B.Ed./M.Ed.

यथार्थवाद का अर्थ | यथार्थवाद के मुख्य सिद्धांत

यथार्थवाद का अर्थ
यथार्थवाद का अर्थ

यथार्थवाद का अर्थ

यथार्थवाद या राजनीतिक यथार्थवाद, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के शिक्षण की शुरूआत के बाद से ही अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का प्रमुख सिद्धांत रहा है। यह सिद्धांत उन प्राचीन परम्परागत दृष्टिकोणों पर भरोसा करने का दावा करता है, जिसमें थूसीडाइड, मैकियावेली और होब्स जैसे लेखक शामिल हैं। प्रारंभिक यथार्थवाद को आदर्शवादी सोच के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

यथार्थवाद के मुख्य सिद्धांत

यथार्थवादियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रकोप को आदर्शवादी सोच की कमी के एक सबूत के रूप में देखा था। आधुनिक यर्थाथवादी विचारों में विभिन्न किस्में हैं, हालांकि इस सिद्धांत के मुख्य सिद्धांतों के रूप में नियंत्रण वाद, अस्तित्व और स्वयं सहायता को माना जाता है।

राज्य नियंत्रण वाद/सांख्यवाद – यथार्थवादियों का मानना है कि राष्ट्र राज्य अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में मुख्य अभिनेता होते हैं, इस प्रकार यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक राज्य केंद्रित सिद्धांत है। यह विचार उदार अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों के साथ विरोधाभास प्रकट करता है, जो गैर राज्य अभिनेताओं और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका को भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों में समायोजित करता है।

जीवन रक्षा/अस्तित्व- यथार्थवादियों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली अराजकता के द्वारा संचालित है, जिसका अर्थ है कि वहाँ कोई केंद्रीय सत्ता नहीं हैं, जो राष्ट्र राज्यों में सामंजस्य रख सके। इसलिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति स्वार्थी राज्यों के बीच सत्ता के लिए एक संघर्ष है।

स्वयं सहायता- यथार्थवादियों का मानना है कि राज्य के अस्तित्व की गारंटी के लिए अन्य राज्यों की मदद पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, इसलिए राज्य को अपनी सुरक्षा स्वयं के बल पर ही करनी चाहिए।

यथार्थवाद में कई महत्वपूर्ण मान्यताएं हैं। यथार्थवादी मानते हैं कि राष्ट्र-राज्य इस अराजक अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में ऐकिक व भौगोलिक आधारित अभिनेता हैं, जहाँ कोई भी वास्तविक आधिकारिक विश्व सरकार के रूप में मौजूद नहीं है जो इन राष्ट्र-राज्यों के बीच अन्यः क्रिया या सहभागिताओं को विनियमित करने में सक्षम हो। दूसरे, यह अंतरसरकारी संगठनों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, गैर सरकारी संगठनों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बजाय संप्रभु राज्यों को ही अंतरराष्ट्रीय मामलों में प्राथमिक अभिनेता मानते हैं। इस प्रकार राज्य ही, सर्वोच्च व्यवस्था के रूप में, एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते हैं। ऐसे में, एक राज्य अपने अस्तित्व को बनाए रखने, अपनी खुद की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और इन प्राथमिक उद्देश्यों के साथ अपने स्वयं के स्वार्थ की खोज में एक तर्कसंगत स्वायत्त अभिनेता के रूप में कार्य करता है और इस तरह अपनी संप्रभुता और अस्तित्व की रक्षा करने का प्रयास करता है। यथार्थवादी मानते हैं कि राष्ट्र राज्य अपने हितों की खोज में, अपने लिए संसाधनों को एकत्र करना करने का प्रयास है और ये राज्यों के बीच के संबंधों को सत्ता के अपने संबंधित स्तरों द्वारा निर्धारित करते हैं। शक्ति का यह स्तर राज्य के सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक क्षमताओं से निर्धारित होता है। मानव स्वभाव यथार्थवादियों का मानना है, कि राज्य स्वाभाविक रूप से ही आक्रामक होते हैं अतः क्षेत्रीय विस्तार को शक्तियों का विरोध करके ही असीमाबद्ध किया गया है। जबकि दूसरे आक्रामक/रक्षात्मक यथार्थवादियों का मानना है कि राज्य हमेशा अपने अस्तित्व की सुरक्षा और निरंतरता की चिंता से ग्रस्त रहते हैं। रक्षात्मक दृष्टिकोण एक सुरक्षा दुविधा की तरफ ले जाता है, क्योंकि जहां एक राष्ट्र खुद की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए हथियार बनता है, तो वहीं प्रतिद्वंद्वी भी साथ ही साथ समानांतर लाभ प्राप्त करने की कोशिश करता है। इसलिए यह प्रक्रिया और अधिक अस्थिरता की ओर ले जा सकती है यहाँ सुरक्षा को केवल शून्य राशि खेल/शून्य-संचय खेल (जीरो सम गेम्स) के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ केवल सापेक्ष लाभ मिल सकता है।

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment