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कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग हेतु व्यूह रचनाएँ

कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग हेतु व्यूह रचनाएँ
कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग हेतु व्यूह रचनाएँ

कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग हेतु व्यूह रचनाएँ

कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग हेतु व्यूह रचनाएँ- कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग के लिए निम्नलिखित व्यूह रचनाएँ विकसित की जा सकती हैं-

1. समृद्ध शब्दावली का प्रयोग- कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के उपयोग के लिए समृद्ध शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए। शब्द भण्डार भाषा के विकास का द्योतक कहा जाता है। शब्द ही व्यक्ति के भावों, विचारों एवं अनुभूतियों के प्रकाशन के लिए प्रतीक का कार्य करते हैं। किसी भी जाति के अनुभव शब्दों के रूप में सुरक्षित रहते हैं। शब्दों का इतिहास समाज के ज्ञान-विज्ञान के उत्कर्षायकर्ष का इतिहास होता है। जिस भाषा के पास शब्दों की कमी होती है, उसे हीन भाषा कहा जाता है और निश्चय ही भाषा पर आक्रमण उसकी शब्दावली को लेकर ही होता है।

जब संविधान बना तो उस समय यह कहा गया कि हिन्दी भाषा में पारिभाषिक शब्दों की कमी है। अतः पारिभाषिक शब्द-संग्रह के लिए भारत सरकार द्वारा एक समिति की स्थापना हुई, जिसने बारह वर्ष तक कठोर परिश्रम करके सन् 1962 में अपना कार्य पूरा किया। इस कार्य को पारिभाषिक शब्द-संग्रह नामक सरकारी कोष के रूप में देखा जा सकता है। इस महान कार्य की पोल डॉ. रामविलास शर्मा ने ‘धर्मयुग’ में अच्छी तरह खोली। डॉ. शर्मा के ही शब्दों में सुनिए- ” शब्द संग्रह तैयार हो गया। धन, समय और शक्ति के अपव्यय के बावजूद यह लाख से ऊपर शब्दों का संग्रह प्रस्तुत है। भारत के डेढ़ फीसदी अंग्रेजीदाँ, बुद्धिजीवी जो पहले अंग्रेजी में सोचते हैं, फिर अपने सोचने का फल किसी भारतीय भाषा में प्रकट करते हैं, इस कोष की सहायता से हिन्दी में अब अपने अमूल्य विचार प्रकट कर सकते हैं।

शब्दावली की समृद्धशीलता हेतु उप-व्यूह रचनाएँ (Sub-strategies for matured vocabulary) 

शब्दावली की समृद्धशीलता के लिए निम्नलिखित उप-व्यूह रचनाओं का विकास किया जा सकता है-

(i) वैज्ञानिक लिपि – किसी भी भाषा के दो रूप होते हैं-मौखिक और लिखित । मौखिक भाषा की अंतिम इकाई ध्वनि होती है। ध्वनियों का संबंध देश तथा काल से होता है। संसार की प्रत्येक भाषा की कुछ अपनी विशिष्ट ध्वनियाँ होती हैं। हिन्दी की भी अपनी ध्वनियाँ हैं। ध्वनियों की दृष्टि से कोई भी भाषा न तो समृद्ध कही जा सकती है, न दरिद्र। लिखित भाषा की अंतिम इकाई वर्ण है। प्रत्येक ध्वनि को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए जो चिह्न या प्रतीक प्रयुक्त होता है, उसे वर्ण कहा जाता है। सभी वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। जिस रूप में इन वर्गों को लिखा जाता है, उसे लिपि कहते हैं।

