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संघीय सरकार के गुण
संघात्मक शासन के निम्नलिखित प्रमुख गुण हैं-
1. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भावनाओं में समन्वय– संघात्मक शासन का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय भावना तथा क्षेत्रीय भावनाओं में समुचित समन्वय स्थापित होता है। राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ होती है तथा राष्ट्रीयता की भावना प्रबल होती हैं। डायसी के शब्दों में, “संघात्मक शासन का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा क्षेत्रीय स्वायत्तता में समन्वय स्थापित करना है।”
2. लोकतन्त्र की सुदृढ़ता और सुरक्षा के लिए आवश्यक- संघात्मक शासन में शक्तियों के विभाजन से शासन का विकेन्द्रीकरण होता है, जो लोकतन्त्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यक है। शक्तियों का विकेन्द्रीकरण संघीय शासन का आधार है, सत्ता के विकेन्द्रीकरण से लोकतन्त्र सबल और सुदृढ़ होता है। शासन की शक्तियों का विस्तार होता है।
3. अधिक कार्यकुशल शासन पद्धति- संघात्मक शासन में प्रशासनिक व्यवस्था कई स्तरों में विभाजित होने के कारण सभी अंगों पर प्रशासन का भार सन्तुलित रहता है जिससे प्रशासन सभी इकाइयों में इसके कारण विभिन्न अंगों की कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है तथा कार्य व्यवस्थित रूप से होता है।
4. निरंकुशता को अत्यन्त अल्प अवसर- संघीय शासन व्यवस्था में निरंकुशता का भय नहीं रहता है। एक बिन्दु या एक स्थान पर शासकीय शक्तियों के केन्द्रित न होने कारण सरकार के निरंकुश होने का भय नहीं रहता है।
5. विशाल क्षेत्रों वाले देशों के लिए उपयोगी- संघात्मक शासन व्यवस्था बड़े देशों के लिए अधिक उपयुक्त है। भारत, रूस, अमेरिका जैसे विशाल क्षेत्र वाले तथा विविधता वाले देशों में एक स्तर पर शासन संचालन नहीं हो सकता। हर क्षेत्र की अपनी अलग समस्याएँ और परम्परायें होती हैं, शासन के विकेन्द्रीकरण से इनका हल और पालन सरलता से सम्भव है।
6. जनता की व्यापक सहभागिता- संघात्मक शासन व्यवस्था में स्थानीय राज्य और संघीय स्तर पर सामान्यतः नागरिकों को प्रशासन की प्रक्रियाओं में भाग लेने के महत्त्वपूर्ण अवसर मिलते हैं। जनता में राजनीतिक चेतना का उदय होता है और प्रशासन तथा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भावना और शासन में प्रत्यक्ष सहभागिता की इच्छा जागृत होती है।
7. स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन- संघात्मक शासन के अन्तर्गत सत्ता का विकेन्द्रीकरण होता है। ग्राम तथा नगर स्तर से लेकर राज्य के स्तर पर भी प्रशासन में जनसाधारण अपने हितं की सुरक्षा के लिए जागरूक हो जाता है, जिससे इन संस्थाओं का महत्व बढ़ता है।
8. वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रसार- संघात्मक शासन व्यवस्था में संघ की कमी इकाइयाँ परस्पर सहयोग से राज्य कार्य संचालित करती हैं, इससे पारस्परिक सहयोग की भावना को पर्याप्त बल मिलता है। जब देशों के स्तर पर विभिन्न राज्य परस्पर सहयोग से देश की सत्ता का निर्वहन कर सकते हैं, तब निश्चय ही विश्व स्तर पर सभी देश एक ‘विश्व-संघ’ अथवा ‘विश्व-सरकार’ स्थापित करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
संघीय सरकार के दोष
संघीय सरकार के प्रमुख दोष निम्न प्रकार हैं-
1. दुर्बल शासन व्यवस्था – एकात्मक शासन व्यवस्था की तुलना में संघात्मक शासन व्यवस्था दुर्बल होती है। इसके अन्तर्गत शासन सत्ता विभिन्न स्तरों पर विभिन्न सत्ताओं के हाथ में रहती है अतः निर्णय लेने का कार्य कोई एक सत्ता नहीं करती, जिससे अव्यवस्था, कार्य में देरी और समन्वय का अभाव जैसे दोष उत्पन्न हो जाते हैं और प्रशासन निर्बल हो जाता है।
2. व्ययशील शासन व्यवस्था- संघात्मक शासन प्रणाली एक व्ययशील शासन व्यवस्था है। राष्ट्र और राज्य स्तर पर शासन चलाने के लिये अलग-अलग विधायिका और कार्यपालिका स्थापित करने पड़ते हैं, तथा हर क्षेत्र में दोहरा प्रशासकीय तंत्र स्थापित करना पड़ता है। अतः शासन पर होने वाला व्यय अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है।
