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सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? या सामुदायिक विकास योजना

सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है
सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है

सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? या सामुदायिक विकास योजना

सामुदायिक विकास से तात्पर्य- समूह के जो सदस्य एक ही स्थान पर रहते हों तथा एक-दूसरे से आपसी सम्बन्धों में बँधे हों तथा एक-दूसरे पर निर्भर हों, उनकी योग्यताओं तथा गुणों के विकास से है। सामुदायिक विकास एक समुदाय व्यक्तियों में निरन्तर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है। सामुदायिक विकास समुदाय के विभिन्न सदस्यों की सर्वमान्य तथा सामूहिक आवश्यकताओं को परिभाषित करता है। सामुदायिक विकास के अन्तर्गत समुदाय के सदस्य औपचारिक तथा अनौपचारिक रूप से, प्रजातांत्रिक योजना बनाने तथा उसके क्रियान्वयन के लिए अपने आप को संगठित करते हैं। सामुदायिक विकास के लिए व्यक्ति, व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से योजनाएँ तैयार कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा समस्या को हल करते हैं। सदस्य अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन अपने ही संसाधनों के अधिकतम उपयोग के द्वारा करते हैं आवश्यकता पढ़ने पर समुदाय के बाहर से संसाधनों की पूर्ति, सेवाओं तथा वस्तुओं के माध्यम से करते हैं।

कार्ल टेलर के अनुसार, “सामुदायिक विकास एक प्रविधि है, जिसके द्वारा गाँववासी अपनी सामाजिक, आर्थिक दशाओं में सुधार के लिये स्वयं अपनी सहायता करते हैं तथा इस प्रकार राष्ट्र विकास में एक प्रभावशाली समूह बन जाते हैं। “

इस प्रकार सामुदायिक विकास सामाजिक क्रियाओं की प्रक्रिया (Process) है, जिसमें समुदाय के सदस्य विकास की योजना बनाने तथा उसके क्रियान्वयन के लिए संगठित होकर कार्य करते हैं, अपनी सर्वसामान्य तथा व्यक्तिगत आवश्यकताओं तथा समस्याओं को समझते हैं, व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से उन समस्याओं के हल तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए योजनाएँ बनाते हैं, अपने ही सामुदायिक संसाधनों के अधिकतम उपयोग के माध्यम योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं तथा आवश्यक होने पर शासकीय सेवाओं तथा वस्तुओं की सहायता प्राप्त करते हैं।

सामुदायिक विकास एक आन्दोलन है, जो समूचे समुदाय को अधिक अच्छा जीवन प्रदान करने के लिए बनाया गया है। सामान्यतया समुदाय के सदस्य स्वयं अगुवाई कर विकास के लिए कार्य करते हैं। परन्तु यदि समुदाय के सदस्य स्वयं अगुवाई नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें कार्यक्रम बनाने तथा क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न तकनीकों द्वारा कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस प्रकार इस आन्दोलन में उनके सक्रिय सहयोग को उत्पन्न किया जाता है।

अतः सारांश में कह सकते हैं कि-

1. सामुदायिक विकास, परम्परागत जीवन की अपेक्षा अधिक प्रगतिशील जीवन में परिवर्तन की प्रक्रिया है।

2. सामुदायिक विकास एक प्रविधि है, जिसके माध्यम से समुदाय के व्यक्तियों को अपने संसाधनों तथा योग्यताओं के उपयोग द्वारा अपने विकास के लिए अपनाये गये कार्यक्रमों में सहायता प्रदान की जाती है।

3. यह एक कार्यक्रम है जिसके माध्यम से ग्रामीण समुदाय की कुछ कृषि तथा अन्य क्रियाओं की उपलब्धि सम्भव हो सकती हैं।

4. यह प्रगति के लिए आरम्भ किया गया आन्दोलन है।

जब हम सामुदायिक विकास को एक प्रक्रिया मानते हैं तो यह तात्पर्य है कि इसमें व्यक्ति में होने वाले सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों को महत्व प्रदान करना है। जब हम सामुदायिक विकास को एक प्रविधि मानते हैं, तो यह तात्पर्य है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि आदि के विकास सम्बन्धी कार्यों को महत्व देते हैं। जब हम विकास को एक आन्दोलन मानते हैं तो कार्यक्रम के पीछे निहित विचारधारा अथवा संवेगात्मक तत्व को प्रदान करते हैं।

सामुदायिक विकास के प्रमुख तत्व

सफल सामुदायिक विकास कार्यक्रम में निम्नलिखित तत्वों को महत्व प्रदान किया जाता है-

