गृहविज्ञान

एक अच्छी उपकल्पना के गुण | उपकल्पना या परिकल्पना की विशेषताएँ | परिकल्पना निर्माण का स्वरूप

एक अच्छी उपकल्पना के गुण
एक अच्छी उपकल्पना के गुण

एक अच्छी उपकल्पना के गुण

एक अच्छी उपकल्पना के गुण- एक अच्छी उपकल्पना में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है-

1. उपकल्पना स्पष्ट होनी चाहिये।

2. उपकल्पना समस्या का पर्याप्त उत्तर हो।

3. उपकल्पना का प्रयोग सिद्ध सम्बन्ध होना चाहिये।

4. उपकल्पना विशिष्ट होना चाहिये।

5. उपकल्पना प्रमाणित करने योग्य हो।

6. उपकल्पना प्राप्त पद्धतियों से सम्बन्धित होनी चाहिये।

उपकल्पना या परिकल्पना की विशेषताएँ

परिकल्पना की विशेषताएँ-ये निम्न हैं-

(i) सम्प्रत्यात्मक स्पष्टता (Conceptual Clarity) – कोई भी अच्छी अनुसंधान परिकल्पना सम्प्रत्यात्मक दृष्टिकोण से स्पष्ट व बोधगम्य होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि परिकल्पना में सम्मिलित सभी चरों के बीच निरूपित सम्बन्ध को निश्चयात्मक (Assertive) ढंग से स्पष्ट तथा सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

(ii) परीक्षणीयता (Testability)- परिकल्पना निर्माण का उद्देश्य उसके परीक्षण के द्वारा निष्कर्षो तक पहुँचना है। अतः परिकल्पना ऐसी होनी चाहिए जिसका आनुभाविक ढंग से परीक्षण करना सम्भव हो सके। परिक्षणीय परिकल्पना के सत्य या असत्य होने की जाँच की जा सकती है।

(iii) पर्याप्तता (Sufficiency)- क्योंकि कोई भी परिकल्पना वस्तुतः सम्बन्धित समस्या का सम्भावित उत्तर होती है, अतः अच्छी परिकल्पना के द्वारा समस्या का पर्याप्त समाधान होना अत्यन्त आवश्यक है। दूसरे शब्दों में समस्या का उत्तर सरलता, सुविधा व पर्याप्तता से देने वाली परिकल्पना को ही अच्छी परिकल्पना कहा जा सकता है।

(iv) तार्किक व्यापकता (Logical Comphrehensiveness) – एक अच्छी परिकल्पना की आवश्यक विशेषता उसमें तार्किक व्यापकता का होना है। व्यापकता से तात्पर्य परिकल्पित सम्बन्धों की व्याख्या में घटना के सभी महत्वपूर्ण पक्षों का समावेश होने से है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि परिकल्पना को अध्ययन की जा रही समस्या से सम्बन्धित तथा चयनित परिक्षेत्र में दृष्टिगोचित समस्त तथ्यों तथा सम्बन्धों से आच्छादित होना चाहिए।

(v) संगतता (Conisistency)- किसी भी अच्छी परिकल्पना को उस समय तक ज्ञात तथा स्थापित सभी तथ्यों, सिद्धान्तों व नियमों के संगत होना चाहिए। प्रत्येक प्रकरण से सम्बन्धित कुछ पूर्व अन्वेषित तथ्य व सिद्धान्त होते हैं। किसी परिकल्पना को उनके परिप्रेक्ष्य में बनाया जाता है एवं वह प्रमाणित सिद्धान्तों से संगति रखती है। तत्कालीन सिद्धान्तों से मतभेद रखने वाली परिकल्पना के पीछे एक स्पष्ट तार्किक व अवलोकित परिस्थिति अथवा तार्किक विवेचन रहता है।

(vi) सरलता (Simplicity)- किसी भी अनुसंधान परिकल्पना को समस्या का सरलतम उत्तर होना चाहिए। परिकल्पना के सरल होने पर समस्या के उत्तर के सम्बन्ध में भ्रम की सम्भावना नहीं रहती है एवं उसका परीक्षण करने की कोई भी कठिनाई नहीं आती है। अतः बनाई गई परिकल्पना का आकार छोटा, भाषा स्पष्ट व भ्रमरहित एवं शब्दावली सुगम व बोधगम्य होनी चाहिए।