संसार में जो प्रसिद्ध लिपियाँ हैं, उनमें रोमन, फारसी और देवनागरी लिपि मुख्य हैं। किसी भी लिपि की वैज्ञानिकता को परखने के लिए कुछ बातें देखनी आवश्यक हैं. उदाहरणार्थ, यह देखना आवश्यक हो जाता है कि अक्षरों के विभिन्न अंगों का अनुपात और रेखाओं की मोटाई व्यवस्थित हो, जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाए। एक चिह्न से एक हो ध्वनि का बोध होता है या कई ध्वनियों का एक ध्वनि के लिए सदा एक ही चिह्न रहता है या अनेक तथा जिस भाषा की वह लिपि है, उसकी सभी ध्वनियों के प्रतीकों का समावेश है या नहीं।

देवनागरी लिपि इस कसौटी पर खरी उतरती है और इसलिए उपर्युक्त तीनों लिपियों में यह सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। हिन्दी पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि में लिखी जाती है और इस दृष्टि से समृद्धशीलता में उसके पास कोई कमी नहीं है। अब धीरे-धीरे यह विचार बल पकड़ता जा रहा है कि सभी भारतीय भाषाओं के लिए यदि एक लिपि की आवश्यकता हो, तो देवनागरी लिपि को ही ग्रहण करना उत्तम होगा।

(ii) सरल वाक्य रचना- कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा का प्रयोग करते समय सरल वाक्य रचना का प्रयोग करना चाहिए। वाक्य रचना की दृष्टि से सभी भाषाओं के अपने कुछ नियम होते हैं; जैसे-हिन्दी में क्रिया वाक्य के अंत में आती है और कर्म क्रिया के पूर्व रहता है, जबकि अंग्रेजों में कर्म क्रिया के बाद आता है। हिन्दी में सहायक क्रियाएँ मूल क्रियावाचक शब्द के बाद आती हैं, जबकि अंग्रेजी में पहले। यह हिन्दी वाक्य रचना की भाव प्रकृति है। जो अंग्रेजी वाक्य रचना से भिन्न है।

(iii) शुद्ध वर्तनी का प्रयोग- वर्तनी का तात्पर्य है वर्ण विन्यास। किसी भी भाषा का ध्वनि चिह्न वर्ण कहलाता है। वर्ण जब मुँह से बोला जाता है तो उसे ध्वनि कहते हैं। ध्वनि का लिखित रूप वर्ण है। दो भिन्न भाषाओं में ध्वनि साम्य तो हो सकता है, किन्तु वर्ण साम्य नहीं होता है। वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी की वर्णमाला देवनागरी कहलाती है। अधिकांश भाषा वैज्ञानिकों का यह मत है कि संसार की सभी प्रचलित लिपियों में देवनागरी लिपि सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है और इसमें प्रायः जो बोला जाता है वही लिखा जाता है।

(iv) स्वाभाविकता- कुछ लोग हिन्दी को कृत्रिम भाषा कहकर उसकी खिल्ली उड़ाते हैं। उनके अनुसार ब्रज, अवधी, भोजपुरी तथा बुन्देलखण्डी स्वतन्त्र भाषाएँ हैं और वे हिन्दी से सर्वथा पृथक हैं। खड़ी बोली जिस प्रकार मेरठ या दिल्ली के आस-पास बोली जाती है, हिन्दी उससे भी भिन्न है ।

2. परिचर्चा अथवा समूह चर्चा- कक्षा-कक्ष में मौखिक रूप से परिचर्चा का प्रयोग करना चाहिए। परिचर्चा करते समय विभिन्न छात्र इसमें भाग लेते हैं। कक्षा-कक्ष में बालक के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने के लिए तथा विषय क्षेत्र में अधिकतम अधिगम हेतु परिचर्चा का उपयोग किया जा सकता है। प्रख्यात शिक्षाविद एडम्स ने शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया कहा है इसका एक ध्रुव विद्यार्थी है और दूसरा अध्यापक अध्यापक अपने व्यक्तित्व द्वारा विद्यार्थी के व्यक्तित्व पर अपना प्रभाव डालता है। अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए परिचर्चा या समूह चर्चा एक महत्वपूर्ण व्यूह रचना है। जब अध्यापक किसी बालक का व्यक्तिगत ध्यान रखते हुए शिक्षण करता है तो वह व्यक्तिगत शिक्षण कहा जाता है और जब विभिन्न छात्रों के मध्य समूह में चर्चा होती है तो उसे समूह परिचर्चा कहा जाता है। समूह परिचर्चा में कई शिक्षार्थियों के समूह परस्पर अंतःक्रिया करते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं और प्रेरित करते हैं। सामूहिक परिचर्चा में छात्रों को एक ही प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है अतः उनके समाधान में सुविधा रहती है।

