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पठन कौशल से क्या तात्पर्य है? (Reading Skills in Hindi)
अंग्रेजी भाषा के रीडिंग (Reading) शब्द के लिए हिन्दी में दो शब्दों का प्रयोग किया जाता है-पठन एवं वाचन । पठन एवं वाचन इन दोनों में मूलत: भेद है पठन का अर्थ है-जोर से तथा मौन होकर पढ़ना जिससे पठित सामग्री समझ में आ जाए। पठन के अन्तर्गत सस्वर तथा मौन वाचन आ जाता है । वाचन का उद्देश्य होता है कि वाचन करने वाला (पढ़ने वाला) स्वयं वाचन का आनन्द उठाए इसके साथ-साथ अपने मानसिक विकास में भी गति उत्पन्न करे। वाचनकर्ता पठित सामग्री के भाव को समझकर दूसरों को समझ सके। यह पठन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है।
पठन शिक्षा का महत्व
वर्तमान युग में पठन शिक्षा का महत्व बहुत बढ़ गया है। आज वैचारिक आदान-प्रदान, विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करने एवं विश्व भर को जानकारी तथा छात्रों के संवेगात्मक तथा मानसिक विकास की दृष्टि से पठन कौशल का विकास अनिवार्य हो गया है। इसके अभाव में लेखन, वाचन एवं बोध सामर्थ्य का विकास असम्भव है। अतः शिक्षकों को बालकों में पठन-कौशल में प्रवीण बनाने का प्रयास करना चाहिए।
पठन (वाचन) कौशल के प्रकार
पठन के प्रमुखतः दो प्रकार होते हैं-1. सस्वर पठन, 2. मीन पठन ।
1. सस्वर पठन- सस्वर पठन से आशय लिखित भाषा में व्यक्त भावों तथा विचारों को समझने हेतु ध्यन्तात्म उच्चारण करके पढ़ने से है। इसे मौखिक पठन भी कहा जाता है। मौखिक पठन का उद्देश्य बालको को ध्वनियों के उचित आरोह-अवरोह एवं विराम चिह्नों आदि को दृष्टिगत रखकर उचित स्वर, यति गति एवं लय के साथ, पाठ्य-वस्तु का अर्थ एवं भाव ग्रहण करते हुए कुछ उच्चतर करते हुए पढ़ने की योग्यता प्रदान करता है।
सस्वर वाचन करने से छात्रों का शब्दोच्चारण एवं अक्षर-विन्यास शुद्ध होता है। नव शब्दों में सूक्तियों, लोकोक्तियों तथा मुहावरों का परिचय प्राप्त करके शब्द भण्डार समृद्ध होता है छात्रों को स्वराघात तथा बलाघात का समुचित ज्ञान होता है और छात्र भाषण एवं वाद-विवाद कला में निपुणता अर्जित कर लेते हैं।
मौखिक पठन के दो भेद हैं-व्यक्तिगत पठन एवं सामूहिक पठन। व्यक्तिगत पठन कक्षा में शिक्षक द्वारा किये गये आदर्श पाठ का अनुकरण छात्र द्वारा किया जाता है सामूहिक पठन पूरी कक्षा द्वारा एक साथ किया जाता है।
सस्वर वाचन के उद्देश्य- सस्वर वाचन के उद्देश्य निम्न हैं-
(i) सस्वर वाचन का मुख्य उद्देश्य छात्रों के उच्चारण में सुधार लाना है। बालकों के उच्चारण में होने वाली विराम, वलाघात सम्बन्धी भूलों को धीरे-धीरे कम करना है।
(ii) सस्वर वाचन का एक उद्देश्य वार्तालाप में तथा पठन में होने वाली रुकावट को दूर करना भी है।
(iii) सस्वर वाचन का उद्देश्य शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारण, के साथ पढ़ना है तथा श स, ह, क्ष, च्छ, द्य, द्व, स्थ, स्न की अशुद्धियों को दूर करना है। इसके साथ ही इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा युक्त ध्वनियों की शुद्धता का भी ध्यान रखना है।
(iv) सस्वर वाचन का एक उद्देश्य विरामादि चिह्नों का समुचित ध्यान रखते हुए पढ़ना भी है।
(v) भावानुरूप अवसर के अनुरूप गुण भी इसका उद्देश्य है।
(vi) इसका एक उद्देश्य उच्चारण एवं सुर में स्थानीय बोलियों का प्रभाव न आने देना है।
(vii) इसका एक उद्देश्य श्रोताओं की संख्या तथा अवसर के अनुसार वाणी को नियन्त्रित करना भी है।
