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नवाचारी कक्षाकक्ष का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Innovative Classroom)
नवाचारी कक्षाकक्ष के अर्थ को समझने के लिए निम्न विद्वानों की परिभाषा महत्त्वपूर्ण हैं-
1. होमन का विचार (Homan’s View) “कक्षाकक्ष ऐसा स्थान है जहाँ विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ चलती हैं, जहाँ पारस्परिक क्रिया होती है, सामाजिक परिस्थितियों को बेहतर बनाया जाता है और निर्देशात्मक स्थितियों में नियम बनाये जाते हैं।”
2. ज्योति क्रिश्चियन का विचार (Jyoti Christian’s View)- “कक्षाकक्ष समाज में स्थापित संस्था है। कक्षाकक्ष में दी जाने वाली निर्देशन प्रक्रिया अध्यापक द्वारा स्वीकृत महत्त्वपूर्ण व्यवहारों द्वारा छात्रों के मस्तिष्क को परिष्कृत करने के उद्देश्य को पूरा करती है।”
3. जॉन ड्यू का विचार (John Dewey’s View)- “कक्षाकक्ष में ऐसी स्थितियाँ होती हैं जो छात्रों की गुणोन्मुख गतिविधियों को आगे बढ़ाती हैं अथवा बाधा डालती हैं, प्रेरित करती हैं अथवा रोक लगाती हैं।”
4. जॉन वैस्ले का विचार (John Wesley’s View)- कक्षाकक्ष के आधारभूत ढाँचे की ओर संकेत करते हुए जॉन वैस्ले ने कहा है, “जितना अच्छा आप कर सकते हैं, करें जिन भी साधनों में करना चाहें, कर सकते हैं। सभी प्रकार से कर सकते हैं और अपेक्षाकृत सभी स्थानों पर आप कर सकते हैं, हर समय आप कर सकते हैं, सभी लोगों के साथ आप कर सकते हैं और जब तक चाहें तब तक आप कर सकते हैं।”
5. शोधकर्ताओं का विचार (Researchers’ View)- शोधकर्ता कक्षाकक्ष की परिभाषा इस प्रकार देते हैं
(1) कक्षाकक्ष सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण का स्थान है (Classroom is a place of socio-cultural milieu) |
(2) भारत का भाग्य उसके कक्षाकक्षों में गढ़ा जा रहा है (Destiny of India is being shaped in her classroom)|
(3) कक्षाकक्ष परस्पर क्रिया का नेटवर्क है (Classroom is a network of interactions)।
6. फिलिप जैक्सन का विचार (Philip Jackson’s View)- “कक्षाकक्ष ऐसा स्थान है जहाँ छात्र अपने जीवन निर्माण काल का अधिकतर समय व्यतीत करते हैं। यह वह स्थान भी है जहाँ परीक्षण असफल और सफल होते हैं, मन बहलाने की बातें पूरी होती हैं, जहाँ नई अन्तर्दृष्टि मिलती है और कौशल प्राप्त किये जाते हैं किन्तु यह वह स्थान भी है जहाँ छात्र बैठते और सुनते हैं, प्रतीक्षा करते हैं और देखते हैं, अपने हाथ खड़े करते हैं, परीक्षा पास करते हैं, पंक्तिबद्ध खड़े होते हैं और अपनी पेंसिलें तेज करते हैं।”
नवाचारी शिक्षा एवं इसके अनुप्रयोग अथवा अभ्यास (Innovative Education and its Practices)
नवाचारी शिक्षा में कक्षाकक्ष शिक्षण एवं इसके अनुप्रयोग अथवा अभ्यास निम्नलिखित प्रकार से देखे जा सकते हैं-
1. सह-शिक्षण (Co-Teaching)
नवाचारी शिक्षण के लिए सह-शिक्षण की प्रविधि में कक्षा में दो या दो से अधिक शिक्षक शिक्षा प्रदान कराते हैं। एक-दूसरे की सहायता द्वारा यह शिक्षण कार्य होता है। एक जो पढ़ता है तथा दूसरा जो उसकी मदद करता है। ये अपने हाव-भाव के द्वारा विशिष्ट बालकों को समझाने का प्रयास करते हैं।
सह-शिक्षण के निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो सकते हैं-