3. प्रश्नोत्तर नीति- कक्षा-कक्ष में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए प्रश्नोत्तर नीति का भी प्रयोग किया जा सकता है। प्रश्नोत्तर शिक्षण नीति के प्रमुख तीन सोपान होते हैं- 1. प्रश्नों को व्यवस्थित रूप से निर्मित करना। 2. उन्हें समुचित रूप से छात्रों के सामने रखना, ताकि नये ज्ञान के लिए उनमें उत्सुकता जाग्रत हो सके तथा 3. छात्रों के माध्यम से उनमें संबंध स्थापित करते हुए नवीन ज्ञान देना। इसमें निम्न, मध्यम तथा उच्च स्तर के प्रश्न आवश्यकतानुसार प्रयोग किये जाते हैं। प्रश्नोत्तर विधि छात्रों को सक्रिय बनाती है। उसमें नये ज्ञान के प्रति उत्सुकता जाग्रत हो जाती है। यह विधि विशेष विषय के अधिगम के विकास में सहायता करती है। विशिष्ट अधिगम तथा प्रशिक्षण के लिए इसका उपयोग करना सही है। इस नीति के प्रयोग से अधिगम को मौखिक रूप से बढ़ाया जा सकता है।

4. उदाहरण प्रविधि – उदाहरण प्रविधि का कक्षा-कक्ष में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए मौखिक भाषा के प्रयोग में उपयोग करना चाहिए। उदाहरण प्रविधि में उदाहरणों का प्रयोग करके छात्रों की विचार शक्ति तथा कल्पना शक्ति दोनों को जाग्रत किया जा सकता है। उदाहरण वास्तव में वह सामग्री है जो कक्षा-कक्ष में पाठ्य-वस्तु को रोचक, बोधगम्य तथा स्पष्ट करने में सहायक होती है। शिक्षक खोज-खोजकर वांछित उदाहरण छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करके विषय सामग्री को सरल बनाने का प्रयास करता है जिससे छात्रों की अधि गमशीलता को बढ़ाया जा सके।

उदाहरणों का प्रयोग करने से अमूर्त कठिन तथा जटिल विषयों को सुगम तथा आसान बनाया जाता है जिससे छात्रों के मस्तिष्क पर ज्ञान की अभीष्ट छाप पड़ सके। अच्छे तथा उत्तम कोटि के उदाहरण दुरूह कथनों को सजीव, सलह तथा ग्राह्य बनाकर विषय की क्लिष्टता को कम करने का प्रयोग करते हैं। कक्षा-कक्ष में सटीक उदाहरण तथा दृष्टान्त देना एक कला है, जिसमें शिक्षक को पारंगत होना आवश्यक है। उदाहरणों एवं दृष्टान्तों का प्रयोग विषय-सामग्री को अधिक स्पष्ट करता है और छात्रों को नया ज्ञान प्रदान करने में सहायक होता है। इस प्रविधि प्रयोग से छात्रों की जिज्ञासा का समाधान होता है, वे विषय के सार तक सरलता से पहुँच जाते हैं और ज्ञान के प्रति रुचि में वृद्धि होती है। शिक्षक जब इस – प्रविधि का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार के सटीक उदाहरण एवं सामग्री को उदाहरणों एवं दृष्टान्तों के माध्यम से सरलता से समझ जाते हैं तो वे स्वयं भी नये-नये उदाहरण तथा दृष्टान्त देने की कला में दक्ष होने लगते हैं। मौखिक उदाहरणों के अंतर्गत दृष्टान्त, कहानियाँ, लोकोक्ति, नीति श्लोक, उपमाएँ, रूपक तथा उत्प्रेक्षाओं आदि को समावेशित किया जाता है। इससे छात्रों का भी भाषा पर अच्छा अधिकार हो जाता है। वे शाब्दिक उदाहरणों का खुलकर प्रयोग कर उत्तम शिक्षण कर सकते हैं।