उत्तम सस्वर वाचन के गुण- उत्तम सस्वर वाचन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है। यदि ये उद्देश्य प्राप्त हो जाते हैं तो वाचन अच्छा कहा जाएगा, अन्यथा यह नहीं कहा जाएगा।
उत्तम वाचन के लिए निम्नलिखित गुण आवश्यक हैं-
1. ध्वनियों का ज्ञान- छात्र को विभिन्न ध्वनियों का ज्ञान होना चाहिए और समान ध्वनियों में भेद करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
2. उपयुक्त बलाघात- आवश्यकता करना, घटना आदि शब्दों के उच्चारण में रेखांकित ध्वनियों को आधा कर देना या लुप्त कर देना उचित नहीं है। कमल, कलम जैसे शब्दों में रेखांकित अक्षरों पर बलाघात है और आगे का अक्षर अर्द्ध-अक्षर के रूप में उच्चारित होता है। अच्छा वाचक उपयुक्त बलाघात का ध्यान रखता है।
3. उच्चारण की शुद्धता – विशेष, प्रसन्न, भारतीय, सौष्ठव, क्रय, कर्म, कृषि जैसे शब्दों का उच्चारण शुद्धता से किया जाए तो वाचन अच्छा कहा जाएगा।
4. स्पष्टता – वाचन स्पष्ट होना चाहिए इसके लिए स्वर पर नियन्त्रण रखना जरूरी है इतनी तीव्रता से पढ़ना चाहिए जिससे सभी श्रोता सुन लें। शब्दों के समूह को एक श्वास में पढ़ते समय उनमें अर्थ की संगति का ध्यान रखा जाए। प्रत्येक वर्ण का उच्चारण पृथक् रूप में ही किया जाए।
5. विराम चिह्न- स्वल्प विराम, अर्द्ध-विराम तथा पूर्ण विराम का ध्यान रखकर पढ़ना चाहिए ‘मारो मत जाने दो’ वाक्य में यदि मारो के बाद विराम न करके पढ़ें तो एक अर्थ होगा और मत के बाद विराम करके पढ़ें तो दूसरा अर्थ होगा।
6. प्रवाह- वाचन में प्रवाह का ध्यान रखना आवश्यक है। गति या नियन्त्रण रखना भी जरूरी है न तो बहुत तीव्र गति से पढ़ना चाहिए और न रुक-रुककर धीरे-धीरे पढ़ना चाहिए।
7. रुचि- पढ़ते समय अच्छा वाचक वही होता है जो पढ़ने में रुचि लेता है। उसे वाचन में आनन्द आता है, उसकी रुचि को देखकर ही श्रोता भी आनन्द लेते हैं। वाचन करते समय न उसे ऊब होती है और न ही इसे वह व्यर्थ का कार्य समझकर टालता है ।
8. वाचन की मुद्रा – वाचन करते समय अच्छा वाचक अनावश्यक ढंग से सिर नहीं हिलाता है, हाथ नहीं पटकता और मेज भी नहीं पीटता है, न वह उंगलियों को नचाता है और न ही पैर से तबला बजाता है, पुस्तक को विकृत ढंग से नहीं पकड़ता और न झुककर पढ़ता है और न ही अकड़कर बैठता है।
9. स्वर में रसात्मकता- अच्छा वाचक मुख से प्रत्येक ध्वनि को निकालते समय कर्कश ढंग से नहीं पढ़ता है, न ही उसमें रूखापन रहता है वरन् मधुरता के साथ सरल ढंग से शब्दों का उच्चारण करता है, दुःखपूर्ण विषय सामग्री को पढ़ते समय वीर रस को ओज वाचन वीभत्स ढंग से नहीं होना चाहिए।
10. अर्थ की प्रतति – सुन्दर वाचन वह है जो पढ़ते समय शब्दों का अर्थ ग्रहण करता चलता है यदि गति, लय, उच्चारण, विराम आदि का ध्यान रखकर वाचन किया जा रहा है तो अर्थ की प्रतीति स्वाभाविक रूप में होती चलेगी।
सस्वर वाचन के भेद-सस्वर वाचन के गुणों के आधार पर इनके दो भेद किये जा सकते हैं-
(i) छात्रों द्वारा आदर्श वाचन, (ii) छात्रों द्वारा अनुकरण वाचन।
छात्रों के समक्ष पाठ्य सामग्री को जब शिक्षक स्वयं वाचन करके प्रस्तुत करता है तो उसे आदर्श वाचन कहा जाता है।
आदर्श वाचन के उद्देश्य-आदर्श वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(i) छात्रों के समक्ष वाचन का एक मानदण्ड उपस्थित करना।
(ii) छात्रों को यह समझाना कि उन्हें कहाँ तक पढ़ना है।
(iii) अपरिचित पाठ्य सामग्री का छात्रों की प्रथम परिचय देना।
