गृहविज्ञान

संचार के माध्यमों का वर्गीकरण करते हुए प्रमुख माध्यम की विवेचना कीजिए।

संचार के माध्यमों का वर्गीकरण
संचार के माध्यमों का वर्गीकरण

संचार के माध्यमों का वर्गीकरण

संचार के माध्यमों का वर्गीकरण- संचार अनेक माध्यमों द्वारा संभव है। इन्हें तीन मुख्य वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- श्रव्य (audio), दृश्य (visual) तथा श्रव्य दृश्य (audio visuals) अर्थात् सुनना, देखना और सुनना-देखना दोनों। श्रव्य संचार माध्यम के उदाहरण सम्मेलन, समितियाँ, साक्षात्कार, टेलीफोन, रेडियो प्रसार, जनसाधारण की सभाएँ इत्यादि । दृश्य संचार माध्यम के अन्तर्गत लिखित संचार (परिपत्र, पुस्तिकाएँ, प्रतिवेदन, विवरणिका तथा हस्त पुस्तकें) तथा चित्रण (चित्र, फोटो, पोस्टर, व्यंग्यचित्र, झण्डे, अधिचिह्न, स्लाइड इत्यादि) आते हैं। सवाक चलचित्र, टेलीविजन तथा व्यक्तिगत प्रदर्शन श्रव्य दृश्य संचार माध्यम के उदाहरण हैं। इनमें से प्रत्येक माध्यम के अपने अलग-अलग गुण तथा सीमाएँ हैं। यह प्रबन्धक या निष्पादक के हाथों में है कि वह निश्चित करे कि कब कौन सा संचार माध्यम प्रभावशाली सिद्ध होगा।

व्यापारिक और शासकीय, दोनों ही प्रकार के संगठनों में सम्मेलन प्रणाली (Conference method) का संचार को प्रोत्साहित करने के साधन के रूप में अधिकाधिक प्रयोग किया जा रहा है, क्योंकि इससे विलम्ब नहीं होता, पत्र व्यवहार भी कम होता है तथा लालफीताशाही में कमी आती है। मिलेट के अनुसार सम्मेलन प्रणाली के महत्वपूर्ण उपयोग निम्नलिखित हैं-

(1) समस्या सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है,

(2) समस्या के समाधान में सहायता होती है,

(3) निर्णय की स्वीकृति तथा निष्पादन सम्भव होता है,

(4) संगठन में काम करने वाले अधिकारियों में एकता की भावना उत्पन्न करने में सहायता होती है,

(5) कर्मचारी वर्ग के मूल्यांकन में सहायता होती है, तथा

(6) प्रशासकीय कर्मचारियों को सूचना का आदान प्रदान सम्बन्धी प्रोत्साहन मिलता है।

सम्मेलन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) व्यक्तियों को उनके वर्तमान उत्तरदायित्वों को अधिक सफलता के साथ निभाने में सहायता देना,

(2) उनके कार्य सम्बन्धों में समन्वय करना,

(3) दूसरों के अनुभव से लाभ उठाना,

(4) निजी अनुभव को एकीकृत करना,

(5) दूसरों के सामने आने वाली समस्याओं को समझना,

(6) अपने दृष्टिकोण का विस्तार करना, और

(7) संगठनात्मक संचार को औपचारिक रूप प्रदान करना ।

सम्मेलन प्रणाली का एक लाभ यह है कि इससे लोगों की रुचि बहुत बढ़ जाती है। समूह के सदस्य इसमें पूरी तरह तथा समान रूप से भाग ले सकते हैं और पारस्परिक सफलता द्वारा उन्हें संतोष होता है, संगठन के सभी सदस्य परिणामों को स्वीकार कर लेते हैं, विश्लेषण तथा एकीकरण की आदतें उत्पन्न होती हैं, सामूहिक हौसले का विकास होता है तथा अनौपचारिकता आती है।

लेकिन सम्मेलन प्रणाली की अपनी सीमाएँ हैं। प्राक्कलन समिति (नवाँ प्रतिवेदन) के मतानुसार, “सम्मेलनों में काफी वृद्धि हुई है। कभी-कभी तो वे इतने दुरूह हो जाते हैं कि उनमें भाग लेने वाले अधिकारियों के लिए सम्बन्धित विषय-वस्तु के साथ न्याय करना असम्भव हो जाता है, और व्यवहार में चर्चाओं एवं टिप्पणी लिखने के कार्यों में कमी होने के स्थान पर कभी- कभी तो पत्र-व्यवहार लम्बे समय तक चलते रहते हैं, क्योंकि सम्बन्धित विषय पर प्रकट किये गये विभिन्न दृष्टिकोणों पर टिप्पणी करनी पड़ती है, उन्हें सुधारना पड़ता है तथा उनका समाधान करना पड़ता है। इसीलिए सर्वसम्मत विवरण तैयार करने में विलम्ब हो जाता है तथा कभी-कभी तो चर्चाएँ अधूरी रह जाने के फलस्वरूप आगे फिर सम्मेलन बुलाना आवश्यक हो जाता है। कभी-कभी एक ही अधिकारी को एक ही दिन में एक से अधिक सम्मेलनों में भाग लेना पड़ता है, और ऐसी दशा में वह प्रत्येक सभा के लिए पूरी तैयारी नहीं कर पाता। परिणाम यह होता है कि वह चर्चाओं में पूरा योग नहीं दे पाता। संक्षेप में, सम्मेलन प्रणाली नस्तियों या मिसिलों पर नोट लिखने की मूल प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक व्यापक सिद्ध हो रही है।

अतः सम्मेलनों के लाभदायक सिद्ध होने के लिए उनका प्रबन्ध सावधानी से किया जाना चाहिए। किसी प्रारम्भिक योजना, विशेषज्ञों की सेवा, किन्हीं नियमों तथा प्रभावपूर्ण कार्य के लिए समुचित संगठन के बिना सम्मेलन प्रारम्भ ही नहीं करने चाहिए। किसी भी सम्मेलन के लिए प्रारम्भिक योजना अत्यावश्यक है। सम्मेलन के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपना पूरा समय योजना में लगायें और सम्मेलन की कार्यवाही प्रारम्भ होने से पहले ही योग्य व्यक्तियों को उसके कार्य सौंप दें। सम्मेलन का संगठन भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। ठीक आकार का कमरा, घूम सकने वाली आरामदेह कुर्सियाँ, अच्छे प्रकाश एवं वायु संचार की व्यवस्था, उपयुक्त साजसज्जा, श्यामपट, अभिलेखन, प्रोजेक्टर तथा स्लाइड जैसी वस्तुओं का प्रबन्ध, बैठने के स्थान का प्रबन्ध, समय इत्यादि बातें यद्यपि छोटी दीख पड़ती हैं, किन्तु ये सब सम्मेलन को सफल बनाने में सहायक होती हैं। इसी प्रकार, कार्रवाई की प्रणाली तथा सभापति का व्यक्तित्व भी सम्मेलन को सफल या असफल कर सकते हैं।

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shubham yadav

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