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पाठ्यक्रम की परिभाषा | पाठ्यक्रम का महत्त्व तथा उपयोगिता

पाठ्यक्रम की परिभाषा
पाठ्यक्रम की परिभाषा

पाठ्यक्रम की परिभाषा

पाठ्यक्रम का अंग्रेजी शब्द ‘Curriculum’ लैटिन भाषा के ‘Currere’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ‘दौड़ का मैदान’ (Race course) हॉर्न (Horne) ने शिक्षण प्रक्रिया के चार प्रमुख अंगों-विद्यार्थी, पाठ्यक्रम, वातावरण तथा शिक्षण का उल्लेख करते हुए बताया कि यदि पाठ्यक्रम शैक्षिक दौड़ का मैदान है, तो विद्यार्थी पाठ्यक्रमरूपी मैदान के अनुसार दौड़ने वाला धावक, वातावरण वह दर्शक है, जो उसे दौड़ने को प्रेरित करता है तथा शिक्षक पथ-प्रदर्शक है।

मुनरो के अनुसार, “पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है।”

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, “पाठ्यक्रम में सीखने वाले या बालक के वे सभी अनुभव निहित होते हैं, जिन्हें वह विद्यालय या उनके बाहर प्राप्त करता है। ये समस्त अनुभव एक कार्यक्रम में निहित होते हैं, जो उनको मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक व नैतिक रूप में विकसित होने की सहायता देते हैं।”

पेन के अनुसार, “पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी परिस्थितियाँ आती हैं जिनका प्रत्यक्ष संगठन और चयन बालकों के व्यक्तित्व में विकास लाने तथा व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु विद्यालय करता है।”

कनिंघम के अनुसार, “पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपने पदार्थ (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपने कक्षाकक्ष (स्कूल) में ढाल सके।”

एनन के अनुसार, “पाठ्यक्रम पर्यावरण में होने वाली क्रियाओं का योग है।” हेनरी जे. ओटो के अनुसार, “पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा हम बच्चों को शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के योग्य बनाने की आशा करते हैं।

शिक्षा आयोग के अनुसार, “विद्यालय की देखभाल में उसके अन्दर तथा बाहर अनेक प्रकार के कार्यकलापों से छात्रों को विभिन्न अध्ययन अनुभव प्राप्त होते है। हम विद्यालय पाठ्यक्रम को इन अध्ययन अनुभवों की समष्टि मानते हैं।”

माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, “पाठ्यक्रम का अर्थ केवल शास्त्रीय विषयों से नहीं है जिनको विद्यालय में परम्परागत ढंग से पढ़ाया जाता है बल्कि इसमें अनुभवों की सम्पूर्णता निहित है, जिनको बालक बहुत प्यार की क्रियाओं द्वारा प्राप्त करता है जो विद्यालय, कक्षाकक्ष, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, वर्कशॉप, खेल के मैदान तथा छात्रों एवं शिक्षकों के मध्य होने वाले अनेक औपचारिक सम्पर्कों में होती रहती है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो बालकों के जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श कर सकता है और सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता प्रदान कर सकता है।”

पाठ्यक्रम का महत्त्व तथा उपयोगिता (Importance and Utility of Curriculum)

कनिंघम के अनुसार, “पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथों में एक ऐसा उपकरण है जिसकी सहायता से वह अपनी सामग्री (विद्यार्थी) का अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपने कलागृह (विद्यालय) में निर्माण करता है।”

कनिंघम की उक्त पंक्तियों से ही पाठ्यक्रम की महत्ता स्पष्ट हो जाती है। वस्तुत: पाठ्यक्रम शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक साधन है। इसके अतिरिक्त यह अग्रलिखित रूप में भी उपयोगी है-

(i) पाठ्यक्रम प्रचलित शिक्षा व्यवस्था तथा प्रणाली को सुव्यवस्थित करता है।

(ii) पाठ्यक्रम उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निर्मित तथा विकसित किया जाता है, अतः उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।

(iii) पाठ्यक्रम की सहायता से हम प्रचलित दार्शनिक चिन्तन का पता लगा सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक पाठ्यक्रम समाज के तत्कालीन दार्शनिक चिन्तन की छाप होती है।

(iv) पाठ्यक्रम विभिन्न कक्षाओं की पाठ्य सामग्री के निर्माण तथा विकास में सहायक होता है।

(v) पाठ्यक्रम पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में सहायक होता है।

(vi) सुनिश्चित पाठ्यक्रम शिक्षा के स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है।

(vii) पाठ्यक्रम के आधार पर ही दो या अधिक शिक्षा प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन करना सम्भव हो पाता है।

(viii) पाठ्यक्रम के विश्लेषण से शिक्षा के स्तर के उत्थान व पतन का भी ज्ञान होता है।

(ix) पाठ्यक्रम के आधार पर निर्मित पाठ्य-पुस्तकों व पाठ्य सामग्री को ध्यान में रखते हुए ही शिक्षण पद्धतियों व विधियों का चयन किया जाता है। अतः पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों के चयन में सहायक होता है।

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shubham yadav

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