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आदिवासी विद्रोह- Tribal Revolts in India Before Indian Independence for 1st grade,ssc,upsc & other’s
आदिवासी विद्रोह- Tribal Revolts in India– हेलो दोस्तों आप सब छात्रों के समक्ष “चुआर विद्रोह,हो विद्रोह,कोल विद्रोह,सैनिकों के विद्रोह,फकीर विद्रोह,कूका विद्रोह,पागलपंथी विद्रोह,रामोसी विद्रोह,पोलिगारों का विद्रोह,कच्छ का विद्रोह,सावंतवादी विद्रोह,वेलुथम्पी विद्रोह,किट्टूर चेन्नमा विद्रोह,गंजाम विद्रोह,पाइका विद्रोह,पहाड़िया विद्रोह,खोंड विद्रोह,खोंड डोरा विद्रोह,संथाल विद्रोह,गड़करी विद्रोह,”इत्यादि के बारे में बतायेंगे. जो छात्र SSC, PCS, IAS, UPSC, UPPPCS, Civil Services या अन्य Competitive Exams की तैयारी कर रहे है है उनके लिए ये ‘ जनजातीय विद्रोह Tribal Movements पढना काफी लाभदायक साबित होगा.
आदिवासियों के आंदोलन
चुआर विद्रोह (भूमिन विद्रोह) (1768 ई.)
. नेतृत्व : जगन्नाथ
. क्षेत्र : चुआर या भूमिन बंगाल में मेदिनापुर जिले में रहते थे।
. उद्देश्य : अकाल व बढ़ते हुए भूमि कर और अन्य आर्थिक संकटों के कारण मेदिनीपुर जिले के आदिम जाति के चुआर लोगों ने अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया।
हो विद्रोह (1820–1833 ई.)
. क्षेत्र : छोटा नागपुर (बिहार)
. नेतृत्व : गंगा नारायण
. कारण : छोटा नागपुर के हो आदिवासियों ने बढ़े हुए भूमिकर के कारण जमींदारों एवं अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह 1820-32 ई. तक जारी रहा।
कोल विद्रोह (1831-32 ई.)
. क्षेत्र : सिंहभूम के निकट सोनपुरा परगना
. नेता : बुद्धो भगत व गंगा नारायण
. विवरण : छोटा नागपुर क्षेत्र के मुंडा औरावं, हो, महाली आदि जनजातियां निवास करती है। इन्हें मैदानी लोग कोल कहते हैं।
. कोलों ने छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा सेना से संघर्ष किया। पूर्वी भारत में शोषण के विरूद्ध कोलो ने प्रथम बार संगठित रूप से सरकार और उसके समर्थकों के विरूद्ध सशस्त्र आंदोलन आरंभ किया।
सैनिकों के विद्रोह (1778 ई.)
. 1778 ई. में ही जब वारेन हेस्टिंग्स ने बनारस के राजा चेतसिंह पर अधिक
धन के लिए दबाव डालना आरंभ किया तो सेना ने राजा की मदद की और अंग्रेजी सिपाहियों का विरोध किया।
. लॉर्ड वेलेजली ने जब अवध के नवाब वजीर अली को गद्दी से हटा दिया
तब नवाब के सैनिकों ने ब्रिटिश सेना से युद्ध किया।
. 1844 ई. में पुन: फिरोजपुर 34वीं रेजीमेंट, 7वीं बंगाल घुड़सवार सेना, 64वीं रेजिमेंट और रावलपिंडी की 22वीं रेजिमेंट ने अपने अधिकारों की सुरक्षा के
लिए विद्रोह कर दिया। इन सभी विद्रोहों को तो सरकार ने दबा दिया परंतु असंतोष की भावना को समाप्त करने में सरकार विफल रही।
कुछ अन्य विद्रोह
फकीर विद्रोह (1776-77 ई.)
. क्षेत्र : पश्चिम बंगाल
. नेतृत्व : मजनू शाह व चिराग अली शाह
. मुख्य केंद्र : दीनाजपुर, रंगपुर व मालदा
. मत : ये लोग अधिकतर सूफी परंपराओं से प्रभावित थे। फकीर समुदाय, मदारी और बरहाना जातियों के थे जो मुगल काल में ही बंगाल और बिहार के अनेक हिस्सों में बस गये थे।
. विवरण : मजनूशाह की गतिविधियों को रोकने के लिए अंग्रेजी सरकार ने प्रयास किया। 1771 ई. में कैप्टन जेम्स रेनल ने एक मुठभेड़ मजनूशाह को पराजित किया। चिरागअली शाह ने अपनी गतिविधियों का विस्तार बंगाल के उत्तरी जिलों तक किया।
. चिराग अली की सहायता करने वालों में 2 हिंदू नेता (1. भवानी पाठक, 2. देवी चौधरानी) प्रमुख थे।
पागलपंथी विद्रोह (1813–1833 ई.)
