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प्रकृतिवादियों द्वारा निर्धारित शिक्षण की विधियाँ
प्रकृतिवादियों के विभिन्न सिद्धान्तों पर आधारित प्रतिपादित शिक्षण विधियाँ अग्रलिखित प्रकार हैं-
1. प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा सीखना- विद्यालय को इस प्रकार के स्वतन्त्र प्राकृतिक समाज के रूप में संगठित कर सिखाना चाहिये ताकि बालक में कर्त्तव्य एवं अधिकार के प्रति चेतनता जाग्रत हो सके। अर्थात् बालक को सामाजिक जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव को सुअवसर देना चाहिये।
2. करके सीखना- प्रकृतिवाद ‘करके सीखना’ पर अधिक बल देता है। बालक रुचि के अनुकूल सीखता है तथा करके सीखने में उसे आनन्द की अनुभूति होती है। इस प्रकार सीखना सहज एवं स्पष्ट तथा स्थायी होता है।
3. खेल द्वारा सीखना- खेल द्वारा सीखने में मनोरंजन के साथ स्थायी ज्ञान की प्राप्ति होती है। ‘खेल’ एक रचनत्मक प्रवृत्ति है, जो स्वाभाविकता, स्वतन्त्रता एवं आनन्द के लक्षणों द्वारा प्रतीत की जाती है। मॉण्टेसरी के अनुसार-“खेल प्राकृतिक शिक्षा देने का साधन है और बालक की शिक्षा उसकी प्रकृति के अनुसार होनी चाहिये।”
हेनरी काल्डवेलकुक ने लिखा है कि “मेरा विश्वास है कि केवल वही कार्य करने योग्य है, जो वास्तव में खेल है क्योंकि खेल से अभिप्राय: किसी कार्य को हृदय से करना है।”
4. स्वानुभव द्वारा सीखना – प्रकृतिवादी शिक्षाशास्त्रियों ने’ स्वानुभव द्वारा सीखने ‘ पर विशेष बल दिया है। उनका कथन है कि केवल पुस्तकीय ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है बालकों को प्राकृतिक वातावरण में रखकर वास्तविक परिस्थितियों से अवगत कराया जाये। अन्वेषण विधि (ह्यूरिस्टिक विधि), प्रायोजना, मॉण्टेसरी, डाल्टन तथा खेल विधि ऐसी विधियाँ हैं जिनमें बालक स्वयं करके ही ज्ञान प्राप्त करता है। रूसो का कथन कितना सार्थक है-“अपने छात्र को कोई शाब्दिक शिक्षा न दो, उसे मात्र अनुभव से सीखने दो।”
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