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भाषा विकास में जीन पियाजे का विचार | Views of Jean piaget in Language Development in Hindi

भाषा विकास में जीन पियाजे का विचार
भाषा विकास में जीन पियाजे का विचार

भाषा विकास में जीन पियाजे का विचार (Views of Jean piaget in Language Development)

जीन पियाजे (Jean Piaget) वयस्कता के माध्यम से बचपन का संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के विकास का अध्ययन करने वाला एक स्विस मनोवैज्ञानिक (मनोचिकित्सक) था। अक्सर पियाजे का सम्बन्ध संज्ञानात्मक विकास और भाषा कौशल के विषय में बात करने से रहता था। उनका ध्यान विशेष रूप से बचपन में भाषा के विकास की ओर था या यूँ कहें कि उनका मुख्य उद्देश्य कभी भी केवल बचपन में भाषा विकास पर केन्द्रित नहीं रहा था वरन् उनका हमेशा से यह सिद्धान्त रहा है कि बचपन पूर्व प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त एवं अध्ययन क्या है, जिसको अत्यन्त प्रभावशाली प्रयासों से किया जाये एवं सिद्धान्तों से किया जाये एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाये।

1. ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण (The Sensorimotor Stage) – जीन पियाजे के अनुसार सभी बच्चों में भाषा पाठ्यक्रम के सहारे चार भागों में संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास करना है ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण में जहाँ बच्चे लगभग दो साल पुराने रहते हैं यहाँ आन्दोलन और शारीरिक प्रतिक्रियाओं से वास्ता रहता है। छोटे बच्चों को अनुभव नहीं रहता है कि वह केवल अपने शरीर को नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रकार वह अपने खेल में प्रारम्भ में अंगुलियों द्वारा खेलने या रेंगने तथा इससे भी जटिल कार्यों में बुनियादी मोटर गतिविधियों, अन्त में चलने की तरह गतिविधियों का पता लगा पाता है।

इस प्रकार चलने की कठिन गतिविधियों को अन्त में अंजाम दिया जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में संज्ञानात्मक विकास में पियाजे ने मूल रूप से शारीरिक रूप में भाषा कौशल को देखा। तदुपरान्त यह भी देखा कि उसके हाथ-मुँह क्या कर सकते हैं तथा वह प्रयोग के रूप में बच्चों के साथ क्या-क्या कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में वह अनुकरण करना किस प्रकार सीखता है तथा अनुकरण करने की प्रक्रिया को भी सीखता है। इस सन्दर्भ में बच्चों के माता-पिता द्वारा बोली गयी ध्वनियों को बालक अनुकरण द्वारा उसे दोहराने का प्रयास करते हैं तथा अनुकरण के पश्चात् उस वह भाषा को बनाना सीख जाता है।

2. पूर्व-परिचालित अवस्था (The Preoperational Stage) – यह अवस्था लगभग दो वर्ष में प्रारम्भ होती है और बच्चे जब तक छः-सात साल के नहीं हो जाते, बच्चों में यह अवस्था तब तक विद्यमान रहती है। यह अवस्था स्वार्थ की अवस्था (Egocentricity) कहलाती है। बच्चे लगातार बात करते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि उसके बात करने के क्या उद्देश्य हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वह क्या कहते हैं और यह भी आवश्यक नहीं कि वह जोर से क्या कहता है। उदाहरण के लिए, बच्चे दूसरे को आसानी से देख सकते हैं कि वह क्या कर रहा है ? हालांकि यह भी वर्णन हो सकता है कि वह क्या कर रहा है ? दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि दूसरे देखकर यह अनुमान लगा सकते हैं कि वह क्या कर रहा है ?

3. वास्तविक परिचालन प्रशिक्षण (The concrete Operational Stage)- वास्तविक परिचालन प्रशिक्षण सात वर्ष के लगभग (आस-पास) प्रारम्भ होता है और अनुमानतः यह 11-12 वर्षो तक बना रहता है। इस अवस्था में बच्चे तार्किक प्रयोग करने में सक्षम होते हैं और कहानियों के भी रूप में समस्याओं को भी हल करने में सक्षम होते हैं। अतः यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं है कि बच्चे कहानियों या सार के स्थान पर केवल तथ्यों के सहारे भी कहानी के रूप में लम्बे समय तक समानताओं को तार्किक रूप से हल करने में सक्षम हैं। इस अवस्था में ठोस अवधारणाओं का उल्लेख करने में पियाजे मानता है कि बच्चों की अभी तक पूर्ण संज्ञानात्मक परिपक्वता तक पहुँच नहीं हो पायी है। भले ही कुछ विद्वानों ने इस संज्ञानात्मक परिपक्वता में बच्चों की पहुँच की बातों को बार-बार दुहराया जाता रहा है।

4. औपचारिक परिचालन प्रशिक्षण (The Formal Operational Stage)- औपचारिक परिचालन प्रशिक्षण अवस्था बालकों के 11 या 12 वर्ष पूर्ण होने के पूर्व में ही प्रारम्भ हो जाता है । इस अवस्था में बच्चे सार का कारण जानने हेतु प्रयोग शुरू कर सकते हैं तथा यह विचार करते हुए मानसिक भेद जब तक कौन-कौन एवं किस स्वरूप में पहुँच पाता है, यह विचारणीय तथा वह भली भाँति समझ पाने में सक्षम होता है। जो बच्चे इस अवस्था को प्राप्त करते हैं वे बच्चे भाषाओं के माध्यम से गणित, दर्शनशास्त्र तथा तर्क के रूप सार सैद्धान्तिक अवधारणाओं को वाद-विवाद के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। पियाजे यह स्वीकार करते हैं कि इस प्रकार से उपर्युक्त चारों अवस्थाओं के द्वारा संज्ञानात्मक और भाषायी विकास सम्भव है तथा उपर्युक्त चारों चरणों में से किसी एक को यदि छोड़ दिया जाये तो बच्चों की अवस्थाएँ नहीं हो सकतीं।

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shubham yadav

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