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उत्तर आधुनिकता से आप क्या समझते हैं?
जा न्फ्रेंकोज़ ल्योतार उत्तर-आधुनिकता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इन्होंने ही उत्तर आधुनिकता के पद को गढ़ा है। वे कहते हैं कि सन् 1960 के प्रारम्भ से ही उन्नत समाज पूँजीवादी व्यवस्था में रह रहे हैं। ल्योतार फ्रांस के हैं। उन्होंने स्थापित समाजशास्त्रीय तथा कथित सिद्धान्तवेत्ताओं जैसे कि पारसन्स, मर्टन, हेबरमाँ की खुलकर खिंचाई की है। उन्होंने दर्शनशास्त्रियों पर भी प्रहार किया है। उनकी उत्तर-आधुनिकता की परिभाषा यह है-
अत्यधिक सरल शब्दों में, उत्तर-आधुनिकता की परिभाषा महान् वृतान्तों में अविश्वास करना है। हमें सकलता के खिलाफ युद्ध छेड़ देना चाहिए, इसकी अपेक्षा हमारी सक्रियता विशिष्टता के प्रति होनी चाहिए। वास्तव में उत्तर-आधुनिकता केवल अधिकृत व्यक्तियों का औजार ही नहीं है, इसका लक्ष्य विशिष्टता के प्रति हमें संवेदनशील करना है और वे वस्तुएँ जो हमें अनुपयुक्त लगती हैं, उन्हें उदारता के साथ स्वीकार करने की योग्यता पैदा करना है।
ल्योतार की उपरोक्त परिभाषा थोड़ी भारी भरकम है। यह तो बहुत स्पष्ट है कि वे महान वृतान्तों को अस्वीकार करते हैं। महान् वृतान्त इसलिए अस्वीकार्य हैं कि इनमें सकलता है। इस संसार में बड़ी विविधता है। एकाधिक संस्कृतियाँ हैं। भाषाएं हैं, संगीत और नृत्य हैं, अर्थ व्यवस्थाऐं हैं। इन सबको बांध कर कोई एक सिद्धान्त जैसा कि वेबर ने बनाया है, या पारसंस और मर्टन ने संरचित किया है, सारी दुनिया पर लागू नहीं किया जा सकता। यह संकलता है। सारी दुनिया के लिए एक ही पैमाना है। ल्योतार को इसलिए यह महान् वृतान्त अस्वीकार है। वास्तव में समाजशास्त्र को समाज में जो विभिन्नता है, उसको समझना चाहिए। हमें स्थानीयता पर केन्द्रित करना चाहिए। हमें स्थानीयता के वृतान्त बनाने चाहिए। ऐसी अवस्था में ल्योतार तो केवल एक ही मुहावरा देते हैं : महान् वृतान्त नहीं, स्थानीय वृतान्त। ल्योतार ने एक और पते की बात महान् वृतान्त के बारे में कही है। ये महान् वृतान्त जो बातें हमें अनुपयुक्त लगती हैं, उन्हें छोड़ देते हैं। ल्योतार कहते हैं कि इन अनुपयुक्त वातों के प्रति भी हमें संवेदनशील होना चाहिए। कुल मिलाकर ल्योतार विखण्डन अर्थात् स्थानीयता के पक्षधर हैं, वे विविधता के हामी हैं, और सकलता तथा महान् वृतान्त के विरोधी हैं। ये तत्व हमें उत्तर-आधुनिकता को परिभाषित करने में सहायक हैं। हमारी खोज अन्ततोगतवा अधिक विशिष्ट संश्लेषण की ओर है।
बाड्रिलार्ड और आधुनिकता की परिभाषा अपने इन्हीं दोनों सन्दर्भों में करते हैं। सबसे पहली बात जो उनके बारे में कहाँ जानी चाहिए वह यह कि ल्योतार की तरह यह भी महान् वृतान्तों के विरोधी हैं। जब कभी हम उत्तर-आधुनिकता की चर्चा करते हैं तब महान् वृतान्त का संदर्भ अवश्य आता है। महान् वृतान्त को अंग्रेजी में मेटा नेरेटिव्ज या मेगा नेरेटिव्ज कहते हैं। दोनों का अर्थ एक ही है। महान् वृतान्त वे भव्य और विशाल सिद्धान्त हैं या विश्वास हैं जो समाज की गतिविधियों तथा समाज की प्रकृति और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या करते हैं। मार्क्सवाद और प्रकार्यवाद इसके दृष्टान्त हैं। सभी उत्तर-आधुनिकतावादी समाजशास्त्री इन महान् वृतान्तों को अस्वीकार करते हैं।