5. व्याख्या प्रविधि- कक्षा-कक्ष में मौखिक प्रयोग में व्याख्या प्रविधि का शिक्षक को प्रयोग करना चाहिए। व्याख्या प्रविधि वह माध्यम है जिसमें विषय-वस्तु के कठिन अंशों का सरलता से सरल भाषा में छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल गहराई के साथ विश्लेषण करके इस प्रकार समझाया जाता है, जिससे कि विषय-वस्तु उन्हें अधिक स्पष्ट, सुगम तथा बोध गम्य होने लगे।

विषय-वस्तु जितनी जटिल एवं दुरूह होगी उतनी ही प्रभावशाली व्याख्या करने की जरूरत होगी। व्याख्या प्रविधि का प्रयोग सामाजिक विषयों के अधिकतर तथ्यात्मक (Factual) एवं सूचनात्मक (Informative) प्रकरणों के संदर्भ में भाषा शिक्षण में अधिकतर कठिन शब्दों, मुश्किल अंशों, वाक्यों तथा शब्दों का पूर्व ज्ञान के आधार पर स्पष्ट करने के लिए एवं गणित तथा विज्ञान के कठिन संप्रत्ययों को बोधगम्य बनाने में सफलतापूर्वक किया जाता है।

6. स्पष्टीकरण प्रविधि – कक्षा-कक्ष में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए मौखिक व्यूह रचना के रूप में स्पष्टीकरण का प्रयोग किया जाता है। किसी भी विषय-वस्तु को सरल, सुगम तथा बोधगम्य बनाने के लिए शिक्षक स्पष्टीकरण प्रविधि की सहायता लेता है और अगम्य, असंरचित तथा कठिन प्रकरणों को इस प्रकार से समक्ष प्रस्तुत करता है कि कुल विषय-वस्तु आसानी से समझ में आ जाए। इस प्रविधि के अंतर्गत ‘विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण क्रमबद्ध, सुनियोजित तथा विस्तृत रूप में किया जाता है।”

स्पष्टीकरण प्रविधि व्याख्या तथा विवरण दोनों से ही भिन्न है क्योंकि व्याख्या प्रसंगवश कठिन, जटिल तथा दुरूह अंशों के लिए की जाती है जबकि स्पष्टीकरण विषय- वस्तु के प्रत्येक पक्ष विशेष पर प्रकाश डालने के लिए निमित्त किया जाता है।

स्पष्टीकरण को प्रभावशाली बनाना (To effective exposition)

कक्षा-कक्ष में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए स्पष्टीकरण को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-

(i) स्पष्टीकरण देने से पूर्व शिक्षक को भली-भाँति विषय के उस अंश का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि सम्पूर्ण ढंग से शुद्धता के साथ उस अंश का स्पष्टीकरण वह दे सके।

(ii) स्पष्टीकरण करते समय कक्षा में छात्रों की रुचि, आयु तथा मानसिक स्तर का ध्यान रखना चाहिए।

(iii) कक्षा-कक्ष में स्पष्टीकरण करते समय शुद्ध, सरल तथा स्पष्ट भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

(iv) स्पष्टीकरण करते समय पाठ के अधिक तथा कम कठिन अंशों एवं पक्षों को आवश्यकतानुसार विशेष सावधानी के साथ पूर्णतः से स्पष्ट किया जाना चाहिए।

