अनुक्रम (Contents)
समावेशी शिक्षा के नवाचारी उपागम (Innovative Approach of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा के नवाचारी उपागम निम्न हैं-
(a) प्रथमा
प्रथमा के संस्थापक डॉ० माधव चवन जी हैं। डॉ० माधव चवन को भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भारतीय कानून समिति का सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया गया। वर्तमान में डॉ० माधव चवन सर्वशिक्षा अभियान के संचालक समिति के सदस्य भी हैं। यह कार्यक्रम ‘विश्व मौलिक शिक्षा’ भारत सरकार द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित है।
प्रथमा भारत में शिक्षा के वैश्वीकरण के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रथमा एक बहुत बड़ी और गैर-लाभकारी संस्था है। यह 12 राज्यों में कार्य कर रही है।
प्रथमा के अंतर्गत लगभग 12,000 युवा महिलाकर्मी कार्यरत हैं। लगभग 2,00,000 बच्चों तक ये कर्मी प्रत्यक्ष कार्यक्रमों का सम्पादन करते हैं तथा 3 मिलियन बच्चों के साथ अप्रत्यक्ष कार्यक्रमों के माध्यम से जुड़े रहते हैं। यूनिसेफ के सहयोग से यह संस्था मुम्बई म्युनिसिपल कार्पोरेशन से 1994 से जुड़कर मुम्बई की झोंपड़-पट्टियों में रहने वाले बच्चों के लिए यह कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। वर्तमान में प्रथमा आर्थिक असुरक्षा से प्रभावित राज्यों, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु राज्यों में रहने वाले बच्चों की सहायता कर रही है।
प्रथमा के उद्देश्य- प्रथमा का उद्देश्य है प्रत्येक बच्चा विद्यालय में हो और अच्छी शिक्षा ग्रहण करे। प्रथमा त्रिस्तरीय सहयोग पर आधारित है अर्थात् यह कारपोरेशन सरकार और नागरिक का समन्वित रूप है। प्रथमा का विश्वास है कि सरकार के सहयोग से ही ठीक और समुचित रूप से विभिन्न स्तर पर प्रभावशाली परिवर्तन लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सहयोगी के रूप में भी सरकार की रुचि प्रथमा के कार्यक्रम को बढ़ाने में होनी चाहिए। वास्तव में, सरकार के सहयोग से प्राथमिक शिक्षा की कमियों को निकालना होगा। यह भी सरकार का उत्तरदायित्व है कि प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी निवेश को अनुपूरित करें।
प्रथमा मानक में विश्वास करता है तथा किसी समस्या का बड़े स्तर पर हल निकालने में विश्वास करता है। इसके अतिरिक्त प्रथमा निम्नलिखित स्तरों की निश्चितता को निर्धारित करने में विश्वास करता है-
(1) विद्यालयों में प्रवेश की संख्या में बढ़ोत्तरी ।
(2) विद्यालय छोड़ने वाले की संख्या में कमी।
(3) उपरोक्त दोनों क्षेत्रों में विद्यालयों में जागरूकता और सामुदायिक वृद्धि।
(4) जहाँ पर अव्यावहारिक हो जैसे बालश्रम, उन बच्चों को सम्पूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
(5) तकनीकी कमी को आई० टी० शिक्षा एवं कम्प्यूटर की शिक्षा द्वारा समाप्त करना ।
(6) इन सभी कार्यक्रमों में सर्वोच्चता, व्यावहारिक स्थिरता और मानकता के साथ बड़ी संख्या में बच्चों का सहयोग करना है।
प्रथमा इसलिए भी अद्वितीय है कि यह स्वयं नागरिकों द्वारा की गई क्रांति है। इस संस्था के अंतर्गत जीविकोपार्जन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों को शामिल किया गया है।
शिक्षा के क्षेत्र में प्रथम का योगदान- शिक्षा के क्षेत्र में प्रथम का योगदान निम्नलिखित है-
(1) स्थानीय समुदाय की स्वयंसेवी शिक्षिकाओं के लिए प्रशिक्षण शिविर तथा पुनश्चर्या कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
