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पाठ्यक्रम निर्माण से क्या तात्पर्य है? पाठ्यक्रम निर्माण के सोपान

पाठ्यक्रम निर्माण से क्या तात्पर्य है
पाठ्यक्रम निर्माण से क्या तात्पर्य है

पाठ्यक्रम निर्माण से क्या तात्पर्य है?(What do mean by Curriculum Development?)

पाठ्यक्रम निर्माण से तात्पर्य जब शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों तथा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न क्रमबद्ध विधि द्वारा योजना बनाई जाती है, उसे पाठ्यक्रम निर्माण कहते हैं पाठ्यक्रम निर्माण का मुख्य उद्देश्य बच्चों को जीवन के लिए जुटाना है। पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, संवेगात्मक व आध्यात्मिक सभी प्रकार के विकास पर बल दिया जाता है।

“पाठ्यक्रम निर्माण में विद्यार्थी के वे सभी अनुभव निहित होते हैं जो वह अपनी कक्षा के कमरे में, प्रयोगशाला में, पुस्तकालय में, स्कूल में होने वाली अन्य पाठ्यान्तर क्रियाओं के द्वारा खेल के मैदान से एवं अपने अध्यापकों तथा सहपाठियों से विचारों के आदान-प्रदान के प्राप्त करता है।”

पाठ्यक्रम निर्माण के सोपान (Steps of Curriculum Development)

किसी भी कक्षा अथवा स्तर के पाठ्यक्रम का निर्माण करने के लिए प्रायः विभिन्न व्यक्तियों की समिति का निर्माण कर दिया जाता है इन समितियों द्वारा विषय अध्यापकों से सम्पर्क करके उन सभी प्रकरणों तथा उपप्रकरणों की क्रमबद्ध रूप से चर्चा की जाती है, जिनको उनके द्वारा पूरे वर्ष भर छात्रों को पढ़ाना होता है। पिछले कुछ वर्षों में इसके दृष्टिकोण में काफी कुछ अन्तर आया है । पाठ्यक्रम का विस्तृत क्षेत्र अब अच्छी प्रकार से प्रकाश में आने लगा है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालय तथा अध्यापक के मार्ग निर्देशन में विषय सम्बन्धी जो भी अनुभव विद्यार्थी को प्राप्त होते हैं उन सभी का समावेश करना पाठ्यक्रम में अत्यन्त आवश्यक हो गया है। एक सन्तुलित पाठ्यक्रम के लिए आज निश्चित प्रक्रिया बनाई जाती है व उनसे गुजरकर एक सन्तुलित पाठ्यक्रम बनाया जाता है। ये मुख्य सोपान निम्नलिखित हैं-

पाठ्यक्रम निर्माण के सोपान

(a) उद्देश्यों का निर्माण (Formulation of Objectives)

(b) पाठ्य-वस्तु और प्रकरणों का चुनाव एवं आयोजन(Selection and Organisation of Contents and Topics)

(c) समुचित अधिगम अनुभव सुझाना (Suggesting Appropriate Learning Experiences)

(d) मूल्यांकन की उचित विधियाँ एवं तकनीकी सुझाव (Suggesting Suitable Methods and Techniques for Evaluation)

(a) उद्देश्यों का निर्माण (Formulation of Objectives) – पाठ्यक्रम निर्माण का आरम्भ उद्देश्यों के निर्माण द्वारा किया जाता है। इस प्रकार किसी भी कक्षा अथवा स्तर के पाठ्यक्रम के निर्माण में सर्वप्रथम उस कक्षा अथवा स्तर पर विषय को पढ़ाने के प्राप्त उद्देश्यों को लिखा जाता है अर्थात् ये प्राप्त उद्देश्य व्याख्या करने के दृष्टिकोण से दक्षता, ज्ञान, प्रयोग, दृष्टिकोण अथवा अनुभूति से सम्बन्धित पाँच मुख्य श्रेणियों में विभक्त किया जाता है । तत्पश्चात् इन प्राप्य उद्देश्यों को विद्यार्थियों में विषय शिक्षण द्वारा होने वाले अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों के रूप में लिखा जाता है। प्राप्य उद्देश्यों अथवा सम्बन्धित अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों का उचित रूप से लिखा जाना एक पाठ्यक्रम में अत्यन्त आवश्यक है ।

