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रंग प्राप्ति के प्राकृतिक साधन
रंग प्राप्ति के प्राकृतिक साधन- रंगों की प्राप्ति के प्राकृतिक साधन 3 हैं। मनुष्य प्राचीनकाल से ही रंगने के लिए पेड़ों की छाल, फूल-पत्तियों तथा जानवरों की त्वचा, विभिन्न खनिजों के चूर्ण को पानी में घोलकर रंग प्राप्त करते थे। अतः प्रकृति में यही 3 विभिन्न साधन हैं जिनसे रंग प्राप्त किये जाते हैं।
(a) वनस्पति सम्बन्धी रंजक (Vegetable Dyes)
ये रंजक हमें प्रकृति से पेड़- पौधों से प्राप्त होते हैं। नील के पौधे से रंजक बनाने की विधि बहुत पुरानी है। नील के पेड़ के तने तथा पत्तियों को खमीरीकरण करने से जो तरल पदार्थ बनता है उससे गीला रंग बनाया जाता है। इसी प्रकार हरसिंगार के फूल, केसर, जामुन, कत्था, मेंहदी, हल्दी आदि से रंग तैयार किये जाते हैं। वानस्पतिक रंग बनाने के लिये पेड़ों के तने, टहनी, पत्ती फूल का प्रयोग किया जाता है।
(b) जीव सम्बन्धी रंजक (Animal Dyes)
ये रंजक पशु जगत से प्राप्त किये जाते हैं। ये रंग विभिन्न प्रकार के जानवरों को मारकर प्राप्त किये जाते हैं। भूमध्य सागर में पाई जाने वाली एक विशिष्ट प्रकार की मछली से जामुनी (बैंगनी) रंग तैयार किया जाता है। इसी प्रकार कोकनीएल रंग (Cochineal) केकनी नामक मादा कीड़े से बनाया जाता है। इसी प्रकार कैकटस नामक कीड़ों को एकत्र कर गर्म भाप में डाल देते हैं जिससे एक प्रकार का रस निकलता है। इस रस से स्कालेट (सिंदूरी) (Scarlet), क्रिमसन (गाढ़ा लाल) (Crimson), नारंगी (Orange) आदि रंग बनाये जाते हैं। कैकटस कीड़े द्वारा हालैण्ड, जापान, भारत, टर्की, इंग्लैण्ड में रंग बनाया जाता है। इन रंगों का प्रयोग रेशम तथा ऊन रंगने के लिए किया जाता है।
(c) धातु सम्बन्धी रंजक या खनिज रंग (Mineral Dyes)
ये रंजक धातुओं से प्राप्त होते हैं अतः धातु रंजक कहलाते हैं। क्रोम हरा, क्रोम पीला, क्रोम नारंगी तथा भूरे रंग धातुओं से बनाये जाते हैं। इन रंगों को बनाने के लिए लोहे की छीलन का प्रयोग किया जाता है। लोहे की छीलन पानी तथा सिरके में डालकर रख दी जाती है। हवा तथा ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया के कारण भूरा रंग तैयार हो जाता है। उसके बाद उसमें लकड़ी की राख डालकर अन्य शेड्स तैयार किये जाते हैं।
रंगों की विशेषताएं
रंगों का प्रभाव सार्वभौमिक है, क्योंकि-
1. रंग ही किसी वस्तु में सुन्दरता, आकर्षण और मोहकता उत्पन्न करते हैं;
2. रंग मानव मनोमस्तिष्क पर अपना एक विशिष्ट भाव अंकित करते हैं;
3. इनके अवलोकन मात्र से ही हमें अपूर्व शान्ति, सुख, आहलद और आनन्दानुभूति होती है। उदाहरण में प्रकृति में सर्वत्र रंग-बिरंगी छटा छाई है, जिसको देखते-देखते हमारी आँखें नही अघाती है;
4. रंगों में आनन्द और सौन्दर्य प्रदायक, शक्ति है इसी कारण हमारी सम्पूर्ण साज-सज्जा में विभिन्न प्रकार के रंगों को विपुल मात्रा में प्रयुक्त किया जाता है,
5. रंग-बिरंगी साज-सज्जा ही मानव जीवन की नीरसता, शुष्कता, तनाव, कुण्ठा तथा अनाकर्षण को दूर कर उसे पूर्णतया आह्लादित बनाती है;
6. रंगों के प्रयोगोंपरान्त कला में एक विशिष्ट जीवन्तता और अपूर्व चित्ताकर्षण उत्पन्न होता है;
7. गृह की आन्तरिक और बाह्य साज-सज्जा में भी इन रंगों के द्वारा अपूर्व सौन्दर्य तथा आकर्षण उत्पन्न किया जा सकता है।
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