. क्षेत्र : पश्चिम बंगाल
. प्रमुख नेतृत्व : करमशाह / टीपू मीर
. विवरण : पागलपंथ उत्तर-पूर्व भारत का एक धार्मिक सम्प्रदाय था। जिले उत्तरी बंगाल के करमशाह ने चलाया था। कमरशाह का पुत्र तथा उत्तरधिकारी टीपू मीर धार्मिक तथा राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित था।
. जमींदारों के मुजारों पर किये गये अत्याचारों के विरूद्ध 1813 ई. में विद्रोह हुआ।
कूका विद्रोह (1860-70 ई.)
. क्षेत्र : पंजाब
. नेतृत्व : भगत जवाहर मल
. उपनाम : सियन साहिब व बालक सिंह
. स्वरूप : यह आंदोलन पंजाब में एक धार्मिक राजनैतिक आंदोलन था। इसका नेतृत्व बालक सिंह ने किया था।
. धार्मिक लक्ष्य : सिखवाद का धर्मसुधार।
. राजनैतिक लक्ष्य : अंग्रेजों को पंजाब से भगाकर सिखों के प्रभुत्व को पुनः स्थापित करना था।
. विशेष : 182 में रामसिंह कूका को इस आंदोलन का जिम्मेदार घोषित कर रंगून भेज दिया गया जहां 1885 में उनकी मृत्यु हो गई।
रामोसी विद्रोह (1822, 1825-26, 1839-41 ई.)
. क्षेत्र : पश्चिमी घाट (महाराष्ट्र के पूना के निकटवर्ती क्षेत्र)
. नेतृत्व : चित्तर सिंह व नरसिंह दत्तात्रेय पेतकर।
. स्वरूप : रामोसी पश्चिमी घाट में रहने वाली एक आदिम जाति थी जो अंग्रेजी शासन पद्धति से नाराज थी।
. 1822 ई. में उनके सरदार चित्तर सिंह ने विद्रोह कर दिया तथा सतारा के आस-पास का प्रदेश लूट लिया। 1825–26 ई. में पुनः विद्रोह हुए और इस प्रदेश में 1829 ई. तक अशांति रही। इसी प्रकार सितंबर, 1839 ई. में सतारा के राजा प्रताप सिंह के सिंहासनाच्युत तथा देश निष्कासन से समस्त प्रदेश में असंतोष उत्पन्न हो गया और 1840–41 ई. में विस्तृत दंगे हुए। नरसिंह दत्तात्रोय पेतकर ने बहुत से सैनिक एकत्रित कर लिये तथा बादामी का दुर्ग जीतकर उस पर सतारा के राजा का ध्वज फहरा गया। अंग्रेजी सेना ने बाद में विद्रोह को दबा दिया।
पोलिगारों का विद्रोह (1799-1801 ई.)
. नेतृत्व : वीर पी. कट्टवामन्न।
. कारण : पोलिगारों ने विजयनगर साम्राज्य के काल में पूर्वी घाट के जंगलों में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे। ये लोग हथियारवंद दस्ते रखते थे।
. विशेष : इनका विद्रोह तमिलनाडु में टीपू के शासनकाल के अंतिम समय में हुआ था। टीपू-अंग्रेज संघर्ष में अंग्रेज विजयी हुए, उसी समय 1799 ई.- 1801 ई. के बीच इनका संघर्ष अंग्रेजों से हुआ था।
कच्छ का विद्रोह (1819-31)
. नेतृत्व : भारमल व झरेजा
. कारण : कच्छ के राजा भारमल को जब अंग्रेजों ने हटाकर उसके अल्प
वयस्क पुत्र को गद्दी पर बिठा दिया तो भारमल और उसके समर्थक सरदार झरेजा ने विद्रोह कर दिये। 1831 ई. में भारमल को पुनः गद्दी पर बिठाने के बाद यह विद्रोह शांत हो गया।
सावंतवादी विद्रोह (1844 ई.)