(b) पाठ्य-वस्तु और प्रकरणों का चुनाव एवं आयोजन(Selection and Organisation of Contents and Topics)- प्राप्य उद्देश्यों के निर्माण के पश्चात् पाठ्य वस्तु और प्रकरणों के उचित चुनाव की आवश्यकता होती है। उचित चुनाव के कार्यों अथव आयोजन में पाठ्यक्रम के सिद्धान्तों का ध्यान रखना चाहिए। उचित आयोजन अथवा चु के लिए निम्न सिद्धान्तों का ध्यान रखना चाहिए—

(c) समुचित अधिगम अनुभव सुझाना (Suggesting Appropriate Learning Experiences)- पाठ्यक्रम निर्माण की दिशा में प्राप्य उद्देश्यों को निश्चित कर लेने तथा विभिन्न विषयों की सामग्री और प्रकरणों के रूप में पढ़ाया जाता है। उसका चयन और आयोजन कर लेने के बाद तीसरा मुख्य चरण उचित अधिगम अनुभवों का लेखन है। अधिगम अनुभवों का चयन इस प्रकार होना चाहिए कि उनके द्वारा विषय-वस्तु एवं प्रकरणों की मूल धारा से जुड़ते हुए विषय शिक्षण के प्राप्य उद्देश्यों को भली प्रकार से प्राप्त कर सके। अधिगम अनुभवों का स्वरूप तथा इसका निर्णय समुदाय विशेष की आवश्यकताओं, विद्यार्थियों की रुचियों व योग्यताओं व विद्यालय में प्राप्त सुविधाओं के अनुसार किया जाना चाहिए। अधिगम अनुभवों की समुचितता की परख निम्न आधार पर की जानी चाहिए-

(1) अधिगम अनुभव सुविधापूर्वक प्रदान किये जाने वाले होने चाहिए।

(2) अधिगम अनुभव स्वयं में पूर्ण, सक्षम व प्रभावशाली होने चाहिए।

(3) अधिगम अनुभव विषय विशेष की पाठ्य वस्तु एवं प्रकरणों को ध्यान में रखकर चुने जाने चाहिए।

(4) प्राप्त उद्देश्यों को लक्ष्य बनाकर व्यवहार में जो अपेक्षित परिवर्तन लाने हैं, अधिगम अनुभव उन्हीं के अनुकूल होने चाहिए।

(d) मूल्यांकन की उचित विधियाँ एवं तकनीकी सुझाव (Suggesting Suitable Methods and Techniques for Evaluation)— शिक्षा की मुख्य तीन प्रक्रिया मानी गई है प्राप्य उद्देश्य पाठ्यक्रम और मूल्यांकन। ये तीनों मिलकर अध्ययन तथा अध्यापन के लक्ष्य को पूरा करते हैं, प्राप्य उद्देश्यों के रूप में ये नियत करते हैं जो शिक्षा के द्वारा हम करना चाहते तथा पाठ्यक्रम अर्थात् विषय-वस्तु प्रकरण एवं अधिगम अनुभवों की से उन्हें प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। हम अपने कार्य में किस सीमा तक सफल हो रहे हैं इसका ज्ञान मूल्यांकन द्वारा होता है। मूल्यांकन के अन्तर्गत जो कुछ पढ़ा या पढ़ाया जाता है उसके बाहर नहीं जा सकता अर्थात् पाठ्यक्रम का आधार मानकर ही मूल्यांकन तकनीकी की रचना हो सकती है मूल्यांकन से अभिन्न रूप से जुड़े रहने के कारण पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय निर्माणकर्त्ता को मूल्यांकन तकनीकों से सम्बन्धित सिद्धान्त और आवश्यक बातों पर ध्यान देना चाहिए। एक अच्छे पाठ्यक्रम में मूल्यांकन सम्बन्धी आवश्यक निर्देश एवं सामग्री का समावेश भी इस दृष्टि से होना आवश्यक है ताकि गणित के अध्यापक विषय को पढ़ाते हुए अपने विद्यार्थियों और स्वयं अपने अध्यापन का समय-समय पर मूल्यांकन करते रहने की आवश्यक सहायता मिल सके।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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