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निर्देशन का क्षेत्र
व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी न किसी प्रकार की समस्या का होना स्वाभाविक है। इन समस्याओं के समाधान के बिना प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकते। निर्देशन एक जीवन से सम्बन्धित प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने की योग्यता का विकास करने में सहायक है।
इस आधार पर निर्देशन के क्षेत्र की कल्पना करना कठिन नहीं है वस्तुतः जहाँ-जहाँ समस्यायें हैं वहाँ निर्देशन प्रदान करने की सम्भावना निहित है। अतः निर्देशन का क्षेत्र बहुत व्यापक है। लेकिन भारत में निर्देशन सेवाओं का कार्य-क्षेत्र अभी तक सीमित है। वहाँ शैक्षिक, व्यावसायिक व वैयक्तिक क्षेत्र में भूमिका अहम् है इन्हें कुछ बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
शैक्षिक निर्देशन
1. वांछित पाठ्यक्रम पर आधारित विषयों का चयन करने में,
2. पाठ्यसहगामी क्रियाओं के चयन हेतु,
3. नवीन पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में निर्णय लेने में,
4. अधिगम प्रक्रिया में निरन्तर अपेक्षित उपलब्धि स्तर बनाये रखने की दृष्टि से,
5. राष्ट्रीय एकता पर आधारित कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु प्रेरित करने की दृष्टि से,
6. अपव्यय व अवरोधन की समस्या समाधान करने के लिये,
7. प्रौढ़ शिक्षा पर आधारित कार्यक्रमों की दिशा में प्रेरित करने हेतु, आदि।
व्यावसायिक निर्देशन का क्षेत्र
1. विशिष्टीकरण की दिशा में प्रेरित करने हेतु,
2. नव-विकसित तकनीकी से परिचित कराने के लिये।
3. योग्यतानुसार व्यवसाय चयन करने में,
4. व्यावसायिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों से परिचित कराने के लिये,
5. व्यावसायिक अवसरों में विविधता की दृष्टि में,
6. श्रम एवं उद्योग की परिस्थितियों में वांछित परिवर्तन करने के लिये।
व्यक्तिगत निर्देशन का क्षेत्र
1. व्यक्तिगत समायोजन में वृद्धि करने हेतु,
2. पारिवारिक संघर्ष से मुक्त होने में,
3. पारिवारिक जीवन में समायोजन की दृष्टि से,
4. अवकाश में समय का सदुपयोग करने के लिये,
5. संकटकालीन स्थिति के निरन्तर मानसिक एवं संवेगात्मक सन्तुलन बनाए रखने में,
6. व्यक्तिगत समस्या का समाधान करने हेतु, वांछित निर्णय शक्ति का विकास करने में।
निर्देशन के लक्ष्य
इरिक्सन के अनुसार निर्देशन के छः महत्त्वपूर्ण तत्त्व निम्न हैं-
(i) व्यक्ति का अध्ययन- निर्देशन कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने के लिए हम व्यक्ति का पूर्ण रूप से अध्ययन करते हैं। निर्देशन परीक्षणों तथा प्रविधियों की सहायता से ऐसा करने का लक्ष्य रखता है।
(ii) सूचना सेवाएँ– निर्देशन से हमारा अभि विद्यार्थियों को प्रदान की ऐसी सहायता से है ताकि वह अपनी समस्याएँ सुलझा सके। निर्देशन कार्यक्रम को यह देखना होता है कि यह सूचना व्यक्तिगत तालिका सेवा, व्यावसायिक सूचना सेवा जैसी विभिन्न सूचना के संचालन के द्वारा या स्कूल की कई अन्य एजेन्सियों द्वारा प्रदान की जाए।
(iii) परामर्श- परामर्श से हमारा अभिप्राय व्यक्तिगत प्रकार की उस सहायता से है जो व्यक्ति को समायोजन समस्या के समय दी जाती है। निर्देशन में विशिष्ट तथा व्यक्तिगत सहायता की जरूरत, वाले विद्यार्थियों को परामर्श देने का प्रावधान है।
(iv) स्थापन और अनुवर्तन- निर्देशन कार्यक्रम विद्यार्थियों को विभिन्न नौकरियों में नियुक्त करने में सहायता करता है। बाद में यह इस बात का भी अध्ययन करता है कि वह कहाँ तक सफल रहे हैं। यह उनके सफल होने में सहायता करता है।
(v) स्कूल की सहायता – निर्देशन कार्यक्रम सारे स्कूल के काम आता है। यह सबको उपलब्ध सूचना प्रदान करता है। वास्तव में निर्देशन कार्यक्रम स्कूल की सभी गतिविधियों को जीवन्त बनाते हैं। उनके सुधार लाने का उद्देश्य रखता है।