(iv) छात्रों के मन में व्याप्त झिझक को दूर करना।
(v) छात्रों को उचित गति, लय, विराम, उच्चारण, स्पष्टता आदि का ध्यान रखते हुए वाचन करने की प्रेरणा देना।
अनुकरण वाचन-आदर्श वाचन के बाद छात्रों द्वारा अनुकरण वाचन किया जाता है। जब छात्र शिक्षक द्वारा किये गये वाचन के ढंग पर वाचन करने का प्रयत्न करते हैं तो उसे अनुकरण वाचन कहा जाता है।
अनुकरण वाचन के उद्देश्य अनुकरण वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं- (i) शिक्षक द्वारा किये गये आदर्श वाचन का अनुकरण करना।
(ii) उच्चारण को शुद्ध बनाना।
(iii) पाठ के भाव के अनुसार वाचन करने की क्षमता प्राप्त करना, यथा दुःख में भारी आवाज से, वीर रस की सामग्री में उच्च स्वर से, शृंगार में स्नेहयुक्त मधुर स्वर हो, करुण रस में दयार्द्र स्वर से तथा भक्ति रस में शान्त तथा गम्भीर स्वर में वाचन करने की योग्यता प्राप्त करना।
(iv) वाचन में गति तथा प्रवाह का ध्यान रखना।
(v) वाचन करते समय अर्थग्रहण की योग्यता का विकास करना।
वाचनकर्ता के अनुसार सस्वर वाचन को पुनः दो भेदों में बाँटा जा सकता है-
(i) वैयक्तिक वाचन- माध्यमिक कक्षाओं में प्रायः इसी प्रकार का वाचन कराया जाता है। वैयक्तिक वाचन द्वारा छात्र वाचन अभ्यास भली प्रकार कर सकता है और शिक्षक को भी वाचन की त्रुटियों को दूर करने में सहायता मिलती है। वैयक्तिक वाचन में वाचन के दोषों का निदान सरलता से हो जाता है और उपचारात्मक शिक्षण के लिए व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने से शिक्षक को सरलता होती है।
(ii) सामूहिक वाचन – प्रारम्भिक कक्षाओं में शब्दों के उच्चारण का अभ्यास कराने में कभी-कभी सामूहिक वाचन का सहारा लेना पड़ता है । सामूहिक वाचन कराने का एक लाभ यह भी है संकोची छात्र सबसे साथ पढ़ते-पढ़ते अपनी झिझक दूर कर लेता
है और आगे चलकर वाचन का अभ्यास कर लेता है। कर्कश स्वर वाले छात्र, शर्मीले छात्र या आत्मविश्वास की कमी वाले छात्रों को प्रारम्भ में सामूहिक वाचन से लाभ होता है, किन्तु सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि सामूहिक वाचन तेरह चौहद वर्ष की आयु के बालकों के लिए ही किया जाता है। छात्रों की संख्या बहुत अधिक न हो और पड़ोस की कक्षा की शान्ति भंग न हो, नहीं तो अनुशासन की समस्या उत्पन्न हो जाएगी।
2. मौन पठन-लिखित सामग्री को मन-ही-मन आवाज निकाले पढ़ना मौन पठन अथवा वाचन कहलाता है। मौन वाचक के होंठ बन्द रहते हैं । जब छात्र मौन वाचन में कुशलता अर्जित कर लेता है तब सस्वर वाचन का अधिक प्रयोग करना छोड़ देता है। मौन वाचन में निपुणता का आना व्यक्ति के विचारों की प्रौढ़ता का द्योतक होता है एवं भाषायी दक्षता अधिकार का सूचक है।
मौन वाचन के उद्देश्य – मौन वाचन के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(i) मौन वाचन छात्रों में चिन्तनशीलता का विकास करता है जिससे उनकी कल्पना-शक्ति विकसित होती है और छात्र बुद्धिमान बनता है।
(ii) मौन वाचन छात्रों को भाषा के लिखित रूप को समझाकर गहराई तक पहुँचाने में सहायता करता है।
(iii) मौन वाचन द्वारा एकाकी क्षणों में समय का सदुपयोग किया जा सकता है।
(iv) शिक्षार्थियों में चिन्तन तथा तर्क शक्ति को बढ़ाने एवं उनके प्रति उत्तर क्षमता उत्पन्न करने के लिए भी इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
(v) मौन पठन में छात्र की कल्पना शक्ति का विकास होता है, शान्त मस्तिष्क में छात्र आगे की घटनाओं के विषय में अनुमान लगा सकता है।
