शिक्षक को बालक के संज्ञानात्मक विकास के स्तर को ध्यान में रखना चाहिये तथा बालक को दी जाने वाली विषय-सामग्री उसके स्तर के अनुसार क्रमानुसार होनी चाहिये।
तथ्यात्मक अधिगम शीघ्र विस्मृत होने की अधिक सम्भावना होती है, अतः इसका समय-समय पर अभ्यास, प्रत्यास्मरण तथा प्रयोग होना आवश्यक है। जैसे, गणित व विज्ञान के सिद्धान्त, बालक द्वारा सीखे जाने वाले पहाड़े आदि।
2. साहचर्य अधिगम (Associative Learning)
इस प्रकार के सीखने में स्मृति का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । जब दो या दो से अधिक वस्तुओं, व्यक्तियों या तथ्यों में पूर्ण अथवा आंशिक रूप में समानता होती है या असमानता होती है तो एक वस्तु, व्यक्ति अथवा तथ्य के स्मरण से दूसरे का स्मरण स्वयं हो जाता है। इस प्रकार व्यक्ति स्मृति के प्रयोग से सीखता है।
इस प्रकार के सीखने में उत्तेजक तथा अनुक्रिया के मध्य अभ्यास पुनरावृत्ति द्वारा सम्बन्ध स्थापित किया जाता है, जिसके द्वारा बालक अपेक्षिक व्यवहार को सीख जाता है। इस प्रकार का अधिगम मन्दबुद्धि बालकों व छोटे बालकों में कराया जाता है। यह साहचर्य किसी प्रेरक अथवा बालक को दिया जाने वाला कोई प्रोत्साहन भी हो सकता है जिसकी पुनरावृत्ति उसमें अपेक्षित आदत का निर्माण करती है। जैसे—अनुशासन व पुरस्कार, बार-बार पुरस्कार दिये जाने पर अथवा शिक्षक के द्वारा प्रशंसा किये जाने पर बालक अनुशासन में रहना सीख जाता है।
3. सम्प्रत्ययात्मक अधिगम (Conceptural Learning)
इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति को तर्क, कल्पना और चिन्तन का सहारा लेना पड़ता है । सम्प्रत्यय निर्माण प्रत्यक्षीकरण के बाद होता है। विभिन्न वस्तुओं के प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति उनके गुणों का विश्लेषण करता है, उनमें तुलना करता है और इस प्रकार वह वस्तुओं की जानकारी प्राप्त कर लेता है और उनके गुणों से परिचित हो जाता है। गुणों के विश्लेषण और तुलना द्वारा उनमें अन्तर भी स्पष्ट कर लेता है। उसे किसी वस्तु की अनेक भिन्नताओं में भी एकरूपता दिखाई देने लगती है और उसके समान गुण निश्चित हो जाते हैं। जैसे भिन्न रंग की गायों में साम्यता के आधार पर वह इस प्रकार के पशुओं को ‘गाय’ की संज्ञा देता है। इस प्रकार इसमें व्यक्ति किसी वस्तु, व्यक्ति, क्रिया अथवा घटना का प्रत्यक्षीकरण कर उनके गुण-दोषों के आधार पर उनमें से कोई सामान्य प्रत्यय या तत्त्व देखता है।
4. प्रक्रियात्मक अधिगम (Procedual Learning)
प्रक्रियात्मक अधिगम का तात्पर्य उन गत्यात्मक कौशलों के विकास से है, जिनका सम्बन्ध आदतों व ज्ञानात्मक कौशलों से है, जिनका प्रत्यक्षीकरण किसी कार्य के कुशलतापूर्वक संपादन से होता है। इस प्रकार अधिगम में पुनरावृत्ति व साहचर्य आवश्यक होता है। प्रकार्यात्मक अधिगम का आधारभूत नियम उसका क्रम होता है और इन कौशलों को बालक क्रमपूर्वक ही सीखता है। जैसे— तैरना, टाइपिंग व गणितीय योग्यता।
5. सामान्यीकरण अधिगम (Generalization Learning)
अधिगम के क्षेत्र में सामान्यीकरण का अर्थ सीखे गये ज्ञान का समान परिस्थितियों में प्रयोग तथा प्रमाणित नियमों व सिद्धान्तों का वास्तविक परिस्थितियों में प्रयोग से है। सामान्यीकरण एक उच्च मानसिक योग्यता है जिसका विकास मानसिक विकास के विभिन्न स्तरों के उत्तरोत्तर विकास के फलस्वरूप होता है जिसे निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है—
सामान्यीकरण
↓
मूल्यांकन
↓
संश्लेषण
↓
विश्लेषण
↓
प्रयोग
↓
बोध
↓
ज्ञान
सामान्यीकरण की क्षमता में अन्तर्दृष्टि का महत्त्वपूर्ण स्थान है अन्तर्दृष्टि अर्थात् किसी समस्या का समाधान बिना किसी प्रयास के प्रस्फुटित होना।
किसी परिस्थिति को एकीकृत रूप में देखना व उस परिस्थिति के विभिन्न कारकों में अन्तर्सम्बन्धों को समझना सामान्यीकरण की योग्यता के विकास के लिये आवश्यक है।