(i) सह-शिक्षण की प्रक्रिया में विकलांग छात्र अपने सहपाठियों के साथ जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं।
(ii) विकलांग बालकों को सामान्य शिक्षा तथा सामान्य शिक्षा पाठ्यक्रम की उपलब्धता कराया जाता है।
(iii) सह-शिक्षण द्वारा विकलांग बालकों को विशिष्ट अनुदेशन प्रदान किया जाता है।
सह-शिक्षण के मॉडल अथवा प्रतिरूप- (i) एक पढ़ता है दूसरा सहायता करता है, है (ii) एक सिखाता है। दूसरा निरीक्षण करता है, (iii) इसमें समान्तर शिक्षक की भूमिका होती है। एक ही समय में दोनों शिक्षण देते हैं।
2. दल शिक्षण (Team Teaching )
दल शिक्षण के अन्तर्गत सामान्य एवं विशिष्ट अध्यापक सभी बच्चों को एक ही कक्षा में एक साथ शिक्षा प्रदान करते हैं। इन सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ बैठने के अवसर इसलिये प्रदान किये जाते हैं, ताकि वे हर तरह के दबाव से मुक्त होकर एक-दूसरे को समझने लगें तथा उनके हृदय में एक-दूसरे के प्रति विद्यमान दूरी को समाप्त किया जा सके। यह एक सुनियोजित प्रतिमान है। इसलिये इसे लागू करने से पूर्व पूर्णतः नियोजित करना अनिवार्य है। इस प्रतिमान के माध्यम से प्रभावशाली सह-शिक्षा तभी सम्भव हो सकती है। जब सामान्य एवं विशिष्ट अध्यापक दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करें। दल शिक्षण के विकास हेतु दो बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है-
(i) नवाचारी दल शिक्षण में मौलिक घटकों को हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है। यथा अध्यापक विकास, समय एवं सहभागिता आदि।
(ii) सामान्य एवं विशिष्ट अध्यापक का संयुक्त रूप सह-शिक्षण की भूमिका निभाता है। सफल सह-शिक्षकों (विशिष्ट व सामान्य) को अपनी सहभागिता के प्रति पूर्णतः ईमानदारी बरतनी चाहिए। जिस काम को सामान्यतः एक अध्यापक द्वारा किया जाता है उसी काम को दो अध्यापकों से करवाने हेतु उनमें आपसी समन्वय अनिवार्य है।
नवाचारी शिक्षा के इस प्रतिमान में नियोजन का कार्यान्वयन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह प्रतिमान सफल शिक्षण की ओर लेकर जाता है जिससे शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों को लाभ होता
3. मित्र मण्डली (Circles of Friends)
नवाचारी शिक्षा में विशिष्ट बालकों का मित्र समूह एवं सहपाठियों द्वारा उनके विकास को प्रभावित किया जाता है। जिन बालकों के मित्र एवं सहपाठी नैतिक तथा चारित्रिक वातावरण की दृष्टि से विकसित होते हैं उनका नैतिक एवं चारित्रिक विकास बहुत तीव्र गति से प्रारम्भ होता है क्योंकि समावेशी बालक मित्र मण्डलियों में अपने मित्रों तथा सहपाठियों से बहुत कुछ सीखते हैं। वे अपने व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं। इसके विपरीत जिन बालकों के मित्र एवं सहपाठी अनैतिक आचरण में लिप्त पाये जाते हैं। उन पर अपने सहपाठियों का कुप्रभाव अनिवार्य रूप से होता है और उनका विकास मन्द गति से होता है। स्पष्ट है कि बालकों के तीव्र नैतिक विकास की दृष्टि से उनका मित्र एवं सहपाठी वर्ग भी नैतिक विकास से परिपूर्ण होना चाहिए। इनके नैतिकता की प्रकृति दूसरे बालकों को प्रभावित करती है। इसलिये सामान्य रूप से विशिष्ट बालकों का अभिभावकों एवं शिक्षकों द्वारा छात्र एवं छात्राओं को यह समझाया जाता है कि उनकी मित्र मण्डली या सहपाठी वर्ग अच्छे एवं नैतिक आदर्श वाले होने चाहिए जिससे कि उनका संवेगात्मक, मानसिक एवं शैक्षिक विकास उचित प्रकार से हो सके।
