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वनस्थली विद्यापीठ (Banasthali Vidyapeeth)
राजस्थान में जयपुर से लगभग 45 मील दूरी पर वनस्थली नामक एक ग्राम है जहाँ कि कुछ कांग्रेसी कार्यकर्त्ता श्री हीरालाल शास्त्री की अध्यक्षता में समाज सेवा कार्य कर रहे थे। सन् 1929 में शास्त्री जी ने इस ग्राम में ‘जीवन कुटीर’ नामक एक आश्रम की स्थापना की और अपने साथियों के साथ समीपवर्ती गाँवों में जाकर समाज सेवा का कार्य करते हुए गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों का प्रचार भी करते थे।
शास्त्रीजी की शान्ताबाई नामक एक पुत्री थी। सन् 1934 में जब वह बारह वर्ष की थी तब खेल-खेल में गीली मिट्टी से छोटी-छोटी ईंटें बना रही थी। पूछने पर बतलाया कि वह छोटे बालकों के लिए एक पाठशाला खोलना चाहती है और इसीलिए ईंटें बना रही है।
दुर्भाग्यवश अकस्मात् 25 अप्रैल, सन् 1935 ई० में उसका देहान्त हो जाने पर अपनी एकमात्र पुत्री की अपूर्ण अभिलाषा को पूर्ण करने के उद्देश्य से श्री हीरालाल शास्त्री ने अक्टूबर 1935 में उसी ‘जीवन कुटीर’ में शिक्षा कुटी नामक एक पाठशाला स्थापित की पर सन् 1936 में उसका नाम ‘राजस्थान बालिका विद्यालय’ रखा गया तथा सन् 1942 में वह ‘वनस्थली विद्यापीठ’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। वनस्थली विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्था है।
प्रारम्भ में इस विद्यालय का कार्यारम्भ छह छात्राओं से हुआ था लेकिन अब 1000 से भी अधिक छात्रायें हैं जो कि देश के विभिन्न प्रदेशों, वर्गों व जातियों की हैं। इस संस्थान को 1983 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया। प्रो० सुशीला व्यास जो वनस्थली विद्यापीठ की पहली छात्रा थीं, को इस विद्यापीठ का प्रथम निदेशक नियुक्त किया गया। विद्यापीठ में अब सभी आधुनिक सुविधाएँ है और बिजली, डाकघर, तार, नल, टेलीफोन आदि का समुचित प्रबन्ध है।
वनस्थली का वातावरण स्वतन्त्रता का वातावरण है जहाँ छात्राओं को अधिकतम स्वतन्त्रता दी जाती है और उनके व्यक्तित्व के निर्माण का प्रयास किया जाता है। जो छात्रा दो-चार वर्ष वनस्थली में पढ़ लेती है, उसके व्यक्तित्व में वनस्थली की झलक देखी जा सकती है। वनस्थली के विशाल पुस्तकालय में लगभग एक लाख पुस्तकें हैं जिनमें उच्च कोटि के अनेक दुर्लभ ग्रन्थ भी हैं। लगभग 750 पत्रिकायें नियमित रूप से आती हैं जिनमें उच्च स्तर की विदेशी पत्रिकायें भी हैं। क्षेत्रीय स्तर पर, राज्य के स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर भी वनस्थली की छात्राएँ खेलकूद के विभिन्न कार्यक्रमों में पुरस्कृत होती हैं। घुड़सवारी के प्रशिक्षण की यहाँ जो व्यवस्था है वह यहाँ का एक विशिष्ट व सराहनीय पक्ष है। लगभग प्रतिवर्ष ही राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान विश्वविद्यालय की मेरिट लिस्ट में यहाँ की छात्रायें भी स्थान पाती हैं।
विद्यापीठ के उद्देश्य (Aims of Banasthali Vidyapeeth)
वनस्थली विद्यापीठ में केवल महिलाओं की शिक्षा का प्रबन्ध है। बाइसवें कार्य विवरण में विद्यापीठ के उद्देश्य को इस प्रकार प्रकट किया गया है-