(vi) समन्वय – निर्देशन बच्चों पर घर, स्कूल तथा समुदाय के प्रभावों का समन्वय करने का प्रयत्न करता है। उसे ऐसा संसाधनों की सहायता से करना चाहिए तथा उनके परिणामों का मूल्यांकन भी करना चाहिए।
निर्देशन के उद्देश्य निर्देशन एक सोद्देश्य प्रक्रिया है। बिना उद्देश्य के कोई भी क्रिया पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकती है। यदि हम बिना किसी उद्देश्य के निर्धारण के कोई प्रक्रिया प्रारम्भ करते हैं, तो वह पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकती क्योंकि उसका कोई लक्ष्य जब तक निर्धारित नहीं होगा तब तक वह पूर्ण कैसे मानी जाएगी। उसे सही दिशा नहीं मिल पाती और वह निरर्थक बनकर रह जाती है।
निर्देशन के कार्य क्षेत्र
विभिन्न हैं इसलिए इसके उद्देश्य भी विभिन्न हैं। शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर निर्देशन के अलग-अलग उद्देश्य हैं। प्राथमिक स्तर पर, माध्यमिक स्तर पर, उच्च प्राथमिक स्तर पर सहगामी क्रियाओं में, उचित वातावरण के निर्माण में, विश्वविद्यालय स्तर पर निर्देशन के अलग-अलग उद्देश्य होंगे।
प्राथमिक स्तर पर निर्देशन के उद्देश्य
स्कूल में समायोजन में सहायता करना निर्देशन का मुख्य उद्देश्य होता है। प्राथमिक स्तर पर शिक्षक, निर्देशन, कार्यकर्त्ता, चिकित्सा सेवा कर्मचारी, विद्यालय के परिचर आदि के बीच ताल-मेल की बहुत आवश्यकता है। प्राथमिक स्तर कक्षा 5 तक होता है। बच्चों को प्राथमिक स्तर पर आवश्यक कौशल को भली-भाँति सीखने, समाज के रीति-रिवाजों के बारे में जानने, स्कूली क्रियाओं के सम्बन्ध में उचित दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता प्रदान करते हैं। यही इस स्तर पर निर्देशन के उद्देश्य होते हैं।
घर से निकलकर बच्चे को स्कूली वातावरण में घर जैसी सुरक्षा नहीं मिल सकती है। बच्चा संकोच में अपनी समस्या को कह नहीं पाता है। इसलिए इस स्तर पर बच्चे को स्वावलम्बी बनाने के उद्देश्य से निर्देशन आवश्यक होता है। साथ ही साथ निर्देशन छात्रों में सहयोग की भावना का विकास करता है। प्राथमिक स्तर के बच्चे को उच्च स्तर के विद्यालय में जाने के लिए तैयार करने में भी निर्देशन की आवश्यकता होती है।
माध्यमिक स्तर पर निर्देशन के उद्देश्य
प्राथमिक स्तर पर निर्देशन के निम्न उद्देश्य होने चाहिए-
इस स्तर पर प्राथमिक स्तर की अपेक्षा निर्देशन का कार्य क्षेत्र अधिक विस्तृत हो जाता है। उच्च या उच्चतर स्तर पर विषय को विशेषज्ञ ही पढ़ाते हैं तथा छात्रों को व्यक्तिगत, सामाजिक, व्यावसायिक समस्याओं से भी इस स्तर पर गुजरना पड़ता है। इन समस्याओं के समाधान हेतु व्यापक एवं संगठित निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है। इस स्तर पर निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए—
1. छात्रों के शारीरिक विकास के लिए व बौद्धिक विकास के लिए वाद-विवाद, खेल-कूद, सांस्कृतिक क्रिया-कलाप व सामाजिक सेवा के कार्यक्रम कराये जाने चाहिए। यह निर्देशन सेवाओं के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं।
2. किशोर तथा यौवनावस्था के अनुरूप शैक्षिक वातावरण का निर्माण बहुत आवश्यक होता है जिससे कि छात्रों को उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जा सके और उसकी इच्छानुसार उसे विषयों के चयन में सहायता की जा सके। यह निर्देशन का उद्देश्य है।
3. बालक की समस्याओं के समाधान में सहयोग की प्रमुख भूमिका है। सहयोग सभी स्तर के निर्देशन में आवश्यक है।
4. विद्यालयों में छात्रों के विकास, शिक्षा, सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बन्धित अभिलेख, मनोवैज्ञानिक विकास, सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बन्धित अभिलेख एकत्र करके उसके आधार पर निर्देशन कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं जिससे निर्देशन कार्यकर्त्ता उन अभिलेखों के आधार पर निर्देशन दे सकें।
5. छात्रों को स्कूल के जीवन से परिचित कराकर नए मित्रों के साथ समायोजन करना सिखाना जिससे उनका ताल-मेल ठीक से बैठ सके।