उपभोग, महान् वृतान्त तथा जन संचार की अवधाराणाओं को केन्द्र बनाते हुए बोडिलार्ड उत्तर-आधुनिकता की व्याख्या इस तरह करते हैं-
आज के युग में जहाँ जन संचार सभी जगह है, एक नये प्रकार की अति यथार्थता पैदा की जाती है, बनाई जाती है जिसमें लोगों का व्यवहार और संचार मिल-जुल जाते हैं। अति यथार्थता की दुनिया वस्तुतः प्रतिकृति या सेम्यूलेक्रम (Simulacrum) की दुनिया है । इस दुनिया में, आकृतियाँ दूसरी आकृतियों से अर्थ निकालती हैं।
जेमेसन ने उत्तर-आधुनिकता की जिस तरह परिभाषा दी है, उसे हम निम्न शब्दों में रखते हैं :
उत्तर-आधुनिकता की पहली विशेषता यह है कि इसमें उथलापन है और गहराई कतई नहीं। इसमें सांस्कृतिक तत्व केवल सतही बिम्बों को रखते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं निकलता। दूसरा उत्तर-आधुनिकता में मनोभावों या संवेदों का अभाव होना है। तीसरा, इसमें इतिहास नहीं होता । हम इसके माध्यम से अतीत को नहीं जान सकते। अगर हम कुछ जान सकते हैं तो अतीत के ग्रन्थों के विषय में और ये ग्रन्थ सामान्यतया मौन साधते हैं। और चौथा, उत्तर-आधुनिकता में नई तकनीकी होती है। यह तकनीकी किसी भी ओटोमोबाइल तकनीकी की तरह उत्पादक नहीं होती।
जेमेसन ने उत्तर-आधुनिकता की जो परिभाषा दी है वह परम्परागत परिभाषा से भिन्न है! भिन्न इसलिए है कि उन्होंने पहली बार उत्तर-आधुनिकता का सम्बन्ध मार्क्सवाद के साथ जोड़ा है। वे कहते हैं कि पूँजीवाद का विकास कई चरणों में हुआ है। आज का पूँजीवाद विलम्बित पूँजीवाद यानी देर से विकसित हुआ पूँजीवाद है। वे पूर्णतया इस पूँजीवाद को नकारते नहीं हैं। इसका सांस्कृतिक पक्ष भी हमें मार्क्स के पूँजीवादी दृष्टिकोण को समझने में सहायक है।
आधुनिकता के लक्षण
उत्तर-आधुनिकतावाद की व्याख्या कई तरह से की जाती है। ऊपर दिये गये परिभाषाओं के उद्धरणों से स्पष्ट है कि इस अवधारणा की कोई सर्वसम्मत परिभाषा नहीं है। सभी के अपने संदर्भ हैं। सभी के समाज को देखने के अलग-अलग तरीके हैं। यह भी सही है कि आज के समाज में आधुनिकता के लक्षण हैं और इसी लहजे में यह भी सही है कि आधुनिक समाज बड़ी तीव्र गति से बदल गया है। इस बदले हुए समाज पर आधुनिक समाज का पैमाना लागू नहीं होता। समाज को समझने की स्थिति बड़ी नाजुक दौर में है। शायद समझने के इस ऊहापोह में उत्तर-आधुनिकता की अवधारणा में आज कोई कसाव नहीं आया है। यह अवधारणा एक दम लचीली है जैसे कोई रबड़ का तम्बू है जिरो जिधर चाहो उधर खींच कर घुस जाओ और अपनी जगह बनालो। अवधारणा में कसाव की कमी भी समझ में आती है। इसके उद्गम का इतिहास कोई बहुत पुराना नहीं है। व्यवस्थित रूप से इस अवधारणा पर काम कोई ई. 1980 से प्रारम्भ हुआ है।