. नेतृत्व : मराठा सरदार फोंड सावंत
. सहयोगी : फोंड सावंत ने अन्य सरदारों व देसाइयों, जिसमें अन्ना साहब
प्रमुख थे।
. कारण : शीघ्र ही अंग्रेजी सेना ने किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद विद्रोही बचकर गोवा चले गये। कई सावंतवादी विद्रोहियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया तथा कारावास का दंड दिया गया।
वेलुथम्पी विद्रोह (1808-09)
. क्षेत्र : यह विद्रोह 1808-09 में त्रावणकोर (केरल) में हुआ।
. नेतृत्व : दीवान वेलू थम्पी
. कारण : लॉर्ड वेलेजली द्वारा दीवान वेलु थम्पी को सहायक संधि के लिए विवश कर राज्य पर भारी वित्तीय भार बढ़ गया था।
. वेलेजली के इस कुकृत्य के विरूद्ध दीवान वेलु थम्पी ने विद्रोह कर दिया।
. दीवान वेलु थम्पी के विद्रोह के दौरान, नायर बटालियन ने उसका समर्थन किया था।
. विशेष : वेलु थम्पी ने फ्रांस व अमेरिका से भी अंग्रेजों के विरूद्ध सहायता के लिए सम्पर्क किया था।
. दमन : कई बार संघर्ष करने के बाद अंग्रेज विद्रोह को दबाने में सफल हुए। गोलियों से घायल वेलुथम्पी की मृत्यु के बाद अंग्रेजी सेना ने उसे सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया।
किट्टूर चेन्नमा विद्रोह (1824-29 ई.)
. स्वरूप : तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1817–1818) के बाद अंग्रेजों ने किट्टूर को स्वतंत्र मान लिया था।
. क्षेत्र : किट्टूर आधुनिक कर्नाटक प्रांत में स्थित।
. नेतृत्व : चेन्नमा रानी
. कारण : 1824 ई. में किट्टूर के अंतिम शासक शिवलिंग रूद्र की मृत्यु के बाद, गोद लिए गए उसके उत्तराधिकारी को अंग्रेजों ने मान्यता देने से मना कर दिया। इसी के परिणामस्वरूप दिवंगत सरदार की विधवा चेन्नमा ने रामप्पा की सहायता से विद्रोह कर दिया।
. विद्रोह के दौरान किट्टूर के विद्रोहियों ने धारवाड़ के कलेक्टर की हत्या कर किट्टूर की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
. अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए दमनकारी नीति अपनाई। रामप्पा को पकड़ कर फांसी दे दी गयी तथा चेन्नमा की धारवाड़ जेल में मृत्यु हो गयी।
गंजाम विद्रोह (1835 ई.)
. नेतृत्व : गुमसुर का जीमंदार धनंजय भांजा।
. कारण : इस विद्रोह का कारण बकाये लगान की वसूली था। धनंजय भांजा श्रीकरभंज का पुत्र था। श्रीकरभंज ने 1800–1805 ई. के बीच हुए गंजाम विद्रोह का नेतृत्व किया था।
. यह विद्रोह मद्रास प्रेसीडेंसी के चीकाकोल सरकार में स्थित गंजाम जिले में अंग्रेजों को कर न देने के के कारण विद्रोह हुआ था।
पाइका विद्रोह (1904 ई.)
. नेतृत्व : जगत बंधु
. कारण : अन्य रियासतों की तरह अंग्रेजों ने उड़ीसा में भी भूमि कर में अनियमित वृद्धि कर दी थी और उसकी वसूली बड़ी कड़ाई के साथ करते थे। ब्रिटिश सरकार के इस अत्याचार से हजारों किसान खेतों को छोड़ कर जंगल में चले गये।
. किंतु 1904 ई. में खुर्दा (उड़ीसा) के राजा ने अपने पाइकों की सहायता से इस अत्याचार के विरूद्ध विद्रोह किया था खुर्दा में अंग्रेजी सेना को परास्त किया।
पहाड़िया विद्रोह (1778 ई.)
. स्वरूप : 1778 ई. में प्रारंभ यह आंदोलन लम्बे समय तक चलता रहा।
. कारण : यह विद्रोह राजमहल की पहाड़ियों में स्थित जनजातियों द्वारा उनके क्षेत्रों पर अंग्रेजों के हस्तक्षेप द्वारा शुरू हुआ था।
. परिणाम : अंत में अंग्रेजों को इनके साथ सुलह करनी पड़ी और इस क्षेत्र को दामनीकोल क्षेत्र घोषित करना पड़ा।
खोंड विद्रोह (1837-56 ई.)
