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एकात्मक एवं संघात्मक शासन में अन्तर
एकात्मक शासन वह होता है जिसके अन्तर्गत संविधान के द्वारा शासन की सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार में निहित कर जाती है। और स्थानीय सरकार का अस्तित्व एवं शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर करती है। डायसी के शब्दों में, “केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।” जबकि संघात्मक शासन का तात्पर्य एक ऐसे शासन से होता है जिसमें संविधान द्वारा ही केन्द्रीय सरकार तथा इकाइयों की सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है और ऐसा प्रबन्ध कर दिया जाता है कि इन दोनों पक्षों में कोई अकेला इस शक्ति का विभाजन में परिवर्तन कर सके। डायसी का संघात्मक शासन के सम्बन्ध में विचार है कि “संघात्मक राज्य एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त कुछ नहीं है। जिसका उद्देश्य राजनीतिक एकता तथा राज्यों के अधिकारों से मेल स्थापित करना है।”
अर्थात् एकात्मक शासने शक्तियों के केन्द्रीकरण तथा संघात्मक शासन शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित होता है। राज्य और शासन व्यवस्था के इन दो रूपों में निम्नलिखित अन्तरों का उल्लेख किया जा सकता है-
1. शक्तियों का विभाजन
एकात्मक शासन में संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन नहीं किया जाता और संविधान द्वारा ही सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार को प्रदान कर दी जाती है। जबकि संघात्मक शासन में संविधान द्वारा ही केन्द्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों के बीच शक्ति का विभाजन कर दिया जाता हैं प्रादेशिक सरकारों में शक्ति विभाजन केन्द्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है।
2. प्रादेशिक सरकारों की स्थिति
एकात्मक शासन के अन्तर्गत प्रादेशिक सरकार पूर्णतया केन्द्रीय शासन के अधीन होती है। और ये इकाइयाँ केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रदत्त शत्तियों का ही उपयोग कर सकती है। जबकि संघात्मक शासन में प्रान्तीय सरकारों को संविधान द्वारा ही शक्तियाँ प्रदान की जाती है और ये सरकारें केन्द्रीय शासन के अधीन नहीं बल्कि उनके समकक्ष होती है।
3. नागरिकों की स्थिति
एकात्मक शासन व्यवस्था में नागरिक केवल केन्द्रीय सरकार के प्रति ही निष्ठा रखते हैं और उनकी इकहरी नागरिकता प्राप्त होती है। इसके विपरीत संघात्मक शासन व्यवस्था में नागरिकों को केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकार दोनों के प्रति निष्ठावान होना पड़ता हैं तथा उनको दोहरी नागरिकताएँ एक केन्द्र की अर्थात् देश की तथा दूसरी प्रान्त की प्राप्त होती है। यद्यपि भारत के संघात्मक शासन प्रणाली वाला देश है। किन्तु नागरिकता के सम्बन्ध में भारतीयों को इकहरी नाग रेकता ही प्रदत्त है।
4. संविधान का रूप
एकात्मक राज्यों का संविधान लिखित या अलिखित कठोर या लचीला किसी भी प्रकार का हो सकता है। लेकिन संघात्मक राज्य समझौते का परिणाम होता है और यह समझौता संविधान का एक भाग एक होने के नाते अवश्य ही लिपिबद्ध होता हैं अर्थात् संघात्मक संविधान लिखित होता है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता हैं कि समझौते का कोई पक्ष अकेले ही समझौते में परिवर्तन न कर सके। इस प्रकार संघात्मक संविधान लिखित के साथ-साथ कठोर भी होता है।
5. प्रशासकीय विभागों की शक्ति
सभी एकात्मक राज्यों के अन्तर्गत साधारणतया व्यवस्थापिका सम्प्रभु होती है और न्यायपालिका का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर न्याय प्रदान करना होता है। और इस संविधान की व्याख्या एवं रक्षा करने का कार्य सर्वोच्च न्यायलय द्वारा किया जाता है।
इस प्रकार से एकात्मक तथा संघात्मक शासन प्रणालियों में उक्त महत्त्वपूर्ण अन्तर पाये जाते हैं जहाँ तक श्रेष्ठ शासन प्रणाली का प्रश्न हैं तो श्रेष्ठ शासन प्रणाली के लिए केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन भी आवश्यक है तथा प्रान्तीय सरकारें मनमानी न कर सकें इसके लिए केन्द्र का शक्तिशाली होना भी आवश्यक है। संविधान लिखित एवं लचीला तो उत्तम होता ही है साथ ही उसमें इतनी कठोरता का समावेश भी आवश्यक है कि कोई भी सत्तारूढ़ दल मनवाने ढंग से संविधान को परिवर्तित करने का दुश्साहस न कर सके। न्यायपालिका का स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होना, किसी भी स्वच्छ एवं पारदर्शी शासन प्रणाली का प्राण तत्व है, क्योंकि इसके अभाव में समाज में अराजकता ही अराजकता फैल जायेगी।
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