उत्तर-आधुनिकता जैसा कि इसका नाम बताता है, आधुनिकता के बाद का समाज का विकास है। यह अवधारणा शीघ्रता के साथ आधुनिकता का स्थान ले रही है। आधुनिकतावाद की भी एक भव्यता रही है। यह भव्यता बीसवीं शताब्दी के मध्यतर रही। कला और संगीत में कई नये बिम्ब आये। साहित्य में कई प्रयोग आये। उच्च स्तर की प्रौद्योगिकी आई। मेक्स वेबर, दरखाईम, पेरेटो, मार्क्स और ऐसे कितने ही संस्थापक विचारक आये। इनकी सामान्य सोच ने जमाने की करवट बदल दी। इस सम्पूर्ण दशा को, समाज की दिशा को, उत्तर-आधुनिकता ने झकझोर दिया, आधुनिकता की चूलें हिला दी। उत्तर-आधुनिकता ने सम्पूर्ण 20वीं शताब्दी की शान-शौकत के सामने कई ज्वलंत प्रश्न खड़े कर दिये। इस अवधारणा ने शहरों की गगनचुम्बी इमारतों को बुल्डोजर की नाक के सामने खड़ा कर दिया। कोरपोरेट पूँजीवाद को सांसत में डाल दिया। कला के जगमगाते बाजारों को ध्वस्त कर दिया। अब एक नई संस्कृति का अवतार उत्तर-आधुनिकता के रूप में हो रहा है। यह नई संस्कृति लोकप्रिय संस्कृति है। लोकप्रिय संस्कृति संचार की है। यह लोकप्रिय संस्कृति शुद्धता से मुक्त है, अभिजन से विमुख है और कला के स्वरूप से परे है। इसकी स्टाइल अधिक रोमांचक है, व्यंग्यात्मक है, और ग्रहणशील है।
उत्तर आधुनिकता की विशेषताएं
डेविड हारवे ने अपनी पुस्तक कन्डीशन ऑफ पोस्टमोडर्निटी 1984 में उत्तर आधुनिकता के कतिपय मुद्दों को रखा है जो उसके लक्षणों को स्पष्ट करते हैं। यहाँ हम इन्हें प्रस्तुत करते हैं
1. उत्तर आधुनिकतावाद की संस्कृति – कुल मिलाकर, कैसी भी परिभाषा देवें, उत्तर आधुनिकतावाद एक सांस्कृतिक पैरामिड यानि मॉडल है। यह संस्कृति सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई है। इसकी अभिव्यक्ति जीवन की विभिन्न शैलियों में अर्थात्, कला, साहित्य, दर्शन आदि में देखने को मिलती है। इस संस्कृति को सामाजिक आयोजन और आर्थिक परिवर्तन में देखा जा सकता है। इसकी उपस्थिति प्रत्यक्षवाद, उत्तर-संरचनावाद और विखण्डन में भी पाई जाती है। मुख्य रूप से उत्तर-आधुनिकता एक सांस्कृतिक अवधारणा है।
2. उत्तर आधुनिकता बहुआयामी है-आधुनिकता की बहुत बड़ी विशेषता यह थी कि यह विविधता को समानता और एकता में बाँधती थी। उत्तर-आधुनिक में ऐसा कुछ नहीं है। यह एक ऐसी संस्कृति है जिसमें बहुलता है। इस संस्कृति में स्थानीय और विखण्डन होता है। उदाहरण के लिए फूको कहते हैं कि शक्ति का कोई एक स्वरूप नहीं होता, इसके बहुस्वरूप होते हैं। उत्तर-आधुनिक की शायद सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह महान् वृतान्तों को अस्वीकार करती है। ऐसा करने में यह मार्क्स, फ्रायड, प्रकार्यात्मकता, ज्ञानोदय तथा सकलता के सभी सिद्धान्तों को ताक में रख देती है। दूसरी ओर, इसकी खासियत यह है कि यह दूसरी दुनिया के लोगों पर या दूसरी संस्कृति पर ध्यान देती है। अब उत्तर-आधुनिकवाद के केन्द्र उपेक्षित महिला, अश्वेत लोग तथा हाशिये और तलघर रहने वाला वर्ग माने जाते हैं। हमारे देश में जिन्हें इतिहासकारों का एक सम्प्रदाय सब आल्टर्न या पद दलित समुदाय कहता है, वह उत्तर आधुनिकता का केन्द्रीय विषय है।