1. सामुदायिक विकास के अन्तर्गत किये जाने वाले कार्यों को समुदाय की आधारभूत आवश्यकताओं के अनुरूप होना आवश्यक होता है। सामुदायिक विकास की प्रथम योजनाओं को क्रियान्वयन समुदाय के द्वारा अनुभव की गई आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।

प्रक्रिया की दृष्टि से व्यक्ति के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू में परिवर्तन लाना जाता है। विधि की दृष्टि से विभिन्न गतिविधियों पर जोर दिया जाता है जैसे स्वास्थ्य शिक्षा, कृषि आदि का विकास और आन्दोलन की दृष्टि से संवेगात्मक बातों या कार्यक्रम के पीछे विचाराधारा पर जोर दिया जाता है। जैसे स्वास्थ्य शिक्षा, कृषि आदि का विकास और आन्दोलन की दृष्टि से संवेगात्मक बातों का कार्यक्रम के पीछे विचारधारा पर जोर दिया जाता है।

सामुदायिक विकास योजना

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरूआत गाँधीजी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर, 1952 में फिसकल आयोग तथा ग्रो मोर फूड इन्क्वाचरी कमेटी के संस्तुति के आधार पर हुई। इसका उद्देश्य ग्रामीण लोगों का बहुमुखी विकास उन्हीं के प्रयत्नों तथा सहकारिता सहायता द्वारा करना था। यह एक जन-आन्दोलन के रूप में शुरू हुआ। सामुदायिक विकास कार्यक्रम को स्थायित्व प्रदान करने के लिये सन् 1953 मे राष्ट्रीय प्रसार सेवा खण्ड की विधि तथा संगठनात्मक संरचना के रूप में शामिल किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्यों की प्राप्ति में मदद था। कुछ दिनों तक दोनों अवधारणाएँ साथ-साथ चलीं किन्तु उल्लेखनीय है कि सम्प्रति केवल सामुदायिक विकास की ही अवधारणा चल रही है। सन् 1966-67 तक पूरा देश सामुदायिक विकास खण्डों में विभाजित कर दिया गया। प्रशासनिक तौर पर ग्रामीण विकास हेतु निम्न इकाई सामुदायिक विकास खण्ड है जिनकी संख्या 5011 है और जिसमें 6.3 लाख गाँव हैं।

अर्थ — सामुदायिक विकास दो शब्दों से मिलकर बना है।

1. समुदाय – जिसका अर्थ है लोगों का वह समूह जो एक निश्चित भू-भाग में रहते हैं। एक व्यवसाय हो तथा हम की भावना हो। जैसे-गाँव एक समुदाय है।

2. विकास – निम्न जीवन स्तर से उच्च जीवन स्तर की ओर क्रमशः बढ़ना ही विकास कहलाता है। अतः सामुदायिक विकास एक प्रक्रिया, विधि तथा शान्तिप्रिय आन्दोलन है जो सामुदायिक जीवन-स्तर को बढ़ाता है। चूँकि हमारा देश गाँवों का देश है इसलिए सामुदायिक विकास का नाम देना बहुत उचित है इसको विभिन्न विद्वानों ने निम्नवत् परिभाषित किया है-

1. ए0 आर0 देसाई के अनुसार – “सामुदायिक विकास परियोजना एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा पंचवर्षीय योजना गाँवों में सामुदायिक और आर्थिक जीवन का रूपान्तर करने की एक प्रक्रिया प्रारम्भ करना चाहती है।”

2. योजना आयोग के अनुसार – “सामुदायिक विकास स्वयं जनता के प्रयत्नों द्वारा ग्रामीण जीवन का सामाजिक और आर्थिक रूपान्तर करने का एक प्रयत्न है।”

3. भारत 1971 के अनुसार- “यह सहायता प्राप्त स्वयं सेवा कार्यक्रम जिसको ग्रामवासी स्वयं आयोजित और कार्यक्रम में परिणित करेंगे जबकि सरकार केवल औद्योगिक निर्देश तथा आर्थिक सहायता देगी। उसका लक्ष्य व्यक्ति में आत्म-निर्भरता और ग्रामीण समुदाय में प्रेरणा उत्पन्न करना है। सामुदायिक विचार और सामूहिक कार्य को पंचायतों, सहकारी समितियों, विकास खण्डों इत्यादि को जनता की संस्थाओं द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। “

संक्षेप में सामुदायिक विकास परियोजना ग्रामीण जीवन के बहुमुखी विकास के लिये जनता तथा सरकार द्वारा सरकारी प्रसार है।