विद्यापीठ का उद्देश्य भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि में विज्ञान और प्रज्ञान के आधार पर व्यक्तित्व का सर्वतोन्मुखी शारीरिक, नैतिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास करने वाली ऐसी सर्वाङ्गपूर्ण शिक्षा की व्यवस्था करना है, जिसके परिणामस्वरूप गतिशील जीवन के अनुरूप, सुसंस्कृत, सुयोग्य और कार्यकुशल नागरिक का निर्माण किया जा सके। छात्राएँ सफल नागरिक तथा साथ-साथ सफल गृहिणी और माताएँ दोनों बनें, इसी उद्देश्य को लेकर
विद्यापीठ आगे आया है इन उद्देश्यों को सामने रखते हुए वनस्थली विद्यापीठ निम्नलिखित आदर्शों की पूर्ति का प्रयास करता है-
1. प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं एवं आदर्शों के अनुरूप छात्राओं को आध धुनिक शिक्षा प्रदान कर उनका चतुर्मुखी विकास करना।
2. पूर्व के आध्यात्मिक संस्कारों तथा पाश्चात्य भौतिक सफलताओं के मध्य समन्वय का प्रयास करना ।
3. छात्राओं के सर्वाङ्गीण विकास पर ध्यान देते हुए उनका चारित्रिक विकास करना।
4. विभिन्न घरेलू कार्यों की शिक्षा देकर छात्राओं को स्वावलम्बी बनाना।
5. छात्राओं में सहयोग, समाज सेवा, सहानुभूति व नागरिकता की भावनाओं का विकास करना।
6. पर्दा प्रथा जैसी परम्परागत रूढ़ियों का उन्मूलन कर बालिकाओं में नारी स्वातंत्र्य की भावनाओं का जागरण करना ।
7. बाह्य परीक्षाओं व बन्धनों से मुक्त कर छात्राओं को स्वतन्त्र रूप से अपने सन्तुलित विकास का अवसर देना।
वनस्थली विद्यापीठ की विशेषताएँ (Characteristics of Banasthali Vidyapeeth)
‘वनस्थली विद्यापीठ’ में निम्नलिखित विशिष्टताएँ हैं-
1. यह केवल बालिकाओं की शिक्षा संस्था है और इसमें बालकों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है।
2. यहाँ बालिकाओं को सादगी का जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
3. छात्रायें सूत कातने का कार्य अनिवार्य रूप से करती हैं।
4. अध्यापकों और विद्यार्थियों दोनों के लिए खादी पहनना आवश्यक है।
5. यहाँ की शिक्षा सर्वाङ्गीण विकास करने की क्षमता रखती है और वह स्वतन्त्र तथा प्रगतिशील भी है।
6. इस विद्यालय में भारतीय परम्पराओं तथा आदर्शों के अनुसार शिक्षा दी जाती है।
8. बालिकायें अपना निजी घरेलू कार्य स्वयं करती हैं ताकि उन्हें भविष्य में नौकरी का सहारा न लेन पड़े और कक्षा के पश्चात् तो सभी छात्राओं को भोजन बनाने में भी सहायता देनी पड़ती है।
9. छात्र वास में बिना किसी भेदभाव के सामूहिक जीवन व्यतीत करने की आदत डाली जाती है और उनका, छात्रावास का प्रबन्ध सभी छात्राओं के सहयोग से किया जाता है।
10. बालिकाओं के सर्वाङ्गीण विकास की दृष्टि से पाठ्यक्रम के विषयों के साथ-साथ घरेलू कार्यों की भी व्यवस्था की गयी है।
11. छात्राओं के लिए शारीरिक शिक्षा का भी प्रबन्ध है।
12. इस विद्यापीठ में अध्ययन करने वाली सभी छात्राओं का धन एक ही सम्मिलित कोष में रखा जाता है और प्रत्येक छात्रा अपनी आवश्यकतानुसार कोष से धन लेकर खर्च कर सकती है।
13. बालिकाओं के संरक्षकों से सम्पर्क बनाये रखने के लिए प्रतिवर्ष ‘संरक्षक सम्मेलन’ भी बुलाया जाता है।
इस प्रकार विद्यापीठ उस मार्ग की ओर अग्रसर होने का प्रयास कर रहा है, जहाँ परीक्षाओं, पाठ्यक्रमों, पाठ्य पुस्तकों, अनिश्चित तथा कठोरता से चलाये जाने वाले दैनिक कार्यक्रमों और घंटों की अनुचित प्रधानता न हो एवं शिक्षा वास्तव में घर के सहयोगी, ऊँचा उठाने वाले और अच्छा बनाने वाले वातावरण में व्यतीत किये जाने वाले वातावरण का रूप ले ले।
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