3. क्या उत्तर-आधुनिकर्तावादी प्रवृत्तियाँ हमारी बुनियादी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक प्रक्रियाओं के साथ मेल खाती हैं-बहुलतावादी, उत्तर- औद्योगिक और उत्तर वर्ग समाज की हैं या जैसा कि फ्रेडरिक जेमेसन कहते हैं ये केवल विलम्बित पूंजीवादी संस्कृति का तर्क है। उत्तर-आधुनिक के इस मुद्दे को हमने थोड़े विस्तृत रूप में रखा है। इसे स्पष्ट कर दें। कुछ उत्तर-आधुनिकतावादी का विचार है कि यह विचारधारा एक युगान्तर है। मतलब हुआ, आधुनिककाल के जाने के बाद, उत्तर-आधुनिक काल आया है या यूँ कहिये कि सतयुग के बाद द्वापर आया है और इस नये काल ने अपने आपको समकालीन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक प्रक्रियाओं के साथ जोड़ा है। इस विचारधारा के विपरीत दूसरी विचारधारा का कहना है कि यह एक पूंजीवादी साजिश है, एक प्रकार का फरेब है जो संस्कृति के विकास का तर्क देकर (ऐसे जेमेसन कहते हैं) पूंजीवाद को बढ़ावा देते हैं। अन्य शब्दों में, ऐसी वैचारिकी मानती है कि उत्तर-आधुनिकतावादी वस्तुतः एक पूंजीवादी संस्कृति हैं इन दो विचारधाराओं के सन्दर्भ में देखें तो हमें उत्तर-आधुनिकतावाद के राजनैतिक परिणामों को देखना पड़ेगा। यह भी समझना पड़ेगा कि क्या उत्तर-आधुनिकता जमे जमाये आधुनिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ कोई बगावत तो नहीं है? इस अर्थ में उत्तर-आधुनिकता आधुनिकतावादी रूढ़िवादी के खिलाफ हैं.
4. उत्तर-आधुनिकता विखण्डन में दिखाई देती है— उत्तर-आधुनिकता की प्रकृति विखण्डन की है। यह अनिरन्तरता है। यह समानता की अपेक्षा विविधता को स्वीकार करती है। इसका अर्थ हुआ कि उत्तर-आधुनिक समाज विविध होता है और इसमें किसी प्रकार की समानता नहीं होती।
5. स्थानीय कारकों की खोज- उत्तर-आधुनिक प्रघटनाओं को स्थानीय स्तर पर देखती है। उनका विश्लेषण भी स्थानीय स्तर के कारकों द्वारा किया जाता है। इसके विश्लेषक, उदाहरण के लिए स्थानीय राजनीति के शक्ति सम्बन्धों, स्थानीय सन्दर्भ में ही देखते हैं।
6. उत्तर-आधुनिकता महान् वृत्तान्त, महान् भाषा और महान् सिद्धान्त की विरोधी है— ल्योतार और फूको जैसे उत्तर-आधुनिकतावादी लेखक उन सभी विधाओं का विरोध करते हैं जो महान् हैं चाहे वह भाषा हो, सिद्धान्त या वृत्तान्त |
7. राजनीतिक दृष्टि से उत्तर-आधुनिकता स्थानीय स्वायत्तता पर जोर देती है- उत्तर-आधुनिकता को राजनैतिक दृष्टि से भी देखा जाता है। इस विचारधारा का आग्रह है कि स्थानीय स्तर पर बहुआयामी कारकों के आधार पर राजनैतिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाना चाहिए। महत्त्व तो स्थानीय राजनैतिक आन्दोलनों और संघर्षो का है। स्थानीय लोग आधुनिकता को अपने ऊपर थोपी गई एक संरचना मानते हैं। वे इसे भार समझते हैं। एक प्रकार बाहरी हमला मानते हैं, यह छोटे किस्म का उपनिवेशवाद है और इसलिए उत्तर-आधुनिकता स्थानीय स्तर पर इन सब बाहरी तत्त्वों को अस्वीकार करती है।