कक्षागत अधिगम परिस्थितियों में सामान्यीकरण को सिखाने के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक, छात्र को सीखे गये ज्ञान के प्रयोग के नवीन अवसर दे तथा उसके समक्ष समस्यात्मक परिस्थिति को प्रस्तुत करे जिसका बालक स्वायत्तता के साथ समाधान प्रस्तुत करे। समस्या समाधान विधि, प्रोजेक्ट विधि, सामूहिक वाद-विवाद, सृजनात्मक लेखन आदि विधियों का प्रयोग एक शिक्षक कक्षागत परिस्थितियों में कर सकता है।
6. सिद्धान्त और नियम अधिगम (Principle and Rule Learning)
नियमों का अधिगम प्रायः आगमन व निगमन विधियों द्वारा किया जाता है। निगमन अर्थात् नियम को प्रमाणित करने के लिये कई उदाहरणों का प्रयोग और आगमन विधि के प्रयोग में पहले उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं।
तदोपरान्त उन उदाहरणों के आधार पर नियम को प्रमाणित किया जाता है। नियमों का अधिगम निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट है-
अतः नियमों का अधिगम कराते समय शिक्षक को बालकों के मानसिक स्तर व विषयवस्तु के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उदाहरणों का चयन करना चाहिये। यह एक उच्च स्तरीय मानसिक योग्यता है, जिसमें विश्लेषण व संश्लेषण, तार्किक व अमूर्त चिन्तन जैसी मानसिक योग्यताओं का प्रयोग होता है। नियमों के अधिगम हेतु छात्रों में पर्याप्त ज्ञान व उस ज्ञान का बोध होना अनिवार्य है।
7. अभिवृत्ति एवं मूल्य अधिगम (Attitude and Value Learning)
8. अधिगम कौशल (Skill Learning)
अधिगम या सीखना एक कौशल है। कुछ ‘लोग जल्दी सीखते हैं और कुछ देर से सीखने का विषय शीघ्र अधिगमित कर लेते हैं, यही कुशलता है। सीखने के कौशलों में नवीन ज्ञान, नवीन क्रिया, आदत, अनुभवों का उपयोग, ज्ञान तथा स्थानान्तरण, स्मृति तथा अनुकूलन ये सभी अधिगम कौशल हैं। इनको सीखना पड़ता है।
अधिगम कौशलों को सीखना बहुत कुछ सीखने वाले की मनोवृत्ति पर निर्भर करता है। मनोवृत्ति के विषय में सी. वी. गुड ने कहा है “मनोवृत्ति, किसी परिस्थिति, व्यक्ति, वस्तु के प्रति किसी विशेष शैली में प्रतिक्रिया व्यक्त करना है; उदाहरणार्थ- प्रेम या घृणा या भय या किसी भी सीमा तक प्रतिरोध व्यक्त करना।”
हम जो भी सीखते हैं, वह एक प्रकार से अनुभव प्राप्त करते हैं और उसमें दक्षता प्राप्त करते हैं। मॉर्गन एवं गिलिलैन्ड ने ठीक ही कहा है-सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है। इस दृष्टि से सीखने के कौशल इस प्रकार हैं।
अधिगम कौशलों में सर्वप्रमुख है मनोवृत्ति का निर्माण करना । मनोवृत्ति से किसी विशेष प्रकार के कार्य करने का कौशल विकसित होता है। अभिवृद्धि तथा विकास, समूह प्रक्रिया, मानसिक स्वास्थ्य, विद्यालयी अधिगम, मापन तथा मूल्यांकन वे क्षेत्र हैं जिनमें अधिगम कौशलों का परिचय मिलता है।
मनोवृत्ति अर्जित होती है। शिक्षण, व्यक्ति, विचार तथा परिस्थिति के प्रति हमारी धारणायें सीखे हुए दुखद अथवा सुखद अनुभवों से बनती हैं। सीखने का स्थानान्तरण, विस्थापन, अनुकूलन, सन्तुष्ट असन्तुष्ट होना अधिगम द्वारा ही मनोवृत्ति को निर्मित करता है । व्यक्तित्व तथा सामाजिक प्रेरणा भी मनोवृत्ति को विकसित करती है। व्यक्ति में भाषा ज्ञान अर्थात् मौखिक तथा लिखित अभिव्यक्ति का महत्त्व अधिक होता है। इन कौशलों में बोलना, उच्चारण, व्याकरण की शुद्धता, लेखन, वर्तनी, रचना आदि हैं। मनोवृत्ति इन कौशलों को लिखने में महत्त्वपूर्ण योग देती है।
अधिगम की प्रक्रिया में, विशेष रूप से बाल्यावस्था व युवावस्था में, परिपक्वता का विशेष स्थान होता है। बाह्य घटकों के कारण प्रतिक्रिया में संशोधन होता है विद्यालयी अधिगम में अधिगम लक्ष्य, अधिगम के निर्देशों, संतोष तथा प्रभाव में निहित होते हैं।