. नेतृत्व : चक्रबिसोई
. स्वरूप : खोंड लोगों ने 1837–1856 ई. तक अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह किए।
. कारण : सरकार द्वारा मानव बलि को प्रतिबंधित करने का प्रयास, अंग्रेजों द्वारा नये करों को आरोपित करना तथा उनके क्षेत्रों में जमीदारों व साहूकारों को प्रवेश की अनुमति देना था।
. क्षेत्र : खोंड लोग, तमिलनाडु से लेकर बंगाल व मध्य भारत तक फैले विस्तृत पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे।
. खोंड विद्रोह में धुमसर, चीन की मेंडी, कालाहांडी तथा पटना के आदिवासियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया था।
. विवरण : राधाकृष्ण दण्डसेन के नेतृत्व में सवारा और कुछ अन्य योद्धा जनजातियां इस विद्रोह में शामिल हो गयी।
. कुछ समय पश्चात 1835 ई. में चक्रबिसोई लुप्त हो गया। इसके बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया।
खोंड डोरा विद्रोह (1900 ई.)
. नेतृत्व : कोर्रा मल्ल्या
. स्वरूप : यह विद्रोह 1900 में विशाखापट्टनम एजेंसी के डाबूर आदिवासी क्षेत्र के खोंड डोरा जनजातियों द्वारा किया गया।
. विवरण : कोर्रा मल्लया ने पाण्डवों का अवतार होने का दावा किया था और यह आश्वासन दिलाया कि वह आदिवासियों के बांसों को बंदूकों में और सरकारी हथियारों को पानी में परिवर्तित कर देगा। इसके बाद वह अंग्रेजों को निष्कासित करके अपने शासन की स्थापना करेगा।
. विद्रोह को दबाने के लिए अपनी दमनात्मक नीति के अंतर्गत पुलिस ने 110 आदिवासियों को गोली मार दी तथा शेष को फांसी दे दिया गया।
संथाल विद्रोह (1855-56 ई.)
. उपनाम : हुल आंदोलन
. क्षेत्र : दामन-ए-कोह के नाम से ज्ञात भागलपुर से राजमहल तक का भू-भाग संथाल बाहुल्य क्षेत्र था।
. नेतृत्व : सिद्धू और कान्हू
. कारण : संथाल विद्रोह आर्थिक कारणों से उत्पन्न हुआ था लेकिन शीघ्र ही इसका उद्देश्य विदेशी शासन को समाप्त करना हो गया। इस विद्रोह के बाद अंग्रेजी
सरकार ने 1855ई, में 37वें रेगुलेशन के अनुसार संस्थाल क्षेत्र को पृथक नन रेगुलेशन जिला घोषित कर दिया।
. विशेष : संथाल बीरभूम, बांकुरा, मुर्शिदाबाद, पाकुर, दुमका, भागलपुर और पूर्णिया जिले के रहने वाले थे जहां संथाल सबसे ज्यादा संख्या में रहते थे, उसे दमन-ए-कोह (संस्थाल) परगना के रूप में जाना जाता था। जब इस इलाके में संथालों ने जंगल साफ करके खेती करनी शुरू की तो पड़ोस के महेशपुर व पाकुर के राजाओं ने संथाल गांवों को जमींदारों और महाजनों के हवाले कर दिया। इस क्षेत्रों में बाहरी लोगों संथाल इन्हें दीवू कहते थे।
गड़करी विद्रोह (1844 ई.)