6. इस स्तर पर विषय के चयन की भी आवश्यकता पड़ती है। विद्यार्थी में यह समझ नहीं होती है कि उसे कौन-सा विषय चयन करना चाहिए। समय की क्या माँग है तथा छात्र किस विषय के योग्य है, किसके नहीं। क्योंकि विषय अनेक हैं तथा विशेषीकरण के कारण विषयों का चयन बहुत कठिन होता है। अतः इस स्तर पर छात्रों की कठिनाई को समझकर उसका समाधान किया जाए।
7. निर्देशन सेवा के द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य की कमियों का पता करके उसे सुधारने हेतु सम्बन्धित व्यक्तियों को सूचित करके उत्पन्न कमियों का समाधान किया जाए।
डॉ. वाकर मेहन्दी ने निर्देशन के निम्नलिखित कार्य बताए हैं-
1. छात्रों में उनकी रुचि के अनुरूप विषयों का चयन करने में सहायता देता।
2. छात्रों को शिक्षा के नवीन उद्देश्यों से परिचित करने में सहायता देना।
3. छात्रों को अध्ययन के लिए अभिप्रेरित करना।
4. छात्रों की विषय सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करके अच्छे शिक्षण कौशलों का विकास करके शिक्षा में उन्नति करने में सहायता करना।
विश्वविद्यालय स्तर पर निर्देशन के उद्देश्य
विश्वविद्यालय स्तर पर छात्र एक समझदार युवक के रूप में विकसित हो चुका होता है उसे अपने भविष्य की भी चिन्ता होने लगती है। उसके व्यक्तित्व का एक स्वरूप विकसित हो जाता है। वह अपने उत्तरदायित्व को समझने लगता है। परन्तु कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो इस स्तर पर भी यह नहीं समझ पाते कि शिक्षा का अर्थ क्या है। वे उद्देश्यहीन शिक्षा ग्रहण करते हैं तथा शिक्षा को निरर्थक समझने लगते हैं।
इस तरह उपर्युक्त दोनों प्रकार से छात्रों को निर्देशन की आवश्यकता होती है। इस स्तर पर विषय चयन की भी समस्या रहती है। ट्यूटोरियल के संगठित कार्यक्रम, पुस्तकालय का उपयोग करने में सहायता देना। कॉलेज शिक्षा से पहले यदि छात्र को कॉलेज शिक्षा के उद्देश्य, प्रकृति तथा उसके कार्य क्षेत्र के बारे में परिचित करा दें, तो वह उसका उचित उपयोग कर सकता है।
इस प्रकार माध्यमिक स्तर पर और कॉलेज स्तर पर निर्देशन के उद्देश्य अधिक भिन्न नहीं होते हैं। उनमें से प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(i) निर्देशन कार्यक्रम द्वारा शिक्षक और छात्रों के मध्य समझ विकसित करने में सहायता करना।
(ii) संस्थाओं द्वारा निर्देशन कार्यक्रमों पर शोध कार्य कराना जिससे उनमें प्रसार किया जा सके।
(iii) सेवाकालीन अध्यापकों को व्यवस्थित कर पुनः चर्चा कार्यक्रमों द्वारा परीक्षण सेवाएँ दिलवाना।
(iv) निर्देशन द्वारा स्कूलों में प्रचलित कार्यक्रमों का प्रचार करना क्योंकि निर्देशन कार्यक्रम स्कूल व समाज के बीच एक प्रत्यक्ष कार्य करते हैं। इस प्रकार हम अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि निर्देशन द्वारा हम छात्र का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। अपने पास उपलब्ध सीमित साधनों का उचित प्रयोग करके प्रगतिशील कार्यक्रम तैयार कर सकते हैं। इसके लिए शोध कार्यों पर भी ध्यान देना होगा।
(v) कॉलेज स्तर पर प्रवेश से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराना।
(vi) विषयों के चयन में सहायता देना तथा भविष्य के लिए कार्यक्रम तैयार करना ।
(vii) छात्रों के परीक्षण की व्यवस्था करना।
(viii) उपलब्ध छात्रावास की सुविधाओं का ज्ञान कराना।
(ix) छात्रों को सहगामी क्रियाओं के बारे में जानकारी देना।
(x) छात्रों को व्यावसायिक जानकारी देना।
(xi) छात्रों की स्वयं की क्षमता तथा व्यक्तिगत जीवन के सभी पक्षों के बीच उचित समायोजन करने में सहायता करना।
(xii) छात्र की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक व भावात्मक प्रगति में सहायता करना।
(xiii) छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान में सहायता देना।
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