8. भाषा और संचार के प्रति पृथक् दृष्टिकोण – उत्तर-आधुनिकता का केन्द्रीय मुहावरा विखण्डन है। भाषा के साथ में भी विखण्डन आ जाता है। जब उत्तर-आधुनिकता यह मानकर चलती है कि भाषा का सम्बन्ध व्यक्ति के साथ नहीं होता है, शब्द का शब्द शब्द के साथ होता है तब इसका परिणाम विखण्डित व्यक्तित्व में देखने को मिलता है। इस तरह का व्यक्ति एक प्रकार का शिजोफ्रेनिक व्यक्ति बन जाता है। जब संकेतक का अर्थ संकेतक के माध्यम से ही लिया जाता है तब इसका अर्थ खण्डित हो जाता है। ऐसा व्यक्तित्व अर्थ को अपने स्वयं की जीवनी से नहीं लेता और न ही वह अतीत या भविष्य के सन्दर्भ में अपनेमनोवैज्ञानिक जीवन को समझ पाता है। कुल मिलाकर उत्तर-आधुनिकता ऐसे व्यक्तियों को तैयार करती है जो खण्डित होते हैं जो न पीछे मुड़कर देखते हैं और न आगे की दृष्टि ही उनके पास होती है। बहुत सीधा सूत्र है : विखण्डित समाज और विखण्डित व्यक्तित्व ।
9. उत्तर-आधुनिकता में गहराई नहीं होती- यह विचारधारा किसी भी मुद्दे या हादसे को सिलसिलेवार नहीं विचारती। इसमें एक रेखीय उद्विकास को समझने की कोई गुंजाइश नहीं होती। इसका दृष्टिकोण स्पष्ट है जो कुछ सामने है, उसे स्थायी रूप से हल कर । इसी कमी के कारण जेमेसन कहते हैं कि उत्तर-आधुनिकतावादी संस्कृति में गहनता की कमी होती है। वस्तुतः यह संस्कृति सतही संस्कृति होती है।
10. पोप कल्चर और उपभोक्तावाद का विकास- यूरोप और अमेरिका में आज जहां उत्तर-आधुनिकता व्यापक है, एक नई संस्कृति का विकास हो रहा है। यह नई संस्कृति लोक संस्कृति है। अब हाट बाजार में जो छुट्टी के दिन लगता है, ग्राहकों की संख्या आशातीत बढ़ रही है। अभिजनों के स्वाद और व्यंजन बदल रहे हैं। फास्ट-फूड खाने वालों की संख्या बढ़ रही है। अब उत्तर-आधुनिकता में जिस स्तर की संस्कृति विकसित हो रही है वह पोप्यूलर और उपभोक्तावादी संस्कृति है।
11. उत्तर-आधुनिकता युवा उप-संस्कृति का निर्माण करती है- उत्तर-आधुनिकता की बहुत बड़ी विशेषता उसकी एक विशिष्ट संस्कृति है। इस विचारधारा ने युवाओं को बहुत अधिक प्रभावित किया है। ये युवा अपने आपको आधुनिकता के बन्धन से मुक्त समझने लगे हैं। इसके परिणामस्वरूप एक नई संस्कृति उभर कर आ रही है। इसे प्रतिकूल संस्कृति या उप संस्कृति कह सकते हैं। युवाओं का एक तबका इस बात पर जोर देता है कि उत्तर-आधुनिकता को अपनी विशिष्ट संस्कृति की एक पृथक् पहचान बनानी चाहिए। यूरोप के कुछ भागों में युवक यह प्रयास कर रहे हैं कि सार्वजनिक जीवन में लोग उत्तर-आधुनिक संस्कृति को उसकी पहचान देवें। इस तरह का प्रयास वस्तुतः एक सकारात्मक प्रयास है जो जन-जीवन में उत्तर-आधुनिकता की छवि को निखारेगा।