नवाचारी शिक्षण हेतु समावेशी विद्यालयों में विशिष्ट बालकों को समूह में रहना सिखाया जाता है जिससे वह एक-दूसरे को देखकर सीखने का प्रयास करे। ये समूह सहपाठी वर्ग के होते हैं। सामान्यतः इन समूहों के सदस्यों के मध्य विचारों एवं सोच में समानता पायी जाती है तो आपसी समझ का विकास होता है लेकिन विचारों की असमानता समूह के सदस्यों के बीच में वैचारिक मतभेद को जन्म देती है जिससे वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जो कभी-कभी झगड़े का रूप धारण कर लेती है। इससे वैयक्तिक विघटन की सम्भावना भी बढ़ जाती है। अतः मित्र मण्डली अच्छी होनी चाहिए।
4. दोस्त प्रणाली (Buddy System)
नवाचारी शिक्षण की दोस्त प्रणाली एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो लोग एक साथ एक इकाई के रूप में काम करते हैं तथा दोनों एक-दूसरे की सहायता करने में सक्षम होते हैं तथा दोनों अपने कौशलों के द्वारा काम को समाप्त करते हैं। इस प्रणाली के द्वारा विद्यालय में सहयोग और भावना का वातावरण उत्पन्न होता है। इसमें दोनों एक-दूसरे का समर्थन करते हैं तथा इसमें सकारात्मक प्रतिक्रिया की सम्भावना अत्यधिक बढ़ जाती है। छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ जाता है। एक-दूसरे के साथ रहने पर किसी भी विषय पर चर्चा करने में आनन्द की अनुभूति करते हैं। शिक्षकों के साथ विचार विमर्श की जरूरत नहीं पड़ती है। इसके प्रणाली के द्वारा वह समाज में लोगों के साथ सहानुभूति रखते हैं एवं लोगों को समझने का प्रयास करते हैं।
5. अभिभावकों की भागीदारी (Present Involvement)
नवाचार शिक्षण में अभिभावकों की भागीदारी एवं उनका सहयोग अपेक्षित है-
(i) अभिभावकों को बालकों के अध्ययन का उचित प्रबन्ध करना चाहिए तथा पढ़ने वाला स्थान शान्त एकान्तमय होना चाहिए।
(ii) अभिभावकों को घर में स्वतन्त्र वातावरण प्रदान करना चाहिए तथा नये-नये प्रयोग करने की छूट देनी चाहिए ताकि उनकी सृजनात्मकता खुलकर सामने आये।
(iii) बच्चों के विकास के लिए सदा स्कूल के अध्यापकों के सम्पर्क में रहना चाहिए।
(iv) अभिभावकों को बच्चों के प्रति दृष्टिकोण सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
(v) माता-पिता को बालकों के सृजनात्मक चिन्तन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
(vi) अभिभावकों का कर्त्तव्य है कि वह बालकों में आत्मनिर्भरता का गुण उत्पन्न करें। उन्हें प्रेरित करें।
6. उपचारात्मक सहायता (Remedial Help)
विशिष्ट बालकों को विद्यालय में शिक्षकों, प्रशिक्षकों द्वारा उपचारात्मक सहायता प्रदान की जाती है ताकि उनका मानसिक विकास हो। ऐसे बालकों की गीत संगीत के द्वारा जीवन में संघर्ष करने की प्रेरणा दी जाती है। ऐसे बालकों की किसी गलती को सहज नहीं लेना चाहिए। ऐसे बालकों को डराने, धमकाने की बजाए प्यार से समझाना चाहिए जीवन के प्रति रुचि बनी रहे। नवाचारी कक्षा-कक्ष विशिष्ट बालकों हेतु सदैव समायोजन प्रदान करता है। अतः बालकों को सदैव प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