. क्षेत्र : कोल्हापुर (महाराष्ट्र)
. नेतृत्व : बाबाजी अहिरकेर
. कारण : गड़करी लोगों ने, मनमाने ढंग से भू-राजस्व की वसूली, मराठा सेना से उनके सेवामुक्त किए जाने और उनकी जीमीनों को मामलतदारों की देख-रेख के अधीन रख दिए जाने के विरुद्ध विद्रोह किए।
. गडकरी लोग मराठा क्षेत्र के दुर्गों में सैनिक के रूप में काम करते थे। इसके बदले में उन्हें कर मुक्त भूमि दी जाती थी।
. विशेष : विद्रोह के दौरान गडकरी लोगों ने समनगढ़ व भूदरगढ़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। लम्बे संघर्ष के बाद अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हुए।
कोया विद्रोह
. क्षेत्र : यह विद्रोह आधुनिक आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी क्षेत्र में प्रारंभ हुआ।
. केंद्र : चोडावरम का रम्पा क्षेत्र।
. स्वरूप : आदिवासी कोया व कोंडा सोरा नामक पहाड़ी सरदारों ने 1803, 1840, 1845, 1858, 1861 तथा 1862 में अपने शासकों के विरूद्ध विद्रोह किए।
. मुख्य कारण : सरकार द्वारा जंगलों पर आदिवासियों के परम्परागत अधिकारों को समाप्त करना, पुलिस उत्पीड़न, साहूकारों का शोषण, ताड़ी के घरेलू उत्पादन पर आबकारी अधिनियमों को लागू करना।
. स्वरूप : 1879-80 ई. में कोया विद्रोह का नेतृत्व टोम्पा सोरा ने किया था।
. विवरण : टोम्पा सोरा को माल्कागिरि का राजा घोषित किया गया। कोया विद्रोह इतना उग्र हो गया था कि इसे दबाने के लिए सरकार ने मद्रास इन्फैन्टी के 6 रेजीमेंट्स का सहयोग लिया था।
.1886 में कोवा विद्रोहियों ने राजा अनन्तय्यार के नेतृत्व में रामसंडू (राम की सेना) का गठन किया और अंग्रेजी राज को पलटने के लिए जयपुर के राजा से सहायता मांगी थी।
. टोम्पा सोरा पुलिस द्वारा मारा गया। इसके साथ ही यह विद्रोह समाप्त हो गया। किंतु 1886 ई. में राजा अनन्तय्यार के नेतृत्व में पुन: कोया विद्रोह आरंभ हुआ।
चेंचू आंदोलन (1920 ई.)
. समय अवधि : 1920 ई. में असहयोग के समय शक्तिशाली जंगल सत्याग्रह के रूप में।
. क्षेत्र : आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में
. नेतृत्व : वेंकट्टप्पया। महात्मा गांधी ने 1927 ई. में कुडडपाह की यात्रा किये।
. विवरण : आंदोलन के दौरान किसानों ने पशु चराने के लिए वसूल किए जाने वाले चरवाही शुल्क का भुगतान किए बिना पशुओं को जंगल में भेजना शुरू कर दिया।
. पालनद में कुछ ग्रामवासियों ने स्वराज की उद्घोषणा कर दी थी।
. 1921-22 ई. में मोती लाल तेजावत के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जन आंदोलन
प्रारंभ हुआ.
. फरवरी, 1922 ई. में बंगाल के जलपाइगुड़ी जिले में संस्थालों ने महात्मा गांधी की टोपियां पहन कर पुलिस पर हमले किये।
. उनका विश्वास था कि इन टोपियों के कारण उन पर गोलियों का कोई प्रभाव नहीं होगा।
मुण्डा विद्रोह (उलुगखानी विद्रोह)
. आदिवासी विद्रोहों में सबसे अधिक प्रसिद्ध बिरसा मुंडा का उल्गुलान (महाविद्रोह) था।
. समय अवधि : 1893-1990 ई.
. क्षेत्र : रांची के दक्षिण क्षेत्रों में छोटा नागपुर
. उपनाम : मुण्डा विद्रोह उल्गुलान के नाम से प्रसिद्ध है।
. नेतृत्व : बिरसा मुंडा
. विवरण : बिरसा मुंडा एक बंटाईदार का पुत्र था, उसे मिशनरियों से थोड़ी बहुत शिक्षा मिली थी। वह जर्मन मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गया था किंतु पुन: उसने अपने पूर्वजों के धर्म को अपना लिया।
. मुंडा ने एकेश्वरवाद की स्थापना पर बल दिया। एक मान्यता के अनुसार 1895 ई. में बिरसा को परमेश्वर के दर्शन हुए और वह पैगम्बर होने का दावा करने लगा। उसका कहना था कि उसके पास निरोग कहने की चमत्कारी शक्ति हैं।
. कारण : मुंडों की पारस्परिक भूमि व्यवस्था खूंटकट्टी (मुंडारी का जीमंदार) या व्यक्तिगत भूस्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था में परिवर्तन के विरूद्ध। किंतु बाद में बिरसा मुंडा ने इसे धार्मिक राजनीतिक आंदोलन का रूप प्रदान किया।
. 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर बिरसा के अनुयायियों ने रांची और सिंहभूम के कुछ क्षेत्रों में अपनी आक्रामक गतिविधियां प्रारंभ की।
. इस विद्रोह में मुंडा स्त्रियों ने भी भाग लिया। 1900 में विद्रोहियों ने पुलिस को अपना निशाना बनाया परंतु जनवरी, 1900 में सैलरकेब पहाड़ी पर ब्रिटिश सेना द्वारा पराजित हुए।
. कुछ दिन बाद बिरसा पकड़ा गया और उसकी जेल में मृत्यु हो गयी। उसके मृत्यु के बाद यह विद्रोह शांत हो गया।
. विद्रोह शांत होने के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा छोटा नागपुर काश्तकारी कानून में किसानों को कुछ राहत प्रदान की गयी।
. इस कानून के अंतर्गत संयुक्त काश्तकारी अधिकारों को मान्यता दी गयी तथा बेरोजगारी बंधुवा मजदूरी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
रम्पा विद्रोह (1879 ई.)
