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मूल्यांकन हेतु CGPA व GGPA की गणना (Calculation CGPA and GGPA in Evaluation)
शिक्षा में छात्रों द्वारा की गई प्रगति और अधिकांश का मूल्यांकन अति आवश्यक और अनिवार्य है। अध्यापकों के लिए भी यह जानना उपयोगी और सन्तोषप्रद होता है कि उनके शिक्षण से उनके विद्यार्थी कितना लाभान्वित हुए हैं। इसके अतिरिक्त अभिभावक भी यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि उनके बच्चों ने कैसी प्रगति की है। इसे जानकर शिक्षक और अभिभावक बच्चों का सही मार्गदर्शन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को भी अपनी शैक्षिक उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे वे अपनी शैक्षिक योजनायें उसी के अनुसार बनाते हैं। हमारे देश में वर्षों से इसके लिये परीक्षाओं की व्यवस्था होती रही है जिसमें छात्र प्रश्न पत्रों में दिये गये प्रश्नों के उत्तर देते हैं और परीक्षकों द्वारा उन्हें अंक प्रदान किये जाते रहे हैं। यह अंक 0 से 100 तक के प्राप्तांक हो सकते हैं। इनके आधार पर पूर्व निर्धारित मनचाहे विभाजन के आधार पर छात्रों को प्रथम, द्वितीय या तृतीय श्रेणी प्रदान कर दी जाती है। यह प्रणाली वर्षों से बिना किसी संशोधन या परिवर्धन के चली आ रही है, जिसका कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं है।
इस प्रणाली की आलोचना समय-समय पर की जाती रही है। इसकी आलोचना परीक्षकों द्वारा अपनी विचारधारा और उस समय की उनकी मानसिक स्थिति के आधार पर की जाती रही है। इसके अतिरिक्त जहाँ 59.8% प्राप्तांक पाने वाला छात्र द्वितीय श्रेणी प्राप्त करता है वहीं 60% अंक प्राप्त करने वाला छात्र प्रथम श्रेणी प्राप्त करता है जबकि वास्तव में दोनों छात्रों की योग्यता में कोई अन्तर नहीं होता। इस प्रकार के मूल्यांकन में विषय की प्रकृति द्वारा ही अंकों का निर्धारण होता है, जैसे गणित में 100% अंक प्राप्त करना सम्भव है, पर इतिहास या भाषा में यह सम्भव नहीं है।
अंकन प्रणाली की इन कमियों के कारण माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) तथा शिक्षा आयोग (1964-66) ने अंकों के स्थान पर ग्रेड प्रणाली का सुझाव दिया। 1975 में NCERT के द्वारा जारी ‘Frame work of curriculum for ten year school’ में भी ग्रेड प्रणाली की सिफारिश की गई थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की ‘Plan of Action National Policy on Education में भी विश्वविद्यालय स्तर पर ग्रेड प्रणाली अपनाने की बात कही गयी है।
परीक्षा सुधार के क्षेत्र कार्यरत विषय विशेषज्ञों का ध्यान ग्रेड प्रणाली ने आकर्षित किया। उनके विचार में फलांकों के वर्गों (Marking Categories) को कम करके आंकिक प्रक्रिया की त्रुटियों को कम किया जा सकता है। इस प्रकार ग्रेड प्रणाली के अपनाये जाने को सिद्धान्त रूप में स्वीकार करने के पश्चात् भी ग्रेडों की संख्या पर एक मत निर्णय नहीं पाया गया। कुछ छात्रों के मत में 5 बिन्दु ग्रेड, कुल लोगों के मत में 7 और अन्य कुछ लोगों के मत में 9 बिन्दु ग्रेड प्रणाली उचित थीं।
विश्वविद्यालय अनुदान (UGS) तथा अनेक विश्वविद्यालयों में 1975 और 1976 में ग्रेड प्रणाली पर कार्यशालायें आयोजित की गईं और इसके आधार पर 7 बिन्दु ग्रेड प्रणाली अपनाने पर सहमति बन गई। यह ग्रेड O, A, B, C, D, E, और F हैं। इसका वर्णन आगे दी गई सारणी 1 में दिया गया है।
सारणी 1
7 बिन्दु ग्रेड प्रणाली
ग्रेड | O | A | B | C | D | E | F |
अंक | 6 | 5 | 4 | 3 | 2 | 1 | 0 |
शाब्दिक अर्थ | विशिष्ट out standing | अति उत्तम very good | उत्तम Above average | औसत average | निम्न below average | निकृष्ट Poor | आकृतिक विकष्ट very poor |
इन कार्यशालाओं में यह भी कहा गया कि तकनीकी संस्थाओं और कृषि विश्वविद्यालयों में 5 बिन्दु ग्रेड प्रणाली अपना ली गई है जो उनकी परिस्थितियों में उपयुक्त हो सकती है।