(2) विभिन्न कार्यक्रमों की मॉनीटरिंग, कार्यक्रमों के वरिष्ठ व्यक्ति (Programme Heads) तथा Area Incharge के द्वारा होती है। ये व्यक्ति भी समुदाय के होते हैं जो कार्यक्रमों का निरीक्षण व पर्यवेक्षण करते हैं।
(3) ‘प्रथम’ (दिल्ली) ने सम्बन्धित सूचनाओं को एकत्रित करने के लिए एक ‘सर्वेक्षण टूल’ का विकास किया है।
(4) राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय प्रामाणिकता (National Open School Certification)– ‘प्रथम’ को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से सम्बन्धित कर दिया गया है जहाँ ‘प्रथम शिक्षा केन्द्र’ (Pratham Education Centre) के बच्चे विभिन्न स्तरों की परीक्षा देकर ‘प्रमाण पत्र प्राप्त कर रहे हैं।
(5) मूल्यांकन (Assessement and Evaluation)– पूरे प्रथम के नेटवर्क में कार्यक्रमों के बुनियादी प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए एक सामान्य मानदण्डों और प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है। मूल्यांकन की वैधता की जाँच विभिन्न संगठनों से जुड़े हुए तथा समाज के प्रभावशाली लोगों से करायी जाती है।
(6) पुस्तकालय (Library)- सतत् शिक्षा के अन्तर्गत दो प्रकार के पुस्तकालयों की स्थापना की गयी है- समुदाय आधारित तथा स्कूल आधारित बच्चों के लिए पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाता है।
(7) प्रथम पुस्तकें (Pratham Books)- अभावग्रस्त तथा वंचित बच्चों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सस्ती पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है जो पूरे देश में नए व नन्हें जागरूक पाठक तैयार कर रहे हैं। पढ़ने की दृष्टि से ये पुस्तकें आकर्षक हैं।
‘प्रथम’ न्यूजलेटर (News Letter) भी प्रकाशित करता है, जो समाज के अन्य लोगों को ‘प्रथम’ के चलने वाले कार्यक्रमों से परिचित कराता है। प्रथम शिक्षकों को उत्प्रेरित व प्रोत्साहित करने के लिए, न्यून लेटर में स्टार्स ऑफ प्रथम (Stars of Pratham) स्तम्भ भी रखा गया है।
(b) एडूकॉम्प
शैक्षिक नवाचारों की श्रृंखला में एजूकॉम्प एक नवीनतम कड़ी है। यह एक उच्च विकसित शैक्षिक तकनीक (Educational Technology) है जिसकी स्थापना 1996 में एजूकॉम्प साल्यूशन लिमिटेड (Educomp Solution Limited) के नाम से की गई थी। सम्प्रति भूमण्डलीय स्तर पर शिक्षा की विभिन्न समस्याओं पर समुचित समाधान देने वाली यह सबसे बड़ी वेबसाइट (Website) है। एजूकॉम्प का प्रयोग भारतवर्ष में अभी तक केवल राजकीय विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र ही कर रहे हैं।
एजूकॉम्प की शिक्षा पद्धति बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। यह बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान करती है। एजूकॉम्प के माध्यम से बच्चों को कम्प्यूटर द्वारा खेल-खेल में शिक्षा प्रदान की जाती है। बच्चा नई पद्धति से शिक्षा हासिल करने के लिए उत्सुक रहता है। के द्वारा ही बच्चों को कहानी सुनाना, रंगों का ज्ञान, अंकों का ज्ञान, खेल-खेल में ही शिक्षा कम्प्यूटर देते हैं। अतः आज हर प्राइमरी स्कूल में भी कम्प्यूटर द्वारा बालक को शिक्षा प्रदान की जाती है।
एजूकॉम्प का लक्ष्य- एजूकॉम्प का लक्ष्य सभी को शिक्षा सुलभ कराने तथा शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने से सम्बन्धित मूल समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना है।
