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अभिप्रेरणा के सिद्धान्त | अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त | अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त

कर्ट लेविन का अभिप्रेरणा का सिद्धान्त | अभिप्रेरणा के सिद्धान्त | अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त | अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त | अभिप्रेरणा का उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धान्त | इच्छा शक्ति पर आधारित सिद्धान्त

कर्ट लेविन का अभिप्रेरणा का सिद्धान्त | अभिप्रेरणा के सिद्धान्त

अभिप्रेरणा के महत्त्व के कारण इस पर आधारित प्रयोगों एवं अनुसन्धानों पर निरन्तर बल दिया जा रहा है। इन प्रयोगों एवं अनुसन्धानों के आधार पर ऐसे अनेक सिद्धान्तों का ज्ञान हुआ है जिसके द्वारा अभिप्रेरणा की युक्तियों को प्रभावी बनाकर छात्रों की अधिगम तत्परता में वृद्धि की जा सकती है। कर्ट लेविन, विलियन मैक्डूगल, फ्रायड आदि का योगदान, इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

कर्ट लेविन का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक कर्ट लेविन थे। इन्होंने अपने सिद्धान्त में, व्यक्ति के क्षेत्र, जीवन-विस्तार, तलरूप, सदिश, अनेक बाधायें, कर्षण शक्तियों के आधार पर अधिगम सिद्धान्त को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। इनके अनुसार, अधिगम में प्रेरणा का प्रयोग अति आवश्यक है, क्योंकि प्रेरणा के द्वारा शिक्षार्थी निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अधिगम से पहले करके शिक्षार्थियों को प्रेरित करना चाहिये, क्योंकि इससे उनमें अधिगम में रुचि, ध्यान इत्यादि विकसित होता है।

अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक विलियम मैक्डूगल है। इस सिद्धान्त के अनुसार, व्यक्ति का व्यवहार उसकी मूल प्रवृत्तियों से संचालित होता है। इस सम्बन्ध में स्वयं मैक्डूमल ने लिखा है कि-“परोक्ष या अपरोक्ष रूप में मूल प्रवृत्तियाँ ही समस्त मानव क्रियाओं की प्रमुख चालक हैं। यदि इन मूल प्रवृत्तियों तथा इनसे सम्बन्धित संवेगों को पृथक् कर दिया जाये, तो प्राणी किसी भी प्रकार का कार्य नहीं कर सकेगा। वह उसी प्रकार निश्चल और गतिहीन हो जायेगा जिस प्रकार बिना मुख्य कमानी के एक अच्छी घड़ी भी नहीं चल सकती है अथवा भाप के बिना स्टीम इन्जन नहीं चलाया जा सकता है।”

इस प्रकार हम देखते हैं कि मूल प्रवृत्तियों का व्यवहार के संचालन में विशेष महत्त्व है, परन्तु केवल मूल प्रवृत्तियाँ ही व्यवहार के संचालन में सहायक नहीं होती। इसी कारण से जिन्सबर्ग, मर्सेल आदि मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस मत की आलोचना की गई है।

अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रायड द्वारा किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार, मनुष्य के द्वारा जितने भी कार्य किये जाते हैं, उनकी पृष्ठभूमि में उसकी यौनच्छा तथा सुखवादी प्रवृत्ति छिपी होती है। फ्रायड के अनुसार, व्यक्ति के अचेतन अथवा अर्द्धचेतन में छुपी हुई ये इच्छायें ही मानव को किसी निश्चित व्यवहार की दिशा में प्रेरित करती हैं, परन्तु मानव के व्यवहार की अनेक क्रियायें इस प्रकार की भी होती हैं, जो उसकी विवशता का परिणाम हुआ करती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं को करने से उसे किसी प्रकार का सुख या यौन सन्तुष्टि प्राप्त नहीं होती है। अतः इस सिद्धान्त की भी मनोवैज्ञानिकों द्वारा आलोचना की गई है।

अभिप्रेरणा का उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धान्त

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन व्यवहारवादियों द्वारा किया गया, जिनमें स्किनर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। व्यवहारवादियों के अनुसार व्यक्ति का समस्त व्यवहार किसी-न-किसी उद्दीपन का ही परिणाम होता है। इस उद्दीपन के आधार पर ही वह विभिन्न प्रकार की अनुक्रियायें करता है। व्यवहारवादियों के अनुसार व्यक्ति के चेतन या अचेतन मस्तिष्क में किसी भी प्रकार की अभिप्रेरणा निहित नहीं होती। इस सिद्धान्त की भी आलोचना की गई है।

इच्छा शक्ति पर आधारित सिद्धान्त

इस मत का समर्थन करने वाले मनोवैज्ञानिक ने व्यक्ति के व्यवहार के संचालन में उसकी इच्छा शक्ति को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। उसके अनुसार मानव का समस्त व्यवहार उसकी इच्छा या संकल्प शक्ति का ही परिणाम होता है। अभिप्रेरणा की दृष्टि से इस सिद्धान्त को भी पर्याप्त समर्थन प्राप्त नहीं हो सकता है।

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shubham yadav

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