. क्षेत्र : आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के उत्तर में स्थित रम्पा क्षेत्र में।
. नेतृत्व : अल्लूरी सीता राम राजू। अल्लूरी सीता राम राजू एक गैर-आदिवासी था।
. कारण : साहूकारों द्वारा आदिवासियों का शोषण एवं वन कानून।
. विद्रोह का एक और कारण गुडेम नामक तहसीलदार का उत्पीड़क कार्य था। उसने जंगलों में सड़क निर्माण के लिए रम्पा आदिवासियों को बन्धुआ मजदूर के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य किया।
. विवरण : सीता राम राजू को असहयोग आंदोलन से प्रेरणा मिली थी किंतु आदिवासियों के कल्याण के लिए वह हिंसा आवश्यक मानता था।
. सीता राम राजू महात्मा गांधी का प्रशंसक था।
. वह बंदूक की गोलियों के बौछार से स्वयं को अभेद्य (बुलेटप्रूफ) होने का दावा करता था।
. लम्बे संघर्ष के बाद सीता राम राजू को गिरफ्तार कर मार दिया गया किंतु रम्पा विद्रोह को दबाने के लिए सरकार को अथक प्रयास करना पड़ा।
कूकी आंदोलन (1917–1919 ई.)
. क्षेत्र : मणिपुर के जनजातियों द्वारा 18वीं सदी में
. कारण : आदिवासियों को पोथांग के लिए बाध्य करना तथा सरकार द्वारा आदिवासियों को झूम कृषि से रोकने के विरोध में।
. पोथांग : आदिवासियों को बिना मजदूरी के अधिकारियों का सामान ढोने को कहा जाता था।
. दमन : ब्रिटिश सरकार द्वारा लम्बे प्रयास के बाद इस विद्रोह को दबा दिया गया।
. सीमांत आदिवासी विद्रोह में सबसे अंतिम विद्रोह कूकी विद्रोह था, जो 1917-1919 ई. तक चला।
हाथी खेड़ा विद्रोह (1820 ई.)
. क्षेत्र : फिरोजपुर के दक्षिण में मेमन सिंह के निकट ।
. कारण : बेगारी के विरूद्ध किसानों का विद्रोह था।
रानी गोईदिन्ल्यू का नागा आंदोलन (1931 ई.)
. क्षेत्र : मणिपुर
. नेतृत्व : रोममेई जदोनांग व रानी मोइदिन्ल्यू
. उद्देश्य : सामाजिक एकता हेतु समाज में प्रचलित गलत रीति-रिवाजों को समाप्त कर प्राचीन धर्म को पुनर्जीवित करना था।
. कारण : नागा नेता जदोनांग को गिरफ्तार कर 29 अगस्त, 1931 ई. को फांसी दी गयी।
. विवरण : फांसी के उपरांत 13 वर्षीय महिला गोइदिन्ल्यू ने आंदोलन का नेतृत्व संभाला और हेकपिंथ की स्थापना की जो धार्मिक विचारों पर आधारित था।
. उपाधि : जवाहर लाल नेहरू व आजाद हिंद फौज (सुभाष चंद्र बोस) ने गोइदिन्ल्यू को रानी की उपाधि देकर सम्मानित किया था।
. विशेष : दमन के बाद इस आंदोलन को आदिवासियों के शांतिपूर्ण संगठनों काबुई समिति (1934), काबुई नागा एसोसिएशन (1946) जेलियांग सांग परिषद (1947) व मणिपुर जेलियांग सांग यूनियन के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
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