(v) स्पष्टीकरण को सही तथा सजीव ढंग से प्रस्तुत करने के लिए इस प्रविधि का वहीं प्रयोग किया जाना चाहिए जहाँ इसका उपयोग अति आवश्यक है।

7. विवरण प्रविधि – कक्षा-कक्ष में विवरण प्रविधि का मौखिक रूप से प्रयोग करके भी अधिगम को बढ़ाया जा सकता है। विवरण को कथन, शिक्षक स्वकथन भी कहा जाता है। विवरण देने का उद्देश्य होता है, छात्रों के मस्तिष्क में उसका एक मानसिक चित्र बनाना, जिससे छात्र विषय-वस्तु को पूर्णता के साथ समझ सके। सक्सैना के शब्दों में, “विवरण देना एक कला है। इस कला में निपुण होने के लिए शिक्षक अपनी कल्पना शक्ति का सहारा लेते हुए किसी वस्तु अथवा घटना का विवरण इतने उत्साह तथा प्रभावशीलता के साथ प्रस्तुत करता है कि कक्षा के सभी छात्रों को उसका ज्ञान सरलतापूर्वक हो जाता है। दूसरे शब्दों में, विवरण द्वारा छात्रों के मस्तिष्क में वस्तुओं तथा घटनाओं के मानसिक चित्र इतने सजीव ढंग से प्रस्तुत किये जाते हैं कि वे पाठ्य वस्तु को आसानी से समझ जाते हैं।

विवरण प्रविधि की विशेषताएँ- विवरण प्रविधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-

1. विवरण प्रविधि के प्रयोग से छात्रों को इतना ज्ञान मिल जाता है कि उन्हें अलग से विभिन्न पुस्तकें पढ़ने की जरूरत महसूस नहीं होती है।

2. विवरण प्रविधि में शिक्षक छात्रों के समक्ष विवरण प्रस्तुत करता है। इस प्रविधि के माध्यम से दिया गया विवरण छात्रों के मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव डालता है।

3. विवरण प्रविधि में विषय-वस्तु के प्रत्येक पक्ष पर प्रकाश डालकर उसकी पूर्णरूपेण समीक्षा की जाती है।

4. विवरण प्रविधि से छात्रों को पुस्तकों की अपेक्षा कम समय में आवश्यक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

5. इस प्रविधि से कक्षा-कक्ष में छात्र अत्यन्त रोचक एवं मितव्ययी ढंग से ज्ञानार्जन में समर्थ होते हैं।

6. प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया विवरण छात्रों में ध्यानपूर्वक विषय-वस्तु को समझने की क्षमता विकसित करने में सहायक होता है।

7. यह प्रविधि छात्रों मे जिज्ञासा उत्पन्न करने में प्रभावशाली भूमिका निभाती है।

8. विवरण प्रविधि छात्रों की तार्किक शक्ति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

8. वर्णन विधि- कक्षा-कक्ष में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए मौखिक प्रविधियों के रूप में वर्णन प्रविधि का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। वर्णन वह प्रविधि है जिसके माध्यम से किसी विषय वस्तु तथा घटना का छात्रों के समक्ष पूर्ण शाब्दिक चित्र प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रविधि के माध्यम से किसी घटना, दृश्य एवं नियम तथा सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाता है। केवल प्रश्नोत्तर या विवरण प्रविधि से सभी बातें स्पष्ट नहीं होती हैं तथा छात्रों के मानस पर सम्पूर्ण चित्र नहीं बन पाता है। इसके लिए शिक्षक को वर्णन प्रविधि द्वारा विस्तृत वर्णन करना पड़ता है जिसके लिए उसे अतिरिक्त परिश्रम तथा तैयारी करनी पड़ती है। वर्णन को विस्तृत विवरण कहना अधिक उपयुक्त है परंतु इसमें विवरण प्रविधि की विश्लेषण आलोचना तथा टीका टिप्पणी की भावना निहित नहीं होती है। इसमें तो विषय-वस्तु का सांगोपांग विवेचन एवं प्रस्तुतीकरण समावेशित होता है। वर्णन करना एक कला हैं और सजीव रोचक वर्णन करना एक दक्षता या कौशल है।