सामुदायिक विकास योजना का दर्शन

1. लोग दुःख और गरीबी से मुक्ति चाहते हैं। इसी परिकल्पना पर कार्यक्रम निर्धारित होता है। इसके अतिरिक्त सामाजिक दृष्टि से लोग (अ) असुरक्षा (ब) मान्यता (स) प्रतिवेदन, (द) नये अनुभव की कामना करते हैं।

2. लोगों के सामाजिक मूल्यों को महत्व मिलना चाहिए।

3. कार्यक्रम का आधार अनुभूति आवश्यकता है।

4. मनुष्य सबसे बड़े साधन हैं।

5. स्वयं सेवी निर्णय लेने, आत्मविश्वास तथा नेतृत्व के विकास के लिये आवश्यक हैं कि लोग अपनी सहायता स्वयं करें।

6. कार्यक्रम लोगों के दृष्टिकोण, आदत तथा सोचने के ढंग को विकसित करने पर आधारित हैं।

7. लोग आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक तथा राजनैतिक संस्थाओं को अपने ढंग से नियन्त्रित करने की आकांक्षा रखते हैं।

उद्देश्य – सामुदायिक विकास योजना का मुख्य उद्देश्य लोगों का बहुमुखी विकास करना है। विशिष्ट उद्देश्य निम्नवत् है।

प्राथमिक उद्देश्य – आर्थिक उन्नति के लिये अन्य तथा कृषि की अन्य चीजों का उत्पादन बढ़ना।

द्वितीयक उद्देश्य- 1. गाँव में रहने वाले जिनके पास खेत नहीं है, उनको रोजगार देने हेतु लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना।

2. स्वास्थ्य सुधार के लिये सफाई की व्यवस्था, गरीब लोगों के लिये आवासीय सुविधा उपलब्ध करना।

3. शिक्षा के लिये विद्यालय खोलना तथा यातायात की सुविधा हेतु सड़क निर्माण करना।

4. विभिन्न योजनाओं के संचालन हेतु कृषक युवकों, प्रसार कार्यकर्ता अन्य लोग जैसे- बढ़ई, नाई, धोबी, लोहार, कुम्हार आदि के लिये प्रशिक्षण व्यवस्था करना।

5. लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना जिसमें वे अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठा सकें।

6. स्थानीय नेतृत्व का विकास करना।

कार्यक्रम निम्नलिखित क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं— कृषि पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन, स्वास्थ्य एवं सफाई, अन्य एवं पोषण योजना, शिक्षा, कल्याण कार्यक्रम, यातायात सुविधा हेतु सड़क निर्माण तथा कुटीर उद्योग।

चूँकि ग्रामीण समस्याएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं इसलिए वे सभी कार्यक्रम साथ-साथ चलाये जाते हैं।

सामुदायिक विकास की विधियाँ 

विश्व के विभिन्न देशों में चल रहे सामुदायिक विकास कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करते हुए यह सुझाव दिया कि सामुदायिक विकास के लिए तीन विधियों का समावेश आवश्यक है, जो निम्नवत हैं-

(1) सहायता प्राप्त स्वयं चलाई गई परियोजनाएँ (2) स्थानीय संगठनों का विकास (3) बहुविषयक वस्तु शिक्षा। जे0 पाल लिंगन ने भी कहा है कि सामुदायिक विकास रूपी उद्देश्य की प्राप्ति प्रसार शिक्षा रूपी विधि पर है कहीं पर सामाजिक शिक्षा को भी विधि के रूप में माना है।

1. सामाजिक शिक्षा– ऐतिहासिक रूप से सामाजिक शिक्षा को बुनियादी सामुदायिक शिक्षा व जन-शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा कहा गया है। ऐसा लगता है कि सामाजिक शिक्षा, सामुदायिक विकास के पहले शुरू की गई जो निम्नलिखित कारणों से स्पष्ट हैं।

(1) नये स्वतन्त्र और विकासशील देशों में प्रौढ़ शिक्षा या जन-शिक्षा प्रायः अनिवार्य, है क्योंकि प्राइमरी शिक्षा के अभाव से लोग अनपढ़ हैं और बिना पढ़े स्थानीय नेतृत्व का विकास व स्वायत्त शामिल कार्यक्रम नहीं चल सकता। (2) सभी सामाजिक योजनाओं में अच्छे बुद्धिमानों या अच्छे मस्तिष्कों की आवश्यकता रहती है। इसलिये नई तकनीक को अपनाने के लिए भी शिक्षित लोग आवश्यक हैं।

2. प्रसार शिक्षा – यदि सामुदायिक विकास योजना को संगठन और प्रसार शिक्षा को प्रबन्ध कहा जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि संगठन शरीर की तरह है और प्रबन्ध प्राण की तरह कार्य करता है जिससे शरीर सजीव हो उठता है। ठीक इसी प्रकार सामुदायिक विकास कार्यक्रम में प्रसार शिक्षा की भूमिका होती है जो निम्नलिखित व्याख्या से स्पष्ट है-

