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समावेशी शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक

समावेशी शिक्षा का क्षेत्र
समावेशी शिक्षा का क्षेत्र

समावेशी शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors influencing of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors influencing of Inclusive Education)- समावेशी शिक्षा अपने एवं क्रियान्वयन में बालकों की विशेष रूप से सीमान्त एवं अति संवेदनशील समूहों से सम्बन्ध रखने वालों को शिक्षा तक पहुँच बनाने के लिए प्रयत्नशील है, जिन्होंने विद्यालय का कभी मुँह नहीं देखा है।समावेशी शिक्षा तत्पर है, शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ सामान्य जीवन की तैयारी में उनकी सहायता के लिए समावेशी शिक्षा को कुछ कारक प्रभावित करते हैं जो निम्न प्रकार हैं-

(1) माता-पिता- बहुत सारे माता-पिता समावेशी शिक्षा को प्रभावित करते हैं क्योंकि वह समावेशी शिक्षा को कुछ नहीं मानते हैं। वह यह समझते हैं कि इससे विशिष्ट बालकों को लाभ होगा या नहीं लेकिन हमारे बच्चों का नुकसान अवश्य हो जाएगा क्योंकि विशिष्ट बालक सामान्य बालकों की विकास प्रक्रिया को धीमा करेंगे। इस कारण से बहुत सारे माता-पिता अपने बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रणाली में प्रवेश नहीं दिलाते हैं।

(2) रूढ़िवादिता- रूढ़िवादिता की अभिवृत्ति बालकों की अपेक्षा उनके माता-पिता में अधिक होती है जो समावेशी शिक्षा को प्रभावित करते हैं। आशक्त तथा बाधिक बालकों को समावेशी शिक्षा से सबसे अधिक लाभ होने की सम्भावना है लेकिन सामान्य बालकों के माता-पिता उनका आशक्त बालकों के साथ अन्तःक्रिया करने का विरोध करते हैं।

(3) समुदाय – समुदाय किसी भी शैक्षिक संस्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शिक्षा का एक अनौपचारिक लेकिन सक्रिय साधन है। बालक के व्यक्तित्व विकास पर  इसका प्रभाव माता-पिता एवं विद्यालय के प्रभाव से किसी भी प्रकार से कम नहीं है समुदाय है। बालक के व्यवहार में सामाजिक सम्बन्धों, सामूहिक क्रियाओं आदि से परिवर्तन लाता है। समाज अपने माध्यमों द्वारा बालक का समाजीकरण करता है तथा उसे सामाजिक बनाता है।

(4) शिक्षक- समावेशी शिक्षा को शिक्षक भी प्रभावित करते हैं। समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे सभी बालकों की विशिष्ट आवश्यकताओं का भी ध्यान रखना होता है और उसी अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है। साथ ही साथ उन्हें उनकी विशिष्टता का अहसास न कराते हुए सामान्य बच्चों की तरह ही समझना होता है। यदि शिक्षक बच्चे के नजरिये का सम्मान नहीं करता है, वह बच्चे के परिवेश के प्रति संवेदनशील नहीं है तो बच्चे का अपने समाज, संस्कृति एवं परिवेश के प्रति नजरिया बदल जाता है और वह अधिकतर को हीन समझने लगते हैं जिसका परिणाम विद्यालय से पलायन के रूप में नजर आता है। अतः शिक्षक का कर्तव्य है कि वह समावेशी विद्यालय के वातावरण को जटिल न बनने दे क्योंकि समावेशी विद्यालय का वातावरण बच्चे के लिए असहज, असुरक्षित, अपमानित करने वाला या हीनता की भावना उत्पन्न करने वाला होगा। तो बच्चे शिक्षा से विरत हो सकते हैं। समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्योंकि समावेशी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक केवल अपने आपको शिक्षण कार्य तक ही सीमित नहीं रखता है, अपितु विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं वाले बालकों का कक्षा में उचित ढंग से समायोजन करना उनके लिए विशिष्ट प्रकार की शैक्षिक सामग्री का निर्माण करना भी होता है।

(5) समावेशी विद्यालय बालक घर से निकलकर विद्यालय में प्रवेश करता है। इसके अन्तर्गत बालक पारिवारिक परिवेश से बाहर निकलकर विद्यालय में तथा प्रवेश के बाद बालक का भावात्मक, बौद्धिक तथा मानसिक विकास सुनिश्चित किया जाता । समावेशी विद्यालय बालकों की विभिन्न आवश्कताओं को समझते हुए उचित पाठ्यक्रम एवं कौशलों के माध्यम से शिक्षा प्रदान कराते हैं तथा उचित वातावरण एवं सुविधाओं का ध्यान रखते हुए उनको उनकी योग्यता के अनुसार विभिन्न शिक्षण विधियाँ उपलब्ध कराते हैं। विशिष्ट बालकों को विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम प्रदान करने के लिए उचित शिक्षण तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था करते हैं। इस तरह समावेशी विद्यालय भी समावेशी शिक्षा को प्रभावित करते हैं।

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shubham yadav

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