3. आपातकाल के लिए उपयुक्त नहीं- संघात्मक शासन व्यवस्था आपातकाल में अनुपयुक्त सिद्ध होती है। आपातकाल में द्रुत और अविलम्ब निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती है। संघात्मक शासन में द्विस्तरीय शासन व्यवस्था होने के कारण निर्णय लेने में विलम्ब होना स्वाभाविक है। अविलम्ब और द्रुत निर्णय तभी सम्भव है, जब सत्ता एक ही तन्त्र के हाथ में हो इसी कारण संघीय शासन व्यवस्था आपातकाल के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती ।
4. केन्द्र और इकाइयों में संघर्ष की सम्भावना – दोहरी शासन व्यवस्था होने के कारण संघ और इकाइयों तथा आपस इकाइयों के मध्य परस्पर मतभेद और संघर्ष की पूरी आशंका रहती है। यथा कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि संघ और राज्य सरकार एक ही विषय पर कानून बना देती है, जो परस्पर विरोधी होते हैं अथवा विभिन्न राज्य सरकारों के पारस्परिक हि किसी मुद्दे पर टकराव की स्थिति धारण कर लेते हैं। पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता तथा मतभेदों के कारण प्रशासन ठप्प हो जाता है।
5. राष्ट्रीय एकता को भय- संघात्मक शासन व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्रीय एकता को खतरा रहता है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक इकाई अपने-अपने क्षेत्र के विकास और अपने-अपने हित के सम्बन्ध में ही विचार करती है। राष्ट्र का हित द्वितीयक हो जाता है। नागरिक की भक्ति भी राज्य और राष्ट्र दोनों के मध्य विभाजित रहती है। इसलिए राष्ट्रीय एकता को खतरा बना रहता है। गेटेल के शब्दों में, “संघीय शासन प्रणाली वाले देशों में केन्द्र सरकार तथा प्रादेशिक सरकारों के बीच वैमनस्य का खतरा बना रहता है।”
6. उत्तरदायित्वहीनता- संघात्मक शासन व्यवस्था के अन्तर्गत प्रशासनिक गलती या कार्यों में उपेक्षा के लिए केन्द्र सरकार और इकाई सरकार एक-दूसरे पर दोष मढ़ देते हैं। हानि देश को होती है या कठिनाइयाँ जनसाधारण की बढ़ती हैं। यह निश्चित करना कठिन होता है कि गलती किसकी है, इसलिये सरकार और नौकरशाहों में उत्तरदायित्वहीनता की भावना विकसित की जाती है।
7. दुर्बल विदेश नीति- विदेश नीति के निर्धारण में सम्पूर्ण देश की राजनीतिक, आर्थिक एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ ध्यान में रखनी पड़ती हैं। संघ सरकार को इकाई राज्य के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है। दोहरी शासन व्यवस्था होने के कारण इन स्थितियों पर इकाई राज्यों का अलग-अलग नियन्त्रण रहता है। कभी-कभी स्थानीय हितों और स्वार्थों के कारण कई राज्य मिलकर संघ सरकार द्वारा निर्मित अथवा संचालित विदेश नीति का विरोध करने लगते हैं, उनके हित प्राथमिक और देशहित गौण हो जाते हैं। इसके कारण वैदेशिक नीति-निर्धारण में कई कठिनाइयाँ सामने जाती हैं। के.पी. ह्वीयरे ने लिखा है कि, “संघवाद और उत्साहपूर्ण वैदेशिक नीति-साथ नहीं चल पाती।””
8. जटिल और कठोर शासन व्यवस्था- संघात्मक शासन व्यवस्था अत्यन्त कठिन और कठिन शासन व्यवस्था है दोहरी सरकारें दो प्रकार के कानून, दो संविधान, दोहरी नागरिकता, क्षेत्रीय भावना, विभाजित राज्य भक्ति शासन-तन्त्र में जटिलता उत्पन्न करते हैं। शासन की जटिलता के कारण अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय करने में देरी होती है तथा बहुत से मामले अनिर्णीत रह जाते हैं। शासन संचालन में कठिनाई आती है तथा विकास कार्य पिछड़ जाते हैं संघात्मक शासन, व्यवस्था में संविधान कठोर होता है, संविधान का संशोधन सरलता से नहीं हो सकता। शासन सत्ता एक लोक पर चलती रहती है, जनसाधारण के हित गौण हो जाते हैं।
9. संघ सरकार के टूटने का भय- संघात्मक शासन में इकाइयों का संघात्मक संरचना से पृथक होने का भय सदैव बना रहता है। संघ और इकाइयों के बीच संघर्ष या तनाव उत्पन्न होने पर इकाइयों के अलग हो जाने की आशंका रहती है। गिलक्राइस्ट के अनुसार, “एक इकाई द्वारा राज्य को छोड़ना एकात्मक सरकार की अपेक्षा संघात्मक सरकार में अधिक सरल है।”
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