(अ) प्रसार शिक्षा में समस्याओं का सही पता लगता

(ब) प्रसार शिक्षा मनुष्यों के व्यवहार में परिवर्तन लाने में पूर्ण कारगर है इसमें सामुदायिक विकास का भी लक्ष्य पूरा होता है।

(स) प्रसार शिक्षा ही प्राशसनिक नीति बनाती है जिससे लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता मिलती हैं।

(द) प्रसार शिक्षा ही प्रशिक्षण व्यवस्था तय करती है।

(य) जैसा कि प्रसार शिक्षा एक कृषि पर आधारित व्यावहारिक विज्ञान है जो विकास की नीति तय करता है और अनुसन्धान से प्राप्त नई पद्धतियों के विसरण पर प्रकाश डालता है। इस प्रकार से भी सामुदायिक विकास योजना की लक्ष्य प्राप्ति में मदद होती है।

(र) प्रसार शिक्षा लोगों के ज्ञान, दृष्टिकोण तथा कौशल में वृद्धि कर उनको प्रगतिशील बनाता है जिसके फलस्वरूप लोग स्वयं प्रेरित होकर नई तकनीकियों को अपनाकर जीवन स्तर ऊँचा उठाते हैं।

इस प्रकार सामुदायिक विकास में प्रसार शिक्षा की भूमिका स्पष्ट हो जाती है।

3. सहायता प्राप्त अपने द्वारा चलाये गये प्रोजेक्ट – इस प्रकार की परियोजना लोगों में आत्मविश्वास पैदा करने, आत्म-निर्भर बनाने, संगठनात्मक दक्षता उत्पन्न करने में तथा सामूहिक तौर पर समस्या का निदान करने में बहुत ही सहायक होती है। अतः इस विधि द्वारा भी सामुदायिक विकास योजना के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

स्थानीय संगठनों जैसे— गाँव में विकास परिषद् सहकारी समितियाँ, युवक दल, महिला

दल का भी विकास करके सामुदायिक विकास योजना की लक्ष्य पूर्ति होती है। अनुसन्धानों से पता लगा है कि उक्त विधियों का सामुदायिक विकास योजना के लक्ष्य पूर्ति में सर्वोच्च स्थान रहा है।

सामुदायिक विकास योजना का क्षेत्र एवं महत्व

सामुदायिक विकास योजना के अन्तर्गत क्रियान्वित कार्यक्रम ही उसका क्षेत्र है। इसमें इतने कार्यक्रम हैं जो ग्रामीण लोगों के बहुमुखी विकास को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार इस योजना का क्षेत्र बहुत व्यापक है। संक्षेप में, आर्थिक विकास, सामाजिक विकास तथा सांस्कृतिक विकास हेतु जितने भी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं सभी, इस क्षेत्र में आते हैं।

“जहाँ तक उसके महत्व की बात है वह द्वितीय पंचवर्षीय योजना में उद्धत है, जैसे- “संक्षेप में यह देहात में रहने वाले छह करोड़ परिवारों के दृष्टिकोण को परिवर्तित करने की, उनमें नये ज्ञान और जीवन के लिये तरीकों के प्रति उत्साह उत्पन्न करने और उसमें एक बेहतर जीवन के लिये महत्वाकांक्षा और जीवन का संकल्प भरने की समस्या है। जनतन्त्रीय नियोजन में विस्तार सेवाएँ और सामुदायिक संगठन प्राण शक्ति के मुख्य स्रोत है और ग्राम विकास सेवाएँ वे साधन है जिनके द्वारा सहयोगी आत्म सहायता और स्थानीय प्रयत्नों से ग्राम समूह अधिकाधिक मात्रा में सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक उन्नति दोनों प्राप्त कर सकते हैं और राष्ट्रीय योजना में भागीदार बन सकते हैं।”

ग्रामीण क्षेत्र में योजना का प्रभाव निम्नवत है-

1. कृषि उत्पादन में वृद्धि,

2. आर्थिक विकास,

3. पशु सम्बन्धी विकास,

4. शिक्षा का विकास,

5. विकास हेतु प्रशिक्षण व्यवस्था,

6. परिवहन माध्यमों का विकास,

7. सफाई एवं स्वास्थ्य रक्षा तथा उपचार,

8 आवासी सुविधा कमजोर वर्गों के लिए,

9. सामाजिक कल्याण,

10. सांस्कृतिक विकास।

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shubham yadav

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