नवाचारी शिक्षण अनुभवी अध्यापकों के प्रशिक्षण द्वारा विशिष्ट बालकों को इस योग्य बनाया जाता है कि वे अपने आपको सँभाल सके तथा कोई छोटा-मोटा कार्य करने के योग्य हो सके। इन बालकों में चिन्तन की योग्यता नहीं होती। अतः उनको पढ़ाने के लिए डाल्टन विधि तथा योजना विधि का प्रयोग कराना चाहिए इन विधियों के द्वारा हाथ से कार्य करने में बल पर जोर दिया जाता है तथा प्रशिक्षित शिक्षक, अनुदेशन कार्य करने में मदद करते हैं।
कक्षाकक्ष अधिगम हेतु प्रमुख तत्त्व (Main Elements for Classroom Learning)
नवाचारी कक्षाकक्ष में अध्यापक को निम्नलिखित तत्त्वों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. शिक्षा की तकनीकी का प्रयोग (Using Educational Technology )
2. भौतिक वातावरण की व्यवस्था (Arranging the Physical Environment)
3. समय तथा अन्य संसाधनों का प्रबन्धन प्रवृत्ति (Managing Time and other Resources)
4. अनुदेशनात्मक वातावरण का संगठन (Organisation of Instructional Environment)
1. शिक्षण की तकनीक का प्रयोग
वर्तमान समय में शिक्षा की आधुनिक तकनीक में व्यवस्थित अनुदेशनात्मक प्रविधियाँ, प्रक्रियाओं का व्यवहार में परिवर्तन, उपकरणों की उच्च तकनीक, माध्यम तथा अधिगम साधन सम्मिलित हैं, विद्युत तकनीक जैसे दूरदर्शन, रेडियो, श्रव्य और दृश्य टेप तथा कम्प्यूटर ने शिक्षा की उत्पादकता, गुणवत्ता तथा उपलब्धता के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है।
2. कक्षा के वातावरण की व्यवस्था
नवाचारी कक्षाकक्ष के भौतिक वातावरण के व्यवस्थापन हेतु अनेक तत्त्व ध्यान में रखने आवश्यक होते हैं-
(i) कक्षा का वातावरण अर्थात् कक्षा में तापमान, प्रकाश, ध्वनि स्तर, वायु प्रवाह, आकर्षक साज-सज्जा का अनुकूलन समन्वय जिससे कक्षा में विद्यार्थियों को अनुकूल कार्य दशाएँ प्राप्त हों अर्थात् वे कक्षा कार्य में रुचि ले सकें।
(ii) नवाचारी कक्षाकक्ष में फर्श, डेस्क तथा उपकरणों पर बिखरी वस्तुओं को हटाकर तथा कार्य में अवरोधकों को दूर करके कक्षा में सुरक्षित तथा बाधा रहित वातावरण का निर्माण इसमें कक्ष के निर्माण सम्बन्धी अवरोधों को भी दूर करना भी सम्मिलित हैं।
(iii) विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था करते समय शिक्षा के लक्ष्यों को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि विद्यार्थियों पर सामाजिक अन्तःक्रियाओं का प्रभाव पड़ता है।
(iv) एकत्र होने, कार्य करने तथा क्रिया-कलापों को करने के लिए पर्याप्त स्थान की व्यवस्था हो ।
(v) कक्षाकक्ष के व्यवस्थापन में कक्षा का फर्नीचर आरामदायक, आकर्षक, टिकाऊ तथा सुगमता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने योग्य हो ।
3. समय तथा अन्य संसाधनों, साधनों का प्रबन्धन
नवाचारी कक्षाकक्ष हेतु समस्त अधिगम वातावरण का प्रबन्धक होने के कारक अध्यापक आवश्यक अधिगम साधनों के स्थान, संगठन तथा प्रयोग का पर्यवेक्षण एवं प्रबन्धन करता है। एक अध्यापक समय तथा संसाधनों के प्रबन्धन हेतु निम्नलिखित व्यवस्थाएँ अपनाता है-
(A) अनुदेशनात्मक सामग्री (Instructional Material)- नवाचारी शिक्षण में अनुदेशन की प्रमुख आवश्यकता होती है। विद्यार्थियों की अधिगम सहायता हेतु अनुदेशनात्मक सामग्री का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनुदेशनात्मक सामग्री कब तक कार्य करेगी, इसे कब कितने विद्यार्थी प्रयोग कर सकते हैं, इसकी बनावट कैसी है, यह मजबूत है या नहीं, इसकी समाधान की क्षमता प्रस्तुति अनुक्रम, अदा स्तर, स्थापित तथा अनुक्रिया स्तर कैसा है ?