(vii) विशिष्टता (Specificity)- परिकल्पना की विशिष्टता से तात्पर्य उसके क्षेत्र के सीमित तथा विशिष्ट होने से है। अत्यधिक विस्तृत क्षेत्र वाली परिकल्पना का परीक्षण करना प्रायः अत्यन्त कठिन होना है एवं समस्या पर गहन अध्ययन करने की सम्भावना कम हो जाती है।

परिकल्पना निर्माण का स्वरूप

परिकल्पना निर्माण का स्वरूप निम्न हैं-

सत्यभासिता (Plausibility)- किसी अच्छी परिकल्पना के द्वारा चरों के बीच परिकल्पित सम्बन्ध प्रथम दृष्टया सत्य प्रतीत होने चाहिए। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि परिकल्पना के द्वारा परिलक्षित अन्तर या सह-सम्बन्ध सामान्य रूप में सत्य लगने चाहिये। जैसे जनसामान्य के प्रेक्षणों के आधार पर बुद्धि तथा भार के बीच सम्बन्ध होने की परिकल्पना प्रथम नजर में सही प्रतीत नहीं होती है।

व्यावहारिकता (Practicability)- परिकल्पना इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे परीक्षण के लिए आवश्यक प्रदत्त, मापन उपकरण तथा सांख्यिकीय तकनीकें आदि सुविधा से उपलब्ध हों एवं अनुसंधानकर्ता उनका प्रयोग करने में सक्षम हो। इसके साथ-साथ परिकल्पना का परीक्षण निर्धारित समय-सीमा के अन्दर करना सम्भव होना चाहिए।

मितव्ययता (Economicity)- किसी भी अच्छी परिकल्पना की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता उसका मितव्ययी होना है, अर्थात् समय, श्रम व व्यय की दृष्टि से परिकल्पना का सत्यापन करना यथासम्भव मितव्ययी होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, कम कम समय में, कम से कम श्रम करके एवं कम से कम संसाधनों का उपयोग करके परिकल्पना का परीक्षण करना सम्भव होना चाहिए। परन्तु मितव्ययता के लिए गुणवत्ता व विश्वसनीयता से समझौता करना उचित नहीं होता है।

निःसन्देह अच्छी परिकल्पना का निर्माण करना एक कठिन व श्रमसाध्य कार्य है। परन्तु अनुसंधानकर्ता अपने ज्ञान, समझ, विवेक व अनुभव से अनुसंधान हेतु अच्छी परिकल्पना का निर्माण कर सकता है। पीछे इंगित की गई विशेषताएँ किसी अनुसंधान परिकल्पना का निर्माण व चयन करते समय कसौटी का कार्य कर सकती है।

अनुसंधान परिकल्पना का वर्गीकरण

परिकल्पनाओं के कुछ वर्गीकरण निम्न हैं-

1. प्रथम वर्गीकरण

(i) अन्तर की परिकल्पना (Hypothesis of Difference)

(ii) सह-सम्बन्ध की परिकल्पना (Hypothesis of Co-relationship)

2. द्वितीय वर्गीकरण

(i) दिशापरक परिकल्पना (Directional Hypothesis)

(ii) दिशाविहीन परिकल्पना (Non-Directional Hypothehsis)

(iii) शून्य परिकल्पना (Null Hypothesis)

3. तृतीय वर्गीकरण

(i) सकारात्मक परिकल्पना (Positive Hypothesis)

(ii) नकारात्मक परिकल्पना (Negative Hypothesis)

4. चतुर्थ वर्गीकरण

(i) पूर्व कथित परिकल्पना (Pre diction Hypothesis)

(ii) उत्तरर कथित परिकल्पना (Post diction Hypothesis)

(iii) वर्णित परिकल्पना (Description Hypothesis)

5. पंचम वर्गीकरण

(i) अनुसंधान परिकल्पना (Research Hypothesis)

(ii) सांख्यिकीय परिकल्पना (Statistical Hypothesis)

(a) शून्य परिकल्पना (Null Hypothesis)

(b) वैकल्पिक परिकल्पना (Alternative Hypothesis)

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shubham yadav

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