संविधान के अनुच्छेद 45 में भारत सरकार ने 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के सभी बालकों को सार्वभौमिक, अनिवार्य, निःशुल्क शिक्षा देने की संकल्पना व्यक्त की थी जिसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है। इस तरह सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य कर दिया है। एजूकाम्प इसी दिशा में एक गैरसरकारी योजना है जो प्राथमिक स्तर पर गुणपरक शिक्षा प्रदान करने के लिए कृतसंकल्प है। प्राथमिक स्तर पर परम्परागत शिक्षण विधियों से हटकर रोचक एवं बोधगम्य शिक्षण विधियों के माध्यम से शिक्षा देने की व्यवस्था है। इस योजना के अंतर्गत बच्चों के समक्ष आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी, श्रव्य-दृश्य उपकरणों, जैसे- दूरदर्शन, टेपरिकार्डर, कम्प्यूटर, इण्टरनेट, रेडियो आदि के माध्यम से सजीव एवं सचित्र विवरण प्रस्तुत किया जाता है। साथ ही साथ विषय-विशेषज्ञों द्वारा रचित सामग्री को उपरोक्त माध्यमों से प्रस्तुत किया जाता है। छात्रों की आयु, योग्यता, रुचि एवं आवश्यकतानुसार शिक्षण देने का प्रयास किया जाता है। परिणामतः शिक्षा को बीच में छोड़ने की समस्या का समाधान करने का यह एक प्रयास है।
एजूकॉम्प का क्षेत्र- सम्प्रति एजूकॉम्प विश्व भर में 15,000 विद्यालयों तथा 70 लाख अधिवक्ताओं एवं शिक्षकों को अपनी सेवाएँ दे रहा है। एजूकॉम्प जिन क्षेत्रों में शैक्षिक सेवाएँ प्रदान कर रहा है, वे हैं प्राथमिक स्तर से माध्यमिक स्तर तक के विद्यालय प्राथमिक स्तर पर व्याप्त समस्याएँ जैसे विद्यालयों की कमी की समस्या, शिक्षकों की कमी की समस्या- इन समस्याओं के सम्बन्ध में सुझाव एवं समाधान देना एजूकॉम्प के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आता है। माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा का स्वरूप, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, अनुशासन विद्यालय प्रशासन से जुड़ी समस्याओं का निदान प्रदान करना है
(c) राष्ट्रीयता साक्षरता मिशन- सन् 1988 में देश में पूर्ण साक्षरता प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गई और लक्ष्य रखा गया है कि सन् 2005 तक निरक्षरता का पूर्णतः उन्मूलन कर दिया जाए। इसका उद्देश्य ऐसे निरक्षरों को साक्षर बनाना है, जो अनौपचारिक शिक्षा के अन्तर्गत नहीं आते और जिनकी आयु 15 वर्ष से 35 वर्ष के बीच है। अनौपचारिक शिक्षा से वंचित 9-14 आयु वर्ग के बच्चे भी शामिल कर लिये जाते हैं।
सन् 1989 में अर्नाकुलम, केरल में पूर्ण साक्षरता ने इस मिशन के लिए आदर्श उपस्थित किया। इस समय देश में 561 जिलों में इस मिशन के अन्तर्गत साक्षरता कार्यक्रम चल रहे हैं और लगभग नौ करोड़ लोगों को साक्षर बनाया गया है। इनमें से 166 जिलों में पूर्ण साक्षरता आन्दोलन (Total Literacy Campaign) चलाया गया है, 290 जिलों में उत्तर साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया है और 105 जिलों को सतत् शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत रखा गया है।
इस प्रकार राष्ट्रीय साक्षरता मिशन ने भारत में निरक्षरता उन्मूलन में अभूतपूर्व योगदान किया। यह आशा की जाती है कि सन् 2005 या उसके दो एक वर्ष बाद भारत में निरक्षरता का पूर्णतया उन्मूलन हो जायेगा लेकिन अभी भी 2011 के आँकड़ों के अनुसार 26% जनसंख्या निरक्षर है।
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