(B) अनुदेशन का समय (Instructional Time)- अध्यापक को कक्षा के नियमित कार्यक्रम को छोटे-छोटे खण्डों में बाँट देना चाहिए तथा विद्यार्थियों को बतला देना चाहिए कि किस समय कौन-सा क्रिया-कलाप क्रिया जायेगा, नियमित कार्यक्रम से सम्बन्धित कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं-
(i) छोटे कार्य से लम्बे कार्य की ओर अग्रसर होना।
(ii) निश्चित कार्यक्रम से परिवर्तित कार्यक्रम की ओर प्रगति करना।
(iii) खाली समय हेतु योजना तथा कार्यक्रमों का आयोजन करना ।
(iv) कम अच्छी क्रियाओं को अधिक अच्छी क्रियाओं में परिवर्तित करना ।
(v) विभिन्न क्रिया-कलापों का नियोजन करना।
(vi) उन कार्यों का आयोजन जो कि एक दिन में समाप्त किये जा सके।
(vii) नियमित कार्यक्रम प्रदान करना।
(C) कठिनाइयों हेतु कार्यक्रम (Personnel Difficulties)- कठिनाइयों के समाधान के लिए अनेक कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं। यदि अध्यापक को समस्त अनुदेशनों को प्रयुक्त करने में कठिनाई हो तो वह अपने साथी अध्यापकों तथा कार्यकर्ताओं का सहयोग प्राप्त कर सकता है।
4. कक्षा के वातावरण का संगठन
नवाचारी कक्षाकक्ष के वातावरणीय संगठन पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है। कक्षा के अनुदेशनात्मक वातावरण के अन्तर्गत प्रक्रिया सामग्री को सम्मिलित किया जाता है। अध्यापक पाठ्यक्रम तैयार करता है, विद्यार्थियों का समूह बनाता है, विद्यार्थियों में कौशल अथवा निपुणता को प्रस्तुतीकरण तथा अभ्यास तथा सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु प्रस्तुत करने की व्यवस्था करता है। इस ढाँचे का सीधा प्रभाव अशैक्षिक क्रियाओं तथा विद्यार्थियों की उपलब्धियों पर पड़ता है। कक्षा वातावरणं एवं संगठन को ध्यान में रखने योग्य मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित है-
(i) नवाचारी शिक्षा हेतु कक्षाकक्ष का वातावरणीय संगठन विद्यार्थियों के व्यवहार को सुधारने के लिए तथा उसे अच्छे व्यवहार की प्राप्ति हेतु निर्देशन रूपरेखा तैयार करती है, कक्षा के लिए ऐसे नियम तथा नियमित कार्यक्रम बनाता है, जो संक्षिप्त विशिष्ट व आसानी से समझने वाले तथा सकारात्मक हों, सब नियमों तथा कार्यक्रमों को स्वीकार करने में विद्यार्थियों को अध्यापक, प्रारूप विद्यार्थियों को अध्यापक, प्रारूप अनुबोधन की सहायता मिलती है।
(ii) अनुदेशन हेतु बाधिताओं के आधार पर विद्यार्थियों के समूह बनाना, इसमें परिवर्तन करते रहना चाहिए।
(iii) पाठ्यक्रम कौशल अथवा निपुणता तथा सूचनाओं का संगठन, निपुणता तथा सूचनाओं को विषय क्रिया-कलापों तथा रुचि के अनुरूप संगठन।
(iv) अध्यापक विद्यार्थियों के अभिलेख रखता है, ये अभिलेख विद्यार्थियां की योग्यता के अनुरूप होते हैं तथा विद्यार्थियों के बार-बार निरीक्षण के आधार पर यह अभिलेख तैयार किये जाते हैं।
(v) अध्यापक नवाचारी शिक्षण के कक्षाकक्ष में अवलोकन की व्यवस्था करता है, अनुदेशनात्मक सामग्री प्रदान करता है। इस अनुदेशनात्मक सामग्री में स्वतः संशोधन सामग्री अनुदेशनात्मक कार्यक्रम तथा वैचारिक अनुदेशन, मध्यस्थ अनुदेशन सम्मिलित रहते हैं। इन अनुदेशनों से बालकों को पृष्ठ-पोषण मिलता है।
नवाचारी एवं विशिष्ट बालकों की शिक्षा के लिए योग्य अध्यापक की आवश्यकता होती है। विशिष्ट बालकों की शिक्षा हेतु अनेक विश्वविद्यालय स्पेशल बी. एड. (चार वर्षीय) तथा स्पेशल शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित करके शिक्षकों को प्रशिक्षित करते हैं।
सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत इन बच्चों को समेवित बालक की संज्ञा प्रदान की जाती है तथा अनेक सेवारत प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करके शिक्षकों को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाने हेतु योग्य बनाने का कार्य किया जाता है।
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