वर्णन को कक्षा-कक्ष में प्रभावी बनाना (Effective of description of class room)

कक्षा-कक्ष में वर्णन को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. वर्णन करते समय विषय-वस्तु से संबंधित भावों में उतार-चढ़ाव, मुद्रा विन्यास तथा स्वर की आरोह-अवरोहकता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अच्छी वर्णन शैली के ये आवश्यक तत्व हैं। साथ ही अच्छी वर्णन शैली के लिए भाषा की सरलता, सहजता, सुबोधता एवं स्पष्टता का अपना महत्व है।

2. वर्णनीय विषय से तादात्म्य स्थापित करने के लिए वर्णन छात्रों की रुचि एवं विकास अवस्था के अनुकूल एवं उपयुक्त होना चाहिए।

3. वर्णन स्वयं में सम्पूर्ण सर्वांगपूर्ण, व्यापक तथा बहुपक्षीय हो तो अधिक प्रभावशाली होता है।

9. कहानी-कथन प्रविधि (Story Telling Technique)- भाषा एवं साहित्य शिक्षण में कहानी कथन प्रविधि का उपयोग अधिगम बढ़ाने में किया जा सकता है। कहानी कहना या कहानी सुनाना। कहानी कहते समय विषय-वस्तु के सूक्ष्म तथा जटिल अंशों को इतना सरल बनाया जाता है कि कक्षा के सभी बालकों को वे स्पष्ट हो जाते हैं। कहानी कथन छोटे बालकों के अधिगम को बढ़ाने के लिए उपयोगी होता है। इससे बालकों की जिज्ञासा तथा काल्पनिक एवं तार्किक शक्तियों का विकास होता है। जटिल विषय-वस्तु का स्पष्टीकरण होता है।

कहानी कथन अधिकतर छोटी कक्षाओं में लोकप्रिय है परंतु बड़ी कक्षाओं के छात्रों के साथ भी इस प्रविधि का प्रयोग अच्छे परिणाम देता है। विषय विशेषज्ञ अपने विषय के अनुसार कहानी की विषय-वस्तु में परिवर्तन करके जटिल अंशों को सुगमतापूर्वक छात्रों को समझा सकते हैं।

10. प्रभावी सम्प्रेषण- विषय क्षेत्र में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए प्रभावी सम्प्रेषण का प्रयोग करना चाहिए। शिक्षक एवं छात्र दोनों ही सम्प्रेषण के माध्यम से अधिगम का विकास कर सकते हैं। सम्प्रेषण केवल औपचारिक शिक्षा के लिए नहीं वरन् अनौपचारिक तथा निरौपचारिक शिक्षा के लिए भी एक अनिवार्य तत्व है।

सम्प्रेषण द्वारा तथ्यों को दूसरों को सम्प्रेषित कर सामान्य बनाया जाता है। संकीर्ण शब्दों में सम्प्रेषण दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य विचारों, संदेशों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है। इस अर्थ में सम्प्रेषण सूचनाओं तथा विचारों का दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य आदान-प्रदान है चाहे वे सूचनाओं का अर्थ समझें या न समझें, उनसे उनका विश्वास प्रभावित हो या न हो। इसलिए आज कोई भी सम्प्रेषण के इस संकीर्ण अर्थ को स्वीकार नहीं करता है। व्यापक अर्थ में सम्प्रेषण से तात्पर्य सूचनाओं, विचारों तथा तथ्यों का इस प्रकार आदान-प्रदान करना है कि वे इनका अर्थ समझ सकें तथा अर्थ के साथ ही उनकी भावनाओं, तर्कों, निहितार्थी, आपसी समझ एवं विश्वासों को भी समझ सकें।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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