परीक्षकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप में ग्रेड प्रदान किये जा सकते हैं, परन्तु आवश्यकता होने पर प्राप्तांकों को भी सामान्य सम्भाव्य वक्र (NPC) के आधार पर 7 भागों में बाँटा जा सकता है। विभिन्न विषयों के लिए न्यूनतम ग्रेड औसत परीक्षा परिषद् या विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किये जा सकते हैं। यद्यपि यह निर्धारण क्षेत्र विशेष की आवश्यकता पर निर्भर करेगा, पर फिर भी न्यूनतम औसत ग्रेड सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के लिए 2 या D होना चाहिए। यदि किसी छात्र का औसत ग्रेड एक विषय में D से कम तथा अन्य विषयों में D से उत्तम हो तो उसे अगली कक्षा में शर्त के साथ भेज देना चाहिए कि वह उस विषय को अगले वर्ष उत्तीर्ण कर लेगा।
ग्रेड प्रणाली में परीक्षक छात्रों के प्रश्न वाद उत्तरों को सीधे-सीधे ग्रेड देकर मूल्यांकन कर सकेंगे तथा सम्पूर्ण उत्तर पुस्तका के लिए औसत ग्रेड ज्ञात कर लिया जायेगा। ग्रेड औसत की गणना के लिए सभी ग्रेड़ों को अंकों में परिवर्तित कर लिया जायेगा और उसके पश्चात् उनका औसत ज्ञात कर लिया जायेगा जिसे ग्रेड बिन्दु औसत (Grad point Average) कहा जाता है। ज्ञात बिन्दु ग्रेड प्रणाली में O को 6, A को 5, B को 4, C को 3, D को 2, E को 1 और F को शून्य अंक दिये जा सकते हैं। इस प्रकार उत्तर पुस्तिका के कवर पृष्ठ का प्रारूप सारणी 2 की तरह होगा।
सारणी : 2
ग्रेड बिन्दु औसत की गणना (Calculation of Grade Point Average)
प्रश्न संख्या | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 ग्रेड बिंदु G.P.A. |
ग्रेड | B | A | B | A | B | B | C |
ग्रेड बिंदु | 4 | 5 | 4 | 5 | 4 | 4 | 3 29/7=4.14 |
जब विभिन्न प्रश्नों के लिए भार (weightage) असमान हो तब विभिन्न प्रश्नों के ग्रेड बिन्दुओं को प्रतिशत में गणना कर उनका योग कर लेते हैं और उसे 100 से भाग देने पर ग्रेड बिन्दु ज्ञात हो जाता है। इसकी गणना को सारणी 3 में दर्शाया गया है।
सारणी : 3
भिन्न-भिन्न भार वाले प्रश्नों का ग्रेड बिन्दु औसत (Grade Point for Different Weightage of Qualities)
प्रश्न संख्या | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 |
भार | 25% | 10% | 20% | 25% | 20% |
ग्रेड | B | B | C | O | C |
ग्रेड बिंदु | 4 | 4 | 3 | 6 | 3 |
कुल भार | 100 | 40 | 60 | 150 | 60 |
संकलित ग्रेड बिंदु औसत G.P.A. 410/100=4.10
यदि प्रश्न पत्र प्रश्नों को प्रकृति के अनुसार खण्डों में विभाजित है जैसे एक खण्ड में वस्तुनिष्ठ प्रश्न है, दूसरे में लघु उत्तरीय प्रश्न तथा तीसरे खण्ड में दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं और हर प्रश्न का भार समान है तो हर खण्ड में दीर्घ उत्तरीय प्रश्न है और हर प्रश्न का भारत समान है तो हर खण्ड के औसत बिन्दु ग्रेड की गणना कर, तीनों का औसत निकाय संकलित ग्रेड बिन्दु औसत प्राप्त किया जा सकता है उदाहरणार्थ, प्रथम खण्ड का ग्रेड बिन्दु औसत 4.25 द्वितीय का 5.15 और तृतीय खण्ड का 4.5 है तो संकलित ग्रेड बिन्दु औसत होगा : 4.25 + 5.15+4.50 13.90/3=4.63.
ग्रेड प्रणाली के निम्नांकित लाभ हैं-
1. इससे विभिन्न विश्वविद्यालयों और बोर्ड के विद्यार्थियों की तुलना सरलता से की जा सकती है।
2. ग्रेड की सहायता से किया गया मूल्यांकन अधिक विश्वसनीय होता है।
3. ग्रेड प्रणाली एक सामान्य मापनी (Common Scale) का कार्य करती है जिससे विभिन्न विषयों और संकायों में अध्ययनरत विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि की तुलना सरलता से की जा सकती है
4. ग्रेड प्रणाली में छात्रों का एक विश्वविद्यालय या संस्था से दूसरे विश्वविद्यालय या संस्था. में स्थानान्तरण सरलता से किया जा सकता है।
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