12. उत्तर-आधुनिकता अनिवार्यतः एक सांस्कृतिक तर्क है— जेमेसन ऐसे मार्क्सवादी उत्तर-आधुनिकवेत्ता हैं जिनका कहना है कि पूंजीवादी विकास का एक बहुत बड़ा चरण उत्तर आधुनिकता की संस्कृति है। हुआ यह है कि उत्तर-आधुनिकतावाद में पूंजीवाद और संस्कृति दोनों ही गड्मड् हो गए हैं और संस्कृति के नाम पर यह बूढ़ा पूंजीवाद अपनी रोटियां सेंक रहा है। प्रयोजन कुछ भी हो, तथ्य यह है कि उत्तर-आधुनिकता में संस्कृति का निवेश बहुत अधिक है।
उपसंहार – पिछले पृष्ठों में हमने उत्तर-आधुनिकता के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख किया है। ये लक्षण इस प्रक्रिया की परिभाषा और अर्थ से निकलता है। लक्षणों में परिभाषाओं की तरह समानता नहीं है। इसके होते हुए भी बहुत स्पष्ट है कि आधुनिकता के बाद में आने वाला काल उत्तर-आधुनिकता है। लगभग सभी उत्तर-आधुनिक लेखक यह स्वीकार करते हैं विखण्डन की अवधारणा एक केन्द्रीय अवधारणा है। इससे सभी सहमत हैं। इसी से जुड़ा हुआ इस प्रक्रिया में विचार महान् वृत्तान्तों का है। ल्योतार, बोड्रिलार्ड और अन्य उत्तर-आधुनिकतावादी लेखक महान् वृत्तान्तों में कतई विश्वास नहीं रखते। दूसरे शब्दों में, जितने भी तथाकथित संस्थापक विचारक और मठाधीश हैं, उत्तर-आधुनिक विचारकों को स्वीकार नहीं करते। इस तरह अस्वीकृति कोई चौंकाने वाली या आश्चर्यजनक नहीं है। गूल्डनर ने पारसन्स और मर्टन के सिद्धान्तों का ताकतवर विरोध किया था। लेकिन यह विरोध एक अकेले आदमी का था। अब पूरी की पूरी उत्तर आधुनिकता इन महान् वृत्तान्त के निर्माताओं के खिलाफ खड़ी है। यह किसी भी अर्थ में कोई मामूली बात नहीं।
उत्तर-आधुनिकता की एक और सर्वसम्मत विचारधारा संस्कृति विषयक है। सभी इस बात से सहमत हैं कि उत्तर-आधुनिकता संस्कृति प्रधान है। यह संस्कृति लोक संस्कृति है, लोक कला है, लोक साहित्य है और लोक संगीत या पोप संगीत है। इसी संस्कृति का अंग अति उपभोक्तावाद है। जेमेसन और हारवे जैसे लेखकों ने उत्तर-आधुनिकताका सम्बन्ध अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा है। वे कहते हैं कि यह विचारधारा उत्तर फोर्डवाद से भी जुड़ी हुई है और इन सब लगभग सर्वसम्मत लक्षणों के अतिरिक्त एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता उत्तर-आधुनिकता में पाई जाती है, वह है उत्तर- आधुनिक सिद्धान्त बिना सिद्धान्त के कोई भी विचारधारा बे-लगाम घोड़े की तरह होती है, चलती तो है लेकिन बिना दिशा के। जॉर्ज रिट्जर ने यह आग्रहपूर्वक कहा है कि उत्तर आधुनिकता के कतिपय सिद्धान्त हैं जिनकी अपनी निजी पहचान है। फ्रेड्रिक जेमेसन का उत्तर आधुनिकता का मार्क्सवादी सांस्कृतिक सिद्धान्त, ल्योतार का अति उत्तर-आधुनिक सिद्धान्त और फूको का ज्ञान तथा शक्ति का सिद्धान्त, कुछ दृष्टान्त हैं जो बताते हैं कि उत्तर-आधुनिकता के अपने कुछ सिद्धान्त हैं जो इस सम्पूर्ण विचारधारा को समेटने का प्रयास करते हैं?
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