(vi) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि छात्र कम-से-कम समय में विषय को गहराई से समझ लेता है और अत्यधिक आनन्दानुभूति अर्जित करने में सफल होता है।
(vii) मौन पठन छात्र को स्वाध्याय हेतु प्रेरित करता है और स्वाध्याय की ओर प्रेरित होकर वह साहित्य में रुचि लेने लगता है।
(viii) मौन पठन में अन्य संगी-साथियों को कोई परेशानी नहीं होती है।
(ix) मौन पठन अकेलेपन की बोझिलता बहुत कम हो हाती है।
(x) सस्वर पठन जितना प्राथमिक कक्षाओं के लिए महत्त्वपूर्ण है, मौन वाचन उतना ही उच्च कक्षाओं के लिए महत्त्वपूर्ण है।
पठन रूपरेखा का निर्माण– छोटे-छोटे बच्चों में पठन रूपरेखा का निर्माण करने के लिए हम किसी भी विधि का प्रयोग कर सकते हैं, परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उसका पढ़ने के लिए तैयार करना, बालक एक क्रियाशील प्राणी है इसलिए सबसे आवश्यक बात है उसकी क्रियाशीलता को जाग्रत रखना।
पठन रूपरेखा का निर्माण करने लिए निम्नलिखित कार्य किये जा सकते हैं-
(i) चित्र बनवाना – शिक्षक को छात्रों में पठन रूपरेखा का निर्माण करने के लिए उससे सूखे तथा पानी के रंगों का प्रयोग करके चित्र बनवाने चाहिए। इसके साथ ही बालक परस्पर चित्र के सम्बन्ध में तथा उसकी कमियों एवं अच्छाइयों पर वार्तालाप करें।
(ii) चित्रों के सम्बन्ध में वार्ता-बालकों को अलग-अलग तरह के चित्र दिखलाये जाएँ तथा उसने उन चित्रों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे जाएँ।
(iii) नाटकीकरण- ऐसी कहानियाँ तथा दृश्य जिनमें गतिशीलता हो। बालक नाटक के रूप में खेल सकते हैं। इसके द्वारा वे हाव-भाव पूर्ण बातचीत करना सीखेंगे तथा भावों के अनुरूप भाव-भंगिमा बनाना उन्हें आएगा।
(iv) वस्तुएँ बनवाना – बालकों के पठन तथा क्रियाशीलता का विकास करने के लिए उनसे भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुएँ जैसे मिट्टी की, कागज की तथा इसी प्रकार की अन्य सामग्री द्वारा वस्तुएँ बनवाई जाएँ।
(v) कहानी सुनना- पठन रूपरेखा का निर्माण करने में कहानियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। समय-समय पर बालकों को कहानी सुनाते रहना चाहिए। इसके द्वारा जहा एक ओर उनकी कल्पना-शक्ति का विकास होता है, वहीं दूसरी ओर उनका शब्द भण्डार भी बढ़ता हैं।
मौन वाचन के भेद- वाचन की प्रकृति के अनुसार मौन वाचन के दो भेद हैं-
1. गम्भीर वाचन- गम्भीर वाचन उस समय किया जाता है, जब हम किसी सामग्री की तह तक पहुँचना चाहते हैं।
गम्भीर वाचन के उद्देश्य- गम्भीर वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(i) भाषा पर अधिकार करना (ii) विषय-वस्तु पर अधिकार करना (iii) नवीन सूचना एकत्र करना । (iv) केन्द्रीय भाव की खोज करना।
2. द्रुत वाचन-द्रुत वाचन का सम्बन्ध विस्तृत अध्ययन से है विस्तृत अध्ययन तब किया जाता है जब हम अधिक सामग्री कम समय में पढ़ना चाहते हैं।
द्रुत वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं – (i) सीखी हुई भाषा का अभ्यास करना । (ii) साहित्य से परिचय प्राप्त करना । (iii) अवकाश का सदुपयोग करना । (iv) सूचना एकत्र करना । (v) आनन्द प्राप्त करना ।
गम्भीर वाचन में पाठ्यक्रम के प्रत्येक शब्द को पढ़ना तथा समझना आवश्यक होता है। द्रुत वाचन में यह आवश्यक नहीं है । गम्भीर वाचन में विचारों के चिन्तन-मनन की है आवश्यकता पड़ती है, जबकि द्रुत वाचन में सार ग्रहण पर बल दिया जाता है।